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THE FREE INDOLOGICAL
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-The TFIC Team.
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ॐ नमः सिद्धेभ्यः।
चौबी०
चौथी .
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जन अथवर्त्तमानचतुर्विंशतिजिनपूजालिख्यते।
४३७
(बखतावरसिंह कृत)
मंगलाचरणम्। दोहा-बंदूं मैं शिर नाय के, चौबीसों जिनचंद । पाप तिमिर नाशक सुरवि, पूरण परमानंद ॥१॥ .पांचों पद हृदये धरूं, शारद मात मनाय । देह बुद्धि मोको अबै, रचू पाठ सुखदाय ॥२॥
छन्द पायता। तुम हो जग के हितकारी, तुम जैन यती व्रतधारी। तुम पूजें सुरगण सारे,गणधर गुण वरनत हारे॥३॥ तुमनंत चतुष्टय स्वामी, जानत जग अंतर्यामी । तुम शुद्ध बुद्ध दातारा, सब तत्व प्रकाशन हारा ॥ ४॥ तुम प्रातहार्य वसुधारे,भवि पूजत चरण तिहारे । सिंहासन अति छबि छाजे, सुर दुंदुभि नभ में बाज॥५ शिर छत्र तीन सुख कारे, त्रिभुवनपत सूचन हारे । जब चौसठ चमर दुराई, गंगा मनु सेवन आई ॥६॥ वपुतनी प्रभा अति सोहे,भवसात भवांतर जोहै । अशोक वृक्ष अति राजे,तिस देखत शोक जु भाज॥७॥
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र सुन मागधिभाष तिहारी,सब बैर त्याग हितधारी। आत पुष्प वृष्टि सुरकीनी,यश गावें सुरतिय झीनी। " चतुरानन की छवि छाजे,रवि कोटकचंद सुलाजे । तुम जानत है जग सारा,भवतारक विरध संभारा ॥९॥
.. वसु सहस नाम के धारी, तात नित धोक हमारी । जो दोष अठारह नामी, तुम नाशे अंतर्यामी ॥१०॥ More भव मांहिं फेरे नहिं आना,तुम कीना अविचलथाना।जह लोकालोक निहारी,उत्पादक वयध्रुव सारी॥११॥
इक समय माहिं तुमजाणी,संसार माहिजेप्राणी। सबके तुम ही रखवाला,सब जानत दीन दयाला॥१२॥ जे पढ़ें सुधी गुणमाला, तिनको हैभाग रिसाला । तातें क्या अरजसुकीजे, निज बास भृत्य को दीज॥१३ दोहा-चौबीसों जिनराज की,वरनी शुभगुणमाल । बखतावर सिंह जानिये, कहते रतनालाल ॥१४॥
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पोवी
- अथ चतुर्विशति समुच्चय पूजा लिखते ।
पूजन संग्रह
अडिल-चौवीसों जिनराज नमं सिर नायके, मघवा बंदित जाय शीस भू लाय के। ...
हम पूर्जे मन लाय जान हित आपना, कृपासिंध इत तिष्ठ करूं मैं थापना ।। ॐ ह्रीं श्रीवृषभादि महाबीर पयंत चतुर्विंशति जिनेंद्रा अत्रावतरतावतरत संबौषट् आह्वाननं । . ॐ हीं श्रीवृषभादि महावीर पर्यंत चतुर्विंशति जिनेंद्रा अत्र तिष्ठत तिष्ठत ठः ठः स्थापनम् । ॐहीश्रीबृपभादिमहाबीरपर्यंतचतुर्विंशतिजिनेंद्राअत्रममसन्निहिताभवतभवतवषट् सन्नि धीकरणम्॥
___अथ अष्टक-(छन्द त्रिभंगी) जल-मुनि मन सम नीरं धन रस सीरं अमल गहीरं ले आया, भरि कंचन झारी तुम ढिग घरी तृषा
निवारी में ध्याया। चौबीस जिनंदा आनंदकंदा हरि नित बंदा सुखकारी, भवि जन नित ध्यावें मंगल गावें तुर बजावें भव हारी ॥ ॐ ह्रीं श्रीवृषभादि महावीरपर्यन्त चतुर्विंशति जिनेन्द्रेभ्यो
गर्भजन्मतपज्ञाननिर्वाणपंचकल्याणप्राप्तेभ्योजन्ममृत्युजरारोगविनाशनायजलंनिर्वपामीतिस्वाहा चन्दन-गोसीर घसाया केसर लाया षट् पद आया कर सोरी, भर रतन कटोरी चरनन बोरी हरो
वेदना तुम मोरी। चौवीस जिनंदा आनंदकंदा हरि नित बंदा सुखकारी, भविजन नित ध्यावें मंगल गावें तूर बजावें भव हारी॥ॐह्रीं श्रीवृषभादि महवीर पर्यंत चतुर्विशति जिनेंद्रेभ्यो गर्भ जन्म तप ज्ञान निर्वाण पंचकल्याण प्राप्तेभ्योसंसारातापविनाशनाय चंदनं निर्वामीतिस्वाहा॥२॥ ...
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चौबी० अक्षत-सित अक्षत लायो चंद लजायो मुक्ता सम सो अनियारे, तिन पूज रचाये मन हरषाये चरण
तुम्हारे ढिग प्यारे । चौबीस जिनंदा आनंदकंदा हरि नित वंदा सुखकारी, भविजन नितध्यावें संग्रह
मंगल गावै तर बजावै भवहारी॥ ॐ ह्रीं श्री वृषभादि महावीर पर्यंत चतुर्विंशति जिनेंद्रेभ्यो
गर्भ जन्म तप ज्ञान निर्वाण पंचकल्याण प्राप्तेभ्यो ऽक्षतान् निर्वपामौतिः स्वाहा ॥३॥ पुष्प-मंदारसुवृक्ष आदि विटप के सुमन सुमनसम चुन लीने, मनमथ के नासी शिवपुर वासी पद:तुम्हरे में अरचीने। चौबीस जिनंदा आनंदकंदा हरि नित बंदा सुखकारी,भविजन नित ध्यावें मंगल
गावें तूर बजावें भव हारी ॥ ॐ ह्रीं श्रीवृषभादि महावीर पर्यंत चतुर्विंशति जिनेंद्रेभ्यो गर्भ - जन्म तप ज्ञान निर्वाण पंचकल्याण प्राप्तेभ्यः पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा ॥४॥ नैवेद्य-अति ही कठिनाई सुधा लजाई लाडू पूवाले पेरी, तुम क्षुधा भगाई फेर न आई मेटो मेरी भव
फेरी। चौबीस जिनदा आनंद कंदा हरि नित बंदा सुखकारी, भविजन नित ध्यावे मंगल गावें तुर बजावें भव हारी॥ ॐ ह्रीं श्री वृषभादि महावीर पर्यंत चतुर्विशति जिनेंद्रेभ्यो गर्भ जन्म
तप ज्ञान निर्वाण पंचकल्याण प्राप्तभ्यःक्षधा रोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वधमीति स्वाहा ॥५॥ दीप-शुभ दीप प्रजारा घृत वर डारा कर उजियारा तम हारी, तुम ज्ञानप्रकाशी अ
रचूं थारी । चौवीस जिनंदा आनंद कंदा हरि नित वंदा. गावे तूर बजावें भवहारी ॥ ॐ ह्रीं.
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तपज्ञान निर्वाण पंच कल्याण प्राप्तेभ्यो मोहांधकार विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा ॥ ६॥ पूजन | धूप-दशगंध सुलायो धूप बनायो अगर वह्नि में खेवत हूं,तिस धूप उडाए अलिगण छाये कर्म नसाये संग्रह . सेवत हूँ । चौबीस जिनंदा आनंद कंदा, हरि नित बंदा सुखकारी, भविजन नित ध्या। मंगल
- गावें, तुर बजावें भवहारी। ॐ ह्रीं श्री वृषभादि महाबीर पर्यन्त चतुर्विंशति जिनेन्द्रेभ्यो गर्भ,
- जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्तभ्योऽष्टकर्म दहनाय धूपं निर्वामीति स्वाहा।। ७॥ पल-फल पक्क मनोहर प्रासुक लायो दाडिम आदिक भरथारी, रसना को प्यारे नयन निहारे शिवपुर
दीजे सुखकारी। चौबीस जिनंदा आनंद कंदा, हरिनित बंदा सुखकारी, भविजन नित ध्यावे मंगल गावें, तूर वजावें भवहारी ॐ ह्रीं श्री वृषभादि महावीर पर्यन्त चतुर्विंशति जिनेन्द्रभ्यो - गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान निर्वाण पंचकल्याण प्राप्तभ्यो मोक्ष फल प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा। अर्घ-श्रीफलादि वसुद्रव्य सवारे अर्घ सुकर में में लीना, संसार विनाशी शिवपुर वासी यातें तुम
पद चर चीना । चौवीस जिनंदा आनंद कंदा, हरि नितबंदा सुखकारी, भविजन नित ध्यावें - मंगल गावें तुर बजावें भव हारी। ॐ ह्रीं श्रीवृषभादि महावीर पर्यन्त चतुर्विशिति जिनेन्द्रेभ्यो गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्तेभ्योऽध निर्वपामीति स्वाहा ॥
जयमाला। दोहा।। महाअर्घ-अलख लखावन तुम गिरा,भव भयभंजन धीर । वरन शुभ गुण मालिका,हरोभृत्यकी पीर ।
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चौबी० पूजन संग्रह ४४२
___ छंद पद्धडी-जयनाभिनंदकुल चन्द्रनाथ,जय अजितनाथ कीजेसनाथ जयसंभव वसुअरिखयकरंत जय अभिनंदन ऋषिगण नमंत ॥२॥ जय धीरधुरंधर सुमति देव, जय पनचरण हरि करत सेव । जय देव सुपास अनाथनाथ जय नम चंद्र प्रभु जोर हाथ ॥३॥ जय पुष्पदंत वपुसुमन खेत, जय शीतल जिन निज बास देत। जय श्रेय करन तुम श्रेय नाम,जय वासुपूज्य जीत्यो सुकाम ॥४॥ जय विमल कर्म रिपु करत चूर, जय अनंत जिनेश्वर धर्म पुर । जय धर्म धुरंधर धर्मधीश । जय शांतिनाथ शिव नगर ईश ॥५॥ जै कुंथु कुंथु रक्षक दयाल,जय अरजिनवर मित्रा सुवाल।जय हतो मोह श्रीमल्लिवीर, जय मुनि सुत्रत जिन देॐ धीर ॥६॥ जय मघवा बंदित नमि जिनंद, जय सुमति कुमोदन नेमि चंद । जय पावकमठ को मद नसान । जय वीर धीर किरपा निधान ||७|| जय दीनन के रछपालनाथ, जय संकट में तुम होत साथ । तुम ही सब लायल हो दयाल, बखता रतना को कर निहाल ॥८॥ छंद नंद-चौवीसों स्वामी अन्तर्यामी त्रिभुवननामी हितकारी। तुम हो सब लायक शिव सुखदायक
पाप पलायक जग त्यारी ॥९॥ ॐ ह्रीं श्री वृषभादि महावीर पर्यन्त चतुर्विशति जिनेन्द्रेभ्यो गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान निर्वाण पंच कल्याण प्राप्तेभ्यो महाऽघनिर्वपामीति।
अथ आशीर्वादः-कवित्त-चोवीसों जिन चंद तनी जे पूजा करें पढ़ें हितलाय, तिनके पुत्र मित्र बहु संपतवाढे नितप्रति सुख अधिकाय । ईंत भीति कबहु न व्यापे,सुने पाठ जे चित्त लगाय,रोग शोक | दारिद्रय विनाशे, अनुक्रम शिवपुर राज करराय ॥१२॥इति श्री वर्तमान चतुर्विंशति जिन पूजा संपूर्णी । ||
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चौबी० पूजन
संग्रह
१ अथ श्री ऋषभनाथजिन पूजा प्रारभ्यते।
... (वखतावर सिंह कृत) (छन्द कोसमालती) " स्थापना-सर्वारथ सुविमान त्याग कर नगर विनीता जन्मे आय ।
.. पितानाभिराजा अति सुंदर मरु देव्या है जिनकी माय ।
लक्षण वृषभ चरण में राजे, धनुष पांच सौ उन्नत काय । . हेम वरण तनु अद्भुत सोह सो प्रभु तिष्ठ तिष्ठ इत आय। ॐ ह्रीं श्रीऋषभनाथ जिनेन्द्र अत्रावतरावतर संवौषट् आह्वाननम् । । ॐ ह्रीं श्रीऋषभनाथ जिनेन्द्र अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम् ।
डों ह्रीं श्री ऋषभनाथ जिनेंद्र अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधीकरणम् ।
अथ अष्टक (छन्द गीता) जल-हिमन गिरि पे पद्मद शुभतास को जल श्वेत है। वररतन जडित सुहेनझारी तासमें भरलेत है। . नृपनाभिराय जुवंश नभ में इंदु ऋषभजिनंद ही। पूजं सु हितकर चरण अंबुज हरत जग के फंदही।
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चौबी० डो ह्रीं श्री ऋषभनाथ जिनेंद्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याणं प्राप्ताय जन्म पूजन
मृत्यु जरा रोग विनाशनाय जलं निपामीति स्वाहा। ... संग्रह | चंदन-शुभ श्वेत हर गो सीरलायो घप्त कटोरी में धरे तिस गंधते षट् पद समूह जुआन के रख बहु करे। . ४४४ नृप नाभिराय जुबंश नभमें इंदु ऋषभ जिनंदही,पूजं सुहित कर चरणअंबुजहरत जग के फंदही।
रों ह्रीं श्री ऋषभनाथ जिनेंद्राय गर्भ.जन्म, तप,ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय संसारा
ताप रोग विनाशनाय चंदनं निवपामीति स्वाहा ॥ अक्षत-इन रागद्वेषन में सतायो मलिन नित उर ही करें।यातेसुशशि सम गोर अक्षत आन तुमआगेध।
नृप नाभिराय जुवंश नभ में इंदु ऋषभ जिनंद ही,पूजू सुहित कर चरणअंबुज हरत जगके फंदही। __ह्रीं श्रीऋषभनाथ जिनेंद्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय अक्षय
पद प्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा ॥ - पुष्प-बेला चमेली दोन मरुवा सुमन प्रासुक लायके,तिस सुरभते दश हं दिशाके गुंज ह अलि आय के।
नृप नाभिराय जुबंश नभ में इंदुऋषभ जिनंदही, पूजूंसुहित कर चरणअंबुज हरत जग के फंदजी।
डों ह्रीं श्री ऋषभनाथ जिनेन्द्रीय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय काम
... वाण विनाशनाय पुष्पं निर्वपातीति स्वाहा ॥ : नैवेद्य-पकवानहु विध वने ताजे थाल में भरलायहूं,जड क्षुधारोग अनादिही को तास को जुनसाय हूं। .
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चौबी०
नृप नाभिराय जुवंश नभ में इंदु ऋषभ जिनंदही,पूजू सुहित कर चरणअंबुज हरत जगके फंद ही। - ॐ ह्रीं श्री ऋषभनाथ जिनेंद्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय क्षुधा
रोग विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा ॥ संग्रह दीप-दीपक प्रजारे तम निवारे थाल में अजि जग मगे, तिस देखते भयभीत ढेकर तम अज्ञान सबै भगे।
नृपनाभिराय जुबंश नभ में इंदु ऋषभ जिनंदही, पूजूसहित करं चरण अंबुज हरत जगके फंदही। . ह्रीं श्री ऋषभनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय'
मोहान्धकार विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा । ". धूप-दश गंध चूर सुगंध सौरभ दशोंदिश में है रही, तिस धूमते अलिबंद छाये नील घन शोभा लही।
नृप नाभिराय जुबंश नभ में इंदु ऋषभ जिनंद ही, पूजूंसुहित कर चरणअंबुज हरत जगके फंदही। डों ह्रीं श्री ऋषभनाथ जिनेंद्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय अष्ट
कम दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा ॥ .. फल-एला सुकेला आम्र दाडिम कैंथ चिरभट लीजिये,भरथाल ल्याए चरन के ढिग मोक्ष श्रीफल दीजिये . नृपनाभराय जुबंश नभ में इंदु ऋषभ जिनंद ही, पूजू सु हितकर चरणअंबुज हरत जगके फंदही।
ओं ह्रीं श्री ऋषभनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय मोक्ष फल प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा॥..
. .......
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चौबी०
अर्घ-शुभ वारि सौरभ श्वेत अक्षत पुष्प चरुवर पावने, बहु दीपधूप फलौघ सुंदर अर्घ करत सुहावने । पूजन
नृप नाभिराय जुबंश नभमें इंदु ऋषभ ज़िनंदही। पूजूंसुहित कर चरण अंबुज हरत जगके फंद ही।
... डों ह्रीं श्री ऋषभनाथ जिनेंद्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय अनर्घ ४४६ ।
. पद प्राप्तये अर्घ निर्वपामीति स्वाहा॥
. अथ पंचकल्याणक । छंद त्रोटक। गर्भ-शुभ बीज असाढ सुहात अली, जिन गर्भ विषे तिथ आनरलो। पित मात तबै, नुत इंद्र जजे,
तिहुँ लोक विषे सुर ढुंद बजे। ह्रीं श्री ऋषभनाथ जिनेन्द्राय आषाढ कृष्ण द्वितीया गर्भ,
कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा । जन्म-कल नवमी मास सुचैत कहा, ऋषभेश्वरने तब जन्म लहा। अमरेश जजै गिरि मेरु तबै, हम
पुजत पातक नाश अबै। ह्रीं श्री ऋषभनाथ जिनेन्द्राय चैत्र कृष्ण नवमी जन्म कल्याण
प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा । तप-अलि चैत सुनवमी पर्वबरा, प्रयाग अरन्य सयोग धरा। चिद रूप वि
तब निजथान गये। रों ह्रीं श्री ऋषभनाथ जि . अर्घ निवपामीति स्वाहा॥
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बीबी०
पूजन
संग्रह .४४७
ज्ञान-कलि फागुण ग्यारस ज्ञान जगा, सब जीव तनो तम सर्वभगा। दिव ध्वनी तबै घन जेम झरे, | गण ईश तबै सु प्रकाश करै। ॐ ह्रीं श्री ऋषभनाथ जिनेंद्राय फाल्गुण कृष्ण एकादशी ज्ञान
: कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा॥ निर्वाण-बदिमाघ चतुर्दशि मोक्ष गए, अष्टा पद पै सुर थोक नए । अमरागण की तव नार नची, . भवि वृंदन ने तहां पूज रची। ॐ ह्रीं श्रीऋषभनाथ जिनेन्द्राय माघ कृष्ण चतुर्दशी मोक्ष - कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा॥
अथ जयमाला। दोहा-बपुउतंग धनु पांच से, कनक वर्ण अभिराम । लक्षण वृषभ निहारके, तुम पद करूं प्रणाम ॥१॥
. छंद पद्धड़ी-तजके सर्वारथ सिद्ध थान, मरु देव्या माता कूष आन । तब देवी छप्पन जे कुमारि,ते आई अति आनंद धारि ॥ २॥ ते बहु विध ऊंचा सेवठान, इंद्राणी ध्यावत हर्षमान । तुम जन्म भयो तव इंद्र आय, लख योजन ऐरावत रचाय ॥ ३॥ शत बदन सहित सोहत उतंग, दंतन प्रति सरवर श्वेत रंग। तिनमें फूले बहु कंजसार, ता दल पै अप्सर नृत्य धार ॥ ४॥ ते हैं सत्ताइस क्रोड जान, बहु हाव भाव युत करत गान । इत्यादि भूति युत इंद्र आय, तुम लेय अंक गिरि मेरु जाय ॥ ५॥ तित पांडुक नामा शिल उदार, है अर्द्ध चन्द्रमा के अकार । तापर तिष्ठाये तुम महेश,
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चौबी० अतिन्हौंन ठाठ कीनो सुरेश ॥६॥क्षीरो दयितें सित वार लाय, इक सहस वसु कल से भराय । युग पूजन इंद्र तबै कर सहस धार, तुम मस्तक पै ढारी उदार ॥७॥ पुन शची पूंछ श्रृंगार कीन,फिर पिता सदन 'संग्रह लायो प्रवीन । जननी की गोद दिये जिनंद, जिन देखत हरषी कुमद चंद ॥८॥ तहां तांडव नृत्य ४४८ सुरेस ठान, पित मात पूज कीनो पयान । शशि दुतिया जिम तुम वृद्धि थाय, पूरब लख बीस गए
बिहाय ॥९॥ पुन राज भोग कीनो उदार,पुरब लख त्रेसठ सुख अपार। नीलांजन नृत्य कियो सुआय, तह छिन तिसको गय वपु पलाय ॥ १०॥ इह कारन लख जग तें उदास, भाई अनुप्रेक्षा पुण्यरास । लोकांतिक सुर पूजे नियोग, हरि शिविका लाये अति मनोंग ॥११॥ तापर चढके कानन प्रयाग, तुम पहुंचे सकल समाज त्याग । तहां शिला स्वच्छ पर योग ठान, पण मुष्टी लौंच कियो महान ॥१२॥ खडगासन ठाडे ध्यान धार, षट् मास प्रतिज्ञा कर उदार । फिर असन हेत कीनों विहार, राजा श्रियोस दीनो अहार ॥ १३॥ फिर पुरमिताल के बन सु आन, उपजायो केवल ज्ञान भान । तव समवसरन रचना अशेप । धनपति ने कीनी अति सुवेश ॥ १४ ॥ताको वरनत सुर गुरु थकाय, सो मोपै किम वरनो सुजाय । तहां सप्त तत्व परकाश सार, इक लाख पूर्व कीनो विहार ॥ १५॥ फिर अष्टापद गिरि शीस धाय, तिन चौदह योग निरोध आय । तब प्रकृति पचासी नाश कीन, इक समय मांहि शिव वासलीन ॥ १६ ॥ तुम गुण अनंत को नाहिपाय, मैं नमन करूं शिर नाय नाय । इक्षाकु वंश मय गुण गरिष्ट, बखता रतना के परम इष्ट ॥१७॥
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चौबी० पत्ता छंद-जय ऋषभ जिनंदा आनंद कंदा, सुर गुरु बंदा जगत पती। तुमको नित ध्यावें
पूजन | भक्ति बढावें ते पावें शिव शर्म अती ॥१८॥ ॐ ह्रीं श्रीऋषभनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप ज्ञान ... संग्रह निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय अनर्घ पद प्राप्तये अर्घ निर्वपामीति स्वाहा ॥ .. ..
अथ आशीर्वादः-शिखरिणी छंद-नमेहें जेप्राणी ऋषभजिनके युग्मचरना, करें पूजाभारी मिटत जग को
ताह फिरना । लहै शोभा सारी सुरनर गहे आन शरना,वरे मोक्ष नारी लहत सुख सोनाहि वरना। - इत्याशीर्वादः ॥ इति श्री वृषभनाथ जिन पूजा संपूर्णा ॥ १॥ ......
..१४९
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चौबी० पूजन | संग्रह
- २ अथ श्रीअजितनाथजिन पूजा प्रारभ्यते।
- (बखतावर सिंह कृत) गीता छंद। स्थापना-शुभ वैजयंतविमान त्याग सुनगर कौशल्यापुरी,
मात जिनकी जान विजिया सेवती नित सुरसुरी। आयु पूरव लाख बहत्तर करी चिन्ह पिछानिये,
अजित जिनवर तिष्ठये मुझदास अपनो जानिये ॥ डों ह्रीं श्री अजितनाथ जिनेन्द्र अत्रावतरावतर संवौषट् आह्वाननम् । ॐ ह्रीं श्री अजितनाथ जिनेंद्र अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम्। ॐ ह्रीं श्री अजितनाथ जिनेंद्र अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधीकरणम्।
अथ अष्टक । छन्द योगीरासा॥ .. जल-रत्न जडित भंगार मनोहर प्राशुक अंबु भरायो। कर्म तनी रज नाश करन को धार देत हरषायो। .. अजित र्जिनेश्वर कर्महनेश्वर पूजत सुरगण सारे, पदपंकज की नषदुतिऊपर कोटिक रविशशिवारे।
ॐ ह्रीं श्री अजितनाथ जिनेंद्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय जन्म .. मृत्यु जरा रोग विनाशनाय जलं निवंपामीति स्वाहा ।। .. ..
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चौबी.
.. संग्रह
चंदन-हरि चंदन घस केसर मिश्रित कनक कटोरीधारूं, तास गंधते षट् पद आवें अर्चतताप निवारूं।
अजित जिनेश्वर कर्म हनेश्वर पुजत सुरगण सारे, पद पंकज की नख दुति ऊपर कोटिक रवि शशि वारें। ॐ ह्रीं श्री अजितनाथ जिनेंद्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण
प्राप्ताय संसारा तापरोग विनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा ॥ . अक्षत-अन बिंधेमुक्ता सम अक्षत निशकर सम उजियारे, अषेसुपद दीजे हम को अब याते पुंज सुधारे। अजित जिनेश्वर कर्म हनेश्वर पूजत सुरगण सारे, पदपंकजकी नख दतिऊपर कोटिक रवि शशिवारे।
ॐ ह्रीं श्रीअजितनाथ जिनेंद्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय अक्षय
.. पद प्राप्तये अक्षतान निर्वपामीति स्वाहा ॥ .. .. पष्प -बेल चमेली राय बेल गुल तूरी आदिमंगाई,मकर केतके मद नाशन को तुम ढिग पुष्प चदाई।
अजित जिनेश्वर कर्म हनेश्वर पूजत सुरगण सारे, पद पंकज की नख दुति ऊपर कोटिक रवि शशि वारे। ॐ ह्रीं श्रीअजितनाथ जिनेंद्रायः गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण
प्राप्ताय काम वाण विनाशनाय पुष्पं निर्वपामाति स्वाहा। .. नवेद्य-सरस मनोहर घेवर फेनीगंजामोदकं ताजे, 'पुष्ट करत तन चर्न चढाए रोगक्षुधादिक भाजे। अजित जिनेश्वर कर्म हनेश्वर पूजत सुरगणसारे,पद पंकजकीनख दुति ऊपरकोटिकरविशशिवारे।।
ॐ ह्रीं श्रीअजितनाथ जिनेंद्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय क्षुधा
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चौबी
संग्रह. ४५२
... रोगविनाशनाय नैवेद्य निर्वपामीतिःस्वाहा। . . . . पूजनापरल दीप-रत्न जडित दोषक में धृतं भरपातिकपूर प्रजारी;मोह अंधके नाश करन को चरन कंज ढिगधारी। अजित जिनेश्वर कमनश्वा जैतसुरंगण'सारे,पदपंकजकीनख दुति ऊपर कोटिकरविशशिवारे। ॐ ह्रीं श्रीअजितनाथ जिनेद्रीय गर्भ,जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय मोहांध
कार विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा ॥ धूप-रत्न जडित धूपायन में ही देश विध गंधजराई,अष्ट कर्म के नाश करनको यजत चरण लवलाई।
अजित जिनेश्वर कर्म हनेश्वर पूजत सुरगण सारे पद पंकज की नखदुति ऊपर कोटिक रवि शशि वारे। ॐ ही श्री अजितनाथ जिनेंद्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण
प्राप्ताय अष्ट कर्म दहनाय धपं निर्वपामीति स्वाहा ॥ ., फल-श्रीफल सेव बदाम छहारा एला केला लावें, कंचन थाल भराय मनोहर सेवत शिवफल पावें।
अजित जिनेश्वर कर्म हनेश्वर पूजत सुर गण सारे, पद पंकज की नख दुति ऊपर कोटिक रवि शशि वारे। ॐ ही श्री अजितनाथ जिनेंद्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय मोक्ष फल प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा ॥ अर्चे र बजाई, नाचत गावत अंग नचावत शिवपुरदे जिनराई। .
