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(१४५) हनी कर्म कय करी चारित्र गुण जे पोताना आत्मस्वन्नावमांज स्थिर रहेवू ते रूप चारित्र गुण तथा दायक समकित प्रगट कर्यु बे; अंतरायकर्म कय करी अनंत वीर्यादिक गुण प्रगट कर्या के नाम कर्म कय करी अरूपी गुण प्रगट कयों ने गोत्र कर्म क्य करी अगुरु लघु गुण प्रगट कर्यो ; वेदनी कर्म कय करी अव्या बाध सुख प्रगट कर्यु ; आयुष्य कर्म क्षय करी अक्षय स्थितिने पाम्या ; एवी रीते आठे कर्म कय करी आठ गुण प्रगट कर्या ने एवा सिहमहाराजने सिह न माने, नगवान नमाने अने एवा पुरुषनी निंदा करे, एवा देवने देव मानता होय तो तेने नंधु चतुं समजावी एवा देव नपरथी आस्था नगवे ए मिथ्यात्व सेववाथी आत्माना शुरू गुण प्रगट पण को दिवस नहीं थाय, कारण के एवा गुणनी हा होय तो एवाज पुरुषना गुणग्राम करत, पण ते करतो नथी अने निंदा करे ने तेज मिथ्यात्व जाणवू.
१० असिह जेमने आठे कर्म रह्यांबे, जे नवांपण कर्म बांध्यांज करे , विषय कषायमां आसक्त ते तेमनां चरित्रधी सिह श्राय ; तेम उतां तेवा देवने सिह मानवा, नगवान मानवा, तेमनी आझाए वर्तवं, तेज संसार वृझिनुं कारण ने, आस्माना गुणर्नु घात करनार , माटे मिथ्यात्व त्यजवानो नद्यम एटलोज करे के आपणने धर्म करणी करवा बतावे ते करणी देवे करीने देवपणुं पाम्या 2 के आपणने विषय कषाय त्याग करवा कहे , अने पोते विषय कषायमां वर्ने डे, त्यारे तो एक ठगाइ जेवू काम बन्यु एम बुझिवानने सहेलाथी समजा जशे, अने जेमनामां गुण प्रगट श्रयाने ते पण समजाशे, माटे आठ कर्म कय कयाँ होय तेमनेज सिह, वा नगवान वा देव वा ईश्वर मानवा. एवं करवाथी ए मिथ्यात्व टलशे; ए दश मिथ्यात्व.
१ तेमज बीजी रीते उ मिथ्यात्वले तेमां प्रथम लोकीक