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( न्य )
कर महाराजना तथा केवलज्ञानी महाराजनो जे भोग बे ते जोग नहि जेवो बद्मस्थ जीवने जे जे पुद्गलना जोग करवा बे ते राग द्वेष सहित बे, तेमां तेमने कर्मबंधनुं कारण रघुंडे. तेथी आत्मीक जोग जोगवी शक्ता नथी. आत्मीक जोग नोगववानो अंतराय कर्मनो नृदय पण ढाल्यो नथी, त्यांसुधी प्रात्मीक जोग जोगवी शक्ता नथी. संसारी जीवने रात दीवस जोगनी इवान एटली बधी ने के जे जे पदार्थों जगतमां रूपी देखे वा सांजले बेतेनी इच्छा थाय बे. पण ते पामवानुं अंतराय कर्म बांधेलुं वे एटले मली शक्ती नथी, अने जेने अंतराय कर्मनो क्षयोपसम थयो छे तेने ते मले बे, अने जोगवे बे. पण जो ते पर प्रतिराग घरे बे, ने अतिरागे जोगवे बे, तो तेथी पालुं नवं जोगनुं अंतराय कर्म बांधे बे, तेथी पाठा मलवामां दरकत श्रावशे. केवी रीते ? के जोगनी वस्तु हाजर वे पण कृपणता श्राववाथी ते वस्तु जोगवी नहि शके, अथवा तो शोक परुशे, तेने बदले जोगवी शके नहि, अथवा रोग थशे ने वैद ते वस्तु खावान मना करो ने जोगवी शकशे नहि, वा हरकोई प्रकारनुं कारवशे, जेथी इछा बे, वस्तुवे, पण जोगांतराय कर्मना नदयश्री जोगवी शकशे नहि. पण सम्यक् ज्ञानी पुरुषो बे ते पुरुषो तो एवा अंतराय प्रववाथी विचार करे बे के पूर्वे जोगांतराय कर्म बांja ते नदय श्राव्यं बे, ते समजावे जोगवीश तो कर्म बंधाशे नहि. एवी जावना प्रगट थइ बे तेना प्रजावे ते तो नोगांतराय कर्मनी निर्जरा करे बे, नवुं बांधता नथी. ने जेने एहवी दशा नथी जागी ते जीवो बीचारा बीजाने जोग जोगवतां जोई अनेक प्रकारां कर्म बांधे वे ए अज्ञानतानां फल वे श्र नवमां जोग मलता नथी, ने वली जोग जोगववाना विकल्प करी नवां कर्म बांधे बेतेने श्रावते नवे पण जोग मलशे नहि, एवा जी
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