• नख दुति ऊपर कोटिकः रवि
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चौबी०. शशि वारे। ॐ ह्रीं श्रीअजितनाथ जिनेंद्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण पूजन: :: प्राप्ताय अनर्घ पद प्राप्तये अर्घ निर्वपामीति ॥
... अथ पंचकल्याणक। छंद द्रुत विलंबित । ४५३ गर्भ-जेठ कारी मावस जानियें, गर्भ मंगलतादिन मानियें । मात विजया सेव हि सर सबै, हम जजें
इत अर्थ लिये अबै। ॐ ह्रीं श्री अजितनाथ जिनेंद्राय जेष्ठ कृष्ण अमावस्या गर्भ कल्याण ___ प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा॥ जन्म-शुकल माघ दस दिन आइयो, अजित जिनने जन्म सुपाइयो । हरि जजे गिरि मेरु न्हलायके, हम जजें नित मंगल गायके। ॐ ह्रीं श्री अजितनाथ जिनेंद्राय माघ शुक्ल दशमी जन्म,
कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा ॥ तप-श्वेत नवमी माघ महान है, विपिन माहि धरो शुभ ध्यान है। निजस्वरूप विषे लव लायके,यजत हैं हम अर्घ चढायके। ॐ ह्रीं श्रीअजितनाथ जिनेंद्राय माघ शुक्ल नवमी तप कल्याण प्राप्ताय
अर्घ निर्वपामीति स्वाहा। ज्ञान-पौष शुकल ग्यारस तिथ के दिनो, ज्ञान पंचम उपनो तुम जिना। समवस रच्यो धन देव ही, ... हम जजें नुति करके सेव ही। ॐ ह्रीं श्रीअजिनाथ जिनेंद्राय पौष शुक्ल एकादशी ज्ञान कल्याण
प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा ॥
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पजन
... हम जजें नित मंगर
संग्रह
चौवौ . निर्वाण-शुकल पंचमि चैत महानजी, गिर समेद थकी निर्वान जी। सिद्ध सुथानक आप बिराजई, .. हम जजें नित मंगल साज ही। ॐ ह्रीं श्री अजितनाथ जिनेंद्राय चैत्र शुक्ल पंचमी मोक्ष कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।।
' अथ जयमाला। दोहा।। ... महाअर्घ-जिम वालकसर इंदुलखि,करमें पकडतधायातिमतुम गुण मालाविविध,हम किम वरने गाय १ ।
छंद कामिनी मोहन । जय अजितेश भुवनेश जिनराय हो, विकट संसार में आप सुखदाय हो । गर्भ अरु जन्म के सार कल्याण में, आय सुरईश कीनों पिता थान में ॥२॥आयु बहत्तरे लक्ष पूरब महा, शेष इक लक्ष में योग तुमने लहा। सहस इक भूपने संग दीक्षा गही, रहे छद्मस्थ जिन वर्ष द्वादश सही ॥३॥करत तपघोर चारों अरीनाशियो, ज्ञान केवल लहा सर्व परकाशियो । धनद सम बाद की सरस शोभारची, पूजियो आय हरि संग निर्जरशची॥ ४॥ सिंह सेनादि गणधीश नव्वे जहां। सर्व मुनिसंघ इक लक्ष राजे तहां । सहस द्वादश शतक चार मुनि जानिये, धरत वादित ऋद्धि सार उन आनियें ॥ ५॥ सहस नव चार से अवधिकर सोहते, करत उपदेश सव भव्य मन मोहते। . निये सहस द्वादश भले, ज्ञान तयं धरें करम अरि को दले ॥६॥ धरत वैक्रियक रिद्धि
केवल सहित सहस जिन वीस हैं, कर्म
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चौबी० पूजन संग्रह ४५५
चवनाशियो सर्व के इश हैं ॥७॥ सहस इकतीस षट् शतक शिष्यक मुनी, शतक सैंतीस अर अर्ड पूरब धनी। तीन हज्जार त्रय लक्ष आर्या कही, धरत व्रत नेम बहु श्वेत साढा गही ॥८॥ सहस सम्यक्त लख तीन श्रावक बने,देत चत्र संघ को दान आदर ठने त्याग मिथ्यात्वलख पांच सौहै भली। श्रावका धर्म पाले महामन रली ॥९॥ देव देवी असंख्यात सिरनावते, वरें सब छांडि तिथंच संख्यावते । इन ही आदिक महा संघ सोहे जहां, करत सु बिहारजे देश आरज तहां ॥ १० भव्य गण बोध सम्सेद गिरि आइयो, योग निरोध के सिद्ध पद पाइयो । ज्ञान हग बीर्य सुख आप धारी भये, सकल सुर आयके शीस तुम को नये ॥ ११ ॥ कहत बखता रतनदास तुमरे सही, छाड सब देव को शर्ण तेरी लही। तोड मम फंद को ठाम निज दीजिये, हे जगन्नाथ यह अर्ज सुन लीजिये ॥ १२ ॥ घत्ता छन्द-जयमाल बखानी,सब सुख दानी,मवि मन आनी पाप हरे।जे पढ़ें पढावें स्वरधर गावें,तिन घर ऋद्धि अपार भरे॥ १३॥ डों ह्रीं श्रीअजितनाथ जिनेन्द्राय गर्भ जन्म, तप, ज्ञान निर्वाण
पंचकल्याण प्राप्ताय अनर्घषद प्राप्तये महाऽधं निर्वपामीति स्वाहा।। अथ आशीर्वादः।छंद मालती-जिन अजित जिनंदा सेवते चरनचंदा,सकलभवि अनंदा पूजिह त्यागगंधा। तिन घर ऋद्धि भारी पुत्र पौत्रादिसारी, सरब दुख निवारी सो लह मोक्ष प्यारी ॥ १४ ॥
इत्याशीर्वादः। इति श्री अजितनाथ जिन पूजा संपूर्णा ॥ २॥ ..
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चौबी०
पूजन .
संग्रह .. . .
३ अथ श्रीसंभवनाथजिन पूजा लिख्यते।
- (वखतावर सिंह कृत) छंद मत्त गयंद स्थापना-ग्रीवक छार लियो अवतार पिसा.सजितार के नंद कहाये।
जय सेना मात नमधर हाथ जु संभवनाथ जिनंद हसाये । है वाजी अंक अरी कर दंक सभव्यन को शिव पंथ लगाये।
श्री जिनदेव करूं नित सेव स्थापत हं चित हर्ष बढाये ॥१॥ ॐ ह्रीं श्री संभवनाथ जिनेंद्र अत्रावतरावतर संवौषट् आह्वाननम् । डों ह्रीं श्री संभवनाथ जिनेंद्र अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम् । डों ह्रीं श्री संभवनाथ जिनेंद्र अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधी करणम्।
. अथ अष्टक ॥ छंद सुंदरी। . जल-उदक पदम हद को लीजिये, पर श्री जिन सनमुख दीजिये। जन्म आदि त्रिदोष मिटाइये, ...चरन संभव जिनके ध्याइये। ॐ ह्रीं श्री संभवनाथ जिनेंद्राय गर्भ जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण कल्याण प्राप्ताय जन्म मृत्यु जरा रोग विनाशनाय जलंनिपामीति स्वाहा।
...भव आताप मिटावन चंद हो, परम
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संभव तोडन फंद हो। ॐ ह्रीं श्री संभवनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप ज्ञान, निर्वाण पंच
- कल्याण प्राप्ताय संसारा ताप रोग विनाशनाय चन्दनं निवपामीति स्वाहा। अक्षत-सरल अक्षत कुंद समान ही, कनक थार विषे धर आन ही । पद अषै दायक सु दयाल हो,नाथ | ... संभव तुम गुणमाल हो। ॐ ह्रीं श्रीसंभवनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण - पंचकल्याण प्राप्ताय अक्षय पद प्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा।। पुष्प-सहस पत्र शुकंजादिक भले, भ्रमर गुंजत हैं तिनपै.रले । चरण अर्चत काम निवारिये, देव संभव | ..
भवदधि तारिये। ॐ ह्रीं श्रीसंभवनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंच
__ कल्याण प्राप्ताय काम वाण विनाशनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।' नैवेद्य-चरु मनोहर सोदक पावने, सरस उज्वल चश्म सुहावने। घृत सितारस मिश्रित लाइयो, जिन . सुसंभव चरण चढाइयो। ॐ ह्रीं श्री संभवनाथ जिनेंद्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान निर्वाण
पंचकल्याण प्राप्ताय क्षुधा रोग विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा। दीप-होत जग मग ज्योति सहावनी, दीप मालसकर धर पावनी। मोह तिमिर विनाशन सेवकी, . सरस संभव श्री जिन देवकी। ॐ ह्रीं श्री संभवनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान,
निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय मोहांधकार विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा। . धूप-सरस सुंदर गंध रलायके, खेय हूं तुम सन्मुख आय के, धूप के संग करम उडात हैं, भगत वत्सल
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चोबी०
पजन संग्रह
४५८
.संभवनाथ हैं। ॐ ह्रीं श्री संभवनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण
... प्राप्ताय अष्ट कर्म दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा। फल-आम्र दाडिम चिर्भट सेवही, फल मनोहर उत्तम भेवही। जगतनाथ कृपाकर लीजिये, हमें संभव शिव फल दीजिये। ॐ ह्रीं श्रीसंभवनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंच
कल्याण प्राप्ताय मोक्ष फल प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा। अर्घ-जलं फलादि सब दरव मिलाय हुं, करत अर्घ अनूपम लाय हुं । कर सुखी मुझ देख बिहाल .... को, हरहु संभव जग जंजाल को। डों ह्रीं श्रीसंभवनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान । निर्वाणपंचकल्याण प्राप्ताय अनर्घपद प्राप्तये अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।
अथ पंचकल्याणक । दोहा। गर्भ-फागुण सित अष्टमि भली, तज ग्रीवक अहमिंद । सेना माता उर बसे, सेव सुरतिय वृंद। . ॐ ह्रींश्रीसंभवनाथजिनेंद्राय फाल्गुण शुक्ल अष्टमी गर्भकल्याणप्राप्तायअर्घनिर्वपामीतिस्वाहा। जन्म-पूनम कातिक श्वेत ही,तृतिय ज्ञान युत देव । मेरुशृंग पर हरिजजे,महपूजें कर सेव । ॐह्रीं श्री
संभवनाथ जिनेंद्राय कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा जन्म कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा। तप-मगसिर पूनम शुक्ल ही, तप धारो जिन ईश। सकल परिग्रह त्याग के, हम ना निज शीश।
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चौबी०. ॐहीश्रीसंभवनाथ जिनेंद्राय मार्गशिरशुक्ल पूर्णिमा तपकल्याण प्राप्ताय अर्घनिर्वपामीतिस्वाहा . .
पजन ज्ञान-कातिक कारी चौथ दिन, चार कर्म हन ज्ञान । समवसन शोभित भयो, द्वादशसभामहान । ॐहीं ..संग्रह . श्री संभवनाथ जिनेंद्राय कार्तिक कृष्ण चतुर्थी ज्ञान कल्याण प्राप्ताय अर्घनिर्वपामीतिस्वाहा।.. १५९ निर्वाण-षष्ठी शुकल सुचैत्र की, पायो अविचल थान। सम्मेदा गिरि सीसतें, जजूं तुम्हें धर ध्यान। ॐ ह्रीं श्री संभवनाथ जिनेंद्राय चैत्र शुक्लषष्ठी मोक्ष कल्याण प्राप्तायअर्घनिर्वपामीति स्वाहा।
.' अथ जयमाला। दोहा। जो किसान खेती करे, कारज अपने मान । भूप तनो नहि हेत लख, पोषत कुटंब सुजान ॥१॥
त्यो तुम गुण माला विविध, बरन अपने हेत। रागादिक वर्जित.प्रभु, भावन को फलदेत ॥२॥ ....... छन्द चंडी-जय संभव जगदीश नमस्ते, राग दोष मद पीस नमस्ते। जयानंद धनबीर नमस्ते, नाशत हो भव पीर नमस्ते ॥ ३॥ लोका लोक प्रकाश नमस्ते, जन्म जरा दुख नाश नमस्ते । कर्म बज़ को छेद नमस्ते, मोह महा भट भेद नमस्ते ॥४॥ भव दधि तारन सेतु नमस्ते, अधम उधारन हेतु नमस्ते । क्रोध दवानल वारि नमस्ते, भव्य जीव निस्तारि नमस्ते ॥५॥मान शैल को बिंदु नमस्ते । धर्म धुरंधर सिंधु नमस्ते । माया शल्यः बिहंड नमस्ते, अष्ट कर्म के खण्ड नमस्ते ॥६॥ बहु सुख | दायक देव नमस्ते, इंद्र करत नित सेव नमस्ते । प्रतिहार्य वसु धार नमस्ते, तरु अशोक. ढिग धार
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चौबी० नमस्ते ॥७॥ सुमन वृष्टि नभ होत नमस्ते, सिंहासन रवि जोत नमस्ते । चौसठ.चमर दुरंत नमस्ते पूजन सुर ढुंदभि वाजंत नमस्ते ॥ ८॥दिव्य ध्वनि घन घोर नमस्ते, हरषत भवि जन मोर नमस्ते। भामंडल संग्रह भव पेष नमस्ते, छत्र कोटिरवि रेख नमस्ते ॥ ९॥ चतुरानन भगवान नमस्ते, तत्व प्रकाशन ज्ञान ४६० नमस्ते । लक्षग चरन तुरंग नमस्ते, वपु कंचन के रंग नमस्ते ॥ १०॥ चार शतक धनुकाय नमस्ते,
वंश इक्ष्वाकु सुआय नमस्ते । खेचर भूचर राय नमस्ते, नमन करें सिरनाय नमस्ते ॥११॥ शिखर समेद महान नमस्ते, पूजू मोक्ष सुथान नमस्ते । अष्ट गुणन के राज नमस्ते, सोहत सब सिर ताज नमस्ते ॥१२॥ बखतावर सिर नाय नमस्ते, रतनलाल गुण गाय नमस्ते। यह मेरी अरदास नमस्ते, दीजे शिवपुर वास नमस्ते ॥ १३॥ घत्ता छन्द-जय संभव स्वामी अंतर्यामी त्रिभुवन नामी सुखदाई । हम पूजें ध्यावें तूर वजावे गुण गण
गावें हरषाई ॥ १४॥ डों ह्रीं श्री संभवनाथ जिनेंद्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान निर्वाण पंच
कल्याण प्राप्ताय अनर्घ पद प्राप्तये अर्घ निर्वपामीति स्वाहा। अथ आशीर्वादः। संभवनाथ जिनेश तनी इह वर जयमाला, तन मन बचन लगाय पढे जो बुद्धि विशाला। दुःख दरिद्र को नाश होत ता ग्रह के माही, ऋद्धि सिद्धिवर वृद्धि होत ना घटे कदा ही।
॥ इत्याशीर्वादः॥ इति श्री संभवनाथ जिन पूजा संपूर्णा ॥ ३॥
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....
४ अथ श्री अभिनन्दननाथजिन पूजा प्रारभ्यते।
... बखतावर सिंह कृत (छन्द सुन्दरी) स्थापना-पिता संवर जिन वर के सहो, नगर साकेता अद्भुत कही। ... चिह्न मर्कट को उर जानके, तिष्ट अभिनंदन इत आन के ॥१॥
ॐ ह्रीं श्रीअभिनंदननाथ जिनेंद्र अत्रावतरावतर संवौषट् आह्वाननम् ॐ ह्रीं श्रीअभिनंदननाथ जिनेंद्र अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम् । डों ह्रीं श्री अभिनंदननाथ जिनेंद्र अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधोकरणम्। .
अथ अष्टक (विजयानी सेठ को चाल)...... जल-शुभवारि सो जी पद्म हद को लाइये, भरझारी जी चरनन माहिं चढाइये। अभिनंदन. जी जग
बंधन तोडन बली, हम पूजें जो विघ्न सघन सब ही टली । ओह्रीं श्रीअभिनन्दननाथ जिनेंद्रायगर्भ
जन्म,तप,ज्ञान निर्वाणपंचकल्याणप्राप्ताय जन्म मृत्युजरारागविनाशनायजलंनिर्वपामीतिस्वाहा । चंदन-हरि चंदन जी सरस सुवास सुहावने, तिस ऊपरजी गुंजत अलिगण आवने। अभिनंदनजीजग - बंधन तोडनवली, हम पूजें जीविघ्न सबन सब हीटली। ओ ह्रीं श्री अभिनन्दन नाथ जिनेद्रायगर्भ,
जन्म,तप,ज्ञान,निर्वाण पंचकल्याणप्राप्ताय संसारातापरोग विनाशनाय चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा।
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बी० अक्षत-पुण्यराशि सोजी तासम अक्षत लीजिये, चरनन ढिग जी पुंज मनोहर कीजिये। अभिनंदनजी पजन, जग बंधन तोडन बली,हम पूजें जी विघ्न संघन सवही टली। ॐहीश्रीअभिनन्दननाथ जिनेन्द्राय संग्रह गर्भ, जन्म,तप,ज्ञान,निर्वाण पंच कल्याण प्राप्ताय अक्षयपद प्राप्तये अक्षतान निर्वपामीति स्वाहा। १६२ : पुष्प-चंपक अरजी बेल चमेली जानिये, सुर तरु के जी फूल मनोहर आनिये । अभिनन्दन जी जग
__ वंधन तोडन बली,हम पूजेंजी विघ्न सघन सब ही टली। ॐ ह्रीं श्रीअभिनन्दन नाथ जिनेंद्राय
गर्भ,जन्म,तप, ज्ञान,निर्वाण पंचकल्याणप्राप्ताय काम वाण विनाशनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा। नैवेद्य-रसपूरित जी नेवज सदलायोधनी,तित देखतजी क्षुधा रोग सब ही हनी। अभिनंदन जी जग बंधन जोड़न बली, हम पूजें जी विघ्न सघन सब ही टली। ॐ ह्रीं श्री अभिनन्दन नाथ जिनेन्द्राय
गर्भ,जन्म, तप,ज्ञान,निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय क्षुधारोग विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा । दीप-रत्नन के जी दीपक तुम आगे धरें,तिस जोति सों जी अन्ध दशों दिश का हरें । अभिनन्दन जी ' जग बंधन तोडन बली,हम पूजें जीविघ्न सघन सब ही टली। गेही श्रीअभिनन्दन नाथ जिनेन्द्राय
गर्भ,जन्म,तप,ज्ञान,निर्वाणपंचकल्याण प्राप्ताय मोहांधकार विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा। धूप-दशगंध सोजी कर्पूरादि मिलाइये, तिस खेवत जी अष्ट करम सु जराइये। अभिनंदन जी जग बंधन तोडन वली, हम पूजेंजीविघ्न सघन सवही टली। ॐ ह्रीं श्रीअभिनंदननाथ जिनेन्द्राय गर्भ, 'जन्म, तप, ज्ञान,निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय अष्टकर्मदहनायधूपं निर्वपामीति स्वाहा। .
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संग्रह
१६३
।
-:.
.
।
चोषी०
| फल-बादाम सेजी श्रीफल आदि सुहावने, भरथारीजी देखत चख ललचावने। अभिनंदनजी जग बंधन -पूजन
तोडन वली,हम पूजें जी विघ्न सघन सबही टली । डों ह्रीं श्री अभिनंदन नाथ जिनेन्द्राय गर्भ,
जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय मोक्षफल प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा। अर्घ-जल फल शुभजी आठोंदर्बसु कर लिये, कर अर्घ सुजीतुम पद आगे धर दिये । अभिनंदनजीजग बंधन तोडन वली,हमपूजेजी विघ्न सघन सब हीटली। ॐहीं श्रीअभिनंदन नाथ जिनेंद्राय गर्भ, जन्म,तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय अनर्घ पद प्राप्तये अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।
अथ पंच कल्याणक। (छन्दपायता) गर्भ-षष्टी वैशाख उजारी, गरभागम तादिन भारी। माता सिद्धारथ ध्याऊ, अभिनंदन पूज रचाऊं।
... ॐह्रीं श्रीअभिनंदननाथजिनेंद्रायवैशाखशुक्लषष्ठीगर्भकल्याणप्राप्तायअर्घ निवपामीतिस्वाहा। जन्म-सित बारसि माघ महीना, जिन चंद जन्म तब लीना। सब जीवन ने सुखपाया, तन कनक - बरण छबि छाया। ॐ ह्रीं श्री अभिनंदन नाथ जिनेंद्राय माघ शुक्ल द्वादशी जन्म कल्याण
प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीतिस्वाहा।। तप-सित माघ द्वादशी जानों तव योग विषेचित ठानो। लौकांतिक सुर तत्र आये, हम पूजें अर्घ चढाये
ॐह्रीश्री अभिनन्दननाथ जिनेंद्राय माघ शुक्ल द्वादशी तपःकल्याणप्राप्तायअर्घनिर्वपामीतिस्वाहा।
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चोवी.
ज्ञान-चवघाति कर्मदुखदाई,हन केवल ज्ञान लहाई । सितपोष चतुर्दशि जो है,भवजीवन के मन मोहै।
। ॐहीं श्रीअभिनंदननाथ जिनेंद्राय पोषशुक्ल चतुर्दशी ज्ञान कल्याण प्राप्तायअनिर्वपामीतिस्वाहा। संग्रह निर्वाण-सम्मेद शिखर गिरि सो है, तहं योगनिरोध करो । वैशाख शुक्लछठ आई,शिवनारवरीजिनराई। ४६४ . . ॐ ह्रीं श्रीअभिनंदननाथ जिनेंद्राय वैशाख शुक्लषष्ठी मोक्षकल्याणप्राप्तायअर्घनिवंपामीतिस्वाहा।
__ अथ जयमाला।दोहा. महाअर्घ-श्री अभिनंदन देवके, चरण सरोज विशाल। तिनको में सिरनायके, गाऊंशुभजयमाल॥१॥
चाल बीस जिन पूजा आरती की। .. . अभिनंदन भगवंत जी जगसार हो नमन करूं सिर नाय । मो बिनती हिरदे धरो जगसार हो, स्तुति करू हूं बनाय। मैं करूं बिनती सुनों स्वामी, चतुरगति में दुःख सहे । यहां योनि लख चौरासि पाई, कोड़ कुल मैं सय लहे ॥२॥ तहां भ्रमत बहु संसार माहीं, पंच थावर तन लियो । जब पडीमंद कषाय मेरी, आन विकल त्रय भयो। तियंचगति दुःख बहु सहे जगसार हो । सो किम बरने जांय । तुमतें छाने को नहीं जगसार हो । रही सो ज्ञान समाय । सो ज्ञान मांह प्रत्यक्ष दीखे दुःख जेते मैं लहे। जहां भूख प्यास अत्यंतपीडा मार ताडन दुःख सहे ।३।तहां पीठपे बहु बोझ लादे गले में फंदा
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नौबी०|| गही। संयम बिना ये दुःख पाये अंतनारक गति लही ॥३॥ नारक भूमि डरावनी जगसार हो, शीत || पजन
उष्ण दुःख भार । हुंडक डील घिनावनो जगसार हो, करे मार ही मार। तहां मार मार अत्यंत सुनिये संग्रह
पूतरी लिपटात हैं । तरु शालके असि पत्र कंटक तासमें घिसटात हैं। सरिता बहे.श्रोणित तनी तिस ४६५
पान करवावें सदा । इम आयु सागर बंध भुगती सुख नहीं पायो कदा ॥ ४ ॥निकस तहां मानुष भयो। जगसार हो नीच कुली अवतार । बिकलेंद्रिय चख हीन ही जगसार हो, पायो तन दुख कार । दुखकार तन पायो अपावन भूप को किकर भयो। कर जोड के तहँभयोठाडो हुकम सिर पे धर लियो। जे भेष मिथ्या जटा धारी तास को गुरु मानियों। जिन बचन की शरधान कीनी तप अज्ञान सुठानियों ॥५॥ कोइयक पुण्य बसायतें जगसार हो, पायो स्वर्ग विमान। नीचदेव संपति लही जग सार हो, घोटक बृषभ कहान। कहान बाहन जातमें बहु दास कर्म सबी गहे। ऋधि देख पर की झुरे. अति ही मानसिक जो दुःख सहे। पट मास पहिले माल सुकी देखके बिल लाइयो । आरत थकी तब प्राण त्यागे सुमन तन को पाइयो ॥६॥ यह प्रकार जग में भ्रम्यो, जगसार हो,सो तुम जानत देव । काल लब्धि जब आइयो जगसार हो, पाई तुम पद सेव । पद सेव पाई नाथ तेरी कृपा असी कीजिये। संसार सागर बीच मो को कर अलंबन दीजिये। मैं करूं नित ही सेव तेरी अहो. संबर नंदजी। इक्ष्वाकु वंश सुगगन माहीं दीप्त जैसे चंदजी ॥७॥ अष्ट करम सब हान के जग सारहो,पहुंचे मोक्ष सुथान। सुर नरं अवनीं पूजियो जगसार हो, सम्मेदाचल आन। आन
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चौबी० सर कल्याण कीनो, पंच मो हरषायके। गंधर्व निर्जर गान कीनो, नृत्य तुर बजाय के हम करें पूजन | युगकर-जोड ठाडे, कृपा सिंधु सुनी जिये। वखता रतन को भृत्य जानो वास अपनो दीजिये ॥८॥ सह. पत्ता छन्द-जय जय जिन स्वामी त्रिभुवन नामी सुर नर खग बंदित चरणम् ।। बहु मंगल गावें तूर
वजावें शीस नवावें अघ हरणम् । ॐ ह्रीं श्री अभिनन्दननाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान .... :निर्वाण, पंच कल्याण प्राप्ताय अनर्घ पद प्राप्तये महाऽघ निर्वपामाति स्वाहा। 'अथ आशीर्वादः । छन्द उपगीता । जे अभिनंदन स्वामी पूजे त्रय भाव शुद्ध कर कोई । ते होवें शिव
गामी त्रिभुवन में वंदनीक सो होई ॥ १०॥ ॥ इत्याशीर्वादः॥ • इति श्री अभिनंदननाथ जिन पूजा संपूर्णा ॥ ४ ॥
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बी०
...... समह - ४६७
५ अथ श्रीसुमतिनाथजिन पूजा प्रारभ्यते ।
... (वखतावरसिंह कृत) (सर्वया) स्थापना-त्याग बैजयंत सार नगर कोशला मंझार मात मंगला उदार तात मेरु जानियें।
चिह्न कोक बनधार दुष्ट कर्म नष्ट कार तीन लोक के अधार ज्ञान रूप मानियें॥ आयु लक्ष पूर्वजान चालिस को है प्रमाण कृपा दृष्टि धार के, सो मम दुःख हानियें । आइये जिनंद देव करूं हूं पदान्ज सेव तिष्ठ तिष्ठ नाथ सब भव्य दुःख भानियें ॥
ॐ ह्रीं श्री सुमतिनाथ जिनेन्द्र अत्रावतरावतर संवोषट् आह्वाननम्। ॐ ह्रीं श्रीसुमतिनाथाजनेन्द्र अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठाठः स्थापनम्। अह्रीं श्रीसुमतिनाथ जिनेन्द्र अत्र मम सन्निहितो भवभव वषट् सन्निधीकरणम् ॥
अथ अष्टक । छंद सोरठा। ..... जल-गंगाजल भरलाय, तुम सनमुख धारा दई । जन्म रोग नस जाय, सुमति जिनेश्वर पूजते ॥ .. ... ॐ ह्रीं श्रीसुमतिनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय
३. जन्म मृत्यु जरा रोग विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।.
