Book Title: Adhar Dushan Nivarak
Author(s): Anopchand Malukchand Sheth
Publisher: Anopchand Malukchand Sheth

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Page 196
________________ · ( 300 ) लागतुं नश्री दिगंबरी साधु सारु तो कर्यु होय तेज काम लागे एटले सावद्य लागे ने तो संजम क्यां रधुं श्र थवानुं कार एटलुंज वे जे जगवंतनां प्ररूपेवां आगम विद्यमान बतां ते मानवां नहीं, ने पोतानी मरजीनां कल्पेलां शास्त्र मानवां ते कल्पनामां सर्वज्ञ जेवुं ज्ञान क्यांथी थाय ? ए चोख्खं समजाय बे. वली दिगंबरी गृहस्थो प्रजुनी पूजा एक अंगे करे बें, ने कहे बे जे श्वेतांबरी जगवानने आभूषण चमावे वे ते योग्य नथी; पण विचार करता नथी के पोते काचा पाणीथी पखाल करे बे ते पण गृहस्थावस्थानो आरोप करे बे, वली एक अंगे केशर वगेरे चमावे वे ते पण साधुपलानो आरोप नथी. पण जे वखते महाराजे जगवंतने राज्याभिषेक कर्यो ते वखते युगलीए एक अंगुठे पखाल वीगेरे कयुँ, तेवो हेतु धारता होय तो ए पण राज अवस्थानो वे वा मेरु शिखर नपर 8 अभिषेक कर्यो ते अवस्था लेता होय तो ए बने अवस्थाए सर्वे अंगे केशर, चंदन, वस्त्र, आभूषण बे, तो एक अंगे पूजवानी कर अवस्था ते विचारशे तो भूल जलाशे. जो केवली अवस्था कहेशो तो ते वखत तो टाटुं पाणी चढवानुं बेज नहीं, माटे ते अवस्था थपाशे नहीं. अने ते नहीं थापो त्यारे तो जन्म अवस्था अथवा राज अवस्थाविना बीज । अवस्था पाशे नहीं. अने ते यापो त्यारे तो सर्व अंग पूजो, आभूषण घरेगां परावो वली दिगंबरना तेरा पंथोनए तो आवो तर्क आववाथी एक अंग पूजवुं मूकी दीधुं, मात्र पखालज करे बे. तो ते पण पखाल वखते कइ अवस्था विचारशे, वली नैवेद्य प्रनु आगल मुकशे त्यारे क अवस्था विचारशे ? तेमनाथी पण बीजी प्र

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