________________
बन सके कि यह सब कुछ उसके अपने चिन्तन के लिए है और उसके अपने समतामय उत्थान के लिए है। उत्तम पुरुष का प्रयोग एकात्मकता प्राप्त करने के लिए ही किया गया है—यह उत्तम पुरुष व्याख्याता या सम्पादक का नहीं है, मुख्य एवं सामान्य रूप से प्रत्येक पाठक का है कि वह इस चिन्तन साथ अपने आत्म भावों को घनिष्ठ रूप जोड़ ले। उत्तम पुरुष में आध्यात्मिक विवेचन का अपना विशेष महत्त्व होता है, क्योंकि आध्यात्मिक क्षेत्र में भावना का महात्म्य होता है। इसी कारण अपनी ही आत्मा को सीधे सम्बोधित करने वाले लेखन को जब भावपूर्वक पढ़ा जाता है तो उसमें एक निजत्व का भाव समाविष्ट हो जाता है। ऐसा लगता है कि यह सब कुछ सम्बोधन कोई अन्य नहीं कर रहा, बल्कि वह स्वयं ही अपनी आत्मा को कर रहा है तथा आत्मा की गति - विगति का जो सम्पूर्ण विवेचन है, वह जैसे उसकी अपनी आत्मा से ही सम्बन्धित है। इसी आत्म जागृति के भाव से इस ग्रंथ का प्रवचन- सम्पादन हुआ है और पाठकों को भी उसी भाव से इस ग्रंथ का पठन-पाठन एवं अध्ययन करना चाहिये – ऐसी अपेक्षा की जाती है ।
'आत्म समीक्षण' में जिन नौ सूत्रों का प्रतिपादन किया गया है, वे आत्म-सम्बोधक एवं प्रेरक सूत्र हैं। ये बताते हैं कि आत्मा के मूल एवं शुद्ध स्वरूप से सम्बन्धित तत्त्व कौनसे हैं तथा उन्हें आचरण के माध्यम से पाने के लिये किस प्रकार का नित्य प्रति का चिन्तन बनना चाहिये, कौनसे आत्म विकास के संकल्प धारण करने चाहिये तथा आत्मा के पराक्रम का किस रूप में विस्फोट किया जाना चाहिये कि वह अनन्यदर्शिता एवं अनन्यानन्द अनुभूति के लक्ष्यों को प्राप्त कर सके एवं समता के सम्पूर्ण आदर्श को साकार बना सके ।
सभी प्रकार के वचन एवं व्यवहार विचार के स्रोत से प्रस्फुटित होते हैं, अतः यदि विचारों में सर्व प्रथम समता का समावेश किया जाय तो वह समता वचन एवं व्यवहार के प्रवाहों से सुप्रकट हो सकेगी। विचारों के स्वस्थ निर्माण का एक मात्र साधन है— चिन्तन, सतत चिन्तन, निरन्तर चिन्तन और उसी चिन्तन को समता की रस धारा में डुबो कर प्रवहमान बनायेगा आत्म समीक्षण अर्थात् आत्मा को जानो, देखो, ध्याओ और अनन्त आनन्द में निमज्जित हो जाओ ।
( XV )