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चौबी० | चन्दन-गोसीरादि घसाय, रल कटोरी में भरूं । करम दाय मिटजाय, सुमति जिनेश्वर पद जजें ॥ पूजन . ॐ ह्रीं श्रीसुमतिनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय संग्रह - ... संसारा ताप रोग विनाशनाय चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा। ४६८ अक्षत-अनियारे दुतिचंद, अक्षत पुंज रचाइये। दीजे पद सुख कंद, सुमतिनाथ जिनराय जी ॥ . . ॐ ह्रीं श्रीसुमतिनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय अक्षय
पद प्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा। पुष्प-सुमन अनेक प्रकार, सौरभते अलि गणभ्रमें । मार सुभटको टार,सुमति सुमति दायक सुधी।
ॐ ह्रीं श्रीसुमतिनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय काम
- वाण विनाशनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा। नैवेद्य-लायो सद पकवान, घृत पूरित रस में बने । करो क्षुधा की हान, सुमतिनाथ महाराज जी॥
ॐ ह्रीं श्रीसुमतिनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय क्षुधा . : ... ..रोग विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा। दीप-घृत सनेह तें जोय, दीपक कंचन पात्र में । मोह अंध को खोय, सुमति जिनेश्वर ज्ञान दो ।
___ ॐ ह्रीं श्रीसुमतिनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय " मोहांधकार विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।
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नवी
पूजन संग्रह ४६९
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धूप-अगर तगर शुभ लाय, धुप धनंजय के विषे । खेवत कर्म उडाय, सुमति जिनेश्वर चरण ढिग ।। ....... ॐ ह्रीं श्रीसुमतिनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण, पंचकल्याण प्राप्ताय
. अष्ट कर्म दहनाय धुपं निवपामीति स्वाहा। फल-श्रीफल आम अनार, पक्क मनोहर लाय के । पावै शिव तियसार, सुमति चरण जग ध्यावतें । . ॐ ह्रीं श्रीसमतिनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय मोक्ष
. फल प्राप्तये फलं निर्वामीति स्वाहा।। अर्थ-जल फल द्रव्य मिलाय, अर्घ सुकर धर लाय एं। आठों करम नसाय,सुमतिनाथ शिव दीजिये।
... ॐ ह्रीं श्रीसमतिनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय अनर्घ - पद प्राप्तये अर्घ निवपामीति स्वाहा।
... अथ पंचकल्याणक । छंद लीलावती। ... गर्भ-शुभ संजयंत तज सावन शुकला, दुतिया के दिन गर्भ लिया। मात सुमंगला के चरनन को,
सेवे नित ही स्वर्ग तिया॥ जिम मुक्ता संपुट में राजे तैसे आप विराज रहे । बहु धनद करी रत्नन की वर्षा अनहद बाजे बाज रहे ॥ ॐ ह्रीं श्रीसुमतिनाथ जिनेन्द्राय श्रावण शुक्ल द्वितीया गर्भ कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।
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चोधी०
पूजन संग्रह
जन्म-मति श्रुति अवधि ज्ञानत्रय भूषित सुमति जिनेश्वर जन्म लहो । दश अतिशय अद्भुत संग
जानो, रूप सरूप अनूप गहो. ॥ तब एक मुहूरत नरक मांहि भी पायो सब जिय चैन तवे हम
चेत शुकल ग्यारस के दिन कों, पूजत अर्घ चढाय अवै । ॐ ह्रीं श्रीसुमतिनाथ जिनेन्द्राय चैत्र .. शुक्ल एकादशी जन्म कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा । तप-दीनों सब त्याग परिग्रह जिनने, बन में जाय सुयोग धरा। वैशाख शुकल नवमी के दिन,
आतम सार विचार करा ॥ मौनालीन भये जो दिगंवर, पारन पय का कीना है । हम नित पूजें तुमरे चरण को, जो समता रस भीना है ॥ ॐ ह्रीं श्रीसुमतिनाथ जिनेंद्राय वैशाख शक्ल नवमी
तपः कल्याण प्राप्ताय अघ निर्वपामीति स्वाहा। ज्ञान-पाया है केवल ज्ञान जिनेश्वर चेत इकादशि श्वेत कही । समवसरन रचियो तब धनपति बारह
सभा अनूप सही बानी खिरे शब्द अंबर जिन सप्ततत्व परकाश करे। हम ध्यावें गावें पावें
शिव सुख, चरनन आगे अर्घ धरे॥ ॐ ह्रीं श्रीसुमतिनाथ जिनेन्द्राय चैत्र शुक्ल एकादशी ज्ञान - कल्याणकाय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा ॥ मोक्ष-पाया है शिवथान जिन्होंने श्वेत इकादशि चेत दिना। शुभ गिरि समेद शिखर के ऊपर सुमति. ... जिनेश्वर कर्म हना ॥ जिन अष्टम धरा जाय थित कीनी अष्ट गुणन के मंडन हो । हमनुत
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चौबी० कर ध्यावें चरण आप के ७.ष्ट करम के खंडन हो ॥ ॐ ह्रीं श्रीसुमतिनाथ जिनेन्द्राय चैत्र शुक्ल | पूजन
एकादशी मोक्ष कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा। संग्रह ३७१
. ........... अथ जयमाला।दोहा। | महाअर्घ-वप उतंग धन तीनसे, कंचन वरण सरंग । कोक चिन्ह चरनन विषे, नमन करूं वस अंग ॥
मेरुनंद समतेश जिन, दीजे बुद्धि रसाल । कर जोड़े विनती करूं, वरन शुभ गुण माल॥
. . चामर छन्द-छाड के विजय विमान नगर कौशला पुरी। मंगला सुमात चरण सेवती सबै सुरी ॥ मेघ के सुनंद नाथ इंद्र तोहि ध्यावते । लक्ष योजन प्रमाण नाग को बनावते ॥ ३ ॥ नृत्यतूर ठान के पिता सुनग्र आवते । प्रेम जासु मात पास भेज सौख्य पावते ॥ जाय के शची जिनंद गोद में लिये तबै । आन के सुरेंद्र देख मोद में भये जबै ॥ ४॥नाग पैसवार कीन्ह स्वर्ण शैल पे गये। न्हौन को उछाह ठान हर्ष चित्त में भये॥ देख रूप आप को अनंग बीनती लही। इन्द्र चन्द्र बृन्द आन शरण चर्ण की गही॥ ५॥ बीनती करे सुरेश युग्म हाथ जोड़ के । दीजिये पदाब्ज सेव मोह फंद तोड़ के ॥ तो बिना न देव कोय दूसरो निहारियो । लक्ष चार औ असी सुजौन से उबारियो.॥ ६ ॥ नाम आप के अपार रंचपार ना लहूं। शीस को नवाय नाथ ध्यान आप को गहूं ॥ फेर तात के अगार लाय मातको दिये । मेरु की कथा बखान बास आपने गये॥७॥ होत वृद्ध इंदु जेमवर्ष अष्टके भये । आप
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चौबी०
पूजन
संग्रह
४७२
बोधते अणु सुवत पंच को गहे ॥राज भोग जेः अपार आप ने किये महा। तीन लोक नाथ के ससौख्य को कहे कहा ॥८॥ भोग त्याग योग को विचार आपने करे । ब्रह्मदेव आन के सुपुष्प चरण में धरे॥ लाइयो सुरेश पाल की तबै नई जहां । है सवार आप सर्व संग को तजो तहां ॥९॥ जाय के अरण्य बीच ध्यान आपने धरे। तीन गुप्तिपाल व्रत पांच जो तहां करे। घाति चार घातिया अपार ज्ञान पाइयो। भव्य वृन्द बोध के समेद शैल आइयो। योग को निरोध ठान मोक्ष को गये सही । देव के समूह आन पूजते वही मही । मैं करूं जुतोह सेव दीन के दयाल को, कीजिये निहाल मेट आपदा सुकाल की ॥११॥ मैं नमूं जिनेश तोहि आप बास दीजिये। जन्म मृत्यु आधि व्याधि सर्व दूर कीजिये। सेव चर्न में सदेव दास को सुलीजिये , बार बार याचना करूं सुवेग दीजिये ॥ १२॥
पत्ता छन्द-धन्य धन्य सुमतेश के । युग चरणाम्बुज सार ॥ तिन पर बल बल जात हूं, भाव भगति उर धार ॥ १३ ॥ ॐ ह्रीं श्रीसुमतिनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण
पंचकल्याण प्राप्ताय अनर्घ पद प्राप्तये महापं निर्वपामीति स्वाहा । ... अथ आशीर्वादः । छंद कोसमालती-जो श्रीसुमति जिनेश्वर पूजें, अथवा पाठ पढ़ें मन लाय । तिन के
पुण्यतनी जो महिमा, सुर गुरु पै वरनी नहि जाय ॥ पुत्र पौत्र परताप बढे अति सुख संपति पावें अधिकाय । बखतावर अर रत्नदास के, हुजे प्रभु जी वेग सहाय ॥ १४॥
इत्याशीर्वादः । इति श्रीसुमतिनाथजिन पूजा संपूर्णा ॥५॥
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६ अथ श्री पद्मप्रभनाथ जिन पूजा प्रारभ्यते। .. .... (बखतावरसिंह कृत) छन्द योगीरासा।. .. स्थापना-नगर कुसभी अद्भुत राजे धनपति आय बनाई। ऊरध ग्रीवक त चयआये,रक्त वरण छविछाई। धरनतात विख्यात जगतमें मात सुसीमा जानो।थातुम को हरष धारकर तिष्ठ तिष्ठ दुख भानो॥१॥
ॐ ह्रीं श्री पद्मप्रभ जिनेंद्र अत्रावतरावतर संवौषट् आह्वाननम् । . ॐ ह्रीं श्री पद्मप्रभ जिनेंद्र अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं ॥ ॐ ह्रीश्रीपमप्रभ जिनेंद्र अत्र मम सन्निहितो भवभव वषट् सन्निधीकरणम्।
अथ अष्टक । गीता छंद ॥ . जल-शुभकुंभकनक मय वारि उज्ज्वलतासमेंभरलेत हूं। यह तृषा आतुर नाशनेको धार सन्मुख देतहूं।
श्रीपद्मप्रभ पद कंज लक्षण अरुण वरण सुहातहैं। पूजें अटल पद हेतु स्वामी कलुषताप नशात हैं। ॐ ह्रीं श्रीपद्मप्रभ जिनेद्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय जन्म मृत्य
जरा रोग विनाशनाय जलं निवपामीति स्वाहा॥ .... चंदन-गोसीर घसकेसर मिलाऊंसरस शोभा देत हैं। तुम चरन चर्चन हेत लायो महक षट्पद लेत हैं।
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चोवी पूजन संग्रह ४७४
श्रीपद्मप्रभ पदकंज लक्षण अरुण वरण सुहातह। पूजें अटल पद हेतु स्वामी कलुषताप नशात हैं। ॐ ह्रीं श्री पद्मप्रभ जिनेन्द्राय गर्भ,जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय संसारा ताप
रोग विनाशनाय चन्दनं निवंपामीति स्वाहा।। अक्षत-चंद्रिका मुक्ता समान सुफेन सम अक्षत लिये। प्रक्षाल प्राशुक नीरमें कर,पुंज तुम आगे दिये॥
श्री पद्मप्रभ पद कंज लक्षण अरुण वरण सुहात है। पूजें अटल पद हेतु स्वामी कलुष ताप नशात हैं ॥ ॐ ह्रीं श्रीपद्मप्रभ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय
अक्षय पद प्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा॥ पुष्प-सित केतकी जाई नुही शुचिं कुंद आदिक जानके। लायो सुमन में तुरत ही के धरे ढिग तुम . आनके । श्री पद्मप्रभु पद कंज लक्षण अरुण वरण सुहात हैं। पूजे अटल पद हेतु स्वामी कलुप ताप नशात हैं ॥ ॐ ह्रीं श्री पद्मप्रभ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण :
प्राप्ताय काम वाण विनाशनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा ॥ नैवेद्य-पकवान नीके सरस घी के सिता के रसमें बनें । जिस देखते सब क्षुधा नाशे थाल भर लायो ।
घनें । श्री पद्मप्रभ पद कंज लक्षण अरुण वरण सुहात हैं । पूजें अटल पद हेतु स्वामी कलुष ताप नशात हैं। मैं ह्रीं श्रीपद्मप्रभ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय क्षुधा रोग विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा ॥
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संग्रह
चौबी० दीप-दीपक प्रजार तम निवारे जोत रवि की सब
दीप-दीपक प्रजारे तम निवारे जोत रवि की सब लसे। सो दीपमाला अति उजाला, जोयतें सब
-: । अघ नसे॥ श्रीपद्मप्रभ पद कंज लक्षण अरुण वरण सुहात हैं। पूजें अटल पद हेतु स्वामी, कलुष पूजन ... ताप नशात हैं । ॐ ह्रीं श्रीपद्मप्रभ जिनेन्द्राय गर्भ,जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय
मोहान्धकार विनाशनाय दीपं निव॑पामीति स्वाहा। .. ४७५ : धूप-श्रीखंड अगर कपूर लाय सुअग्निसंग जरायही।तिसधूम दशदिसमाहिव्यापी गुंजते अलिआयही।
श्री पद्मप्रभ पद कंज लक्षण अरुण वरण सुहात हैं। पूजें अटल पद हेतु स्वामी कलुष ताप नशात हैं। ह्रीं श्रीपद्मप्रभ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय
अष्ट कर्म दहनाय धूपं निर्वामीति स्वाहा ॥ .. फल-बादाम खारिक लौंग पिस्ता दाख श्रीफल सार ही। रसना सुहावन नेत्र भावन भरूकंचन थार
ही । श्रीपद्मप्रभ पद कंज लक्षण अरुण वरण सुहात हैं। पूजें अटल पद हेतु स्वामी कलुष ताप 'नशात हैं। ॐ ह्रीं श्रीपद्मप्रभ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय
मोक्षफल प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा ॥ अघ-शुभ जल फलादिक द्रव्य प्राशुक अर्घ करमें लाय हूं। मैं नाच राचि नवाय मस्तक सुयश तुमरो
गाय हूं। श्रीपद्म प्रभु पद कंज लक्षण अरुण वरण सुहात हैं। पूजें अटल पद हेतु स्वामी कलुष
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चौबी० पूजन संग्रह
४७६
ताप नसात हैं ॥ ॐ ह्रीं श्री पद्मप्रभ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण । प्राप्ताय अनर्घ पद प्राप्तये अर्घ निवपामीति स्वाहा ॥
.. अथ पंच कल्याणक। (विजयानी सेठ की चाल) गर्भ-अधियारी जी षष्ठी माघ सुहाइयो, तजग्रीवतुजी गर्भ विषे जिन आइयो। माता तुम जी नाम . .. . सुसीमा जानके,हम पूजेंजो भाव भक्ति उर आन के । उौं ह्रीं श्रीपद्मप्रभ जिनेंद्रीय माघकृष्णषष्ठी
गर्भ कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा ॥ जन्म-असित कातिक जी पत्य सुतेरसजाइयो,एरावत जीसजके इंद्र जुलाइयो।गिरिमेरुसु जी न्हवन
कियो मन लाय के, हम पूजें जी चरणन अर्घ चढायके । ॐ ह्रीं श्रीपप्रप्रभ जिनेंद्राय कार्तिक
कृष्ण त्रियोदशी जन्म कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा॥ तप-तपधारो जी दुर्द्धर श्रीधरने जब, धर षष्ठो जी ध्यान विषे लागे तबै । अंधियारी जी कातिक - तेरस सोहनी,हम पूजेजी शिवनगरी के तुम धनी ॥ रों ह्रीं श्रीपद्मप्रम जिनेन्द्राय कार्तिक कृष्ण
त्रयोदशी तपः कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा ॥ ज्ञान-शुभ सोहेजीकानन कौशांची तनों,जिन के वचजी पाय मोह तम को हनो।तब धनद सुजी समव
सरन रचना रची। सित चैत सुजी पुन्यो दिन पूजा रची। ॐ ह्रीं श्रीपद्मप्रभ जिनेन्द्राय चैत्र
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चौबी०
.. शक्ल पूर्णिमा ज्ञान कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा ।। जन निर्वाण-तिथ जानोजी फागुण कारी बेदही,गिरिशिखर सुजीअष्ट करम को छेदही। शिव पाई जी प्रकृति - संग्रह पिचासीहान के, पद पूजू जी परप्रभ भगवान के। ॐ ह्रीं श्री पद्मप्रभ जिनेन्द्राय फाल्गुण कृष्ण चतुर्थी मोक्ष कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा ॥
अथ जयमाला। दोहा। महाअर्घ-धनुष अढाईसौ उनत, अरुणवरन अविकार। पद्म चिन्ह चरणन विषे,नमं उभयकर धार॥१॥
छंद पद्धडी-जय पद्मनाथ तन अरुण जान,नख दुति तें लाजत कोटि भान । धारण नृप कमल विकाश सूर, अज्ञान तिमिर कोनो सुचूर॥५॥तुम समवसरन रचना अपार, मैं कहूं किमपि लघु बुद्धिधार । साढे नव योजन को प्रमाण, शुभ वीस हजार बने सिवान ॥३॥ पहिलो ही कोट सुधूल साल, तिस गोपुरचव लंट के सुमाल । तिस आगे भूमि प्रसाद सार, चव मानस्थंभदिये अपार ॥ ४॥ त्रय कटनी विविध प्रकार जान, पहिली दूजी मणि मइ बखान । वहु वरण रतन तीजी सुहात,मानी जन देखत मान जात ॥५॥ता आगे कोट उतंग श्वेत, चारों दिस है गोपुर समेत । युग बीथी हैं दो नाट शाल, सुर तिय नाचे गावें विशाल ॥६॥ तहां पुष्प वाटिका वन उतंग, सुर तरु हैं चारों दिश अभंग । तिस आगे कोट जु हेम जान, ध्वज पंकति रूप लसे महान ॥७॥ फिर फटक कोट
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बोबी पूजन संग्रह ४७६
ताप नसात हैं। ॐ ह्रीं श्री पद्मप्रभ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय अनर्घ पद प्राप्तये अर्घ निवपामीति स्वाहा ॥
अथ पंच कल्याणक। (विजयानी सेठ की चाल) गर्भ-अधियारी जी षष्ठी माघ सुहाइयो, तजग्रीवसुजी गर्भ विषे जिन आइयो। माता तुम जी नाम .
· सुसीमा जानके,हम पूजेंजो भाव भक्ति उर आन के । उौं ह्रीं श्रीपद्मप्रभ जिनेंद्रीय माघकृष्णषष्ठी - गर्भ कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा ॥ जन्म-असित कातिक जी पत्य सुतेरसजाइयो,एरावत जी सजके इंद्र जुलाइयो।गिरिमेरु सु जी न्हवन ।
कियो मन लाय के, हम पूजें जी चरणन अर्घ चढायके । ॐ ह्रीं श्रीपमप्रभ जिनेंद्राय कार्तिक
कृष्ण त्रियोदशी जन्म कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा॥ तप-तपधारो जी दर्द्धर श्रीधरने जवे, धर षष्ठो जी ध्यान विषे लागे तबै । अंधिया
तेरस सोहनी,हम पूजेजी शिवनगरी के तुम धनी ॥ डों ही
त्रयोदशी तपः कल्याण प्राप्ताय अर्घ . ज्ञान-शुभ सोहेजीकान
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चौबी०
शुक्ल पूर्णिमा ज्ञान कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा ॥ पजन निर्वाण-तिथ जानोजी फागुण कारी बेदही,गिरिशिखर सुजी अष्ट करम को छेदही। शिव पाई जी प्रकृति संग्रह पिचासीहान के, पद पूजू जी पमप्रभ भगवान के। ॐ ह्रीं श्री पद्मप्रभ जिनेन्द्राय फाल्गुण ४७७ कृष्ण चतुर्थी मोक्ष कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा ॥
अथ जयमाला। दोहा। महाअघ-धनुष अढाईसौ उनत, अरुणवरन अविकार । पद्म चिन्ह चरणन विषे,नमं उभयकर धार॥१॥
- छंद पद्धडी-जय पद्मनाथ तन अरुण जान,नख दुति तें लाजत कोटि भान । धारण नृप कमल विकाश सूर, अज्ञान तिमिर कोनो सुचूर॥२॥तुम समवसरन रचना अपार, मैं कहूं किमपि लघु बुद्धिधार । साढे नव योजन को प्रमाण, शुभ वीस हजार बने सिवान ॥३॥ पहिलो ही कोट सधूल साल, तिस गोपुरचव लट के सुमाल । तिस आगे भूमि प्रसाद सार, चव मानस्थंभ दिये अपार ॥४॥ त्रय कटनी विविध प्रकार जान, पहिली दजी मणि मइ बखान । बहु वरण रतन तीजी सुहात, मानी जन देखत मान जात ॥५॥ ता आगे कोट उतंग श्वेत, चारों दिस है गोपर समेत । युग बीथी हैं दो नाट शाल, सुर तिय नाचें गावें विशाल ॥६॥ तहां पुष्प वाटिका वन उतंग, सुर तरु हैं चारों दिश अभंग । तिस आगे कोट जु हेम जान, ध्वज पंकति रूप लस महान ॥७॥ फिर फटक कोट
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संग्रह
र दैदीपमान, विदिशन में द्वादश सभा मान । श्री मंडप शोभा अतिलहाय, तिहुँ लोक तने सव जंतु - माय ॥ ८॥ विच गंध कुटी कटनी समेत, तहां तरु अशोक छवि अतुलदेत । तुम अंतरिक्ष राजत .. जिनंद, सिर छत्र तीन लाजत सुचंद ॥९॥जीवादिक तत्व प्रकाश कीन, सन कर भविं उरधारें प्रवीन ।
तुम कर विहार देशन मंझार, षट् वरष ऊन लख पूर्व सार ॥१०॥ यक मास आयु जव शेष थाय, तब संमेदागिरि शीस आय। हनि के अघाति शिव वास लीन, उत्पादक व्यय ध्रुव सर्व चीन ॥११॥ तुम गुण को पार लहे न शेष, हम किम वरने लघु मति अशेप । वखता रतना नित करत सेव, मुझ देह अर्षे पद पद्म देव ॥ १२॥ घत्ता छन्द-श्री पद्म जिनेशा हरत कलेशा भगत भरेसा अमर नये । यह दाम गुणन की भव्य सुनन ___ की गूंथ संवारी शरमलये ॥ १३॥ ॐ ह्रीं श्री पद्मप्रभ जिनेंद्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण - पंचकल्याण प्राप्ताय अनर्घपद प्राप्तये महाऽनिर्वपामीति स्वाहा । अथ आशीर्वादः-सोरठा-जो पूजें हरषाय, अथवा अनुमोदन करें।सो शिव पर क . . पढे पढावे जे सुधी ॥ १४ ॥ इत्याशीर्वादः॥ .
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. चौबी०
"पजन संग्रह
.. ४७९
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७ अथ श्रीसुपार्श्वनाथ जिन पूजा लिख्यते।
(वखतावरसिंहकृत) छप्पैछंद । स्थापना-नगर बनारस मांहि जन्म जिनवर ने लीना । पृथ्वी देवी मात जयो जिन नंद प्रवीना ॥
हरित वरण तनतुंग लसे दोसे छवि छाजे। पिताराय सुप्रतिष्ठ तासके सदन बिराजे॥ . है महिमाऽनंतमहंत तुम,थापूं मैं सिर नायके।हूजे दयाल मम हालपे, तिष्ठो प्रभु इतआय के॥ - ॐ ह्रीं श्रीसुपार्श्वनाथ जिनेंद्र अत्रावतरावतर संवौषट् आह्वाननम् ।
ॐ ह्रीं श्रीसुपार्श्वनाथ जिनेन्द्र अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठाठः स्थापनम् । - ॐ ह्रीं श्रीसुपार्श्वनाथ जिनेन्द्र अत्र मम सन्निहितो भवभव वषट् सन्निधीकरणम्॥
अथ अष्टक । (चाल अठाई पूजा की।) जल-शुभ द्रहको निर्मल वारि प्राशुक सुख कारी । तुम चरणन आगे धार कंचन भर झारी ।
श्रीदेव सुपारसनाथ तुम गुण गावत हूं, मुझ कीजे आप सनाथ यातें ध्यावत हूं। - ॐ ह्रीं श्रीसुपार्श्वनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म,तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय जन्म
मृत्यु जरारोग विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।।
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पूजन
૨૮૦.
चौबी० चंदन-गोसीर सुगंध अपार कुंकुम रंग भरा। तुम पद अरचूं युग सार भव आताप हरा।
श्रीदेव सुपारसनाथ तुम गुण गावत हूं । मुझ कीजे आप सनाथ यातें ध्यावत हूं॥... संग्रह. . . ॐ ह्रीं श्रीसुपार्श्वनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय
__ संसारा ताप रोग विनाशनाय चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा। अक्षत-निशकर की ज्योति समान अक्षत अनियारे। अक्षय पद हेतु सुजान पुंज रचूं प्यारे। श्रीदेव सुपारसनाथ तुम गुण गावत हूं। मुझ कीजे आप सनाथ यातें ध्यावत हूं॥
ॐ ह्रीं श्रीसुपार्श्वनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय
__ अक्षय पद प्राप्तये अक्षतान निर्वपामीति स्वाहा । पुष्प-संतान कल्पतरु आदि तिन के सुमन लिये। तापर अलि करत सुनाद चरणन भेट किये ॥ श्रीदेव सुपारसनाथ तुम गुण गावत हूं। मुझ कीजे आप सनाथ यातें ध्यावत हैं।
ॐ ह्रीं श्रीसुपार्श्वनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निव ..... .. वाण विनाशनाय पुष्पं निर्वपामीति । विद्य-नेवज नाना परका
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चौबी०
. पूजन संग्रह
૨૮૨
ॐ ह्रीं श्रीसुपार्श्वनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय
क्षुधा रोग विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा। दीप-रत्नन के दीपक बार जगमग होत भले । कलधौतक के भरथार मोह अज्ञान टले। श्रीदेव सुपारस नाथ तुम गुण गावत हूं। मुझ कीजे आप सनाथ यातें ध्यावत हूं। ॐ ह्रीं श्रीसुपार्श्वनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय
मोहांधकार विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा। धूप-मलयागिर चंदन साज गंध अनेकलई । तुम ढिग खेवत महाराज करम कलंक गई। श्रीदेव सुपारसनाथ तुम गुण गावत हूं। मुझ कीजे आप सनाथ यातें ध्यावत हूं। .. ॐ ह्रीं श्रीसुपार्श्वनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय
अष्ट कर्म दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा। फल-सहकार अनार खजूर श्रीफल ल्यावत हैं । पूजत हे करम सुदूर शिवफल पावत हैं। श्रीदेव,सुपारसनाथ तुम गुण गावत हूं। मुझ कीजे आप सनाथ यातें ध्यावत हूं॥
ॐ ह्रीं श्रीसुपार्श्वनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय ..मोक्ष.फल प्राप्तये फलं निर्वपामीतिःस्वाहा। .
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चौबी० पूजन
संग्रह
४८२
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अर्घ-जल चंदन अक्षत लाय पुष्प सुबास लिये। चरु दीप धूप फल भाय पूजें अर्घ दिये ॥
श्रीदेव सुपारस नाथ तुम गुण गावत हूं। मुझ कीजे आप सनाथ यातें ध्यावत हूं। :ों ह्रीं श्रीसुपार्श्वनाथजिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय अनर्घ पद प्राप्तये अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।
अथ पंचकल्याणक । चौपाई। गर्भ-षष्ठी भादोंशुक्ल महान, ऊरधग्रीवकतजोविमान । पृथ्वीदे माताउरआन,में पूजूनितगर्भ कल्याण ।
ॐ ह्रीं श्री सुपार्श्वनाथ जिनेंद्राय भाद्रपद शुक्लषष्ठी गर्भकल्याणप्राप्ताय अर्घनिर्वपामीतिस्वाहा। जन्म-जेठशुक्ल संज्ञाचक्रेश,जन्मत्रिभुवननाथदिनेश । इंद्र रुपै न्हवन कराय,हमपद पूजें मंगल गाय।
ॐह्रीं श्रीसुपार्श्वनाथ जिनेंद्राय जेष्ठ शुक्ल द्वादशीजन्म कल्याण प्राप्ताय अघ निर्वपामीतिस्वाहा॥ तप-बारसजेठउजारीदिना,मनवैरागविचारोजिना। लौकांतिकसुरकियोनियोग,जजें सुपारसदेव -
ॐ ह्रीं श्री सुपार्श्वनाथ जिनेन्द्रायज्येष्ठ शुक्ल द्वादशी तर कल्याणप्राप्ता ज्ञान-फागुनभ्रमरसुसंज्ञाकाय, परम जुकेवलज्ञानलहाया । __ ॐ ह्रीं श्रीसुपार्श्वनाथ जिनेंद्राय ..... निर्वाण-गिरिसर
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चौवी०
संग्रह
.. || अथ जयमाला । दोहा ।। महाअर्घ-हरित वरण वपु सोहनो, दोसैधनुषउतंग। स्वस्तिक लच्छन चरण में,नमूनायबसुअंग ॥१॥
छन्द मोतीदाम । तज मधि ग्रीवक सारविमान,धरोतुम जन्मबनारस आन।पिता सुप्रतिष्ट के नंदमहान, सुभव्यसरोजविकाशनभान ॥२॥ लही लख पूरब बीसजुआय,कुमारपणेषणलाखबिहाय। कियो फिर राजप्रजा सुखकार, सुपूरब चौदह लाख विचार ॥ ३॥ तजो सब राज लियो बनबास, सुसाठ हजार यती पुनरास । लहो तब ज्ञान चतुर्थ प्रकाश, धरो तहांध्यान ती जग आस ॥४॥ करे तप घोर सुग्रीषम पल्य, तपे अति भांत चले वहु झल्य। सुपावस रैन महाभय रास, करे चपला नभ मांह प्रकाशा५। चहूं दिशतेघनघोरप्रचण्ड,पड़े जल मूसलधार अखण्ड । चहूं दिश बाय चले सर जेम,खड़े तरु हेठ धरे निज पेम॥६॥जब ऋतु शीत तनो अति जोर,करै बहु तीक्षन पवन झकोर । जमैं तहां पोखर ताल अनेक,दहे बन माह सु वृक्ष कितेक शानदी सरके तट आय जिनंद,धरें तहां योग करें रिपु मंद । वर्ष सुसात रहे छदमस्थ,लहो फिर पंचम ज्ञान प्रशस्त ॥८॥समोशृत आन रच्यो धन देव, करि जब आय शची हरि सेव । खिरै दिवध्वन्नि सुने हरषाय, सभा सब द्वादश के समुदाय ॥९॥ करो जद आरज देश बिहार, प्रबोध अनेक दिये भवतार । कियो लख पूरव धर्म प्रकाश, रही जब आयतनो यक मास ॥१०॥सुयोग निरोध सम्मेद महान, सबै रिपु हानि गये निर्वान । अनंत गुणाकर शोभित
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४८४
पत्ताछन्द
... .. बचौ० | देव, सुलोक अलोक तने लख भेव ॥ ११॥ नम सिर नाय उभय कर जोर, प्रभु हमरे वह फंदन तोर। पूजन | लई चरनांबुज शर्न जिनेश, करो मतं ढील सुमेट कलेश ॥१२॥ घत्ताछन्द-जैजै रिपुनाशन ज्ञान प्रकाशन श्रीसुपार्श्वदेमोक्षधरा, जो गुण गण गावें शीस नवावेंपर्ने
पढावें हर्ष बरा ॥ १३॥ ॐ ह्रीं श्री सुपार्श्वनाथ जिनेंद्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण
पंच कल्याण प्राप्ताय अनर्घ पद प्राप्तये महाऽ निर्वामीति स्वाहा॥ अथ आशीर्वादः।छंदरोडक-श्रीसुपार्श्व जिनतने चरणजे भविजन ध्यावें,पाठ पढ़ें चितलाय तथा सुनके हरषावें ॥ तिनघर मंगलहोयरिद्धि व्यापे अधिकाई,बखतावर इम कहे रतन सुन चित्त लगाई ॥१४॥
. ॥इत्याशीर्बादः।। इतिश्री सुपार्श्वनाथ जिन पूजा संपूर्णा ॥७॥
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a
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चोबी०. ८ अथ श्रीचन्द्रप्रभजिन पूजा प्रारभ्यते ॥
पूजन ___ संग्रह
बखतावर सिंह कृत । छन्द रोड़क । स्थापना-वैजयंत स विमान त्याग के जन्म सलीना, चंद्र पुरी महाराज पिता महासेन प्रवीना।
- धनुष डेढ़ से काय बरन तन श्वेत विराजे,तिष्ठ तिष्ठ जिन चंद्र चरन दुति चंद्र सुलाजे ॥१॥
ॐ ह्रीं श्री चंद्रप्रभ जिनेन्द्र अत्रावतरावतर संवौषट् आह्वाननम् । ॐ ह्रीं श्री चंद्रप्रम जिनेंद्र अत्र तिष्ठः तिष्ठः ठः ठः स्थापनम् । ॐ ह्रीं श्री चंद्रप्रभ जिनेंद्र अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधीकरणम् ।
अथ अष्टक । छंद त्रिभंगी। जल-शुभ द्रह को नीर निरमल सीरं मन वच धीरं ले आयो।भर कंचन झारी तम ढिग धारी तृषा
निवारी सुख पायो। महा सेन दलारे चंद पियारे तन उजियारे जोति धरे । नख दतिपै थारे कमल सुहारे चंद बिचारे चरण परे॥ ॐ ह्रीं श्रीचन्द्रप्रभ जिनेंद्राय गर्भ,जन्म,तप,ज्ञान निर्वाण
- पंच कल्याणप्राप्ताय जन्म मृत्यु जरा रोगविनाशनाय जलंनिर्वपामीति स्वाहा ॥ . : चंदन-लेचंदन बावन कुंकुम पावन चक्षु सुहावन घत लीना। तिस सौरभ आवें मधु कर छावें तुम
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चौवी.
