Book Title: Adhar Dushan Nivarak
Author(s): Anopchand Malukchand Sheth
Publisher: Anopchand Malukchand Sheth

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Page 187
________________ ( १७ए) कारण जे धर्मास्तिकाय अलोकमां नथी तेनी सहाय विना च. लातुं नथी माटे त्यां रह्याने, त्यां कहेवा रूपे रहा. देह नथी तेथी वर्ण नथी, गंध नथी, फर्स नथी, रस नथी अरूपी पणे रहा , ते सदाकाल अवस्थित पणे रद्याने, कोइ पण दिवस फरी चलायमान पगुं नश्री. अवलस्वन्नावी (संसारी सुख अथिर , तेवं अथिर सुख नश्री) स्थिर सुख .जन्म मरण करवानां दुःख टली गयां . संसारमा विकल्पमुंज दु:ख , ज्यारे विकल्प न होय त्यारे संसारमा सुख श्राय ने तेमां सिझमहाराज सदा विकल्प रहित . कोइ पण वखत को पण कारणनो विकल्प नथी तेथी सदाकाल सुखमयी रहे.संसारमांश्चान प्रवर्ने , ते इवान पुरीनथाय तेनुं दुःख ; पण सिझमहाराजने संसारी को पण चीजनी इछा नथी एटले मुख नथी तेथी सदा सुखमयी, जे जे पदार्थो जोवामां जाणवामां आवे, ते संबंधी रागी जी. वने राग श्राय ,पठी ते मलतुं नथी तेनुं दुःख थाय अने सिह महाराज वीतराग दशाने पाम्या ने तेथी तेमना जाणवा देखवामां चौद राज्यलोकना पदार्थ समये समये आवे पण वीतराग दशाने लीधे जे पोताना आत्माना स्वन्नावथी जणाय ने तेमां कांइ पण चित्त नथी, विकल्प नश्री, पण स्वन्नावाणंदमां वर्ने ने. जेटलां अटलां संसारमा सुख , तेमांनुं एक पण मुख सिमहाराजने नश्री. वली संसारनां जे जे सुख ले ते दुःखमयी ने अनित्य ने, मात्र सुख माने , एटलुं . ज्ञानदृष्टिए विचारीए तो सुख नश्री, कारण जे जगतना जीव स्त्रीना नोगे करीआएवंद माने ले पण तेज वखत शरीरने केटली पीमा प्रायडे, तेना उपर लकज नथी. ते दुःख न मानतां सुख माने -विषयश्री आयुष्यनी दानी-पश्शानी खराबी-ते सरवे वात कोरे मुकी सुख माने मे; तेमज तमाशा खेल जोवा जाय जे त्यां जामरा

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