Book Title: Adhar Dushan Nivarak
Author(s): Anopchand Malukchand Sheth
Publisher: Anopchand Malukchand Sheth

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Page 232
________________ (254) ते मनुष्यमां अधम गणाय ने तेनी बुद्धि चांशयणादि व्रते करीने पण शुभ यती नयी // // जेणे अन्नदय, मूला, वेंगण विगेरे खाधां तेणे हलाहल झेर पीधुं समजवू ने अंते ते प्राणी रौरव नामना नरकमां जाय . // 3 // // पद्मपुराणेपि // गोरसं माषमध्ये तु, मुजादिके तथैव च // जदयेत्तंनवेत् नूनं, मांसतुल्यं युधिष्टिर // 1 // अर्थः-हे युधिष्टिर // उध, दहि, गश अमदमां तथा मग विगेरे कगेलमां नाखे ने ते मांस तुल्य श्राय बे, माटे ए खाएं ने मांस खावं बराबर ने // 1 // ॥अन्यदप्युक्तं तत्रैव // अस्तंगते दिवानाथे, आपो रुधिर मुच्यते // अन्नं मांससमं प्रोक्तं, मार्कमेन महर्षिणा॥॥ चत्वारो नरक घारः, प्रथमंरात्रिनोजनं // पररास्त्रगमनं चैव, संधानाऽ नन्तकाायकाः // 3 // अर्थः-पद्मपुराणमां बीजुं पण कां ने के दिवसनो स्वामी सूर्य अस्त पामे, त्यार पठी पाणी पीq ए लोही तुल्य ने ने अन्न खावु ए मांस तुल्य ने // 1 // चार नरकनां ार ने तेमां प्रथम रात्रे नोजन, बीजं परस्त्री साथे गमन, त्रीजुं अथाणुं विगेरेखाएं, चोथु मूला विमेरे खावा जेमां अनंतकाय जीव थाय ने // 3 // आ श्लोकमां रात्री नोजन, परस्त्री गमन, बोल अथाणुं जे सुकातुं बराबर नश्रीअने कीमा पमे ते, तथा मूला जेमां अनंतकाय एटले अनंत जीवो के तेथी, ए चारे सेवनार नरकगामी माटे त्याग करवो. // समाप्तः //

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