संग्रह
४८६
ढिग लावे चरु चीन्हा । महासेन दुलारे चंद पियारे तन उजियारे जोत धरे। नख दति पे थारे कमल सुहारे चन्द बिचारे चरण परे। ॐ ह्रीं श्री चन्द्रप्रभ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान
निर्वाण पंच कल्याण प्राप्ताय संसाराताप रोग विनाशनाय चन्दनं निर्वामीति स्वाहा। अक्षत-अक्षत अनियारे निशपति हारे धोय समारे थाल भरूं। अक्षय पद दीजे ढील न कीजे निज
लख लीजे पुंज करूं। महासेन दुलारे चंद पियारे तन उजियारेजोत धरे । नख दुतिपै थारे कमल सहारे चंद विचारे चरण परे ॐ ह्रीं श्री चन्द्रप्रभ जिनेद्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण
__ पंचकल्याण प्राप्ताय अक्षय पद प्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा। पुष्प-बहु कुसुम नवीने में चुन लीने सौरभ भीने ल्याय घरे । तिस गंध सुहाई मधुकर छाई भेट
कराईदर्प हरे। महासेन दुलारे चंद पियारे तन उजियारे जोत धरे,नख दुति पै थारे कमल सुहारे चंद विचारे चरण परे ॥ ॐ ह्रीं श्री चन्द्रप्रभ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंच
कल्याण प्राप्ताय काम वाण विनाशनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा ॥ नैवेद्य-पकवान सुलीने सितरस भीने तुरत करीने मिष्ट महा। "
विडारी शर्मलहा। महासेन दुलारे चं .. सुहारे चंद विचा
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- पूजन
४८७॥
चौबी०॥ दीप-दीपक उजियारे जोय समारे तम छय कारे जोत घनी। मोहादिक नाशो ज्ञान प्रकाशों हम घट
वासो मोक्ष धनी। महासेन दुलारे चंद पियारे तन उजियारे जोत धरे । नख दुतिपै थारे कमल . संग्रह सहारे चंद बिचारे चरण परे। ॐ ह्रीं श्री चन्द्रप्रभ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण
पंचकल्याण प्राप्ताय मोहांधकार विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा। धूप-शुभ अगर मंगावे तगर रलावे मधुकर आवे कर शोरी। तिस गंध सुहाई दश दिश छाई कर्म जराई
जिम होरी । महासेन दुलारे चंद पियारे तन उजियारे जोत धरे । नख दुतिय थारे कमल सुहारे चंद विचारे चरण परे॥ ॐ ह्रीं श्रीचन्द्रप्रभ जिनेंद्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान निर्वाण पंच
कल्याण प्राप्ताय अष्ट कर्म दहनाय धूपं निर्वपामीतिस्वाहा। | फल-फल पक्व नवीने सबरस भीने आय धरीने षट ऋतु के। तुम भेट धराऊं मन हरषाऊ शिवफल
पाऊं निज हितके। महासेन दुलारे चंद पियारे तन उजियारे जोत धरे। नख दुतिपैथारे कमल | सुहारे चंद विचारे चरण परे। उौं ह्रीं श्रीचन्द्रप्रम जिनेंद्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान निर्वाण |
पंचकल्याण प्राप्ताय मोक्ष फल प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा। अर्घ-जल फल वसुलाये मंगल गाये अर्घ बनाये भर थारी । वसु कर्म हनीजे देर न कीजे शिव पुर
दीजे सुख भारी। महासेन दुलारे चंद पियारे तन उजियारे जोत धरे। नख दुतिथे थारे कमल सुहारे चंद विचारे चरण परे। 0 ह्रीं श्री चन्द्रप्रभु जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान निर्वाण
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चौबी० संजन. 'पूग्रह
૪૮
पंचकल्याण प्राप्ताय अनर्घ पद प्राप्तये अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।
... अथ पंचकल्याणक । छंद जंग प्रयात। गर्भ-तजो बैजयंत विमानं अनुपा, सुमाता जिनो की सुलक्षण स्वरूपा। तिसी कृषराजे सबै दोष .. भोजे, बदी चैत की पंचमी सार साजे ॥ों ह्रीं श्री चंद्रप्रभ जिनेंद्राय चैत्र कृष्ण पंचमी गर्भ
कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वामीति स्वाहा। जन्म-भ्रमर पोष की रुद्र संज्ञा नवीना, तिहूं ज्ञान संयुक्त तब जन्म लीना ।सुना सीर आये जजे मेरु लाये, तिहुँ लोक में हर्ष आनंद छाये। ॐ ह्रीं श्री चंद्रप्रभ जिनेंद्राय पौष कृष्ण एकादशी जन्म
कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।। तप-जबै पोष ग्यारस अंधेरी जु आई, तबै भावना द्वादशे आप भाई, पुरीचंद्र त्यागी धरो ध्यान भारी, - सुध्याऊं जिनोंको भये सो अगारी। डोंह्रीं श्रीचंद्र प्रभ जिनेंद्राय पौष कृष्णएकादशी तप कल
प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा। ज्ञान-लहो ज्ञान पंचम.तवै इंद्र आयो,समोसन को ठाठ ·
सभा बीच झेलें गणाधीशव .
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चौबी० पूजन
... तुम्हें शीस नावें अहोचंद नामी। ओं ह्रीं श्रीचंद्रप्रभ जिनेंद्राय फाल्गुण कृष्ण सप्तमी मोक्ष || कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा ॥
अथ जयमाला । दोहा। - महाअर्घ-माता जास सुलक्षणा, कुंद कलीसम श्वेत । वपु उतंग धनु डेढसै,शशि अंक छबी देत ।
. छन्द लक्ष्मीधरा-श्रीमहा सेन के नंदना हो बली, मात सुलक्षणा पूज हूं मैं भली। तास की कृष में आप आये जबै, गर्भ, कल्याण देवेंद्र कीनो तबै ॥२॥तात के धाम की सर्स शोभा बनी।सर्व देवी करें सेव अंबा तनी । गर्भ नवमास आनंद भारी भयो, रोग शोकादि भय सर्व ही को गयो ॥३॥
छंद उपगीता-जन्में चंद जिनंदा, पौष संख्या सुरुद्र की कारी। करत महा आनंदा,आये सब | देव इंद्र की लारी॥४॥ ....... 'छंदलक्ष्मी धरा-आईयो इंद्र इंद्रायनी मोदमें, लाईयो प्रेमजा आपको गोक्में। रूप देखो शुनासीर चक्रित भयो, नाय के भाल ऐरावती पै ठयोः ॥५॥ जाय के मेरु पै न्हौन कीनो हरी, नम्रता धार के चरण पूजा करी । जय कृपा धीश तेरी छवी मोहनी, चंद्र की चंद्रिका ते महा सोहनी॥६॥ एक हजार लेनाम मालारची, नृत्य औगान कीनों तबें ही शची। फेरली आपको मोद दे मात को, मे रुकी बारताभाषियों तात को ॥७॥
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चोबी
पूजन
संग्रह
. ४९०
| छंदउपगीता-धनदकरेनितसेवा,भूषणवस्त्रादिसुर्गतेल्यावे । तुमसमवयधरदेवा,क्रीडातुमदेखसर्वहरपाव] .. छंद लक्ष्मीधरा-देख क्रीडा सवै मावते अंगना,दोजकेचंद ज्यों वृद्ध होतेजिना। राज कीनो प्रजा दुःख टाले सवे,वीतियो लक्ष नौ पूर्व आयु तवै ॥९॥ फेर वैरागकी भावना भाइयो,ब्रह्म लोकांतके देवतहां अइयो । बोध के आपको राह ले धाम की,इंद्र ले पालिकी मोतियादाम की ॥ १०॥ ता समें बैठ के जाय उद्यान में, सार दीक्षा लई चित्त दे ध्यान में। चार घाती हने ज्ञान पायो महा, वैठ संवाद में धर्म सारा कहा ॥ ११ ॥ भव्य को बोधियो लक्ष पूर्वतही, फेर सम्मेद पै आप आये सही । योग नीरोध के नाश अघातियो, बास शिव को लियो ज्ञान में भासियो ॥१२॥ आर्या छंदतुम गुण वर्णत हारे,गणधर इंद्रादिक महानामी। हम लघुवुद्ध विचारे, किमवरने सुगुण तुम स्वामी॥१३॥ छन्द लक्ष्मीधरा-स्वामी दीजे हमें मोक्ष लक्ष्मी धरा, चर्न तेरे तले कोट तीर्थंवरा । ज्यों सुमंत भद्र के
- काज में देरना, त्यों कृपा सिंधु मोदास को हेरना ॥ १४॥ | घत्ता छन्द-तुम गुण में सुंदर नमत पुरंदर जय माला सुख की करनी। जो पढें पढावे हित करगावें
"बखत रतन" सुख की भरनी॥ १५॥ ॐ ह्रीं श्री चन्द्रप्रभ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप,
ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय अनर्घ पद प्राप्तये महाऽय निर्वपामीति स्वाहा ॥ | अथ आशीर्वादः,आर्याछंद-अहोनामीचंद देवाधि देवा, पूजें ध्यावें तास संसार छेवा ।
तिहारी,ते पावै शाश्वतो सुवख भारी॥१६॥इत्याशीर्वा: ।
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.....
चोबी० पूजन
संग्रह
:
%3
॥
"
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.....-९ अथ श्रीपुष्पदन्तजिन पूजा प्रारभ्यते ।
। (बखतावरसिंहकृत) छंद कोसमालती। स्थापना-काकंदी नगरी में आये तज अपराजित नाम विमान ।
श्वेत वरण लक्षण शफरी पति काय धनुष शतं एक प्रमान।
मातरमा सुग्रीव पिता सुत पुष्प दंत भगवंत महान । ... महिमाऽनंत अनंत गुणाकर सो प्रभु तिष्ठ तिष्ठ इत आन ॥१॥
ॐ ह्रीं श्रीपुष्पदंत जिनेंद्र अत्रावतराऽवतर संवौषट् आह्वाननम् ॥ ... ॐ ह्रीं श्री पुष्पदंत जिनेंद्र अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम् । . : . : . . ॐ ह्रीं श्रीपुष्पदंत जिनेंद्र अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधीकरणम् ॥ ..
. अथ अष्टक । छन्द पायता। | जल-जल उत्तम द्रह को लावें, कंचन झारी भरध्यावें ।श्री पुष्पदंतमहाराजा, तुम पद पूजत अघभाजा। . .. ॐ ह्रीं श्री पुष्पदन्त जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय जन्म
मृत्य जरा रोग विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा। || चंदन-बावन चंदन घसलाई, ता सौरभ पै अलिछाई। भवताप विनाशनहारे,पद पुष्पदंत जिलथारे ॥
जन्म, तप, ज्ञान,
निपद पूजत अघभाजा।
..मृत्यु जरा रोग विना
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चौबी० १० अथ श्रीशीतलनाथजिन पूजा प्रारम्यते । पूजन संग्रह
(बखतावरसिंह कृत) अडिल । ४९६ स्थापना-शीतल नाथ जिनंद स्वर्ग सोलम चये। भद्दलपुर में आय सुनंदा सुत भये ॥ ... . नब्बे धनुष प्रमाण अंक सुर तरु तनो । तिष्ठ तिष्ठ जिनराज करम रिपु को हनो॥१॥
ॐ ह्रीं श्रीशीतलनाथ जिनेन्द्र अत्रावतरावतर संवौषट् आह्वाननम् । ॐ ह्रीं श्रीशीतलनाथ जिनेन्द्र अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठाठः स्थापनम्। ॐ ह्रीं श्रीशीतलनाथ जिनेन्द्र अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधीकरणम् ॥
' अथ अष्टक । छंद योगीरासा। जल-पंचम उदधि तनो जल निर्मल मुनि मन सम शुचि लावें। मणि भंगार भराय अनुपम धारदेत
सुख पावें ॥ शीतल जिन के युग चरणांवुज पूजू मन वच काई। रोग शोक दुःख दारिद नाशे भव आताप मिटाई ॥ॐ ह्रीं श्रीशीतलनाथ जिनेन्द्राय गर्भ,जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय जन्ममृत्यु जरारोग विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।।
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संग्रह
१९७
चौबी०| चंदन-कुंकुम रंग कपूर सुमिश्रित मलियागिर घस लीनो। तासुगंध अलिगण आउँसो लेकर चर चीनो॥ -पूजन शीतल जिनके युग चरणांबुज पूजू मन वच काई । रोग शोक दुख दारिद नाशैं भव आताप
मिटाई॥ ॐ ह्रां श्रीशीतलनाथ जिनेन्द्राय गभ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय
संसारा ताप रोग विनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा। अक्षत-अनियारे अक्षत शुभ सुंदर निशि कर सम उजियारे । रतन थार भर तुम ढिगलाऊं पूज करूं
अति प्यारे ॥ शीतल जिनके युग चरणांबुज पूजू मनवच काई । रोग शोक दुःख दारिद नाशें भव आताप मिटाई॥ॐ ह्रीं श्रीशीतलनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान,निर्वाण पंचकल्याण
प्राप्ताय अक्षय पद प्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा। पुष्प-मेरु तने अथवा अवनीपर विटप महा छबि छाजे। जिन के समन सुमन सम नीके सौरभ 4 - अलिराजे ॥ शीतल जिन के युग चरणांबुज पूजू मनवच काई। रोग शोक दुख दारिद नाशें
भव आताप मिटाई॥ॐ ह्रीं श्रीशीतलनाथ जिनेन्द्राय गर्भ,जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण
प्राप्ताय कोमवाण विनाशनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा। | नैवेद्य-मोदक फेनी घेवर बावर गुंजा आदि मंगाई । घृत रस पूरे रसना रंजन नेवज आन चढ़ाई ॥
शीतल जिन के युग चरणांबुज पूजूं मनवच काई । रोग शोक दुख दारिद नार्थं भव आताप मिटाई ॥ ॐ ह्रीं श्रीशीतलनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय
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संग्रह:
चौबी०
क्षधा रोग विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा। . पूजन , दीप-घृत सनेह करपूर बातिका रतन दीप उजियारे।जोय धरे तुम सन्मुख हे जिन मोह अंधानरवारे॥
शीतल जिन के युग चरणाम्बुज पूजं मनवच काई । रोग शोक दुःख दारिद नाशें भव आताप मिटाई ॥ ॐ ह्रीं श्रीशीतलनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय
मोहांधकार विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा। .. धूप-कृष्णागर गोसीर सुचंदन ताकी धूप बनाई। स्वर्ण धूपायन में धर खेऊ चहुं दिशि गंधसु छाई॥ _शीतल जिनके युग चरणाम्बुज पूजू मन वचकाई। रोग शोक दुःख दारिद नाशै भव आताप मिटाई ॥ ॐ ह्रीं श्रीशीतलनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय
अष्टकर्म दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा । फल-श्रीफल आम अनार सुकेला एला चिरभट लावें। स्वर्ण थाल में धर अति प्राशुक देखत मन
ललचावें ॥ शीतल जिन के युग चरणाम्बुज पुजं मन वचकाई। रोग शोक दुःख दारिद नाशैं भव आताप मिटाई। ॐ ह्रीं श्रीशीतलनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म,तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण
प्राप्ताय मोक्ष फल प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।। अर्घ-वारि सुचंदन अक्षत वारिज नेवज विविध प्रकारा। दीप धूप फल वस विधि लेके अर्घ बनाय
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चौबी.
पूजन
प्राप्ताय
वग्रह
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- सुधारा ॥ शीतल जिनके युग चरणाम्बुज पूजू मन वचकाई । रोग शोक दुःख दारिद नाशैं
भव आताप मिटाई। ॐ ह्रीं श्रीशीतलनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप,ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय अनर्घ पद प्राप्तये अर्घ निर्वपामीति स्वाहा !
अथ पंचकल्याणक । सोरठा। . गर्भ-आरण स्वर्ग विहाय, आठ कृष्ण सुचैत को। गर्भ सुनंदा आय, धनद रतन बरखाइयो ।
डों ह्रीं श्रीशीतलनाथ जिनेन्द्राय चैत्र कृष्णअष्टमी गर्भ कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपानीति स्वाहा। जन्म-माघ कृष्ण तिथि जान, चक्रेश्वर संज्ञा कही । जन्मे युतत्रय ज्ञान, शीतल शीतल करन को।
ॐ ह्रीं श्रीशीतलनाथ जिनेन्द्राय माघ कृष्ण द्वादशी जन्म कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीतिस्वाहा . तप-जन्म सुदिन तिथि आय, योग धरो बन जाय के । मन पर्यय उपजाय, ध्यायो आतम जिन तवै॥
डों ह्रीं श्रीशीतलनाथ जिनेंद्राय माघ कृष्ण द्वादशी तप कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वामीति स्वाहा ज्ञान-केवल लब्धि उपाय, पौष कृष्ण चौदस दिना । समवसरन सुख दाय,धनद देव रचना रचो॥
___ों ह्रीं श्रीशीतलनाथ जिनेन्द्राय पौष कृष्ण चतुर्दशी ज्ञान कल्याण प्राप्ताय अर्थनिर्वपामोतिस्वहा। .. निर्वाण-मोक्ष गये जिनराय, सम्मेवाचल शीसते । हम पूजें मन लाय, अष्टमिआश्विन शुकल को ॥
गेह्रीं श्रीशीतलनाथजिनेंद्राय आश्विन शुक्लाष्टमी मोक्ष कल्याण प्रप्ताय अनिर्वयामीति स्वाहा।
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चौबी० क्षधा रोग विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा। पूजन , | दीप-घृत सनेह करपूर बातिका रतन दीप उजियारे।जोय धरे तुम सन्मुख हे जिन मोह अंधानरवारे॥ संग्रह: शीतल जिन के युग चरणाम्बुज पूजू मनवच काई । रोग शोक दुःख दारिद नाशें भव आताप
मिटाई ॥ ॐ ह्रीं श्रीशीतलनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय
मोहांधकार विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा। धूप-कृष्णागर गोसीर सुचंदन ताकी धूप बनाई। स्वर्ण धूपायन में धर खेऊ चहुं दिशि गंधसु छाई॥
शीतल जिनके युग चरणाम्बुज पूजू मन बचकाई। रोग शोक दुःख दारिद नाशै भव आताप ... मिटाई ॥ॐ ह्रीं श्रीशीतलनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय
अष्टकर्म दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा । फल-श्रीफल आम अनार सुकेला एला चिरभट लावें। स्वर्ण थाल में धर अति प्राशक देखत मन
ललचावें ॥ शीतल जिन के युग चरणाम्बुज पखं मन वचकाई। रोग शोक दुःख दारिद नागें
भव आताप मिटाई। ॐ ह्रीं श्रीशीतलनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म,तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण• प्राप्ताय मोक्ष फल प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा । अर्घ-वारि सुचंदन अक्षत वारिज नेवज विविध प्रकारा। दीप धूप फल वस विधि लेके अर्घ ...,
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चौबी.
पूजन संग्रह. ४९९
सुधारा ॥ शीतल जिनके युग चरणाम्बुज पूजूं मन वचकाई । रोग शोक दुःख दारिद नारों भव आताप मिटाई । ॐ ह्रीं श्रीशीतलनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप,ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय अनर्घ पद प्राप्तये अर्घ निर्वपामीति स्वाहा! .
अथ पंचकल्याणक । सोरठा। गर्भ-आरण स्वर्ग विहाय, आठ कृष्ण सुचेत को। गर्भ सुनंदा आय, धनद रतन बरखाइयो । .... डों ह्रीं श्रीशीतलनाथ जिनेन्द्राय चैत्र कृष्णअष्टमी गर्भ कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपानीति स्वाहा। जन्म-माघ कृष्ण तिथि जान, चक्रेश्वर संज्ञा कही। जन्मे युतत्रय ज्ञान, शोतल शीतल करन को।
ॐ ह्रीं श्रीशीतलनाथजिनेन्द्राय माघ कृष्ण द्वादशो जन्म कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपामोतिस्वाहा तप-जन्म सुदिन तिथि आय, योग धरो बन जाय के । मन पर्यय उपजाय, ध्यायो आतम जिन तवै॥
डों ह्रीं श्रीशीतलनाथ जिनेंद्राय माघ कृष्ण द्वादशी तप कल्याण प्राप्ताय अघ निर्वामीति स्वाहा ज्ञान-केवल लब्धि उपाय, पौष कृष्ण चौदस दिना । समवसरन सुख दाय,धनद देव रचना रचो॥ ____ह्रीं श्रीशीतलनाथ जिनेन्द्राय पौष कृष्ण चतुर्दशी ज्ञान कल्याण प्राप्ताय अनिर्वपामोतिस्वहा । निर्वाण-मोक्ष गये जिनराय, सम्मेदाचल शीसते । हम पूजें मन लाय, अष्टमिआश्विन शुकल को ॥ ____ों ह्रीं श्रीशीतलनाथजिनेंद्राय आश्विन शुक्लाष्टमी मोक्ष कल्याण प्रप्ताय अर्थनिर्वपानीति स्वाहा ।।
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चौबी.
पूजन
सग्रह
५००
अथ जयमाला । दोहा। | महाअर्घ-शीतलनाथ जिनंद तन, नव्वै धनुष प्रमान। हेमवरण अति सोहनों, सुरतरु लक्षग जान ॥
चौपाई-नम नमूं जिन शीतल नाथ । शरणागत को करत सनाथ ॥ भवदधि तारण पोत समान । अधम उधारण को भगवान ॥ २॥ तज आलस अति हरषित होय । तुमरो दर्श लखे जन कोय ॥ सो होवे निश्चय सरदही। सहस्राक्ष कर दरशत सही ॥३॥ तुमरो पंथ गहे जे आय । तेशिव पुर को गमन कराय ॥ जो तुमरे गुण गावे ईश । तिन गुण गावे सकल मुनीश ॥ ४॥ तुमरे चरण विषे लंब लाय । ते जन वीतराग पद पाय । नृत्य करे तुम आगे कोय ॥ तिस घर शक्री नटवा होय ॥ ५॥ तुम चरणाम्बुज रजशिर लहे । परम औषधी सम शर दहे। कुष्ट आदि सब रोग नसाय । कोटि भानु सम तन दरसाय ॥६॥ जे जन रूप लपें तुम देव । करें कुदेव तनी नही सेव ॥ मकर ध्वज सम रूप रसाल । भव भव तन पावे सुख माल ॥७॥ जे वाणी तुमरी चित धरें। अन्य ग्रन्थ शरधा नहिं करें ॥ ते बहु श्रुत के पाठी होय। केवल ज्ञान लहें नर सोय ॥ ८॥ तुमरो न्हौन करे चितधार । सुवरण रतन कलस भर वार ॥ ताको मेरु सुदर्शन जाय । मघवा न्होन करे हरषाय ॥ ९ ॥ अष्ट द्रव्य अति प्राशुक लाय । पूजा करे भविक हरषाय ॥ पूजनीक पद पावे सोय । इंद्रादिक कर पूजित होय ॥ १० ॥ भली भांत जानी तुम रीत । भई नाथ मेरे परतीत ।। यातें चरण कमल में आय। भ्रमर समान
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चौबी० - पूजन .. संग्रह
रहूं लवलाय ॥ ११ ॥ भयो सौख्य सो कह्यो न जाय । सकल सिद्धि में आज लहाय ॥ तुम गुण को पाऊं नहिं ओर। कर बौनती युग कर जोर ॥ १२॥ वखतावर रतना इम भनी। हम को दीजे त्रिभुवन धनी ॥ भवभव शरण तिहारी इंश । पावें सदाज हे जगदीश ॥ १३ ॥
..पत्ता छन्द-शीतल गुण केरी माल उजेरी टारत फेरी भवरी । जे पूज रचावें मंगल गावें तिन घर रामा कै चेरी ॥ १४ ॥ ॐ ह्रीं श्रीशीतलनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय अनर्घ पद प्राप्तये महाघ निर्वपामीति स्वाहा। अथ आशीर्वादः-सोरठा-शीतलनाथ जिनंद, जे पूजे मन लाय के ।
पढे पाठ सुखकंद, सो पावें संपत अर्षे ॥ १५॥ इत्याशीर्वादः ।।
इति श्रीशीतलनाथजिन पूजा संपूर्णा ॥ १० ॥
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११ अथ श्रीश्रेयांसनाथजिन पूजा प्रारभ्यते।
चौवी० पूजन संग्रह ५०२
(वखतावरसिंहकृत) छंद भुजंगप्रयात ।। स्थापना-श्रियांसं जिनेशं सुमेटे कलेशं, पिता बिम्ल के चर्न सेवें सुरेशं ।
पुरी पंच आनन में जन्म लीना, सुथा तुम्हें तिष्ठिये हे प्रवीना ॥ १ ॥ ॐ ह्रीं श्रीश्रेयांसनाथ जिनेन्द्र अत्रावतराऽवतर संवौषट् आह्वाननम् । ॐ ह्रीं श्रीश्रेयांसनाथ जिनेन्द्र अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठाठः स्थापनम् ।। ॐ ह्रीं श्रीश्रेयांसनाथ जिनेन्द्र अत्र मम सन्निहितों भवभव वषट् सन्निधीकरणम् ॥
अथ अष्टक। (चाल अठाई रासेकी) जल-हेजी प्राशुकजल शुभ लाय के, कंचन के कलश भराय । हेजी प्राणी सन्मुख धारा देत ही, रागा
दिक मल नस जाय प्राणी ॥ हेजीश्रेयनाथ पद पूजिये। पूजत सब इन्द्र सुआय प्राणी श्रेयनाथ
पद पूजिये। उौं ह्रीं श्री श्रेयांसनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण - प्राप्ताय जन्म मृत्यु जरारोग विनाशनाय जलंनिर्वपामीतिस्वाहा ॥ चंदन-हेजी बावन चंदन सीयरो, केसर संग घसाय प्राणी । जिन चरणन अरचा करू,संसार दाघ
मिट जाय प्राणी॥ हेजीश्रेयनाथ पद पूजिये। पूजत सब इन्द्र सुआय प्राणीश्रेयनाथ पद पूजिये।
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चौबी० ॐ ह्रीं श्रीश्रेयांसनाथ जिनेन्द्राय गर्भ जन्म तप ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय संसारा पूजन ताप रोग विनाशनाय चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा ॥
संग्रह. अक्षत-हेजी मुक्ता सम अक्षत लिये, रजनी पति की उनहार, प्राणी। पुंज करे. अति सोहने, ते पद । ५०३ पावें अविकार प्राणी ॥ हेजी श्रेयनाथ पद पूजिये। पूजत सब इन्द्र सुआय प्राणी श्रेयनाथ पद
.. पूजिये ॥ ॐह्रीं श्रीश्रेयांसनाथ जिनेन्द्राय गर्भ,जन्म तप,ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय अक्षय ... पद प्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा। पुष्प-हेजीराय बेल ले केतकी, इन आदिक सुमन अपार प्राणी। चरणन पास चढाइये, दे मदन वान
निरवार प्राणी ॥ हेजी श्रेयनाथ पद पूजिये । पूजत सब इन्द्र सुआय प्राणी श्रेयनाथ पद पूजिये । ॐ ह्रीं श्रीश्रेयांसनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म,तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय कामवाण
विनाशनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा । नैवेद्य-हेजी व्यंजन तुरत बनायके,चरु मिष्ट मनोहर आन प्राणी । कंचन थारी में धरे,पूजत द्वै क्षुधाकी
हान प्राणी ॥ हेजी श्रेयनाथ पद पूजिये। पूजत सब इन्द्र सुआय प्राणी श्रेयनाथ पद पूजिये। ... ॐ ह्रीं श्रीश्रेयांसनाथ जिनेन्द्राय गर्भ,जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय क्षुधा रोग
विनाशनाय नैवेद्यं निवपामीति स्वाहा । दीप-हेजी रतनन के दीपक बने,घृत पूरित जोत जगाय प्राणी। जगमग जगमग कर रहे जिन आगे
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संग्रह
चौबी० मोह नसाय प्राणी ॥ हेजी श्रेयनाथ पद पूजिये । पजत सब इन्द्र सुआय प्राणी श्रेयनाथ पद पूजन : पूजिये । ॐ ह्रीं श्रीश्रेयांसनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप,ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय
मोहांधकार विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।। ५०४ धूप-हेजी अगर तगर चन्द मिले, दश गंध हुताशन मांह प्राणी। खेवत प्रभु आगे भली, सब अष्ट
करम जरजांय प्राणी ॥ हेजीयनाथ पद पूजिये। पूजत सव इन्द्र सुआय प्राणी श्रेयनाथ पद पूजिये । ॐ ह्रीं श्रीश्रेयांसनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय
अष्ट कर्म दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा। फल-हेजी श्रीफल सेव अनार ही, पिस्ता बादाम छहार प्राणी । रतन रकाची में भरे, ध्यावत पाये
शिवनार प्राणी ॥ हेजी श्रेयनाथ पद पूजिये॥ पूजत सब इन्द्र सुआय प्राणी श्रेयनाथ पद पूजिये . . ॐ ह्रीं श्रीश्रेयांसनाथ जिनेन्द्राय गर्भ,जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्तांय मोक्षफल
प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा । अर्घ-हेजी ओठों द्रव्य प्रकार के, शुभ अर्घ करो मन लाय प्राणी। श्रेयनाथ आगे धरे, संसार जलधि
तिरजाय प्राणी। हेजी. श्रेयनाथपद पूजिये ॥ पूजत सब इन्द्र सुआय प्राणी श्रेयनाथ पद पूजिये। ॐ ह्रीं श्रीश्रेयांसनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञाननिर्वाण पंचकल्याण प्राप्तय अनर्घ पद प्राप्तथे अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।
