Book Title: Adhar Dushan Nivarak
Author(s): Anopchand Malukchand Sheth
Publisher: Anopchand Malukchand Sheth
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(२१) विगेरे बालवाथी जेटटुं पाप थाय , तेटटुं पाप मधनुं बिछ मात्र खावाथीथाय ॥ मधर्नु आवु पाप तोपण शास्त्र वांचनार त्याग न करे तो सांतलनारने त्यागनी शी वात? माटे प्रथम कथा वांचनार दयालुये मधनो त्याग करवो के जेश्री श्रोता सुधरे.
॥ विष्णुपुराणेऽपि ॥ ग्रामाणां सप्तके दग्धे, यत् पापं समुत्पद्यते ॥ तत् पापं जायते पार्थ, जलस्याऽगलिते घटे ॥१॥ संवत्सरेण यत् पापं, कैवर्तस्यैव जायते ॥ एकाहेन तदाप्नोति, अपूतजलसंग्रही ॥ ॥ .
अर्थः-विष्णुपुराणमां का डे के हे पार्थ! सात गाम बालवा थी जेटलुं पाप पाय तेटलुं पाप घमामां गाल्या वगरनुपाणी नर वाथी थाय ने.मागी वर्ष सुधी जाल नांखे ने तेने जेटलु पाप लागे तेटलुं पाप एक दिवस गाल्या विना पाणी वापरनारने थाय ॥२॥
॥ विष्णुपुराणे ॥ यः कुर्यात् सर्वकार्याणि, वस्त्रप्तेन वारिणा ॥ स मुनिः स महासाध, स योगी स महाव्रती॥१॥
जे वस्त्रश्री गालेला पाणिये करीने सर्व कार्य करे ने तेज मुनि, तेज मोटो साधु,तेज योगी,ने तेज मोटा व्रत वालो जाणवो.
॥ यमुक्तं तिहासपुराणे ॥ अहिंसा परमं ध्यानं,अहिंसा परमं तपः॥अहिंसा परमं ज्ञानं, अहिंसा परमं पदं ॥१॥ अहिंसा परमं दानं, अहिंसा परमो दमः॥अहिंसा परमो जापः,अहिंसा परमं शुन्नम् ॥शा तमेवमुत्तमं धर्म, महिंसा धर्म रक्षणं॥ ये चरन्ति महात्मानः, विष्णुलोकं व्रजान्तते ॥३॥ - अर्थ-तिहासपुराणमां कडं ने के ॥ अहिंसा ए उत्तम

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