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(१४१) ने मोक्ष साधन शी रीते थाय ने तेनो धर्म नपदेश दे .ते धर्म नपदेश आत्मार्थी सनिली जम जे शरीर तेमां रही जे जे अज्ञानपणानी प्रवृत्ति अनिष्ट लागे अने आवते नव विषय कषायनां कमवां फल जाणवामां आवे में ते जाणीने संसारनो त्याग करी एवी प्रवृत्ति पोतानी प्रसन्नताये करे ने तेम करवाथी संसारमा जे जे धन कमावानां मुख, रांधवानां मुख, वस्तु लाववानां उख,आजूषणनो नार नचकवानां मुख, विषयन्नोगवी शरीर खराब करवानां मुख, केमके विषय नोगवती वखत शरीरने केटली मेहेनत पमे ; वली विषय नोगवी रह्या पठी पण शरीरनी स्थिति केवी थाय डे! एवां उखो टली जाय . करोम पतिने पण धन संबंधी केटली फीकरो करवी पो .कुटुंब होय तो कुटुंबना झगमानां केटलां सुख ? तेने अज्ञानपणे उख मानता नथी पण जो बुध्थिी विचार करे तो संसारमा सवारथी नठे त्यारथी ते रात्रे सुवे त्यां सुधी केटलां सुख नोगववां पमे. तेमार्नु एक पण उख साधुपणामां नथी. सदाकाल आणंदमां जाय . नवं नवं ज्ञान थाय ने तेथी बुध्विानो महा प्रसन्नतामां रहे . माटे जैनी कोश्ने उख देइने धर्म मानता नथी. तेम जे जे आत्मार्थी होय तेने नपर कहेला पांचे, अधर्ममांथी कोश पण अधर्म प्रवृत्ति करीने धर्म मानवो नही ने जे माने ते अधर्म ने धर्म मान्यो कहीये.
३ मार्ग जे मोक्ष मार्ग जे मार्ग साधी वीतरागपणाने पाम्या , आत्माना ज्ञान दर्शन चारित्र रूप गुण प्रगट कर्या डे, केवल झाने करी जगतना नाव एक समयमा जागी रह्या , तेवा पुरुषे देखामेलो मोद मार्ग एटले मोकना साधन ते साधनने नन्मार्ग माने अने तेनुं आराधन न करे, अाराधन करनारनी निंदा करे ते मार्गने नन्मार्ग मानवारूप मिथ्यात्व जाणवं. ..