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चौबी. पूजन संग्रह
- अथ पंचकल्याणक । छंद पायता। गर्भ-तजके पुष्पोत्तर आये, विमला माता सुख पायो आले जेष्ठ छह को ध्याऊं, तादिन में पूज रचाऊं॥ - डोंह्रीं श्रीश्रेयांसनाथ जिनेन्द्राय ज्येष्ठ कृष्ण षष्ठी गर्भ कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीतिस्वाहा। जन्म-इक्ष्वाक वंश में आई,जन्मे त्रिभुवन सुख दाई । फागन ग्यारस अंधियारी, मैं पूजू अष्ट प्रकारी॥
हीश्रीश्रेयांसनाथजिनेन्द्राय फाल्गुणकृष्ण एकादशीजन्मकल्याण प्राप्तायअघनिर्वपामीतिस्वाहा तप-सबभोग अनित्य निवारे, तप दुर्द्धर श्रीधर धारे। दिन जन्म तनो शुभजानो,हमपूजें दुखः सबहानो।
डों ह्रींश्रीश्रेयांसनाथजिनेंद्राय फाल्गुण कृष्णएकादशी तपः कल्याणप्राप्तायअर्घ निर्वपामीतिस्वाहा ज्ञान-सूर्येन्द्र संगम जानो, तिथि माघकृष्ण उर आनो।शुभ केवल ज्ञान सुपायो,हम तुमपद पूजरचायो।
ॐ ह्रीश्रीश्रेयांसनायजिनेंद्रीय माघकृष्णअमावस्या ज्ञानकल्याण प्राप्ताय अर्थनिर्वामीतिस्वाहा॥ निर्वाण-चारों अघातिया चूरे.शिव मांह बसे सुख पूरे। सम्मेद शैल ते पाई,श्रावण सित पूनम आई॥ डौंडी श्रीश्रेयांसनाथ जिनेंद्राय श्रावण शुक्ल पूर्णिमामोक्ष कल्याण प्राप्ताय अनिर्वपामीतिस्वाहा।।
.. . अथ जयमाला।दोहा।..... .. महाअर्घ- अस्सी चाप उतंग तनु, हेम वरण छविदेत । गैंडा लक्षण चर्न में, श्रेयनाथ भव सेत ॥१॥
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चौबी०
छन्द.पद्धड़ी-जय जय श्रेयांस तुम गुण अनंत, गणधर वरणत पावे न अंत । अतिशय दश पूजन सहित जाए जिनंद, पित मात तबै बाढो अनंद ॥ २ ॥ संहनन आदि संस्थान सार, शुभ लक्षण बल संग्रह" बीरज अपार । हित मित कारी तुम वचन जोय, सित श्रोणित तन में मलन होय ॥३॥वपु सहित । ५०६ । सुगंध न स्वेद होत, तुम रूप देख रबि लजत जोत। फिर समवसरन में दश लहाय, चतुरानन छवि
वरनी न जाय ॥ ४॥ जय आप करत नभ में विहार, सब जीव लहें साता अपार । सत योजन लोय सुभिक्ष थाय,उपसर्ग रहित छाया विहाय ॥ ५॥ सब विद्या के ईश्वर महान, नख कच बाढत न अहार मान। यष झपत नहीं भृकुटी नसाय, धनधान्य जीव तुम दरश पाय ॥६॥ अमरन कृत चौदह तित सुजान, अवनी दीषत दर्पण समान । षट् ऋतु के फूल दिपैं अपार, सब जंतु मित्रता भाव धार। , ॥७॥ बाजत समीर त्रय गुण समेत,बारिज वर्णन तल छबि सुदेत । दिश निर्मल सब आनंद कंद,
गंधोदक वरषत मंद मंद ॥ ८॥ है मागधि भाषा अति महान, सब फले अठारह भेद नाम । मल । बर्जित सुर नभ जय करत, शुभ धर्म चक्र आगे चलंत ॥९॥ वसु मंगल द्रव्य समेत एव, चौंतिस ।। अतिशय कर सहित देव । जय अष्ट प्राति हारज दिपंत, हग शर्म ज्ञान बीरज अनंत ॥१०॥ इम
छियालीस गुण सहित ईश, विहरत आये सम्मेद शीस। तहां प्रकृति पिचासी छीन कीन, शिव जाय '! विराजे शर्म लीन ॥११॥ गुण अगुर लघु आदिक लहाय,उत्पादक व्यय ध्रुव सब लखाय । बखतावर " रतन कहें बनाय, मम संकट में हूजे सहाय ॥ १२ ॥
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चौषी० , पत्ता छंद-श्रेयांस कृपाला दीनदयाला भव दुःख टाला गुण माला। हम नित प्रति ध्यावे -पूजन . मंगल गावें शिव सुख पावें दर हाला॥ १३ ।। . संग्रह • ह्रीं श्रीश्रेयांसनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंकल्याण प्राप्ताय अनर्ध ५०७
.. . पद प्राप्तये महाघ निर्वपामीति स्वाहा । "अथ आशीर्वादः । अडिल-श्रेयनाथ जिन तनी सरस पूजा करें । जे बाचें यह पाठ हरष उर में धरै॥ तिन घर ऋद्धि अपार सकल मंगल रलैं। अनुक्रम ते शिव जाय सर्व अघको दलें ॥१४॥
___ इत्याशीर्वादः । इति श्रीश्रेयांसनाथ जिन पूजा सम्पूर्णा ।। ११ ।।
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चौबी० पूजन
संग्रह
५१०
सवास पूज्य देव के पदारविंद लाल हैं। नमें सरेद्र चंद्र आय नाय के सुभाल हैं । ___ों ह्रीं श्रीवासुपूज्य जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्तायमोहांध
कार विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा । धूप-करूं जु अब तन चूर चंदनादि जानिये। दिये अपार कर्म दुःख खेयते सुहानिये ॥ . सुवासु पूज्य देव के पदारबिंद लाल हैं । नमें सुरेन्द्र चंद्र आय नाय के सुभाल हैं।
• ह्रीं श्रीवासुपूज्य जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय अष्ट
कर्म दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा। फल-अनार अंब सेव पक्क चिर्भटादि लीजिये । चढाय हुं सरोज चर्न मोक्ष सोरु य दीजिये। सुवासु पूज्य देव के पदार बिंद लाल हैं। नमें सुरेंद्र चन्द्र आय नाय के सुभाल हैं : डों ह्रीं श्रीवासुपूज्य जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय मोक्ष
फल प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।। अर्घ-जल फलादि द्रव्यसार अष्टजो मिलाय के। लाय हूं जिनेश अग्र अब को बनाय के ॥ सुवासु पूज्य देव के पदार बिंद लाल हैं । नमें सुरेंद्र चंद्र आय नाय के सुभाल हैं ॥ • ह्रीं श्रीवासुपूज्य जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय अनर्घ . पद प्राप्तये अर्घ निर्वपामीति स्वाहा ।
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चौबी०
'यूजन संग्रह
.. अथ पंचकल्याणक । चाल चन्दडी की। गर्भ-साढ कृष्ण छठ पावनी, गर्भ विषे जिन आय हो । श्रीआदिक देवी सबै, सेवे माता पाय हो॥
गर्भ कल्याणक पूज हूं ॥ ह्रीं श्रीवासुपूज्य जिनेन्द्राय आषाढ कृष्ण षष्ठी गर्भ कल्याण " प्राप्ताय अब निर्वपामीति स्वाहा। जन्म-फागुण चौदशि कृष्ण ही, जन्मे श्री जिन देव हो।इंद्र तवैगिरि मेरु पै, न्हवन करों कर सेव हो॥
जन्म कल्याणक पूज हूँ ॥ों ह्रीं श्रीवासुपूज्य जिनेन्द्राय फाल्गुण कृष्ण चतुर्दशी जन्म कल्याण
प्राप्ताय अर्घ निवपामीति स्वाहा। तप-भव तन भोग असार है,कर विचार जिन राय हो। बाल पने दीक्षा लही, जन्म तने दिन आय हो। ... तप कल्याणक पूज हुँ॥ ह्रीं श्रीवासुपूज्य जिनेंद्राय 'फाल्गुण कृष्ण चतुर्दशी तपः कल्याण
प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा ॥ ज्ञान-केवल ज्ञान प्रकाशियो, माघज़ दोयज शक्ल हो। भव्यातम वोधे घने, शुभ विहार जिन कीजहो
ज्ञान कल्याणक पूज हूँ॥ों ह्रीं श्रीवासुपूज्य जिनेन्द्राय माघ शुक्ल द्वितीया ज्ञान कल्याण
प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा। निर्वाण-योग निरोध किये सबै, चंपापुर वन आय हो। भाद्रों श्वेत चतुर्दशी, मोक्ष जिनेश्वर पाय हो।
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होती पूजन संग्रह
. मोक्ष कल्याणक पूज हूँ॥ उौं ह्रीं श्रीवासुपूज्य जिनेन्द्राय भाद्रपद शुक्ल चतुर्दशी मोक्ष कल्याण . प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।
.. अथ जयमाला। दोहा।। महाअर्घ-बाल ब्रह्मचारी प्रभु, अरुण बरण अविकार । सत्तर धनुष सुउच्च तन,वासु पूज्य भवतार॥१॥
" भुजंग प्रयात छंद-अजी नाथजी, एक अर्जी हमारी, सुनों चित्त देके कहूं में प्रचारी। सबै आप के ज्ञान तेरे सुछाई, कहूं क्या भला मैंने जो दुःख पाई ॥२॥यही आठ कर्म दिये दुःख भारी, सुनें कौन मेरी करूं जो पुकारी । सबों में अगारी महा मोह राजा, भ्रमायो हमें बहुत कीनों अकाजा। ॥३॥ दुती ज्ञान वर्न हरी बुद्ध मेरी, न होने दई नाथ ज्ञानं उजेरी । तृती दर्शना बर्न देखन्न देवे, छुटे फंद याको तबै आप बेवे ॥४॥ बली अंतरायं करी जो नवीनी, छती बस्तु मोको जु भोगन्न दीनी। बडो नाम कम सबै जेर कीने, गिने नहिं जावे इते नाम दीने ॥५॥ जबै गोत कर्म कियो आन फेरो, कभी उच्च कीनो कभी नीच चेरो। कभी सागरों की धरी आय केती, कभी स्वासके भाग में आय एती॥ ६॥ भली बेदनी स्वर्ग के सुक्ख धारे, असाता उदय नर्क में आनडारे । यही बंध मूलं कुभव में भ्रमायो, डरो में इन्हों से तेरी शर्ण आयो॥७॥ बचावो इन्हों से अजी आप स्वामी, बडो वृद्ध तेरो सबै माहनामी । जिते शर्न आये तिते पार पाये, तिनोंके चरित्रं कथा बेद गाये ॥८॥ सबै देव
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५१३
चौबी०|| देखे नहीं तो समाना, जु कोई धरे तीय कोई कमाना । जब काम ने आन के शरजु मारे, तबै भ्रष्ट || • पूजन
ब्रह्मादि हुवे सुसारे ॥९॥तजी आपने मांग बाला तुम्हारी, वरी नाहिं नारी भये ब्रह्मचारी। बहत्तर लख संग्रह
वर्ष की आय सारी, किये नाह राजं बने योग धारी ॥१०॥ सबै कर्म जारे गही मोक्षनारी, सुउद्यान | चंपापुरी के मंझारी। प्रभुदास को आपनो बास दीजे, जोई आप भावे वही बेग कीजे ॥ ११॥:::
घत्ताछन्द-जैजै जग खंडन सब गुण मंडन बासुपूज्य जिन काम हना । बखता नित ध्यावे मंगल गावे आतम ज्ञान प्रकाश घना ॥१२॥ रों ह्रीं श्रीवासुपूज्यजिनेंद्राय गर्भ जन्म तप ज्ञान निर्वाणपंचकल्याण प्राप्ताय अनर्घपदप्राप्तये महाघ निर्वपामीति स्वाहा ॥ .. .. अथ आशीर्वादः । छप्पय सिंहावलोकन-जो पूजे मन लाय पूजपद ताको होवे, होवे काम स्वरूप सर्व ..दुःख दारिद खोवे । खोवे सकल अज्ञान करे अनुमोदन कोई, कोई बांचे पाठ तास घर संपति
होई । हो इस लोक को छिनकमें, छिन में पावे शिव सिरी। श्रीवासुपूज्य जिन राज की, रतन भली पूजा करी ॥३॥ इत्याशीर्वादः ॥ इति श्रीवासुपूज्य जिन पूजा संपूर्णाः ॥ १२ ॥
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चौबी०
१३ अथ श्री विमलनाथर्जिन पूजा लिख्यते।
संग्रह
५१४
(बखतोवरसिंहकृत) छंद । स्थापना-श्री विमल जिनवर जन्मलीनो नगर कंपिल्या कही।
कृत धर्म के सुत ऊपने जिस मात जय सेन्यासही ॥ ., शूकर चिहन चरनन विराजे तिष्टये इत आय के। ...: मैं हाथ जोड़ करूं सुर्विती थाप हूँ सिर नाथ के॥१॥ " डों ह्रीं श्रीविमलनाथ जिनेन्द्र अत्रावतराऽवतर संवौषट् आह्वाननम्। , डों ह्रीं श्रीविमलनाथ जिनेन्द्र अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठाठः स्थापनम् ।। .उौं ह्रीं श्रीविमलनाथ जिनेन्द्र अत्र मम सन्निहितो भवभव वषट् संन्निधीकरणम् ।।
. . अथ अष्टक । बसंत तिलका छंद। जल-मुनि मन समसीरं वारि उज्वल सु लाऊं। भर कनक सुझारीधारतोकोचढाऊ॥तुम विमल जिनंदा - मात जयसेन नंदा।जजहचन तेरे काटिये कर्म फंदा॥ोंह्रीं श्रीविमलनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म
तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय जन्ममृत्युजरारोग विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा। चंदन-लेय शुभ हर गंधसंग कुंकुम रलाऊं,धर रतन कटोरी पूज तेरी रचाऊं ॥ .. . - ..
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चौबी०
...मात जयसेन नंदा। जजहू चर्न तेरे काटिये कर्म फंदा॥डोंह्रीं श्रीविमलनाथ जिनेन्द्राय गर्भ,जन्म, पूजन
तप, ज्ञान, निर्वाणपंचकल्याण प्राप्ताय संसाराताप रोगविनाशनाय चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा । संग्रह | अक्षत-निशि कर सम श्वेतं सार तंडुल नवीने । निर्मल जल धोये पुंजताके करीने । तम विमल जिनंदा
.: मात जयसेन नंदा। जजहूचनं तेरे काटिये कर्म फंदा ॥ ॐ ह्रीं श्रीविमलनाथ जिनेन्द्राय गर्भ,
जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय अक्षय पद प्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा। पुष्प-सुमन कलप केरे कुंद बेला चुनाये। उड़त तिस सुगंधा तास पे भौर छाये ॥ तुम विमल जिनंदा
मात जयसेन नंदा। जजहू'चर्न तेरे काटिये कर्म फंदा ॥ डों ह्रीं श्रीविमलनाथ जिनेन्द्राय गर्भ,
जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय काम वाण विनाशनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा । नैवेद्य-घृत कर कीने चार मोदक जुताजे । भर सुवरण थारं पूजते भूख भाजे ॥ तुम विमल जिनंदा . . .मात जयसेन नंदा । जज हूं चर्न तेरे काटिये कर्म फंदा ॥ डों ह्रीं श्रीविमलनाथ जिनेन्द्राय गर्भ,
जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय क्षधा रोग विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा। दीप-मणि कनक जड़ाये तास दीवे बनाये। बहु जग मगजोतं थार भर के चढाये॥ तुम विमल जिनंदा
मात जयसेन नंदा । जजहचर्न तेरे काटिये कर्म फंदा॥ों ह्रीं श्रीविमलनाथ जिनेन्द्राय गर्भ,
जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय मोहांधकार विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा । धप-अगर तगर गंधं खेय हूं धूप दानं । मम करम दहीजे दीजिये आप थानं ॥ तुम विनल जिनंदा ||
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चौबी० पूजन
मात जयसेन नंदा। जजहूं चर्न तेरे काटिये कर्म फंदा ।। ॐ ह्रीं श्रीविमलनाथ जिनेन्द्राय गर्भ,
जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय अष्ट कर्म दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा। फल-फल मधुर रसीले सेव दाडिम सुलाये। लख ललित अनुपा सर्व इंद्री लुभाये॥ तुम विमल जिनंदा
मात जयसेन नंदा । जजहूं चर्न तेरे काटिये कर्म फंदा। ॐ ह्रीं श्रीविमलनाथ जिनेन्द्राय गर्भ,
जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय मोक्ष फल प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा। अर्घ-जल फल बसु लेके द्रव्य सारे समारे। कर रतन रकावी पूज हूं अर्घ धारे ॥ तुम विमल जिनंदा
मात जयसेन नंदा। जजहं चर्न तेरे काटिये कर्म फंदा ॥ ॐ ह्रीं श्रीविमलनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय अनर्घ पद प्राप्तये अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।
.. अथ पंचकल्याणक । चौपाई। गर्भ-शुक्र सुरग तज आये एव । माता सेन्या गर्भ सुदेव । जेठ कृष्ण दशमी सुखकारि। सेव करें
नित छपन कुमार ॥ अह्रीं श्रीविमलनाथ जिनेन्द्रीय ज्येष्ठ कृष्ण दशमी गर्भ कल्याण प्राप्ताय , अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।। जन्म-माघ श्वेत तिथि तुरी बखान । जन्मे तीन ज्ञान युत आन ॥ कंपिल्ला नगरी शुभ सार। भए
सु घर घर मंगल चार ॥ ॐ ह्रीं श्रीविमलनाथ जिनेन्द्राय माघ शुक्ल चतुर्थी जन्म कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।।
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- पूजन ... 'संग्रह
चौबी० तप-कारण लख वैराग उपाय, रतन जडित शिविका हरि लाय ॥ कानन में तप दुर्द्धर धार, जन्म
तनो दिन है अविकार ॥ ॐ ह्रीं श्रीविमलनाथ जिनेन्द्राय माघ शुक्ल चतुर्थी तपःकल्याण प्राप्ताय
. अर्घ निर्वपामीति स्वाहा। . ५१७
ज्ञान-चार घातिया कर्म निवार, केवल जोत जगी सुख कार॥माघ शुक्ल षष्ठी दिन जोय, हम पद
पूजे हरषित होय ॥ ॐ ह्रीं श्रीविमलनाथ जिनेन्द्राय माघ शुक्ल षष्ठी ज्ञान कल्याण प्राप्ताय ...: अर्घ निर्वपामीति स्वाहा। निर्वाण-भ्रमर षाढ अष्टमके दिना। सम्मेदाचल तें शिव जिना ॥ पायो विमल विमल पद श्वेत । हम ||
पद पूजें हरष समेत । ॐह्रीं श्रीविमलनाथ जिनेन्द्राय आषाढकृष्ण अष्टमीमोक्ष कल्याण प्राप्ताय ..अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।
_ अथ जयमाला। दोहा।। महाअर्घ-धनुष साठ तन सोहनो, तप्त हेम सम जान । दीजे बुद्धि दयालमम,वरणू पंचकल्याण ॥ छन्द कामिनी मोहन-नाथ विमलेश पद विमल शोभा लहै । इंद्र नागेंद्र नर सेव तेरी गहै॥ जान शुभ
जेठ की कृष्ण दशमी दिना । स्वर्ग सहस्रार को त्याग के हे जिना ॥२॥ आर्या छन्द-मति श्रुति अवधि सुलाये, आन विराजे सु कूष माता की। धनद रतन बरषाये, इंद्रादिक ||
करें सेव त्राता की ॥३॥
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चोषी० छंद कामिनी मोहन-सेव देवी करें सरस अंबा तनी। नगर कंपिल्लका अधिक शोभा वनी॥ मांस नौ पूजन
गर्भ के सार सख में गये। तात को भप सब शीस नावत भये ॥४॥ संग्रह आर्या छंद-जन्में त्रिभुवन स्वामी, शुकल चतुर्थी माघ की आई। सकल सुरासुर नामी, आसन कंपात
. शीस सब नाई॥५॥ छन्द कामिनी मोहन-शीसको नाय के चलन उमगो हरी । रचो ऐरावती मानकेधन घरी॥जासके रदन
___ बहुतास पै सर बने । कमलिनी पत्र पै नृत्य देवी ठने । आर्याछंद-ताल मृदंग सुभेरी,बीना बंशी सुचंगसुर नाई। नाचेलेले फेरी,हाव भावसहित सप्तसुरगाई। छन्द कामिनी मोहन-गात बहु भांत पग झमक झमक झमकती। छमकछं छमकछं चमकचं चमकती॥
दमकदं दमकदं दामिनीसीभ्रमें । त्रिदश सब देखके शीस तम को नमें ॥ आर्याछंद-इत्यादि शोभभारी,मघवा लेलार आयपुर माही। मायामई शिशु धारी,शची लायइंद्र देय हरषाई छन्द कामिनी मोहन-लेय गीर्वाण गजराज चढके चले।जाय गिरि मेरु पैसकल ही सुररले॥ सहस अर
___ आठ तब वारि कलशे भरे। धार तुम शीस पै इंद्र कर ते ढरे ॥ १०॥ आर्या छंद-न्हौंन तनी विध सारी। करके श्रृंगार तात घर लाये । नृत्य कियो अति भारी,पूजे पित मात
‘धाम निज ध्याये ॥११॥ छंदकामिनी मोहन-ध्याय बहुधनदनित सेव थारीकरी । कुमर वय तरुण लह राज पदवी धरी ।राज को ..
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संग्रह . ५१९
चौबी०
.: छाड बन जाय दीक्षा गही। धार निज ध्यान को कर्म तैं जय लही ॥१२॥ पूजन
| आर्याछंद-पायोकेवलज्ञान,दीनो उपदेश भव्यबहुतारे। शिखर समेद महानं,पाईशिवसिद्धअष्ट गुणधारे।। | छन्द कामिनी मोहन-धार गुण सिद्ध के आप नामी भये । पूजता अवनि को शक निज थल गये। | हे दया सिंधु यह टेर सुन लीजिये। दास बखता रतन तास शिव दीजिये ॥१४॥ घत्ता छन्द-जय विमल जिनेश्वर कर्म हनेश्वर दुःख दरिद्र नाशे पलमें। जे पूजा भारी करें तुम्हारी ||
ते उपजे जा शिवथल में ॥१५॥
ॐ ह्रीं श्रीविमलनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय ||
.: . अनर्घ पद प्राप्तये महाअघ नि पामीति स्वाहा ॥ अथ आशीर्वादः । सोरठा-पूज पढ़ें यह पाठ, अथवा अनुमोदन करें। अष्ट करम को काट, ते पावें || शिव सुख महा ॥ १६ ॥ इत्याशीर्वादः । इति श्रीविमलनाथजिन पूजा संपूर्णा ॥ १३ ॥
ना
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१४ अथ श्रीअनन्तनाथ जिन पूजा प्रारभ्यते॥
चौबी० पूजन संग्रह ५२०
(बखतावरसिंह कृत) माधवी छंद । स्थापना-तज के पुष्पोत्तरसार बिमान, पिता हरसेन के पुत्र कहाये। .
जगमात सु सूर्य के नंदन आप, भवो दधित भव पार लगाये॥ -ज़िनऽनंत तुम्हें हम थापत हैं, मन शुद्ध किए अति ही उमगाये। जिन नाथ हमें अब कीजे सनाथ, सुदास के काज सबै बन आये ॥ १ ॥ ॐ ह्रीं श्री अनंतनाथ जिनेंद्र अत्रावतराऽवतर संवौषट् आह्वाननम् । ॐ ह्रीं श्रीअनंतनाथ जिनेंद्र अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम् ॥
ॐ ह्रीं श्री अनंतनाथ जिनेंद्र अत्र मम संनिहितो भव भव वषट् संन्निधी करणम् ।
..... (अथअष्टक ) गीता छंद। जल-जोहिमनगिरिपै पदम हद शुभ, तास को जल लाइये। भरगंध मिश्रित धार दीजे, तृषा रोग
नशाइये ॥ श्री नंत जिनवर छवि सुतेरी, देखते नाशें अरी। इंद्र चंद्र धनेन्द्र चक्री, आनपद सेवाकरी ॥ ॐ ह्रीं श्री अनन्तनाथ जिनेद्राय गर्भ जन्म तप ज्ञान निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय जन्म मृत्युजरारोग विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा ॥
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चौवी०
पूजन
संग्रह
५२१
.
.::
।
।
चंदन-घनसार गंध घसाय चंदन, कनक थाली में धरो। तुम चरण चरचुं भाव सेती, दाह मेरी सब
हरो ॥ श्री नंतजिनवर छबि सुतेरी, देखतें नाशें अरी। इंद्र चंद्र धनेन्द्र चक्री, आन पद सेवा करी॥ॐ ह्रीं श्री अनन्त नाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय
संसाराताप रोग विनाशनाय चन्दननिर्वपामीति स्वाहा। अक्षत-सित फेन गंग तरंग जैसे, सार अक्षत कर लिये। पद अदाता के सुढिग में, पुंज नीके धर
दिये ॥श्री नंतजिनवर छवि सुतेरी, देखते नाशें अरी॥ इंद्र चंद्र धनेन्द्र चक्री, आनपद सेवा करी ॥ ॐ ह्रीं श्रीअनन्तनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय
अक्षय पद प्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा॥ पुष्प-गेंदा गलाब अरु सेवती जूही चमेली चुन लई ।धारे चरण ढिग सुमन में पीडा मनोज तनी
गई ॥ श्री नंत जिनवर छबिसुतेरी देखतें नाशें अरी । सब इंद्र चंद्र धनेंद्र चक्री आन पद सेवा करी ॥ ॐ ह्रीं अनन्तनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय
काम वाण विनाशनाय पुष्पं निर्वपामीतिस्वाहा ॥ नैवेद्य-पकवान नीके सरस घीके, सितारस में पक रहे। यह क्षुधारोग विनोश मेरी, चरण तेरे लग
रहे॥श्री. नंत जिनवर छबि सुतेरी देखते नाशें अरी। सब इंद्र चन्द्र धनेन्द्र चक्री, आन पद ||
.
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पूजन
जाना
चौबी० सवा करी॥ ॐ ह्रीं श्रा अनन्तनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान निर्वाण पंचकल्याण
प्राप्ताय क्षुधारोग विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा ।। संग्रह' दीप-दीपक नवीने बार दीने, सरस होत उजासका । मम मोहध्वांत विनाश कीजे, सुपर ज्ञान ५२२
प्रकाशका ।श्री नंत जिनवर छबि सुतेरी, देखतें नाशें अरी। सब इंद्र चंद्र धनेन्द्र चक्री आज पद सेवा करी ॥ॐ ह्रीं श्री अनन्तनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण
प्राप्ताय मोहांधकार विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा ॥ धूप-करपूर कृष्णागर सुचंदन,लौंग आदि मिलायहूं । दश गंध खेऊ ढिग तुम्हारे, अष्ट कम जराय
हूं॥श्री नंतजिनवर छवि सु तेरी , देखते नाशें अरी, सब इंद्र चंद्र धनेन्द्र चक्री आन पद
.सेवा करी॥ ॐ श्री अनन्तनाथ जिनेन्द्रायगर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय . . अष्ट कर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा ॥ फल-बादाम पिस्ता दाख दाडिम, षारिकादि मंगाईये । धारूं सुपद ढिग थाल भरके, देत सब सुख
पाइये ॥श्री नंतजिनवर छवि सुतेरी, देखते नाशे अरी । सब इंद्र चंद्र धनेन्द्र चक्री, आन पद सेवा करी ॥ ॐ ह्रीं श्री अनन्तनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञाननिर्वाण पंचकल्याण
प्राप्ताय मोक्षफल प्राप्तये फलंनिर्वपामीतिस्वाहा॥ . अर्घ-लेबारि गंधमयी सुअक्षत, . मन नेवः ।
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चौबी०
संग्रह ५२३.
ही॥श्री नंतजिनवर छबि सुतेरी, देखते नारों अरी । सब इंद्र चंद्र धनेन्द्र चक्री, आनपद
सेवा करी ॥ ॐ ह्रीं श्री अनन्तनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाणपंचकल्याण पूजन प्राप्ताय अनर्घपदप्राप्तये अर्घनिर्वपामीतिस्वाहा ॥
अथ पंचकल्याणक । छंद त्रोटक। गर्भ-कलि कातिक एकम को गिनियें, गरभागम के दिन को भनिये। तज बारम स्वर्ग जिनंद सही,
जननी पद सेव शची जु गही ॥ॐ ह्रीं श्री अनंतनाथ जिनेंद्राय, कार्तिक कृष्ण प्रतिपदा गर्भ
कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा॥ ... जन्म-जन्में त्रय ज्ञान लिये जिनजी,अलि जेठ दुवादशि के दिनजी। तिहुलोक विषे जयकार भयो,हरि
सेन नरेन्द्र सुदान दियो ॥ ॐ ह्रीं श्री अनंतनाथ जिनेंद्राय ज्येष्ठ कृष्ण द्वादशी जन्म कल्याण
प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा ॥ तप-जिन भावत द्वादश भावन को, करमादिक रोग उडावन को। तम द्वादश जेठ सु कानन में, जिन
जाय लगे निज ध्यानन में ॥ॐह्रीं श्री अनंतनाथ जिनेंद्राय ज्येष्ठ कृष्ण द्वादशी तपः कल्याण
प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा ॥ ज्ञान-बदि मावस चैतसु ज्ञानवली, जिन पाय जु कर्म :समूह दली। शुभ तत्त्व प्रकाशक वायक हैं,
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चौबी०- पूजन
संग्रह (५२४
हम पूजत भक्ति बढायक हैं ॥ ॐ ह्रीं श्री अनंतनाथ जिनेंद्राय चैत्र कृष्ण अमावस्या ज्ञान
कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा॥ निवाण-ससमेदथकी जिनमोक्ष गये,त्रयलोक शिरोमणि सिद्ध भये। गिन चैत अमावस्याके जो दिना,
हम ध्यावत शीस नवाय घना ॥ ॐ ह्रीं श्री अनंतनाथ जिनेंद्राय चैत कृष्ण अमावस्या मोक्ष कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा ॥
अथ जयमाला ।दोहा। महाअर्घ-व्योम अंगुलन नहिं नपे,उडुगण गिनेन जाय । त्यों तुम सुगुण अनंतहे,हम से किम बरनाय ॥
पै तुम भक्ति सो हिये मम, प्रेरत में बहु आय । तातें सुगुण सुमालिका, पहरूं कंठ बनाय ॥ .. __छंद त्रोटक-जयअनंत जिनेश्वर चर्न नम, भव बारिधि तारन तनं नम। जब गर्भ विषे थित आयधरी, धनदेव रची आयुध्या नगरी॥ ३॥ अलि जेठ दुवादशि आय जये, भवजीवन के दुःख दूर गये। सब आयुष लाख जु तीस कही, कुमरापन साढे सात गई ॥ ४॥ पंदरै लख बर्ष सुराज किये, कछु कारण पाय सुत्याग दिये। तब ही बन जाय के योग धरो, निज आतम सार विचार करो, ॥ ५॥ चव घात तनी सब सैन दली,लहि केवल ज्ञान प्रकाश वली । दिव ध्वन्नि खिरे
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और गण ईश पचात प्रकाश करे ॥ ६॥ चरचा नव तत्त्वतनी सुकही अणु ब्रत महा व्रत सर्व सही । पूजन .
