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(७२) . प्रथम धर्म ध्यान तेना चार पाया . पहेलो पायो आज्ञा विचय ते, परमात्मानी आज्ञानुं वीचारवं, जेवी जेवी पाशा ने तेम वर्त्तवानुं नाव.
बीजो पायो अपाय विचय ते-आत्मानुं जे स्वरुप ने ते स्वरुप नथी वर्ततुं तेनुं कारण जे मिथ्यात्वादीक ते त्याग करवामां एकाग्रता करवी.
त्रीजो विपाक विचय ते-कर्मनुं स्वरूप विचार कर्मश्री मुकाववानुं विचारवं.
चोथो संस्थान विचयते-चौदराज लोकनुं स्वरूप विचारवं. श्रा रीते धर्म ध्यान तेमज शुक्ल ध्यानना चार पाया नीचे प्रमाणे. ___(१) प्रथक्त्व वितर्क समविचार. (२) एकत्व वितर्क अप विचार. (३) सूक्ष्म क्रिया प्रतिपाती. (४) नचिन्न क्रिया निवृत्ति. ए शुक्ल ध्यानना चार पाया मधेषी प्रथमना बे पाया केवल ज्ञान पामतां प्रगान प्रगट थाय बे, ने बीजाला बे पाया केवल ज्ञान पाम्या पठी सिहि जवाना लगन्नग वखत प्राप्त थाय . पहेला पायामां.नेद ज्ञान थाय.बीजापायामां अन्नेद ज्ञान थाय नेत्रीजा पायामां बादर जोगरुंधाय ले अने चोथा पायामां सूक्ष्म जोग रुंधाय . एवी रीते वर्तना थाय . ... आजना कालमां शुक्ल ध्यान तो थाय एम नथी, कारण के पूर्वनुं ज्ञान होय तेने थाय , पण हालमां धर्म ध्यान बनी शके. वली समाधि प्रमुख ने ते पण ध्यानने लगतां साधनो .ते समाधि लेते हठ समाधि ने तेथा बाह्यनां घणां कारणो रोकाय ;ने विषयथी विमुख श्रया वीना समाधि बनती नथी. ए कामनो अभ्यास करती वखतथी खाटा, खारा, तीखा विषय रूप स्वादनुं रोकाण करवू जोईए , स्त्रीना विषयनो पण त्याग करवो जोईए ने तथा बाह्यनां गप्पां विगरे नकामी वातो कर: