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धिकारज कह्यो , ते केवी रीते कह्यो , तेनो सार लखु .दिक्षा लेनारे मातापिताने समजावीने रजा मागवी, ने रजान प्रापे तो जोशीने समजावे के तमे महारां मातापिताने कहो जे आयुष्य टुंकुंमाटे एने रजा आपो, पी जोशी एवीरीते जूठे कहे, ते सारु त्यां तर्क को ले जे दिवा लेवा नीकले ने आवं जूठं बोलवू केम घटे ? तेना जवाबमां कहे ले जे धर्म अर्थे जूटुं बोलवू ते जूतुं नथी; आ वात पाने १७१ मे . आ नपरथी वि. चारो जे जूठे बोलवानी पण आवा कारणसर बुट मुके के जेथी जावजीव जूठानो त्याग थाय, ए सारु या परवानगी प्राचार्य महाराजे प्रापी , तो श्रावको निंदा करे तो शास्त्रथी विरुइ खलं के नहीं ? ते विचार करवो जोइए, पण मिथ्यात्वनी प्रकृति खशी नयी त्यां सुधी शुभ मार्गनी श्रा थवानी नथी, अने अक्षा विना श्रात्मतत्त्वनुं ज्ञान पण थq नथी, केमके प्रात्म तत्त्व- ज्ञान श्रम गम्य , प्रत्यक्ष नथी माटे वीतरागना प्ररूपेला शास्त्र नपर अक्षा राखी आत्मतत्त्व प्रगट करवाना कामी थर्बु. केटलाएक श्रमा राखे ले तो रागी षीनी श्रद्धा राखे ने तेथी धर्मनुं नाम अने अनेक प्रकारना मत ममत्त्व करे . धनादिकनी, स्त्रीनी कामनामां आसक्त थाय . ए पण जोर मिथ्यात्वनुं . माटे जे पुरुषना वचनथी संसार नपर प्रीति वधी शरीरादिक पदार्थ नपर राग वधे, मोहनुं जोर वधे, काम क्रोध दीपे, एवो धर्म बतावेलाने धर्म नहीं मानवो, एथी विपरीत एटले संसार कुटुंब धन ए परथी राग खसे, पोताना आत्मतत्त्व प्रगट करवामां सन्मुखपणुं थाय, ज्ञानमा चित्त लीन थाय, पांचे इंदियो वश थाय, मन वश थाय, पोताना आत्म स्वरूपमां लीनता थाय, यथार्थ, वस्तु धर्मनुं ज्ञान थाय, एवा प्ररूपेला शास्त्र नपर श्रःक्ष करवी, ने एवा गुरु उपर श्रदा करवी एज मिथ्यात्वना