· दश धर्म तने सब भेद कहे, अनुयोग सुने भव शर्मलहे ॥७॥ इन आदिक भेद सुनो सब ही, संग्रह
कितने इक योग लियो तब ही। शुभ केतक श्रावक धर्म गहो, बहुतेयक सम्यकसार लहो ॥८॥ फिर आरज देश बिहार करों, भवि बोध भवोदधिपार धरो। एक मास तनी जद आयु रही, अवनी सम्मेद तनीजु गही ॥९॥ तहां योग निरोध के मोक्ष गये, सुख लोन महा प्रभु आप भये । तुम ही सब बिघ्न बिनाशक हो, दुःख जन्म जरा मृत नाशक हो ॥ १०॥ तुम नाम अधार हिये ममरो, जिन पार करो मत देर धरो । बखता रतना इम अर्ज करी, न विलंब करो प्रभु एक घरी ॥११॥ धत्ताछन्द-यह मंगल माला दुःख सब टाला, सुख संपत छिन में बरनी। सब के मानन को गुण जानन को अष्टम छित में यह धरनी ॥ १२॥ ॐ ह्रीं श्री अनन्तनाथ जिनेन्द्राय गर्भ जन्म तप ज्ञान निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय अनर्घपद प्राप्तये महऽर्घ निर्वपामीति स्वाहा ॥ अथ आशीर्वादः । दोहा-श्री अनंत जिनदेव को, जो पजे चितलाय । पुत्र मित्र धन धान्य यश, तिन
घर सदा रहाय ॥ १३ ॥ इत्याशीर्वादः ।। इति श्रीअनंतनाथ जिन पूजा संपूर्णी ॥ १४ ॥
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चौबी० पूजन संग्रह ५२६
१५ अथ श्रीधर्मनाथ जिन पूजा प्रारभ्यते॥
(बखतावरसिंह कृत) कड़खा छन्द । स्थापना-छाड विमान सर्वार्थ सिद्धे महामात श्री सुव्रता कूप आये,
पिता नृपभान है भान सम तेज जिस नगर रतनापुरी इंद्र ध्याये। लेय गिरि मेरु धे न्हौन करते भये, एक हज्जार कलशे दुराये, धर्म जिन पूजिये पाप सब धूजिये थाप हूं चर्न में सीस नाये ॥१॥ ॐ ह्रीं श्री धर्म नाथ जिनेंद्र अत्रावतरावतर संवौषट् आह्वाननम् । ॐ ह्रीं श्री धर्मनाथ जिनेंद्र अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम् ॥ ॐ ह्रीं श्री धर्मनाथ जिनेंद्र अत्र मम सन्नहितो भव भव वषट् सन्निधी करणम्॥
अथ अष्टक । छंद संदरी। जल-उदक श्वेत जु क्षीर समान ही, सुरन झारी भर कर आन ही। पूज हूं तुम चरन रिसाल जी, ___ धर्म जिनवर धर्म दयाल जी ॥ ॐ ह्रीं श्री धर्मनाथ जिनेंद्राय गर्भ जन्म तप ज्ञान निर्वाण पंच . कल्याण प्राप्ताय जन्म मृत्यु जरारोग विनाशनाय जलं निर्वामीति स्वाहा ॥
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चौबी० चंदन-घसत कुंकम चंदन लाइयो, सरस सौरभ पै अलि छाइयो । पूज हूं तम चरण रिसालजी, पजन
- धर्म जिनवर धर्म दयालजी॥ ॐ ह्रीं श्री धर्मनाथ जिनेन्द्राय गर्भ जन्म तप ज्ञान निर्वाण संग्रह ||
पंचकल्याण प्राप्ताय संसाराताप रोग विनाशनाय,चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा ॥.... ५२७ अक्षत-अक्षत उदेत महा छबि को धरें, कांति निशपति की देखत टरें। पूज हूं तुम चरण रिसालजी,
म जिनवर धर्म दयाल जी॥ॐ ह्रीं श्री धर्मनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण
पचकल्याण प्राप्ताय अक्षयपद प्राप्ताय अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा॥ पुष्प-सुमन वर्न अनेक प्रकार के, जडत स्वर्ण मई कर धारके। पूज हूं तुम चरण रिसालजी, धर्म
जिनवर धर्म दयाल जी ॥ ॐ ह्रीं श्री धर्मनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाणपंच ' कल्याण प्राप्ताय कामवाण विनाशनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा ॥ नैवेद्य-लेय नेवज विविध प्रकार जी, सरकरा मिश्रित भरथार जी । पूजहूं तुम चरण रिसाल जी,
धर्म जिनवर धर्म दयालजी । ॐ ह्रीं श्री धर्मनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंच
कल्याण प्राप्ताय क्षधारोग विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा॥ दीप-घृत कपूर तनें दीपक भरे, जोय कर तुम मंदिर में धरे, पूज हूं तुम चरण रिसालजी, धर्म जिन
वर धर्म दयालजी॥ ॐ ह्रीं श्री धर्मनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाणपंच कल्याण प्राप्ताय मोहांधकार विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा॥
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संग्रह
चौबी० धूप-सर सुगंध धनंजय लहकती, खेय हूं दशगंध सु महकती। पूज हूं तुम चरण रिसालजी, धर्म पूजन जिनवर धर्म दयालजी॥ ॐ ह्रीं श्री धर्मनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंच
कल्याण प्राप्ताय अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा ॥ ५२८ फल-जायफल लौंगादिक कर लिये, थाल भर तुम आगे धर दिये । पूज हूं तुम चरण रिसालजी,
__ धर्म जिनवर धर्म दयालजी ॥ ॐ ह्रीं श्री धर्मनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान निर्वाण . पंचकल्याण प्राप्ताय मोक्षफल प्राप्तये कलंनिर्वपामीति स्वाहा॥ अर्घ-जल फलादिक मिष्ट मिलायके, करूं अर्घ सु तुम गुण गायके । पूज हूं तुम चरण रिसालजी,
धर्म जिनवर धर्म दयालजी ॥ ॐ ह्रीं श्रीधर्मनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म तप, ज्ञान, निर्वाण पंच ... कल्याण प्राप्ताय अनर्घपद प्राप्तये अर्घ निर्वपामीति स्वाहा ॥
अथ पंच कल्याणक । दोहा। गर्भ-अंधियारी वैशाख की, तेरस तिथी सुजान। मात सुव्रता गर्भ में, पुष्पोत्तर तज आन ॥
ह्रींश्रीधर्मनाथ जिनेंद्रायवैशाखकृष्ण त्रयोदशी गर्भ कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीतिस्वाहा ॥ जन्म-माघ शुकल तेरस विषे, दश अतिशय धरमेश । जनमे हरि सुर गिरिजजे, हम पूजें हरषेश ॥ . ॐ ह्रीं श्री धर्मनाथ जिनेंद्रायमाघ शुक्लात्रयोदशी जन्मकल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीतिस्वाहा ॥ तप-श्वेत माघ तेरस भली, योग धरो बन जाय । मन पर्ययलह ज्ञान जिन आतम ..
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चोबी. पूजन
ॐ ह्रीं श्रीधर्मनाथ जिनेंद्राय माघ शुक्ल त्रयोदशी तपः कल्याण प्राप्ताय अनिवपामीतिस्वाहा ॥ ज्ञान-चार घातिया नाशके, केवलज्ञान-प्रकाश । समवसरन लक्ष्मी सहित, पूनम पौष उजास ॥ संग्रहः ॐ ह्रीं श्रीधर्मनाथजिनेंद्राय पोष शुक्ल पूर्णिमा ज्ञान कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीतिस्वाहा ॥ .
निर्वाण-इंदतनीतिथि जेठकी,संज्ञा ध्यान बखान । जगत पूज्य शिव पाइयो, सम्मेदाचल जान ॥ .....: ॐ ह्रीं श्रीधर्मनाथजिनेंद्राय ज्येष्ठ शुक्लचतुर्थी मोक्षकल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीतिस्वाहा॥
. अथ जयमाला-दोहा। महाअर्घ-धर्मनाथ जिनकी छबी, कंचन बर्ण दिपंत । उन्नत पैतालिस धनुष बन्न चिह्न शोभंत ॥१॥
अडिल-धर्मजिनेश्वर देव नम शिरनायके, सारथ सिध त्याग रतनपुर आयके । पिता भानु महाराज सुब्रता मातजी,तिनके सुत तुम भये जगत विख्यातजी॥२॥बरष लाख दश आयु भली तुमने लई,बरष अढाई लाख कुमरपन में गई। पांच लाख जिन वर्ष राज तुमने कियो,सब परजा दुःख टाल सुयश जगमें लियो ॥३॥ कछु कारण लख राज त्याग बन में गये, पण मुष्टी कचलौंच परिग्रह तर्ज दये । हुवे सहस अवनीश आपके संग तब, भये दिगंबर रूप वरत धारे सवै ॥४॥ धर षष्ठम उपवास ध्यान में थिर भये, बर्द्धमानपुर माहि असन हितको गये । धर्मसेन तहां राय सु भोजन पय दिये,नवधा भक्ति जुधार सप्त गुणको लिय॥५॥पंचाश्चर्य महान तास घरमें भये,कर भोजन महाराज फेर कानन
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चावा० गये। करत तपस्या घोर वर्ष इक यूं गयो,चारों कर्म नशाय ज्ञान केवल लयो ॥६॥ समवसरन के माहिं पूजन | सकल रचना रची, आये सब सुर वृन्द सु जय जय धुन मचा । करें इंद्र तुम स्तुती पूज रचाय के, दोष संग्रह अठारह रहित सुबरने गायके ॥ ७॥ गुण छालिस तुम माह बिराजे देवजी, तितालिस गण ईशकरें
तुम सेवजी। भव्य जीव निस्तारन को तुमने सही, करो बिहार महान आर्य देशन कही ॥८॥ अंग बंग पंचाल मिसर. गुतरातजी, काशी कौशल मगध देश विख्यात जी। देकर बहु उपदेश जीव तारे घने, गिरि सम्मेद 4 आय अघाती सब हने ॥९॥ भये सिद्ध महाराज अष्टगुणमयसदा, फेर नहीं इस मांहि जिना आवन कदा। जो यह मंगल पोठ तुमारो चितधरे, सिंह चोर जलसर्प उपद्रव सब : टरे ॥१०॥ करूं बीनती आपतनी निज काजजी,तुम ही बडे दयालु सुनो जिनराजजी। वखतावर अर रतन नमें शिर नायके, कीजे मम कल्याण टेर सुन आयके ॥११॥
पत्ता छन्द-यह वर गुण माला धर्म रसाला कंठ माह जे धरें त्रिकाल । शुभज्ञान बढावें : नसावें शिवपुर को पावें दरहाल ॥ ॐ ह्रीं श्री धर्मनाथ जिनेन्द्राय गर्भ न. पंचकल्याण प्राप्ताय अनर्घ पदप्राप्तये महाघ निवपामी . अथ आशीर्वादः । वसंत तिलका . 'रिद्धि-भारी।
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चौबी.. १६ अथ श्री शान्तनाथ जिन पूजा प्रारभ्यते॥ : पजन
(बखतावरसिंहकृत) रोडक छंद। ५३१ स्थापना-सारथ सु विमान त्याग गजपुर में आये । विश्वसेन भूपाल तास के नंद कहाये ॥
पंचम चक्री भये दर्प द्वादश में राजे। मैं सेवं तुम चरण तिष्ठिये ज्यों दुःख भाजे ॥१॥
ॐ ह्रीं श्रीशांतिनाथ जिनेन्द्र अत्रावतराऽवतर संवौषट् आह्वाननम् । ॐ ह्रीं श्रीशांतिनाथ जिनेन्द्र अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम् ।
ॐ ह्रीं श्रीशांतिनाथ जिनेन्द्र अत्र मम सन्निहितो भवभव वषट् सन्निधीकरणम् ।
..... अथ अष्टक । कोशमालती छंद। ....... जल-पंचम उदधि तनो जल निरमल कंचन कलश भरे हरषाय । धार देत ही श्रीजिन सन्मुख जन्म
जरामृत दूर भगाय ॥ शांतिनाथ पंचम चक्रेश्वर द्वादश मदन तनो पद पाय । तिन के चरण, कमल के पूजे रोग शोक दुःख दारिद जाय ॥ ॐ ह्रीं श्रीशांतिनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, | — ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय जन्म मृत्यु जरा रोग विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा। चंदन-मलयागिर चंदन कदली नंदन कुंकुम जल के संग घसाय । भव आताप विनाशन कारण चर चूं
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चौबी०
- पूजन
संपर
५३४.
. पूजे रोग शोक दुख दारिद जाय ॥ ॐ ह्रीं श्री शांतिनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय अनर्घपद प्राप्तये अर्घ निर्वपामीति स्वाहा ॥
(अथ पंच कल्याणक) छन्द उपगीत। गर्भ-भाद्रव सप्तमिश्यामा,सवार्थत्याग नागपुर आये। माता ऐरा नामा, में पूजंध्याऊं अर्घ शुभलाये॥ - ॐ ह्रीं श्रीशांतिनाथ जिनेंद्राय भादपदकृष्ण सप्तनी गर्भ कल्याणप्राप्ताय अर्घ निर्वपामीतिस्वाहा॥ जन्म-जन्मे तीरथवर जेठ असित चतर्दशी सोहै। हरिगण नावें माथ, में पूजू शांति चरण युग जोहे ॥ ___ ॐ ह्रीं श्री शांतिनाथ जिनेंद्राय ज्येष्ठ कृष्ण चतुर्दशीजन्म कल्याणप्राप्ताय अनिर्वयामीति स्वाहा॥ तप-चौदस जेठ अंधारी,काननमें जाय योग प्रभुदीन्हा। नवनिधिरत्न सुलारी,मैं बंदूआत्मसार
ॐ ह्रीं श्रीशांतिनाथ जिनेंद्राय ज्येष्ठ कृष्णचतुर्दशी तपः कल्याणप्राप्ताय .. ज्ञान-पोष दसें उजियारा,अरघात ज्ञानभानजिन पाय ।
डों ह्रीं श्री शांतिनाथ जिनेंद्रायप निर्वाण-सम्मेद
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चौबी० पूजन
.... अथ जयमाला छप्पय छंद। संग्रह || महाअर्घ-भये आप जिन देव जगत में सुख विस्तारे,तारे भव्य अनेक तिनोंके संकट टारे । टारे आठों ५३५ कर्म मोक्ष सुख तिन को भारी,भारी वृद्ध निहार लही में शर्ण तिहारी ॥चरणन को सिरनायहूं,
| दुःख दारिद्र संतापं हर । हर सकल कर्म छिन एक में, शांति जिनेश्वर शांति कर ॥१॥ ॥ दोहा-सारंग लक्षण चरण में, उन्नत धनु चालीस । हाटक वर्न शरीर दुति, नमूं शांति जगईश ॥२॥
... छंदभुजंग प्रयात-प्रभु आपने सर्व के फंद तोडे, गिनाऊं कछु, तिनो नाम थोडे। पडो अंबुधै बीच श्रीपाल आई। जपो नाम तेरो भएथे सहाई ॥३॥ धरो रायने सेठ को सूलिका पै, जपी आपके नाम की सार जाप । भये थे सहाई तबै देव आये,करी फूल वर्षा सु बिष्टर बनाये ॥४॥ तबै लाख के धामसबही प्रजारी, भयो पांडवों पै महा कष्ट भारी । जवै नाम तेरे तनी टेर कीनी, करी थी विदुर ने वही राह दीनी ॥ ५॥ हरी द्रोपदी धातुकी खंड माही, तुम्हीं हो सहाई भलो और नांही। लियो नाम | तेरो भलो शील पालो, बचाई तहां ते सबै दुःख टालो ॥६॥ जबै जानकी राम ने जो निकारी, धरे गर्भ को भार उद्यान डोरी। रटो नाम तेरो सबै सौख्यदाई, करी दूर पीडा सु छिन्ना लगाई ॥७॥ विखल सात सेवें करें तस्कराई, सुअंजन्न त्यारो घडी ना लगाई। सहे अंजना चंदना दुःख जेते, गये भाग सारे जरा नाम लेते ॥८॥ घड़े बीच में सास ने नाग डारो, भलो नाम तेरोजु सोमा संभारो॥
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· चौबी० गई काढने को भई फूल माला, भई है विख्यातं सबै दुःख टाला ॥ ९॥ इन्हें आदि देके कहां लो
पूजन बखाने, सुनो वृद्ध भारी तिहुँ लोक जानें । अजी नाथ मेरी जरा ओर हेरों, बडी नाव तेरी रती बोझ संग्रह मेरो ॥ १०॥ गहो हाथ स्वामी करो वेग पारा, कहूं क्या अवै आपनी में पुकाराः । सबै : ज्ञान के बीच ५३६ भासी तुम्हारे, करो देर नांही अहो संत प्यारे ॥११॥
. घत्ता छंद-श्रीशांति तुम्हारी कीरति भारी सुन नर नारी गुण माला । वखतावर ध्यावे रतनसुगावे मम दुःख दारिद सबटाला ॥१२॥ॐ ह्रीं श्री शान्तिनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय अनर्घपद प्राप्तये.महाऽघं निर्वपामीति स्वाहा ।।।
: अथ आशीर्वादः । शिखरिणी छंद-अजी ऐरानंदं छवि लखत है आय अरनं, धरें लज्जा भारी : करत थुति सो लाग चरनं । करे सेवा कोई लहत सुख सोसार छिन में, घनें दीना त्यारे हम चहत हैं ... बास तिन में ॥ १३॥ इति आशीर्वादः । इति श्रीशांतिनाथजिन पूजा संपूर्णा ॥१६॥
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१७ अथ श्री कुन्थुनाथजिन पूजा लिख्यते,
चौबी० पूजन
बखतावर सिंह कृत। छन्द । सिंग्रह ५३७
स्थापना-गजपुर नगर मझार भान प्रभु भूपजी, कुंथुनाथ जिन पुत्र भये सुख रूपजी।
..... लक्षण अजा अनूप मात लक्ष्मीमती, तुंग धनुष तीस तिष्ठ करुणापती ॥१॥ . . ॐ ह्रीं श्री कुंथुनाथ जिनेंद्र अत्रावतराऽवतर संवौषट् आह्वाननम् । ....ॐ ह्रीं श्री कुंथुनाथ जिनेंद्र अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम्। . . ॐ हीं श्री कुंथुनाथ जिनेंद्र अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधी करणम् ॥ .
अथ अष्टक। त्रिभंगी छंद। | जल-पद्मदनीरं गंधगहीरं अमल सहीरं भर लायो, कंचन मय झारी भर सुखकारी पूज तिहारी
कर धायो।श्री कुंथुदयालं जगरिछपालं हन भव जालं गुण मालं। तेरम मकेश्वर षट्चक्रेश्वर विधन हनेश्वर दुख टालं ॥ ॐ ह्रीं श्री कुंथुनाथ जिनेंद्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण
पंचकल्याण प्राप्ताय जन्म मृत्यु ज रारोग विनाशनाय जलंनिर्वपामीति स्वाहा॥ | चंदन-घस चंदन बाक्न दाह मिटावन निरमल पावन सुखकारी, तुम चरण चढाऊंदाह नसाऊं
शवपुर पाऊ हित धौरी1- श्री कुंथु दयालं जग रिछपालं हन भव जालं गुण मालं, तेरम
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संग्रह .
मक्रेश्वर षटचक्रेश्वर विघन हनेश्वर दुख टालं। ॐ ह्रीं श्रीकुंथुनाथ जिनेंद्राय गर्भ, जन्म, तप, चोबी०
ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय संसारातापरोग विनाशनायचन्दनं निर्वपामीति स्वाहा ॥ . पूजन .. ' 'अक्षत-अक्षत अनियारे प्राशुक धारे पुंज समारे तुम आगे, अक्षय पद दीजे बिलम न कीजे निज लख
लीजे सुख जागे। श्री कुंथुदयालं जगरिछपालं हन भव जालं गुणमालं, तेरम मकेश्वर षट् .. चक्रेश्वर विघन हनेश्वर दुख टालं ।। ॐ ह्रीं श्री कुंथुनाथ जिनेंद्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान,
निर्वाण पंच कल्याण प्राप्ताय अक्षय पद प्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा॥ पुष्प-वर कुसम सुवासं अमल बिकाशं षट् पद रासं गुंजकरा, भर कंचन थारी तुम ढिग धारी
काम निवारी सौख्य करा । श्रीकुंथुदयालं जग रिछपालं हन भव जालं गुणमालं, तेरम मकेश्वर षट् चक्रेश्वर विघन हनेश्वर दुख टालं ॥ ॐ ह्रीं श्री कुंथुनाथ जिनेंद्राय गर्भ जन्म,तप, ज्ञान,
निर्वाण पंच कल्याण प्राप्ताय कामवाण विनाशनाय पुष्पं निवपामीति स्वाहा॥ 'नैवेद्य-पकवान सुकीने तुरत नवीने सित रस भीने मिष्ट महा, तुम पद तल धारे नेवज सारे क्षुधा . निवारे शर्म लहा। श्री कुंथुदयालं जग रिछपालं हन भव जालं गुण मालं। तेरम मकेश्वर
षट् चक्रेश्वर विघन हनेश्वर दुख टालं । ॐ ह्रीं श्री कुंथुनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान निर्वाण पंच कल्याण प्राप्ताय क्षुधा रोग विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा ॥ दीप-दीपक उजियारे तम क्षयं कारे जोय समारे स्वर्ण मई, मोह अंधविनाशी निज परकाशी हम घट
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चौबी० पूजन संग्रह
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भासी ज्ञान लई । श्री कुंथुदयालं जगरिछपालं हन भव जालं गुण मालं, तेरम मकेश्वर षट् - चक्रेश्वर विघन हनेश्वर दुख टालं ॥ ॐ ह्रीं श्री कुंथुनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान,
निर्वाण पंच कल्याण प्राप्ताय मोहांधकार विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा ॥ .... धूप-दशगंध मिलावें परिमल आवे अलिगण छावें कर शोरी, संग अगनि जराऊ कर्म नसाऊं पुण्य
बढाऊं कर जोरी । श्री कुंथुदयालं जग रिछपालं हन भव जालं गुणमालं, तेरम मकेश्वर षट .चक्रेश्वर विघन हनेश्वर दुख टालं ॥ ॐ ह्रीं श्री कुंथुनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान,
निर्वाण पंच कल्याण प्राप्ताय अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा ।। फल-श्रीफल सहकारं लौंग अनारं अमल अपारं सब रुतके। तुम चरण चढाऊ गुण गण गाऊं शिव
फल पाऊं विधि हत के । श्री कुंथुदयालं जग रिछपालं हनभव जालं गुण मालं, तेरम मकेश्वर
षट् चक्रेश्वर विघन हनेश्वर दुख टालं ॥ॐ ह्रीं श्री कुंथुनाथ जिनेंद्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, • निवाण पंचकल्याण प्राप्ताय मोक्षफल प्राप्तये फलं निर्वामीति स्वाहा ॥ अर्घ-जलफल बसु लीजे अर्घ करीजे पूज रचीजे दुख हारी, संसार हनीजे शिवपद दीजे ढील न कीजे
बलिहारी । श्रीकुंथुदयालं जगरिछपालं हनभव जालं गुण मालं, तेरम मकेश्वर षट् चक्रेश्वर विघन हनेश्वर दुख टालं ॥ॐ ह्रीं श्री कुंथुनाथ जिनेंद्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंच कल्याण प्राप्ताय अनर्घपद प्राप्तये अर्घ निर्वपामीति स्वाहा॥ .. ..
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चौबी०
अथ पंचकल्याणक। पूजन संग्रह 'गर्भ-भ्रमर सावन दशमी गाइयो, कुषमात श्रीकांता आइयो। धनद देव आय बरषाकरो, हम जजें
धन मान वही घरी ॥ ॐ ह्रीं श्री कुंथुनाथ जिनेंद्राय श्रावण कृष्ण दशमी गर्भ कल्याण प्राप्ताय
अर्घ निर्वपामीति स्वाहा ॥ जन्म-कुंथु जिनवर जन्म लियो जबै, हरिन के विष्टर कांपेतबे, शुकल एकम जान बैशाखजी, हम
जजे करके अभिलाष जी ॥ ॐ ह्रीं श्री कुंथुनाथ जिनेंद्राय वैशाख शुक्ल प्रतिपदा जन्म कल्याण
प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा॥ तप-जनम को दिन पावन आइयो, चित विषे बैराग सुभाइयो । राज षट् खंड को तुम त्यागियो,
ध्यान में प्रभु आप सुलागियो ॥ ॐ ह्रीं श्री कुंथुनाथ जिनेंद्राय बैशाख शुक्ल प्रतिपदा तपः
कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा । ज्ञान-चैत उजियारी तृतिया जु है, जिन सुपायो केवल ज्ञान है । सभा द्वादश में वृष भाषियो, भव्य
जन सुन के रस चाखियो । ॐह्रीं श्री कुंथुनाथ जिनेंद्राय चैत्र शुक्लतृतीया ज्ञान कल्याण प्राप्ताय
अर्घ निर्वपामीति स्वाहा ॥ निर्वाण-कर सुयोग निरोध महान है, गिरि समेदथकी निरवान है । प्रतिपदा बैशाख उजास में
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चौबी०
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पूजन
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संग्रह
शिवपुर दो निजवास में ॥ ॐ ह्रीं श्री कुंथुनाथ जिनेंद्राय वैशाख शुक्ल प्रतिपदा मोक्ष कल्याण . प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा ॥
... अथ जयमाला। दोहा। कीडीकुंजर कुंथवा, सब जीवन रछपाल । कुंथुनाथ पद नमन कर बर तिन गणमाल ॥१॥ - छंद पद्धड़ी-जय जय श्रीकुंथु जिनंद चंद, जय जय श्रीभानु नरेन्द्र नंद । उपजे गजपुर नगरी मझार, लीजे स्वामी मो को उबार ॥२॥जय काम रूप शोभा अमान, जय भव्य कमल को रवि समान । जय अजर अमर पद देनहार, लीजे स्वामी मो को उबार ॥३॥ चय चक्रवर्ति पद को लहाय, जय नव निधि चौदह रतन पाय । सिर नावत नृप बत्तिस हजार, लीजे स्वामी मो को उबार। ॥ ४ ॥ जय नार छानवें सहस जोय, जय रूप लखे रवि थकित होय । इत्यादि सौज शोभे अपार, लीजे स्वामी मा को उबार ॥ ५॥ जय भोगन बर्ष गये महान, जय सवा इकत्तर सहसजान, कछु कारण लख संवेग धार, लीजे स्वामी मो को उबार ॥६॥ जय गजपुर नग्री तज दयाल, जय सिद्धन को कर नमन भाल । जय तज दीने सब ही सिंगार,लीजे. स्वामी मोको उबारा जय पंच महाव्रत धरण धीर, जय मन परजय पायो गहीर । जय षष्ठम को शुभ नेमधार, लीजे स्वामी मो को उबार जय मंदिरपुर में दत्तराय, जय तिन घर पारण को कराय। जय पंचाश्चर्यभये अपार, लीजे स्वामी
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चौबी० मो को उबार ॥९॥जय मौन सहित बहुधरत ध्यान, जय षोडश वर्ष गये सुजान। चवघाति कर्म पूजन कीने निवार, लीजे स्वामी मो को उबार ॥१०॥जय केवल ज्ञान जगो रिसाल, जय तत्व प्रकाशे संग्रह तुम दयाल। सव भव्य बोध भव सिंधुतार, लीजे स्वामी मो को उबार ।। ११ ॥ जय आरज देशन ५४२ कर विहार, जय आये गिरि संमेद सार। सब विधि हन पाईं मोक्षनार, लीजे स्वामी मो को उबार
॥१२॥ जय जग जीवन के तुम दयाल,जय तुम ध्यावत हुए निहाल । जय दारिद गिरि नाशन कुठार, लीजे स्वामी मो को उवार ॥३॥ जय सिद्धथान के बसन हार, बखता रतना की यह पुकार । मो दौजे निज आवास सार, लीजे स्वामी मो को उबार ॥ १४ ॥
पत्ता छन्द-यह दुःख विनाशन सुख परकाशन जयमाला अघ को टरनी। मैं तुम पद ध्याऊं पूज रचाऊं शिवपद पाऊंभव हरनी ॥ १५॥ ॐ ह्रीं श्री कुंथुनाथ जिनेंद्राय गर्भ जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंच कल्याण प्राप्ताय अनर्घपद प्राप्तये महाघु निर्वपामीति स्वाहा॥ ___ अथ आशीर्वादः । दोहा-कुन्थु जिनेश्वर देव को, जो पूजे मन लाय । पुत्र मित्र सुख संपदा, तिन घर सदा रहाय ॥ १६॥ इत्याशीर्वादः ॥ इति श्री कुन्थुनाथजिन पूजा संपूर्णा ॥ १७ ॥
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५४३
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चौबी०
१८ अथ श्रीअरनाथजिन पूजा प्रारभ्यते । पूजन
... (वखतावरसिंहकृत) त्रिभंगी छंद । ___ संग्रह | स्थापना-हथनापुर आये भवि मन भाये पिता सुदर्शन राजा है।
मित्रादे माता सब सुख दाता तिन की कूष बिराजा है । धनु तीस विराजे अति छबि छाजे लक्षण मीन जु पाया है। तिष्ठो जिनदेवा करहूं सेवा कर तें पुष्प चढाया है ॥१॥ ॐ ह्रीं श्रीअरनाथ जिनेन्द्र अत्रावतराऽवतर संवौषट् आह्वाननम्। ॐ ह्रीं श्रीअरनाथ जिनेन्द्र अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठाठः स्थापनम् । ॐ ह्रीं श्रीअरनाथ जिनेन्द्र अत्र मम सन्निहितो भवभव वषट् सन्निधीकरणम् ॥
अथ अष्टक । चाल "सगण हमध्यावें" की। | जल-जय निर्मल जल सुन्दर सुख कारी। जय जजत सुप्रासुक भरके झारी। सो प्रभुहम ध्यावें। जय __ पूजत इंद्र धनेंद्र जु आवें। जय तीर्थंकर चक्रेश्वर स्वामी । जय कामदेव अरजिन शिव गामी !
जी प्रभु हम ध्यावें ॥ ॐ ह्रीं श्रीअरनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय जन्ममृत्यु जरा रोग विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा। .
