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(१५) को समजथी यो कुटतुं होय तेहने नलटुं जोरथो कुटवू पमे पण आ उपदेशश्री शुं फल थशे ते अज्ञानपणे जाणती नथी के रमवू कुटवू ए रौड़ ध्यान- आलंबन , एटले एथी रौ ध्यान पाय अने रौइ ध्यानफल ज्ञानीए नरक बताव्यु ने तो नरकनां उरक केवां कह्यां ते जीव नावना ग्रंथ वा सुयगमांग सुत्र सोनले हृदय कांपी जाय एवां नरकनां दुःख आ नपदेशथी मले.कोइ समजुमाणस आवा सुंदर विचार करी थोड़ें रमे कुटे वा समुलगुं न रमे कुटे तेनी अज्ञानपणे निंदा करे ने प्रा निंदा करनारने दुर्गति सिवाय बीजां फल शी रीते मले, माटे जे नाम धरावीए गए ते नाम पालवानी फीकर राखी जेम बने तेम निंदा तो एवा माणसनी न करवी. पण रमवा कुटवानुं बंध करनारने धन्यवाद आपवो; अने पोतानी शक्ति प्रमाणे उपदेश देने ए चाल नगे थाय तेम करवू ने शक्ति न होय तो जेओ सारां काम करवा इछता होय तेमनी मदद करवी ने तेमना संपमा रहेवू ए काम बंध करवामां जेम ते सलाह आपे तेम करवू तो तेथी कल्याण . वली पैसानुं जोर होय ने पैसानी लालचथी ए काम बंध प्राय एवं होय तो ते रीते बंध थाय एहवा इलाज करवा. न्यातना शेग्थी थाय एवं होय तो न्यातना जोरथी बंध करवू. जे जे नद्यम करवाश्री ए काम बंध थाय एवो प्रयास करवो जोइए. कदाचित हठगेला माणस होय तो मध्यस्थ रही पोते ए कामथी मुक्त रहे,. वली आपणने अनुकुल माणसने समजावी तेहने ए कामथी गेडववाने जे आपणाथी बनी शके ते करवू के जेयी आपणने आर्च रौध्यान न थाय अने नरकादिक गतिना परोणा न थq.पो. बधा माणसनो वाद करवानी जरुर नथी. पोते पोताने त्यां सुधारो करोए पी । धीमे धीमे बीजा पण सुधरे ले अने तेवा दाखला घणा जोया