________________
(२६३) रकादिकनी आकरी वेदनान नोगववी पमशे. वली मान करवाथी पोते एम समजे के मारी मोटाइ थाय ने, पण ते न थतां लघुताने पामे . मद करवाथी मोटा मोटा राजान पण दु:खमां पमया , तो बीजाननुं तो कहेज शुं? माटे जेम बने तेम अहंकारने तजवो, अहंकार क्रोधनुं बीज बे. अहंकार नाश पामे तो क्रोध आवेज नहीं. जगतमां जेटली चीज ने तेमां जमले ते देखाय , तो पोते चेतन ने तो जम चीज प्रिय अप्रिय करवाथी अप्रिय चीज पर शेष थाय . पण जे परवस्तु एटले पोतानी वस्तु के नहीं, तेना नपर ष करवाथी फक्त कर्मबंध सिवाय बीजो लान्न नथी; माटे जे जे वस्तुना जे जे धर्म डे ते जाणी लेवा; जे जे अवसरे जे जे वस्तु ग्रहण करवानो नदय श्रयो ते वस्तु ग्रहण करवी; तेमां च करी ग्रहण करवायी कर्मबंध सिवाय बीजो का फायदो नथी. आत्मा मलीन थाय . मुनि महाराजानए तथा तीर्थकर महाराजे षनो त्याग कर्यो ने केवलझान पाम्या, माटे बीजा पण आत्मार्थी जीवे तेमनी रीत प्रमाणे वनो त्याग करवो. खावानी, पोवानी, पेहेरवानी, नढवानी, पाथरवानी, सुवानी, चालवानी कं पण वस्तु प्रतिकुल मले तेमां व धारण करवो नहीं. को धन ले जाय, को मारी जाय तो पण कर्मनो विचार करवो के पूर्वना पुन्यनी खामी पमेने त्यारे बने , माटे रागथी जीव नपर ष करवो ते नकामो, एम विचारी समन्नाव दशा धारण करवी. शेषनोअंश पण जागे नहीं, एम प्रवृत्ति करवी, ने सत्ता, बंध, अने नदय एत्रणे प्रकारे नाश करवो के केवलज्ञान, ने केवलदर्शन गुण प्रगट श्राय.
आ मुजब अढार दूषण नगवंते कय कयाँ डे, तेथी आत्माना संपूर्ण गुण नुत्पन्न श्रया , तेणे करीने त्रण जगतना नाव एक समयमा जागी शके एटली शक्ति प्राप्त प्रश्. एक एक