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चौबी. चंदन-जय चंदन घस गोसीर सुलावें । जय पूजत ही भव दाघ मिटावें । सो प्रभु हम ध्यावें। जय
पूजत इंद्र धनेंद्रजु आवें । जय तीर्थंकर चक्रेश्वर स्वामी । जय कामदेव अर जिन शिव गामी। पजन. संग्रह
जीप्रभु हम ध्यावें । ॐ ह्रीं श्रीअरनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण ५४४ ।
प्राप्ताय संसारा ताप रोग विनाशनाय चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा। अक्षत-जय चंद किरन सम अक्षत लीजे। जय ताके पुंज सुसन्मुख कोजे । सो प्रभु हम ध्यावें । जय
पूजत इंद्र धनेन्द्र जुआ। जयतीर्थंकर चक्रेश्वर स्वामी । जय कामदेव अर जिन शिव गामी। जी प्रभु हम ध्यावें ॥रों ह्रीं श्रीअरनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण
प्राप्ताय अक्षय पद प्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा। पुष्प-जय पंच वरण सुमन सुताजे । जय भेट धरत मकरध्वज भाजे। सो प्रभु हम ध्यावें । जय
पूजत इन्द्र धनेंद्र जुआ, जय तीर्थकर चक्रेश्वर स्वामी। जय कामदेव अर जिन शिव गामी ॥ जी प्रभु हम ध्यावें ॥ ॐ ह्रीं श्रीअरनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण
पंचकल्याण प्राप्ताय काम वाण विनाशनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा। नैवेद्य-जयसुर घृत कर पकवाननवीने। जय भरसु रकाबी पद चर चीने। सों प्रभुहम ध्यावें। जयतीर्थंकर
चक्रेश्वर स्वामी। जय कामदेव अरजिन शिवगामी ।जीप्रभुहमध्यावें॥डोंह्रीं श्रीअरनाथ जिनेंद्राय गर्भ,जन्म,तप ज्ञान निर्वाणपं: " ..
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चौबी० || दीप-जय दीपक मणिमय जोति प्रकाशे । जय ध्यावत ही मोह अंध विनाशे ॥ सो प्रभु हम ध्यावें । जय | पूजन | पूजत इन्द्र धनेन्द्र जु आवें । जय तीर्थकर चक्रेश्वर स्वामी । जय कामदेव अर जिन शिव संग्रह || गामी ॥ जी प्रभु हम ध्यावें ॥ ों ह्रीं श्रीअरनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण
., . पंचकल्याण प्राप्ताय मोहांधकार विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा। .. धूप-जय संग धनंजय धूप दहीजे। जय खेवत अष्ट करम सब छीजे ॥ सो प्रभु हम ध्यावें ॥ जय |
पूजत. इन्द्र धर्मेन्द्र जु आवें जय तीर्थंकर चक्रेश्वर स्वामी। जय कामदेव अर जिन शिव गामी
जी प्रभु हमध्यावें ॥ 0 ह्रीं श्रीअरनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण .... प्राप्ताय अष्ट कर्म दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा। . . फल-जय आंव कपित्थ लौंग भर थारी । जय पूजत शिव फल पाऊं भारी॥ सो प्रभु हम ध्यावें॥ जय
पूजत इन्द्र धनेंद्रजु आवें जय तीर्थंकर चक्रेश्वर स्वामी । जय कामदेव अर जिन शिव गामी॥ जी प्रभु हम ध्यावें । डों ह्रीं श्रीअरनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण
प्राप्ताय मोक्षफल प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा। अर्घ-जय जलपलादि बसु द्रव्य समारे । जय अर्घ वनाय चरण तले धारे॥ सो प्रभु हम ध्यावें ॥ जय
पूजत इंद्र धनेन्द्र जु आवे॥ जय तीर्थंकर चक्रेश्वर स्वामी । जय कामदेव अर जिन शिव गामी॥
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चौबी० / जी प्रभु हम ध्यवें ॥रों ह्रीं श्रीअरनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण ..पूजन | प्राप्ताय अनर्घ पद प्राप्तये अर्घ निर्वपामीति स्वाहा । .. संग्रह ::
... अथ पंचकल्यागक। छंद मोती दाम। ५४६ गर्भ-जफागण की तृतिया सितजान । वसे जिन मात सुगर्भ महान । तवे धनदेव करें नित सेव। अनेक
प्रकार उछाह भरेव ॥ ौं ह्रीं श्रीअरनाथ जिनेन्द्राय फाल्गुण शुक्ल तृतीया गर्भ कल्याणप्राप्ताय
अर्घ निवपामीति स्वाहा। ... जन्म-जये अरनाथ जिनंद अनुप । भये हरि चकित देख स्वरूप ॥ सदी तिथि चौदस जान अघन्न ।
जय होत भयो जग धन्न सुधन्न ॥ ॐ ह्रीं श्रीअरनाथ जिनेन्द्राय मार्गशिर शुक्ल चतुर्दशी जन्म
कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा । तप-तजी तुम नार सु छान हजार। कियो निज आतम सार विचार ॥ देशैं शुभ मारग मासजु
आय। चतुर्थम ज्ञान जिनंद उपाय ॥ ॐ ह्रीं श्रीअरनाथ जिनेन्द्राय मार्गशिर शुक्ल दशमी तपः ... प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।।
..... मभयो तब केवल भानु
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चौबा
पूजन
संग्रह
निर्वाण-स्योग निरोध किये अरि घात। मावस चैत जु मास सुहात ॥ वरी शिव नारि भये जब .. सिद्ध । जजै हम चर्न लहें सब ऋद्ध ॥ ॐ ह्रीं श्रीअरनाथ जिनेन्द्राय चैत्र कृष्ण अमावस्या मोक्ष कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।
... अथ जयमाला। दोहा। महाअर्घ-अष्टादश तीर्थेश पद, सप्तम चक्रीदेव । लह मनोज पद चौदमो, करूं सुतुम पद सेव ॥ ..
चाल पंचकल्याणक की-अपराजित तज के भये, गजपुर नगर मझार । मित्रादेवी कूष में, आये जिन सुख कार ॥ तार तार अर नाथ जी ॥२॥ जन्मे युत त्रय ज्ञान.जी, दश अतिशय ले आप। कनक वरण तन सोहनो, उन्नत तीस सुचाप ॥ तार तार अर नाथ जी ।। ३ ॥ बरष चौरासी सहस की, आयु लही जगदीश। पाव गई कुमरा पने, राज कियो फिर.ईश ॥ तार तार अर नाथ जी ॥४॥ सहस बयालिस भोगियो, सहस छानवें नार। चक्रवर्ति पद की विभो, गिनत न पावें पार ॥ तार तार अरनाथ जी॥ ५॥ कारण लख विरकत भये, जगत अनित्य विचार। लौकांतिक सुर आय के, नमत भये पद सार ॥ तार तार अर नाथ जी ॥६॥ जंवू तरु तल जाय के, सहस: भूप ले संग।! पण मुष्टी कच लौंचियो, षष्ठम धार अभंग ॥ तार तार अर नाथ जी॥ ७॥ नाग पुरी नगरी गये अशन हेत महाराज । अपराजित कर पै दियो, बरखे रतन समाज ॥ तार तार अरनाथ जी ॥८॥
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चौबी० षोडशवर्ष किये भले, उग्र उग्र तप घोर । घोर कर्म सब जारके, पायो केवल भोर ॥ तार तार अरनाथ पूजन जी॥ योजन साढे तीन ही, समवशरण रच देव । सप्त भंग बाणी खिरे, सुन सुर नर शरधेव । तार मंग्रह | तार अर नाय जी ॥ १०॥आरज देशन के जिते, बोधे भव्य अपार । चार संघ सोहत भले, मुनि ५४८ आदिक व्रत धार ॥ तार तार अरनाथ जी ॥ ११ ॥ वरष इकीस हजार ही, कर उपदेश महान ।
सम्मेदागिरि आय के, योग निरोध सुठान ॥ तार तार अरनाथ जी ॥ चार अघाती हानके, जाय वरी शिव नार । लोकालोक निहारियो, पायो भव दधि पार ॥ तार तार अरनाथ जी ॥ १३ ॥ बखतावर विनती करे, सुनियें दीन दयाल ॥ रतन तने दुख मेटिये, आवागमन सुटाल॥तारतार अरनाथ जी॥
. घत्ताछन्द-अरनाथ सुवाणी सुन भव प्राणी, आरति हानी सुख दानी। यह बिनती मेरी निज हित केरी, हर भव फेरी तुम ज्ञानी ॥ १५ ॥ ौं ह्रीं श्रीअरनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान,
निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय अनर्घ पद प्राप्तये महाऽधं निवपामीति स्वाहा। अथ आशीर्वादः । चौबोला चाल-जो पूजे मन लाय पाय अर जिनवर स्वामी। पुत्र मित्र धन लहैं । .. सार जग में हे नामी । जो वाचे मन लाय त्रास जम के मिट जावें । ते पावें भव पार फेर जग . में नहिं आवें॥ . इत्याशीर्वादः । इति श्रीअरनाथजिन पूजा संपूर्णा ।। १८॥
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I
मझार।
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पूजन
संग्रह
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चौबी० १९ अथ मल्लिनाथ जिन पूजा प्रारभ्यते।
बखतावरसिंह कृत (कवित्त) || स्थापना-अपराजित सु विमान त्यागकर आये मिथिला नगर मझार। . - ५४९
कुंभराय राजा तहां सोहे, प्रजावती तिन के पट नार ॥ तिन के घर तुम जन्म लियो श्रीमल्लि जिनेश्वर करुणा धार। सो प्रभु तिष्ठ आय यह थानक दास तने सब कर्म निवार ॥१॥ ..
ओं ह्रीं श्रीमल्लिनाथ जिनेंद्र अत्रावतराऽवतर संवौषट् आह्वाननम् । ॐ ह्रीं श्रीमल्लिनाथ जिनेंद्र अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम् । ओं ह्रीं श्री मल्लिनाथ जिनेंद्र अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् संनिनधी करणान् ।
अथ अष्टक । छंद गीता॥ जल-पंचम उदधि को नीर निर्मल भर सुझारी लीजिये, तुम चरण के ढिग धार देऊ तृषानाशन
कीजिये । श्रीमल्लि जिनवर अतुल योधा कामतें प्रभु जय लही, तिहुँ लोक में तुन सम न देखे शरण चरणन की गही। ॐ ह्रीं श्रीमल्लिनाथ जिनेंदाय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय जन्म मृत्यु जरा रोग विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा ॥ :
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पूजन
संग्रह ५५०
चौबी० चंदन-चौपाई। चंदन मलयागिरि घसलाय, कनक कटोरी भर सुखदाय । मल्लि जिनेश्वर के पदसार, । ..
चरचूं मन बच तन हितधार। डों ड्रीं श्रीमल्लिनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान निर्वाण ।
पंचकल्याण प्राप्ताय संसारा ताप रोग विनाशनाय चन्दनं निर्वपामोति स्वाहा ॥ ... अक्षत-छन्द(योगीरासा) मुक्ता की सम उज्वल अक्षत पावन धोय सुलीनें । कनक रकाबी में शुभ कर
के पुंज जो सन्मुख कीनें । मल्लिजिनेश्वर मदन हनेश्वर ध्यावत सर नर सारे। रत्नत्रय निधि देऊ अनूपम भव दधितें भवितारे । उौं ह्रीं श्रीमल्लिनाथ जिनेन्द्राय गर्भ,जन्म,तप, ज्ञान, निर्वाण
पंचकल्याण प्राप्ताय अक्षयपद प्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा । पुष्प-(चाल अठाई पूजा को) चंपादिक फूल मंगाय तापे अलिछाये । यह काम बान नसजाय तुम पद
को ध्याये । श्रीमल्लि जिनेश्वर देव छबि तेरी प्यारो । तुम बालपनें महाराज काम व्यथा टारी। • ह्रीं श्रीमल्लिनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय काम वाण
विनाशनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा। नैवेद्य-(छन्द बसंत तिलका) खाजेजुधेवर अपार मंगाय ताजे,पूजं जिनंद तुम पादछुधादि भाजे । तोही
समान तिहुँ लोक विषेन हेरा,श्रीमल्लिनाथ भव वासनिवार मेरा। रोह्रीं श्रीमल्लिनाथ जिनेन्द्राय .
गर्भ, जन्म,तप,ज्ञान निर्वाण पंचकल्याण प्राप्तायक्षधारोग विनाशनाय नैवेयं निर्वसमीति स्वाहा। दीप-(छंद त्रिभंगी) दीपक उजियारं अंध निवारं बहु सुख धार जोति धरे! पद अंबुज थारे ता ढिग
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चौबी०
पूजन
संग्रह
धारे ज्ञान उजारे मोह हरे। श्रीमल्लिजिनेशं मदन हनेशं जगत महेशं तीर्थेशं । भवि कमल दिनेशं कमद निशेशं भव पोतेशं परमेशं। डों ह्रीं श्रीमल्लिनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप,
ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय मोहांधकार विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा। धप-(सुंदरी छंद) गंध दश बिध की अति लेय हूं, अमर जिह्व विषे धर खेय हूं। मल्लि जिनवर के पद |
ध्यावते, अष्ट कम संबी उड़ जावत। ॐ ह्रीं श्री मल्लिनाथ जिनेंद्राय गर्भ, जन्म, तप ज्ञान,
निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय अष्ट कर्म दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा। | फल-(कोशमालती छंद) एला केला दाख छुहारा,पिस्ता श्रीफल क्षारक लाय। मोक्ष महा फल चाखन
कारण, पूजू तुम को शीस निवाय । मल्लिनाथ जिन काम बिडारी, दीने आठों कर्म निवार । .. मोक्षपुरी में बासा कीना गाऊं तुम गुण वारंवार । डों ह्रीं श्री मल्लिनाथ जिनेन्द्राय गर्भ,जन्म || ...
तप, ज्ञान निर्वाण, पंचकल्याण प्राप्ताय मोक्ष फल प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा। | अर्घ-(विजयानी सेठ की चाल) जल फल वसुजी आठों द्रव्य समार के। कर अर्घ सुजी तुम सन्मुख |
ही धार के । श्रीमल्लि सुजी डूबत मोहिनिकारिये । शिव बास सो जी ता मधि वेग सु धारिये।
रों ह्रीं श्री मल्लिनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म. तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय अन_पद · प्राप्तये अर्घ निर्वपामीति स्वाहा॥
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चौबी०
. अथ पंचकल्याणका दोहा। - गर्भ-अपराजित स विमान तंज, परजावति उर आय । चैत शुकल एक भली, जजे चरण हरषाय । संग्रह
. ॐ ह्रीं श्रीमल्लिनाथ जिनेंद्राय चैत्रशुक्ल प्रतिपदा गर्भ कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा। .. जन्म-जनमें मंगशिरशुक्ल ही, संख्या रुद्रजिनेश। न्हवन कियो गिरि मेरुपै,अमर वृंद अमरेश। डों ह्रीं
श्री मल्लिनाथ जिनेंद्राय मार्गशिर शुक्ल एकादशी जन्म कल्याणप्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा तप-मगसिर ग्यारस शुक्ल ही, बालपनें मल्लिनाथ । छाड परिग्रह बन वसे, हम नावें निजमाथ । डों ह्रीं
श्री मल्लिनाथ जिनेंद्राय मार्गशिर शुक्ल एकादशी तपः कल्याण प्राप्ताय अर्घनिर्वपामीति स्वाहा। ज्ञान-पौष श्याम दुतिया हने, चार कर्म दुःख दाय। केवल ज्ञान प्रकाशियो, चतुरानन दरशाय । डों ह्रीं
श्री मलिनाथ जिनेंद्राय पौष कृष्ण द्वितीया ज्ञान कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा। निर्वाण-शुकला फागुण पंवमी लहो अचल पद देव।गिरि समेद पुजू मही, अष्ट द्रव्य शुभलेवाओं ह्रीं
श्री मलिनाथ जिनेंद्राय फाल्गुण शुक्ल पंचमी मोक्ष कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।
....: अथ जयमाला। दोहा । .... महा अर्घ-शिशु बय तें मलिनाथ जी,पालो शील अखंड । राज भोग छोडेसबै, जीतो काम प्रचंड ॥१॥ : नभ में उडुगण हैं जिते, का पें गिने सुजाय ।त्यों तुम गुणमाला विविध, हम से किम वरनाय ॥२॥
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पद्धडी छन्द-जय केवल ब्रह्मा विराजमान, सब योगीश्वर ध्यावें महान । तुम छालिस गुण न|| पुरण जिनेश, परमातम आतम श्रीमहेश ॥३॥ भव वारिधि तारन को तरंड, तुम हनो ब्रह्मसुत अति
| प्रचंड । शरणा गत पालन को दयाल, सुर आवत तुम पद नमत भाल ॥४॥ तुम अजर अमर पद | देन हार,भव तारण को तुम बिरद सार । जय राग द्वेष मद मोह चूर, जयऽनंत चतुष्टय गुणन पूर॥५॥ जय चतरानन दीखत जिनंद, जय चौंसठ चमर ढरें अमंद । जय द्वादश सभा बिराजमान, गणईस अठाइस हैं निधान ॥६॥ ते झेलत हैं बाणी त्रिकाल, भवि सुन कर टारत मोह जाल। जय संघ सुचार प्रकार एव, तिन सहित सो विहरत आप देव ॥७॥ दो शतक घाट उनतिस हजार, मुनि राज महा गुण के भंडार । जे धरत श्वेत साडी प्रमान, अजया पचपन सुहजार जान ॥८॥ इक लक्ष शरावक धर्म लीन, धार सम्यक् सबही प्रबीन। लख तीन जुश्रावकनी उदार,मिथ्यात्व त्याग चित बरत धार ॥९॥ देवी अर देव समूह आय; तिनकी संख्या बरनी न जाय । संख्याते हैं तिथंचजोन, तज वैर भाव धारें सु मौन ॥ १०॥ इन आदिक को भव पार लाय, सम्मेद शैलते शव लहाय । हम याचत हैं तम पैसदेव, भव भव में पाऊचरण सेव ॥११॥ यह मोकों हे किरपा निधान, दीजेजु अनुग्रह चित्त !! ठान । बखता रतना को भृत्य जान, मेरी बिनती कीजे प्रमान ॥ १२ ॥ .. | धत्ता छन्द-वरणत गुण थारे गण धर हारे मल्लि जिनेश्वर काम हरं। भव दधितें तारो सुख विस्तारो ||
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चौवी० ॥
राग द्वेष निरवार करं॥ १३ ॥ ० ह्रीं श्री मल्लिनाथ जिनेंद्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पूजन ।।... पंचकल्याण प्राप्ताय अनर्घपद प्राप्तये महाऽधं निर्वपामीति स्वाहा। संग्रह
अथ आशीर्वादः-सवैया ३१वां। बंश इक्ष्वाक माह प्रगट भये कुंभराय ताके शुभ नंदन श्रीमल्लिनाथ
जानको तिन के चरणारविंद सेवत सुरेंद्रचंद्र ध्यावत मुनिंद्रवृंद नाना थुतिठान के। कोई भव्य जीव अष्ट दरव शुद्ध लाय पूजा को रचाय बहु भक्ति उर आन के । ताके शुभ पुण्य की सुमहिमा न कही जाय सो लहैं मोक्ष थान सर्व कर्म हानक॥१४॥इत्याशीर्बादः।
' इति श्रीमल्लिनाथ जिन पूजा संपूर्णा१९॥
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चौबी० पूजन
संग्रह
पता
२० अथ श्रीमुनिव्रतनाथ जिन पूजा प्रारभ्यते॥
बखतावर सिंह कृत । कडषा छंद ॥ स्थापना-स्वर्गप्रानत तजो सब इंद्रन जजो आय हरि बंश उद्योत कीना। ।
मात पद्मावती पिता सुहमित्त जी धनु तन बीस छवि श्याम लीना ॥ अंक कच्छप सही अतुल शोभा लहीनगर राजगृही सुर रचीना।
थाप के नुति करूं चरण सिर पर धरूं कीजिये नाथ मम कर्म क्षीना ॥१॥ ओं ह्रीं श्री मुनि सुव्रतनाथ जिनेंद्र अत्रावतराऽतवर संवौषट् आह्वाननम् । ओं ह्रीं श्री मुनि सुव्रतनाथ जिनेंद्र अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम् । . ओं ह्रीं श्री मुनिसुव्रतनाथ जिनेन्द्र अत्र मम संन्निहितो भव भव वषट् सन्निधी करणम् ॥
(अथअष्टक ) गीता छंद। जल-गिरि हिमन कुल को नीर निर्मल तथा सोमथकी करो, भरग कर तुम चरण पूजू जन्म मरण
जरा हरो,तुम सम न तारण तरण कोई अहो मुनिसुब्र धनी। हरि बंश नभ में आप शशि सम कांति सोहे अतिघनी ॥ 0 ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंच कल्याण प्राप्ताय जन्म मृत्यु जरारोग विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा ॥
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चौबी०चंदन-गोशीर्ष चंदन और कुंकुम वार संग घसाइयों, तुम चरण पूजं धार देके मोह ताप मिटाइयो।। पूजन
तुम सम न तारण तरण कोई अहो मुनिसुव्रत धनी, हरि वंश नभ में आप शशि सम कांति
तुम समनतातरणका संग्रह सोहे अतिघनी॥ ॐ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतनाथ जिनेंद्राय गर्भ, जन्म, तप,ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण
प्राप्ताय संसारा ताप रोगविनाशनाय चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा ।। अक्षत-मुक्ता समान अखंड अक्षत चंद की दुति को हरें, मम अषेपद दीजे जिनेश्वर पुंज तुम आगे
. धरें । तुम सम न तारण तरण कोई अहो मुनिसुव्रतधनी, हरि वंश नभ में आप शशि सम १. कांति सोहे अति घनी ॥ ॐ ह्रीं श्री मुनिसुव्रतनाथ जिनेंद्रीय गर्भ, जन्म,तप, ज्ञान, निर्वाण
पंच कल्याण प्राप्ताय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा। 'पुष्प-मंदार तरुके कुसुम प्राशुक गंध पै अलि छाइये, सो लेय तुम ढिग चरण धारे मदन वान नसाइये।
तुम सम न तारण तरण कोई अहो मुनिसुव्रत धनी । हरि वंश नभ में आप शशि सम कांति सोहे अति धनी ॥ ॐ ह्रीं श्री मुनिसुव्रतनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंच
कल्याण प्राप्ताय काम वाण विनाशनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा॥ नैवेद्य-खगधीश सुरनर असुर सबको क्षुधा वेदन दुख करो। पकवान तैं तुम चरण पूजंक्षुधा नागन
को हरो, तुम सम न तारण तरण कोई अहो मुनिसुव्रत धनी, हरिवंश नभ में आप शशि सम कांति सोहे अति घनी ॥ॐ ह्रीं श्री मुनिसव्रतनाथ जिने ये
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पौवी०
पंच कल्याण प्राप्ताय क्षुधा रोग विनाशनाय नैवेयं निर्वपामीति स्वाहा ॥
दीप-यह मोह अंध सुज्ञान ढापो.आप पर नहि भास ही। मणि दीप जोय सु चरण पूजू करो ज्ञान पूजन संग्रह
प्रकाश ही ॥ तुम सम न तारण तरण कोई अहो मुनिसुव्रत धनी। हरिवंश नभ में आप शशि ५५७
सम कांति सोहे अति घनी॥ . डों ह्रीं श्री मुनि सुव्रतनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान,
निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय मोहांधकार विनाशाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा ॥ .. धूप-यह आठ कर्म अनादि ही के बहुत दुख मोको करो, यातें सुगंधी धूप खेऊ अष्ट दुष्ट सबै हो।
तुम सम न तारण तरण कोई अहो मुनिसुव्रत धनी। हरिवंश नभ में आप शशि सम कांति सोहे अति घनी ॥ ॐ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण
प्राप्ताय अष्ट कर्म दहनाय धूपं निर्वपानीति स्वाहा ॥ ... फल-पुरषार्थ रोको अंतराय सु मोह दुर्बल जान के, शिवथान दो तुम चरण अरचूं फल अनूपम आन
के। तुम सम न तारण तरण कोई अहो मुनिसुव्रत धनी, हरिवंश नभ में आप शशि सम कांति सोहे अति घनी ॥ ॐ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतनाथ जिनेंद्राय गर्भ, जन्म,तप, ज्ञान, निर्वाण पंच कल्याण
प्राप्ताय मोक्ष फल प्राप्तये फलंनिर्वपामीति स्वाहा ॥ | अर्घ-जल चंदनाऽक्षत सुमन, नेवज दीप गंध फलोघ ही। भरके रकाबी अरघ लीजे, जजू हरत्रय
'रोग ही । तुम सम न तारण तरण कोई अहो मुनिसुव्रत धनी। हरि वंश नभ में आप शशि सम
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चौबी० - कांति सोहे अति घनी ॥ उौं ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतनाथ ॥ जिनेंद्राय गर्भ, जन्म, तप, जान, निर्वाण पूजन पंच कल्याण प्राप्ताय अनर्घ्यपद प्राप्तये अर्घ निर्वपामीति स्वाहा ॥ ..... संग्रह
अथ पंचकल्याणक । चाल त्रिभुवन गुरुस्वामी की। गर्भ-दुतिया तिथी कारीजी, सावन शुभ वारी जी। गर्भागम धारी, प्राणत त्याग के जी। पद्मावत - माईजी शची पूजनः आई जी। सेऊं सुख दाई चरणन लागके जी ॥ ॐ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतनाथ
जिनेंद्राय श्रावण कृष्ण द्वितीया गर्भ कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा॥ जन्म-अतिशय दश गायेजी, त्रयः ज्ञान सुहायेजी.। निज साथ लाये, जन्म तने दिनाजी । बैशाख
अंधारीजी, दशमी सुरसारीजी। गिरि शीत मझारी, न्हवन कीयो जिनाजी । ॐ ह्रीं श्री मुनि
सुब्रतनाथ जिनेंद्राय बैशाख कृष्ण दशमी जन्म कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा ॥ : तप-संसार असाराजी, सब अनित विचाराजी । दशमी तिथकारी, जान विशाख की जी । कानन तप
धारेजी, सबवसन उतारे जी। जब आरतिटारे, शिव अभिलाख की जी। ॐ ह्रीं श्रीमनिसुब्रत
नाथ जिनेंद्राय वैशाख कृष्ण दशमी तपः कल्याण प्राप्तायः अर्घ निर्वामीतिः स्वाहा ॥ .: ज्ञान-वैशाख महीनाजी, आतम चित. दीनो जी। कलि' नौमी दिन: लीना, पंचम ज्ञान को जी। वर;
धर्म बखानाजी, भवि जीवन जाना जी जिन देवमहाना, सब सख दीजिये जी॥ ॐ ह्रीं ।
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चौबी
श्रीमुनिसुव्रतनाथ जिनेंद्राय वैशाख कृष्ण नवमी ज्ञान कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीतिस्वाहा ॥ पूजन || निर्वाण-अलि फागुण आईजी, द्वादश सुख दाईजी। सब कर्म नसाई, गिरिसम्मेदतें जी। तुम सिद्ध
कहायेजी, सब अलख लखाये जी। हम माथ नवाये, छडावो खेदते जी ॥ ॐ ह्रीं श्री मुनि* सुब्रतनाथ जिनेंद्राय फाल्गुण कृष्ण द्वादशी मोक्ष कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा॥.
