________________
( १५१ )
ध्यात्व दे तो सारी बुद्धिवालाने तो एक शब्द बस बे पण विषम कालमां मारा जेवा मंद बुद्धिना धणीनने रूपांतरे भेद दरशावेवा जोवामां आवे तो मन सुधरे, माटे जुदा जुदा नेद बे; ते समजीने दरेक प्रकारे विज्ञाव दशाथी मुक्त श्रवाना कामी थवं. केटला एक जैनी नाम धरावे बे, पोषध परिक्कमणां करे बे, जिन भक्ति करे बे, गुरुनी सेवा करे बे, परदेशथी धर्म बोध गामना लोकने करवाने साधुजीने तेही लावे बे, पण गुरुजी स्याद्वाद् मार्ग दर्शावे वे तेथी कोइक नव्य जीव प्रतिबोध पामे a ने दिक्षा लेवाने तत्पर थाय छे, त्यारे तेनां माता पिता अने लागता वलगता गुरुनी निंदा करवा तत्पर थाय बे, लकवा तैयार थाय ने गालो देवानी फीकरज नहीं, आटली हदे पदोचे बे. जरा पण पापनी बीक राखता नथी. या वात केवी - न्यायनी बे के जेमने उपदेश देवा लाग्यो, ते तो हरेक प्रकारे संसारथी नदास श्राय एवोज उपदेश आपे, तेथी कोइक उत्तम जीव दिक्षा लेवा तैयार प्रया, तो तेमां साधुजी महाराजे शी कसुर करी के तेमनी निंदा करवा लगवा जीव तैयार थाय बे साधुजी कदापि कंद फेरफार युक्तिए करीने बोले, तो श्रावको कहे जे साधु ने जू बोल्या, श्रने विचित्र प्रकारे निंदा करे बे, सर्वे जोर मिथ्यात्वनुं वे माटे ए वर्तना नहीं करवी. वली शास्त्री श्रद्धा ने एम बधा माणस कहे बे, पण पोताने फावती वात नहीं प्रावी तो शास्त्रपर पण लक्ष देता नथी, एकोना फल बे, के अंतरंगमांथी मिथ्यात्व गयुं नथी तेनां फल बे, जो मिथ्यात्व गयुं होत तो या दशा यात नही, साधुजी दिक्षा लेवा नीकले तेनी केली एक हकीकतनो धर्म बिंदुमां हरिजसूरि महाराजे दरशाव कर्यो वे, ते ग्रंथ टीका तथा बालाबोध सहित पायो बे, तेमां दिक्षा लेनारने मातापितानी रजा लेवानो अ
ए