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( ए ) बाल पंमीत वीर्य कहीए. पंमीत वीर्य ज्यारे प्रगट थाय ने त्यारे तो पुद्गलीक सर्वे वस्तु उपरथी मोह उतरी जाय ले अने सर्वथा संसारश्री नीकलो एक आत्मगुण प्रगट करवामांज वीर्य फोरवे में अने निजस्वन्नावीक सुखमांज वर्तवानो कामी बनी सर्वथाप्रकारे वीयांतराय कर्मनो कय करी केवलज्ञान केवल दर्शन प्रगट करे , तेमने वीयांतराय कर्म सत्ता, बंध, नदये, कोई रीते पण रहेतुं नथी. निज स्वनावमांज अनंत वीर्य गुण ते प्रगट थाय
. नगवंते एवी रोते सर्वथा वीर्यातराय कर्मनो क्षय करी श्रात्मीक गुण प्रगट कर्या अने मारो आत्मा तो वीयांतराय सहीतज रह्यो;माटे हे चेतन!जेम नगवंते वीयांतराय कय कयुं तेमअक्षय करवाने तेनुए बताव्युं २ माटे ते प्रमाणे हुं वर्तु, एवी नावना लावीने प्रात्मगुण प्रगट करवानां कारणो (ज्ञान, दर्शन, चारित्र ने तप) नत्साह सहित मेलववां. नत्साहे धर्मकरणी सफल थाय ने अने वीर्यनां आवरण खपे . वीर्य फो. रायमान थाय . जेम मुनि महाराज नत्साहे तप संजमादीक पाले , तो तेना प्रनावे असावीश लब्धी उत्पन्न पाय ठे, ते वीयांतरायना क्षयोपशमथी थाय , एम योगशास्त्रमा हेमचंद आचार्य कहे तेमज प्रवचन सारोकारना बालावबोधमां पाने एइए में अहवीश लब्धीनवीर्यनाक्षयोपशमथी पाय ते बतावी ने तेम आ ग्रंथमां नीचे बताएं .
प्रथम आमाँषधि लब्धीः लब्धी शब्दे शक्ति जाणवी. श्रा लब्धी जे मुनिने प्रगट थई , तेना प्रनावे ते मुनि हाथनो फरस रोगीने करे के रोग नाश पामे, सर्वे रोगनी शांति थाय. - बीजी विप्रौषधीनामा लब्धी. तेना प्रनावे मुनिमहाराजनी विष्टाथी ने मूत्रथी पण रोगीना रोग शांत पामे . आ तपना मनावनी शक्ति .