Book Title: Adhar Dushan Nivarak
Author(s): Anopchand Malukchand Sheth
Publisher: Anopchand Malukchand Sheth
View full book text
________________
(२२३) दोष गणता नश्री अने कहे जे के शास्त्रथी विरु.६ नथी ते न्यायीए विचारवं.
॥ अन्नक्ष्य नक्षणे दोषमाह ॥ पुत्रमांसं वरमुक्तं, न तु मूलक लक्षणं ॥ जदणात् नरकं याति, वर्जनात्स्वर्गमाप्नुयात् ॥१॥
अर्थः-पुत्रनुं मांस खावं ते सारं पण मूलो न खावो, मूलो खावाथी प्राणी नरकमां जाय बे ने एनो त्याग करवायी स्वर्ग: मां जाय ॥१॥
॥तिहासपुराणेऽपि ॥ यस्तु ठंताक कालिंग, मूलकानां च नदकः ॥ अंतकाले स मुढात्मा, न स्म रिष्यति मां प्रिये ॥१॥
अर्थः-तिहासपुराणमां नगवाने कां के प्रिये वें. गण, कालिंगमो अने मूलान खानार प्राणी अंतकालमां पण मने नहीं संन्नारे ॥१॥ एनो आशय एजले के वेंगण, कालिं. गमा अने मुलानो खानार अधर्मी ने तेथी अंतकाले मने संन्नारो नहि तेथी दुर्गतिमां जशे.
॥शिवपुराणेऽपि ॥ यस्मिन् गृहे सदा नाथ, मूलकं पचति जनः॥ इमशान तुल्यं तवेश्म, पितृभिः परिवर्जितं ॥१॥ मूलकेन समं लोज्यं, यस्तु लुंक्ते नराधमः॥ तस्य बुद्धि न चैधेत, चांशयणशरीरीणः ॥२॥ नुक्तं हलाहलं तेन, कृतं चा लक्ष्यनक्षणं॥रताक नक्षणाचा पि,नरा यांत्येवरौरवं॥३॥
अर्थः-शिवपुराणमां कडं ने के ॥ हेनाथ! जेना घरमां निरंन्तर मूला रंधाय ने तेनुं घर श्मशान तुल्य , ने ते घरने पितृ लोकोए त्याग कयुं . मूलानी साथे जे वस्तुनुं नोजन करे ने

Page Navigation
1 ... 229 230 231 232