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(१४० ) श्वा सहित . एने देवता वा मनुष्यना सुखनी तथा नोगनी श्वाने, तो एवी इबाए तप करीए तो संसारनी वृहिज थाय, माटे एवी श्वानो त्याग करवो, ने आत्मगुण प्रगट करवानी इबाए धर्म करणी करवी, के सेहेजे ए मिथ्यात्व टली जशे.
ए गए मिथ्यात्व थयां. हवे त्रीजी रीते चार मिथ्यात्व ले ते कहीये जीये.
१ प्रवर्तना मिथ्यात्व ते मिथ्यात्वनी मांहे प्रवर्तवू जेमके कोश मिथ्यात्व सेवे . तेनी साहाज्यमां वा मिथ्यात्वीना वरघोमामां जवू,वा पधरामणीमांजवू,वा कुटुंबी अन्य देवनी सेवा करता होय तेनी साथे वर्तवू वा मिथ्यात्वीनां पर्व करवां ए प्रवर्तना मिथ्यात्व.
प्ररूपणा मिथ्यात्व ते जिनेश्वर महाराजे आगममां पंचांगीमां वापूर्वाचार्यनाग्रंथमांजेजेरीतेधर्म प्ररूप्यो तेथी विपरीत पोतानी मतिथी प्ररूपणा करवी, जेमके दिगंबर मार्गना चलावनार जैनी , ते उतां वीतरागना आगमो जे वर्ते ते मानता नथी, अने कल्पित् सास्त्र रची जुदोज मार्ग वीवे . केटलाएक ग्रंथनी रचनामां निःकारण श्वेतांबरमत दोषित कर्यो .जेमके संजमथी घ्रष्ट वर्तनारने वांदवा पूजवा श्वेतांबरी पण निषेध करे , ते उतां एवा साधु श्वेतांबरी मतना तेथी ए मत खोटो . आ लखवू केवू नल नरेखें बे. पण नत्सूत्रनो नय नहीं ते वोलावे . दिगंबर मत चलावनारे साधुने वस्त्र नहीं राखवां बताव्यां तेथी शुं थयु के वस्त्र रहीत साधु थवा बंध अश् गया, अने साधुनो मार्गज बंध थर गयो, नाम मात्र कोश्क श्राय ले तो ते पण नपरथी वस्त्र नढी राखे , एटले मार्ग प्ररूपेलो रह्योज नहीं. प्रनुने एक अंगे पूजे . आनूषण जगवंतने परेरावता नथी ने कहे जे जे प्रन्नुए आनूषणनो त्याग कर्यो , तेथी चमाववां नहीं, तो प्रनुए स्नाननो पण त्याग कयों के, तो प्रनुनी मूर्तिने पखाल