Book Title: Adhar Dushan Nivarak
Author(s): Anopchand Malukchand Sheth
Publisher: Anopchand Malukchand Sheth

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Page 207
________________ (१७) वधारे बुध्विान वधारे बतावी शके, माटे जेनुं विशेष होय ते अंगीकार करवू, १ प्रथम तो अन्यायनी प्रवृत्ति जैनमांजे धनाढयपणे दी. पता पुरुषो तथा शेठीा नाम धरावता होय वा धर्मीमां नाम लखावता होय एवा पुरुषोए बंध करवी जोइए, कारण के यथा राजा तथा प्रजा तेम म्होटा पुरुषोनी एवी सुंदर प्रवृत्ति जोश्ने नाहाना पण न्यायमा प्रवर्ते एम वनवा सारु मार्गानुसारीना गुण योगशास्त्रमा तथा धर्मबिंबुमां तथा श्रागुणवर्णवमां बताव्या ले ते नपरथीम्हारी चोपमी प्रश्नोत्तर रत्न चिंतामणी नामनी ,तेमां जोशो तो जणाशे. ए गुणमां जैन कोम वर्ने ए. वा नपदेश मुनि महाराजोए पण देवाना जारी राखवा जोशए तथा जेम रात्र नोजन विगेरेना नियम कराववामां नद्यम करे ने तेम आ नपदेशना नद्यममां वर्ने तो वघारे लान्न थाय एवो नपदेश नथी देता एम म्हारूं कहेवू नथी, पण देनार महा पुरुषोनो नत्साह वधारवा लख्यु डे अने को सामान्यपणे देता होय ते विस्तारे नपदेश दे ते सारु लखवू . ग्रहस्थोए एवी प्रवृत्ति रोकीने पोताना स्नेहीने अन्याय त्याग करे एवी ललामण कर्याज करवी जोइए. कदाच नलामण को धारण करतुं नथी तेथी पण नदास थइ ए नपदेश बंध करवो नहीं. हमेश जारी राखवायी कंश कंश सुधारो थाय. अन्याय, धन स्थिर रहेतुं नथी एवं श्राइविधि विगेरे शास्त्रमा घणे ठेकाणे कडं ने माटे न्यायनी प्रवृत्ति धन मले ते स्थिर रहे. वली जैन कोमनो बीजी कोममां घणो विश्वास पझे तेथी वेपार करवा पैसा जोइए ते पण सुखे मले; वली नोकरी करवा जाय तो झट नोकरी सारा पगारनी मले. दलाली करवा जाय तो ते घंधामां पण पेंदाश करे. हरकोई माल वेचवानी उकान मां, घणां घ

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