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(10) ममत्वन्नाव हठी जाय . शत्रु मित्र उपर पण समदृष्टी थई जाय . विषयथी नदास वृत्ति थाय ने, एवी विशुदि वाथी मिथ्यात्व अनंतानुबंधीनो नपसम थाय डे, एटले अंतरंग शुद्धि थई जाय . आत्म विचार सिवाय बीजी वस्तु नपर राग थतो नथी. आत्मामा रमवू ते सिवाय बीजुं सुख मनने रुचतुं नथी. मन अति निर्मल भई जाय , ते नपशम नावना समकितनो काल अंतर मुहर्त्तनो . नपशम नाव, चारित्र पण थाय , ते आठमाथी ते अगीधारमा गुणस्थानमां थाय . तेनो पण काल अंतर मुहूर्त्तनो , पठी उपशम चारित्र रहेतुं नथी. एटलीवार वीतराग दशाने पामे . राग ष रहित थाय . एवा जे स्वनाविक विशुः नाव ते नपशम नाव एवा पण शुइ नाव नव चक्रमां पांचवार थाय ने. एवा नावनी प्राप्ति लानांतराय कर्मना क्षयोपशमथी थाय .
बीजो कयोपशम नाव ते पण जे जे कर्म नदय आव्यां ने ते खपावे , ने नदय नही आवेलां पण नुदय आववा जेवां होय तेने नदीरणा कर। नदयमां लावीने खपावे . जे नदी. रणाथी पण नदय आवी शके नही, एवां तेने नपशमावे . एy नाम कयोपशम नाव.ए कयोपशम नाव चार कर्म (ज्ञानावरण कर्म, दर्शनावरणी कर्म, मोहनी कर्म अने अंतराय कर्म)नो योपशम थवाथी आत्मानी विशुहि थाय ; जेम वादलथी सूर्य ढंकायो होय ने जेम जेम वाइल खसे , तेम तेम प्रकाश अतो जाय ; ए रीते ज्ञानावरणी कर्मनां आवरण जेम जेम खसतां जाय , तेम तेम ज्ञाननो प्रकाश विशेष उपयोग रूप अतो जाय , तेमज दर्शनावरणी कर्मना आवरण खसवाथी सामान्य उपयोगरूप दर्शन तेनो नपयोग निर्मल थाय . मोहनी कर्मनी बे प्रकृति , दर्शन मोहनी अने चारित्र