अथ जयमाला। दोहा। महा अघ-इंद्रादिक नख मकट में, देखत आनत आय । छवि सुंदर मनको हरे, कोटिक भानुलजाय॥
चाल अहो जगतगुरु की-प्राणत स्वर्ग बिहाय मात श्यामा उर आये । तात सुमंत महान नगर कौशाग्र सुहाये ॥सेवे माता पाय सुरतिय आय नवीनी । नभते रतन अपार धनद ने बरषा कीनी ॥२॥ तुम जन्में जग ईश सकल जग मंगल छाये, आसन कंपित जान सबै सुर हर्षित आये। लेय गये गिरि शीस न्हवन कीनो अति भारी, कलस हजार भराय इंद्रने धारा ढारी॥३॥ कर शृंगार महान नाम मुनिसुव्रत दीना, सौंप मात हरषाय नृत्य तहां तांडव कीना। धनद करे नित सेव वस्त्र आभूषण लावे, हय गय हंसम पूरदेव बहुरूप बनावें ॥ सहस तीस तुम आय धनुषबपुबीस उचाई, साढे सात हजार कुमर पन माह विहाई। फेर कियो तुम राज बर्ष पंदरह सु हजारा, कृष्ण दसैं बैशाष सबै जग अथिर विचारा ॥ ५॥ देव ऋषी सब आय चरण तल पुष्प चढाये, संबोधन कह बैन नमन निजथान सिंधाये । निर्जर चार प्रकार सकल इंद्रादिक आये, रतन जडित सुखपाल तास मे तुम चढ धाये ॥६॥
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चौबी० पहुंचे विपिन मझार सहस राजा संग लीनी, दीक्षा निज हितकार दिगंबर मुद्रा चीनी । मन परजय पूजन
लहज्ञान बिहरत इकल विहारी, ग्यारह बरष प्रमान प्रभू तुम मौन सुधारी ॥७॥ पायो केवल संग्रह
ज्ञान लोका लोक निहारे, दे उपदेश महान भवोऽधित भवितारे। मास रही इक आय गिरी सम्मेद पधारे, योग निरोध सुठान चारों कर्म निवारे ॥ ८॥ सिद्ध भये तुम देव तब इंद्रादिक आये, कीनो मोक्ष कल्याण सबै मिल मंगल गाये । कीनो अंक सुरेन्द्र तास शिलशिव तुम पाई। पूजत हैं भवि जाय चरण तुमरे हरषाई ॥९॥ ___ दोहा-यह गुण पूरन देव की गुणमाला अविकार, जो जन धारे कंठ में ते पावै भव पार ॥१०॥ ॐ ह्रीं श्री मुनिसुव्रतनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंच कल्याण प्राप्ताय अनर्घ्य पद प्राप्तये महाघ निर्वपामीति स्वाहा ॥ ____ अथ अशीर्वादः-कुंडलिया छंद । पूजा मुनिसुव्रत तनी जो कर हैं मन लाय, अथवा अनुमोदन करें पढ़े पाठ चित लाय । पढ़ें पाठ चितलाय तास घर संपति भारी, पुत्र मित्र सुख लहें बहुत जन आज्ञा कारी॥ कह बखतावर रतन तास सम नर नहिं दूजा,मन बच काय लगाय करें जो निशि दिन पूजा ॥ ११॥ इत्याशीर्वादः । इति श्रीमुनिसुव्रतनाथ जिन पूजा संपूर्णा ॥२०॥
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पूजन संग्रह
चौबी० २१ अथ श्रीनमिनाथजिन पूजा प्रारभ्यते ॥
(वखतावरसिंहकृत) अडिल। .. स्थापना-अपराजित तज नाथ नगर मिथिला सही। विजियारथ के नंद मात विप्रा लही।
· पंदरे धनुष प्रमाण हेम तन पाय जी। हम पूजें मन लाय तिष्ठ इत आय जी॥१॥ रों ह्रीं श्रीनमिनाथ जिनेन्द्र अत्रावतराऽवतर संवौषट् आह्वाननम् । ॐ ह्रीं श्रीनमिनाथ जिनेन्द्र अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठाठः स्थापनम्। ओं ह्रीं श्रीनमिनाथ जिनेन्द्र अत्र मम संन्निहितो भवभव वषट् संन्निधी करणम् ॥
., अ अष्टक। अडिल । जल-हिमवन शैल उतंग थकी गंगापरी। ताको शीतल वारि कनक झारी भरी ॥ पूजा श्रीन मिनाथ
चरणकी कीजिये। लखचौरासीयोन जलांजलि दीजिये ॥ोंह्रीं श्रीनमिनाथ जिनेन्द्रायगर्भ,जन्म, .. तप,ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय जन्ममृत्युजरा रोग विनाशनाय जलं निर्वपामीतिस्वाहा। चंदन-चंदन अर कर्पूर सु कुंकुम सानके । चरचं चरण सरोज हरष उर आन के ॥ पूजा श्रीनमिनाथ
चरण की कीजियोलख चौरासी योनजलांजलि दीजिये॥ॐ ह्रीं श्रीनमिनाथ जिनेन्द्रायगर्भ,जन्म,
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चोचो पूजन | संग्रह ५६२
तप,ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय संसारा ताप रोग विनाशनाय चन्दनंनिर्वपामीति स्वाहा। अक्षत-दोनों अनी समान सुअक्षत लीजिये। भर के सुवरण थालसु पुंज धरीजिये॥ पूजा श्रीनमिनाथ
चरण की कीजिये । लख चौरासी योन जलांजलि दीजिये। उौं ह्रीं श्रीनमिनाथ जिनेन्द्राय
गर्भ,जन्म,तप,ज्ञान,निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय अक्षय पद प्राप्तये अक्षतान निर्वपामीतिस्वाहा। पुष्प-कुसुम अनेक प्रकार अनूपमसार है, अलि समूह गुंजार करत भर थार है ॥ पूजा श्री नमिनाथ
चरण की कीजिये।लख चौरासी योन जलांजलि दीजिये ॥ डों ह्रीं श्रीनमिनाथ जिनेंद्राय गर्भ,जन्म
तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय कामवाण विनाशनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा । नैवेद्य-नेवज बहुपरकार सुमन ललचावनी। रसना रंजन लेय क्षधादिभगावनी॥ पूजा श्रीनमिनाथ चरण ... की कीजिये।लख चौरासी योन जलांजलि दीजिये ॥ ॐ ह्रीं श्रीनमिनाथ जिनेंद्राय गर्भ,जन्म,
तप, ज्ञान निर्वाण पंचकल्याण प्राप्नाय क्षुधा रोग विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपानीति स्वाहा । दीप-जगमग जगमग जोत कपूर बलाइये। कंचन दीपक माहि सुध्वांत नसाइये। पूजो श्रीनमिनाथ
चरण की कीजिये । लख चोरासी योन जलांजलि दीजिये॥ ॐ ह्रीं श्रीनमिनाथ जिनेंद्राय गर्भ,
जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय मोहांधकार विनाशनाय दीपं निर्वपामीतिस्वाहा धूप-कालागर कशमीर सुचंदन लेयके ।अमर जिह्वमें धार धनंजय खेय के ॥ पूजा श्रीनमिनाथ चरण
की कीजिये । लख चौरासी योन जलांजलि दीजिये॥ ॐ श्रीन - १ . में
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चौबी०
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तप, ज्ञान, निर्वाण पंच कल्याण प्राप्ताय अष्ट कर्म दहनाय धूपं निवपामीति स्वाहा । .. फल-दाख छुहारा एला केला लाइये । सरस मनोहर थार भरे सुचढाइये ॥ पूजा श्रीनमिनाथ चरण
की कीजिये । लख चौरासी योन जलांजलि दोजिये ॥ॐ ह्रीं श्रीनमिनाथ जिनेंद्राय गर्भ, जन्म
तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय मोक्ष फल प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा। अर्घ-जल फल आठों द्रव्य मिलाय हूं । स्वर्ण रकाबी मांहि सुअर्घ बनाय हूं । पूजा श्रीनामनाथ चरण
की कीजिये । लख चौरासी योन जलांजलि दीजिये ॥ ॐ ह्रीं श्रीनमिनाथ जिनेंद्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय अनर्घ पद प्राप्तये अर्घ निर्वामीति स्वाहा।
अथ पंचकल्याणक । दोहा। गर्भ-अपराजित तजके प्रभु, विप्रा गर्भ मझार । आश्विन द्वितिया कृष्ण ही, लयों जजू पद सार॥
- ॐ ह्रीं श्रीनमिनाथ जिनेन्द्राय आश्विनकृष्ण द्वितिया गर्भ कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा जन्म-दशमी असित आसढ ही, जन्मे श्रीनमि देव । मघवासुर गिरि पर जजे, हम पूजें वसुभेव ॥
ॐह्रीं श्रीनमिनाथ जिनेन्द्राय आषाढ कृष्णदशमी जन्म कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वामीति स्वाहा तप-जन्म तनो दिन आइयो, तप कीनो बन जाय। पण मुष्टी कचलौंचियो, आतम ध्यान लगाय॥
ॐ ह्रीं श्रीनमिनाथ जिनेंद्राय आषाढ कृष्णदशमी तपः कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।
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चौबी० . ज्ञान-सित मगसिर ग्यारस हने, घाति कर्म दुःख दाय । केवल ज्ञान उपाइयो, वृष भाषा दुःखदाय। पूजन... ॐ ह्रीं श्रीनमिनाथ जिनेंद्राय मार्गशिरशुक्ल एकादशीज्ञानकल्याणप्राप्ताय अर्घनिर्वपामीतिस्वाहा संग्रह निर्वाण-चतुर्दशी वैसाख तम, हन अघाति लह मोष, सम्मेदाचल तें गये, भये गुणन के कोष॥ ५६४ . ॐ ह्रीं श्रीनमिनाथ जिनेंद्राय वैशाख कृष्ण चतुर्दशी मोक्ष कल्याणप्राप्तायअर्घ निर्वामीतिस्वाहा
अथ जयमाला ।दोहा। महाअर्घ-इंद्र नरेन्द्र फणीन्द्र नर,स्तुती करें जु वनाय । गुण वारिधि नमिनाथ के, पार न पाये जाय॥१॥ पै तुम भक्ति सुहिय मम, प्रेरत आठों जाम । मति माफिक कछु कहत हूं, गुण माला गुण धाम ॥२॥
छन्द पद्धड़ी-जयजय जयजय नमिनाथ देव । सुर नर इंद्रादिक करत सेव ॥ दश सहस वरष की आयु पाय । धनु पंद्रह कंचन वरण काय ॥ ३॥ जय लक्षण पंकज खंड सार । उपमा वरनत पाऊ न पार । जय तपकर चारों अरि प्रजार । पायो तब केवल पद उदार॥४॥ तव समव सरन रचना समार। कीनी इक छिन में धनद त्यार ॥ दोयोजन की इक शिल सुधार,नीली अति सोहे गोल कार ॥ ५॥ अवनी तें ढाई कोश जान । उन्नत सिवान सोहे महान ॥ ताप रचना बहु भांति कीन धूली शालादिक का प्रवीन ॥ ६ ॥ तहां समवसरण में इंद्र आय । स्तुति कीनी मस्तक नवाय । जय तुम देवन के देव इष्ट । भव दधि तारन म... . . ट ।
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चौबो
पूजन
संग्रह
भव्य कंज को रवि विशाल ॥ इत्यादिक थुति कीनो सुरेश । फिर तुम विहरे भारज सुदेश ॥ ८॥ गण धर सतरै चव ज्ञान पूर । ऋषि गण तहां बीस हजार सूर ।। अजया पैंतालिस सहस संग । इक लाख सरावक व्रत अभंग ॥ ९॥ श्रावकनी लख त्रय, शील वान। सम्यक्त्व सहित किरपा निधान ॥ चवसंग सहित भवि वृन्दतार। आये सम्मेदाचल पहार ॥ १० ॥ इक मास रही तब शेष आय । चव कर्म अघाती तब षिपाय ॥ इक समें माहि निरवान थान, पायो तुम आवा गमन हान ॥ ११॥इक्ष्वाक वंश कीनो उजाल । सो नमि जिनवर' मम दुःख टाल । बखता रतना पै हो दयाल। दीजे शिव संपति कर निहाल ॥ १२ ॥
. घत्ताछन्द-जय जय नमि दाता सब जगत्राता कर्म जुधाता मोक्ष वरी। सोई गुण धारी टेर हमारी मति अनुसारी अर्ज करी ॥ १३॥
ॐ ह्रीं श्रीनमिनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय अनर्घ
पद प्राप्तये महाघ निर्वामीति स्वाहा।
अथ आशीर्वादः । सोरठा-जो पूजे नमि देव, अष्ट द्रव्य शुभ लायके। इंद्रादिक तिन सेव, | करें सुनिश दिन आय के ॥ १४॥ इत्याशीर्वादः । इति श्रीनमिनाथजिन पूजा संपूर्णा ॥ २१ ॥
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चौबी.
पजन
संग्रह
२२ अथ श्रीनेमिनाथजिन पूजा प्रारभ्यते।
(बखतावरसिंहकृत) कवित्त। स्थापना-ध्यान रूप हय पर सवार है रतनत्रय सिर ढोय संभार ।
दशधा धर्म कियो बक्तर शुभ संवर अमिकी तीक्षण धार ॥ __ अनुभवने जाकर गह लीनों कर्म अरी लीने ललकार। . शिव देव्या नंदन नेमीश्वर थापन करूं मंत्र उच्चार ॥ · ॐ ह्रीं श्रीनेमिनाथ जिनेन्द्र अत्रावतराऽवतर संवोषट् आह्वाननम् ।
ॐ ह्रीं श्रीनेमिनाथ जिनेन्द्र अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठाठः स्थापनम्। ॐ ह्रीं श्रीनेमिनाथ जिनेन्द्र अत्र मम संन्निहितो भवभव वषट् संन्निधोकरणम् ।
- अथ अष्टक । बसंत तिलका छंद। जल-क्षीरोदधि परम नीर मंगाय लीनो । चामीर कुंभ भर चरण सुधार दीनो ॥ श्रीनेमिनाथ तुम बाल
सुब्रह्मचारी । पूजू पदार युग कंज प्रमाद टारी॥ ॐ ह्रीं श्रीनेमिनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप,ज्ञान,निर्वाण पंचकल्याणप्राप्ताय जना . . . . .
o
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. चौबी० || चंदन-गोशीर चंदन कपूर घसाय लायो। चर्चा करी चरण पास अनंद पायो ॥ श्रीनेमिनाथ तुम बाल
पूजन .. सुब्रह्मचारी । पूजू पदार युग कंज प्रमाद टारी॥ ॐ ह्रीं श्रीनेमिनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, संग्रह तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय संसारा तापरोग विनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।
अक्षत-श्रीचंद जोत सम अक्षत श्वेत जो हैं । धारे जु पुंज तुम अग्र अपार सो हैं॥श्रीनेमिनाथ तुम बाल
सुब्रह्मचारी। पूजं पदार युग कंज प्रमाद टारी॥ॐ ह्रीं श्रीनेमिनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप,
ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय अक्षय पद प्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा। पुष्प-बेलाजुही सुमन प्राशुक सार लीने । सोहैं सुरंग भर अंजलि भेद कीने ॥ श्रीनेमिनाथ तुम वाल
सुब्रह्मचारी । पूजू पदार युग कंज प्रमाद टारी ।। ॐ ह्रीं श्रीनेमिनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म,
तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय कामवाण विनाशनाय पुष्पं निर्वामीति स्वाहा। | नैवेद्य-फेनी सुहाल वर मोदक सद्य ताजे। मोहे सुनैन तिस देखत भूखभाजे ॥ श्रोनेमिनाथ तुमपाल
सुब्रह्मचारी। पूजू पदार युग कंज प्रमाद टारी ॥ ॐ ह्रीं श्रीनेमिनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्न, तप
ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय क्षुधारोग विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा। दीप-बाती कपूर कर कंचन दीप माही । दीने प्रजार तुम मंदिर मांह साईं॥ श्रीनेमिनाथ तुम बाल
सुब्रह्मचारी। पूजू पदार युग कंज प्रमाद टारी ॥ ॐ ह्रीं श्रीनेमिनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, : तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय मोहांधकार विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।
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चोवी. धप-श्रीखंड लोंग कर सुगंध रे । खेऊ हुताशन सुकर्म निधार करे ॥ श्रीनेमिनाथ तुम याल पजन सुब्रह्मचारी। पुजं पदार युग कंज प्रमाद टारी ।। ॐ दी श्रीनेमिनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, संग्रह , तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय अष्टकम दहनाय धूपं निर्वामीति माहा। ५६८ फल-एला अनार वरसेव सुआम ला । सुवर्ण धार भर नाय तुम्हें नहा॥ श्रीनेमिनाथ तुम बाल
सुब्रह्मचारी । पूजु पदार युग कंज प्रमाद दारी॥ ॐ ह्रीं श्रीनेमिनाथ जिनेन्द्रीय गर्भ, जन्म,
तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याणा प्राप्ताय मोक्षफल प्राप्तये फलं नियंपामीति स्वाहा। अर्घ-नीरादि अष्ट शुभ प्राशक द्रव्य लाये । कीने महा अरघ सुंदर गान गाये। श्रीनेमिनाथ तुम बाल
सुब्रह्मचारी। पज पदार युग कंज प्रमार टारी ।। उहाँ श्रीनेमिनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय अनर्घ पद प्राप्तये अचं नियंगामीति स्वाहा।
अथ पंचकल्यागाक कडखाकंद। गर्भ-त्यागियो आपने येजयंते महा, मात शिव देवि की कप आये। श्वेत कातिक कहील के दिन लही
मात के चरण तब शनी ध्याये ॥ धनद तय गगन ते वृष्टि करतो भयो रतन की आदि पण वजे लाये। छपन देवी तहां सेव करती महा सुरन ने आय बाजे बजाये॥ ॐ ह्रीं श्रीनेमिनाथ जिनेंद्राय
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चौबी०, जन्म-शुक्ल छठ सावनी अमर मन भावनी तास दिन आपने जन्म लीना । सुरन आसन चले मौलि
तब ही हले,सात पग चाल तब नमन कीना ॥ आइयो सुर पति नगर द्वारावती शची कर लेय जिन रूप चीना । मेरु गिरि पे गये वारि कलसे लये,सहस अर आठ सिर धार दीना॥ ॐ ह्रीं
श्रीनेमिनाथ जिनेंद्राय श्रावण शुक्ल षष्ठी जन्म कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा। | तप-व्याह हरिने ठयो यान सजतो भयो, चढे जब आप श्रीनेमि स्वामी। पशु धनि जव सुनी करत 'चिंता गुणी, चतुर्गति माह जिय दुक्ख पामी। छोड रजमति तिया नेह शिव तें किया,बास बन
में लिया हनो कामी। जन्म की तिथि कहा व्रत महा जब गहा,कियो तब मौन जिन भये नामी॥
डोंह्रीं श्रीनेमिनाथ जिनेंद्राय श्रावण शुक्ल षष्ठी तप कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा । ज्ञान-कार एक भली सेत पष में रली मोह सेन्या दली ज्ञान पायो। समवसर की ठनी धनद रचना ||
तनी सभा द्वादश बनी इंद्र आयो॥ चरण अरचा करी हरष उर में धरी मान धन धन घरी शीस नायो । आप बानी भई सबै जग सरदही, मेट ममपीर में अर्घ लायो॥ ॐ ह्रीं श्रीनेमिनाथ
जिनेन्द्राय आश्विन शुक्ल प्रतिपदा ज्ञान कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा। || निर्वाण-शैल गिरिनार पै मास बाकी रही, आयु तब योग नीरोध कीना। खिरत बानी नहीं मौन सब
"ही लही सप्तमी साढ सित मोक्ष चीना। लोक. अलोक के आप ज्ञायक भये अष्टमी धरा निज ॥
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चौबी० घजन संग्रह
चास लीना। दास बिनती करे चरण उरमें धरे,कीजिये नाथ संसार छीना ॥ॐ ह्रीं श्रीनेमिना जिनेन्द्राय आषाढ शुक्ल सप्तमी मोक्ष कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।
. अथ जयमाला। दोहा। . ५७० महाअर्घ-हरि हरादि हारे सबै, दिये विरंचि डिगाय । सो मकरध्वज तुम हनो,अहो नेमि जिनराय ॥
. ..... छंद भुजंगप्रयात-तजो वैजयंत लयो जन्म स्वामी । शिवा देवि माता महा सौख्य पामी। भले द्वारिका नग्र में आप जाये। हरी आदि निर्जर सबै आन ध्याये ॥ २॥ गये मेरु शीसं कियो न्हौन भारी । पिता मात को सौंप आनंद धारी ॥ प्रभु बाल लीला कही नाहिं जावे। कभी रत्न भूपै कभी गोद आवे ॥३॥ शची आदि देवी गहे कर चलावे । कभी चाल सीधी कभी अट पटावे ॥ छबी श्याम सुंदर मनो मेघ कारे । भये वर्ष अष्टम अणु व्रत्त धारे ॥४॥ छपन कोड यादों सभा जोड लीहै। चली बात ऐसे कहे को बली है ॥ प्रभु अंगुरी बीच जंजीर डारी । सबै खैच हारे झुलाये मुरारी ॥ ५॥ हली आदि जेते सबै शीस नाये। भई फूल वर्षा सुरों गांन गायें ॥ करै कृष्ण नारी खडी अर्ज भारी । सुनों आप स्वामी वरो एक नारी ॥ ६ ॥ तबै आप मानी करी कृष्ण त्यारी। चढे व्याहने को सबै राज धारी ॥ सजनागढी सोंव के बीच आये । पश टेर कीनी वचन यों सुनाये ॥७॥ घिरे फंद . ' मांही न दीस सहाई। पड़े. काल के बीच दीजे छुड़ाई ॥ सुने बैन ऐसे तबै ही छुड़ाये । गही सार दीक्षा
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चौबी० सगिरिनार आये ॥८॥ नमें सिद्ध को लौंच कीनो प्रवीना। दिने छप्पने में महा ध्यान कीना। पूजन | जबै घातिया जोर छिन में उडायो । लहों ज्ञान भानं तिहूं लोक छायो ॥ ९॥ समवसरण की इंद्र , संग्रह शोभा बनाई। शुची डेढ योजन आनंद दाई ॥ गणाधीश ग्यारह सु झेलें हैं बाणी । लहैं राज मोक्षं _ ५७१ सुनें भव्य प्राणी ॥ १०॥घने सात से वर्ष में भव्य तारे। गयो उर्जयंतं सवै योग टारे ॥ भये सिद्ध
स्वामी तिहूं लोक जानं । सबै इंद्र कीने सुपंचम कल्याणं ॥११॥ नम चर्ण तेरे अजी संग लीजे। छुटे भवकी फेरी यही दान दीजे । सुनों अर्ज मेरी जगन्नाथ नामी। करो देर छिन ना अहो नेमि स्वामी ।।
- पत्ता छंद-रजमतिसी नारी ततक्षिन छारी वर शिव नारी ततकाला। तिन की थुति कीनी चित धर लोनी पातग हीनी गुण माला ॥१३॥ .: ॐ ह्रीं श्रीनेमिनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय अनर्घ
‘पद प्राप्तये महाघ निर्वपामीति स्वाहा। - अथ आशीर्वादः । अडिल-नेमीश्वर पद कमल तनी पूजा करें। अलिसम कर अनुराग भक्ति उर में धरें। ते पावें भव पार कहै बखता सही। रतन कहे मन लाय ऋद्धि पावें वही॥ .. . इत्याशीर्वादः। इति श्रीनेमिनाथजिन पूजा संपूर्णा ॥ २२॥ !.
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चौबी० पूजन संग्रह
२३ अथ श्रीपार्श्वनाथजिनपूजा प्रारभ्यते । विस्तृतावरसिंह कत) गीताछन्द थापना-बरस्वर्गप्राणतको विहाय सुमोत वामासुत भये। अश्वसेनके पार्श्वजिनवर चरण तिनके सरनये ना हाथ उन्नत तन बिराजे उरग लक्षण अतिलसोथातुम्हें जिन काय तिष्ठो कर्म मेरो सव नस॥
ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्र अत्रावतराऽवतर संबोषट् आह्वाननम् ।। - ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्र अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम् ॥ ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्र अत्र मम संन्निहितो भव भव वषट् संन्निधी करणम् ।
अथ अष्टक । चामर छन्द ।। जल-क्षीर सोम के समान अंबुसार लाइये, हेम पात्र धारके सु आप को चढाइये । पार्श्वनाथ देव सेव | आपकी करूंसदा, दीजिये निवास मोक्ष भूलिये नहीं कदा॥ ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय गर्भ,
जन्म,तप,ज्ञान निर्वाणपंच कल्याण प्राप्ताय जन्म मृत्युजरारोग विनाशनायजलं निर्वपामोतिस्वाहा। चंदन-चंदनादि कसरादि स्वच्छ गंधलीजिये, आपचन चर्च मोहतापको हनीजिये। पार्श्वनाथ देव सेव ... आपकी करूंसदा, दीजिये निवास मोक्ष भूलिये नहीं कदा॥ ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय गर्भ ... जेन्म,तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याणप्राप्ताय संसारातापरोगविनाशनाय चंदनं निर्वपामीतिस्वाहा ॥ अक्षत-फेन चंद की समान अक्षतं मंगायके, पाद के समीप सार पूजको रचायके। पार्श्वनाथ देव सेव - आपकी करूंसदा, दीजिये निवास मोक्ष भूलिये नहीं कदा॥ ॐ . . . . . . . .
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चौबी० पूजन संग्रह
५७३
जन्म तप; ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय अक्षय पदप्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा ॥ पुष्प-केवडा गुलाब और केतकी चुनाइये, धार चर्णके समीप काम को हनाइये । पार्श्वनाथ देव सेव - आपकी करूंसदा, दीजिये निवास मोक्ष भूलिये नहीं,कदा ॥ ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्रीय गर्भ, . जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंच कल्याण प्राप्ताय कामवाण विनाशनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा ।। नैवेद्य-घेवरादि बावरादि मिष्ट सय में सनें, आपं चर्ण अर्च ते क्षुधादि रोग को हने । पार्श्वनाथ देव
सेव आपकी करूंसदा, दीजिये निवास मोक्ष भूलिये नहीं कदा॥ ॐह्रीं श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय गर्भ ... जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंच कल्याण प्राप्ताय क्षुधारोग विनाशनाय ने द्यं निर्वपामीतिस्वाहा ॥ दीप-लाय रत्न दीप को सनेह पूरके भरूं, बातिका कपूरवार मोह ध्वांत को हरू । पाश्वनाथ देव सेव ... आपकी करूंसदा, दीजिये निवास मोक्ष भूलिये नहीं कदा॥ ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय गर्भ, ___ जन्म,तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय मोहांधकार विनाशनाय दीपं निर्वधामीति स्वाहा ॥ धूप-धूप गंध लेयके सु अग्नि संग जारिये, तास धूप के सु संग कम अष्ट वारिये । पार्श्वनाथ देव
सेव आप की करूं सदा, दीजिये निवास मोक्ष भूलिये नहीं कदा ॥ ॐह्रीं श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय
गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्तय अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वामीति स्वाहा ।। फल-क्षारकादि चिर्भटादि रत्नथार में भरूं, हर्ष धार के जजू समोक्ष सौख्यको वरूं। पार्श्वनाथ देव
सेव आपकी करूं सदा, दीजिये निवास मोक्ष भूलिये नहीं कदा ॥ ॐ ह्रीं श्रीपाश्र्वनाथ जिनेंद्राय
ना
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चौबी० पूजन
संग्रह ५७४
गर्भ, जन्म, तप, ज्ञाननिर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय मोक्षफल प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा ॥ अर्घ-नीर गंध अक्षतं सुपुष्प चारु लीजिये,दीप धूपं श्रीफलादि अर्घ तें जजीजिये । पार्श्वनाथ देव सेव
आपकी करूं सदा, दीजिये निवास मोक्ष भूलिये नहीं कदा ॥ ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंच कल्याण प्राप्ताय अनर्घ्य पदप्राप्तये अर्घ निर्वपामीति स्वाहा ॥
__ अथ पंचकल्याणक । छंद पायता। गर्भ-शुभ प्राणत स्वर्ग विहाये, वामा माता उर आये।वैशाख तनीदुतकारी, हम पूजें विघ्न निवारी॥ ___ ॐह्रीं श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय वैशाख कृष्ण द्वितीया गर्भ कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा । जन्म-जन्में त्रिभुवन सुखदाता,कलिकादशि पौष विख्याता।स्यामातन अद्भुतराजे,रवि कोटिकतेजसुलाजे
ॐह्रीं श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय पौष कृष्ण एकादशी जन्म कल्याण प्राप्तायअनिर्वपामीति स्वाहा। तप-कलि पौष इकादशि आई, तब बारह भावना भाई। अपने कर लौंच सुकीना, हम पूजें चर्नजजीना
ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय पौष कृष्ण एकादशी तपः कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा ज्ञान-वह कमठ जीव दुखकारी,उपसर्ग कियो अति भारी। प्रभु केवल ज्ञान उपाया, अलि चैतचौथ दिन
. गाया॥ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय चैत्र कृष्ण चतुर्थी ज्ञान कल्याणप्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा निर्वाण-सित सावन सातैआई शिवनार तवै जिनपाई। सम्मेदाचल हरिमाना, हमपूजें मोक्ष कल्याना . ___ॐह्रीं श्री पार्श्वनाथ जिनेंद्राय श्रावण शुक्ल सप्तमी मो कर र
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. संग्रह
.अथ जयमाला। महाअर्घ-पारसनाथ जिनंद तने बच पोनभषी जरते सुन पाये।करो सरधान लहो पदआन भये पद्मावति चौबी०
शेष कहायो नाम प्रताप टरे संताप सुभब्यनको शिवशर्म दिखाये । हो विश्वसेनके नंदभये गुण गावत पूजन | हैं तुमरे हरषाय॥केकी कंठ समान छवि,बपु उतंग नव हाथ । लक्षण उरग निहार पग,बंदूं पारसनाथ ॥
- छंद मोती दाम-रची नगरी षट् मास अगार, बने बहुगोपुर शोभ अपार । स कोटतनी रचना ५७५
छबिदेत, कगूरन पै लहकै बहु केत॥१॥ बनारस की रचना जु अपार,करी या भांत धनेश तयार तहां विश्वसेन नरेंन्द्र उदार, करै सुख बाम सु दे पटनार ॥२॥ तजो तुम प्राणत नाम बिमान, भये तिन के घर नंदन आन । तबै पुर इंद्र नियोगनि आय, गिरींद्र करी विध न्हौन सु जाय ॥३॥ पिता घर सौंप गये निज धाम, कुवेर करे बसु जाम जु काम । बधेजिन दूज मयंक समान, रमैं बहु बालक निर्जर आन ॥४॥ भये जब अष्टम बर्ष कुमार, धरे अणु बत्त महा सुखकार । पिता जद आन करी अरदास, करो तुम व्याह भरो मम आस ॥५॥ करो तब नाह रहे जगचंद, किये तुम कामक सायक मंद । चढे गजराज कुमार न संग, सु देखत गंगतनी सुतरंग॥६॥ लख्यो यक रंक करे तप घोर, | चहुंदिस अग्नि बले अति जोर । कहे जिननाथ अरे सुन भ्रात, करे बहुजीव तनी मतघात ॥ ७॥ भयो तब कोप कहै कितजीव, जले तव नाग दिखाय सदीव । लख्यो यह कारण भावन भाय, नये | दिव ब्रह्मऋषी सब आय॥८॥ तबै सुर चार प्रकार नियोग, धरी शिविका निजकंध मनोग। करो बन
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चोबी माह निवास जिनंद, धरे व्रत चारित.आनंद कंद ॥९॥ गहे तहां अष्टम के उपवास, गये धन दत्त पूजन तनें जु अवास। दियो पयदान महा सुखकार, भईपण वृष्टि तहां तिहवार ॥१०॥ गये फिर कानन माह संग्रह दयाल, धरो तुम योग सबै अघटाल । तबै वह धूम सुकेत अयान, भयो कमठाचर को सुर आन॥११॥ ५७६ करै नभ गौन लखे तुम धीर, जू पूरब बैर बिचार गहीर । करो उपसर्ग भयानक घोर, चली बहु तीक्षण
पवन झकोर ॥१२॥ रहो दशहू दिश में तम छाय, लगी बहु अग्नि लखी नहिं जाय । सुरुंडन के बिन मुण्ड दिखाय,पडे जल मूसल धार अथाय॥१३॥तब पद्मावती कंत धनंद, नये युग आय तहांजिनचंद। भगो तब रंक सुदेखतहाल, लहो तब केवल ज्ञान विशाल ॥१४॥ दियो उपदेश महाहितकार सुभव्यन बोधि सम्मेद पधार ।सु सुव्रण भद्र जू कूट प्रसिद्ध,बरी शिवनारि लही बसुऋद्ध॥१५॥जजू तुम चर्णदोऊ कर जोर । प्रभु लखिये अबही मम ओर। कहैं वखतावर रत्न बनाय,जिनेश हमें भव पार लगाय ॥१६॥
पत्ता छंद-जय पारस देवं सुर कृत सेवं बंदित चरण सुनागपती। करुणा के धारी पर उपकारी शिव सुख कारी कम हती॥ १७॥ ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंच कल्याण प्राप्ताय अनर्घ पद प्राप्तये महाऽध निर्वपामीति स्वाहा ॥
अथ आशीर्वादः-छंद मद अवलिप्त । जो पूजे मन लाय भव्य पारस प्रभु नित ही। ताके दुख सब जांय भीतिव्यापै नहिं कितही। सुख संपति अधिकाय पुत्र मित्रादिक सारे । अनुक्रम सों शिव लहे.. . रतन इम कहे पकारे ॥१८॥ त्या .....
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चौबी. पूजन संग्रह ५७७
- २४ अथश्रीवर्द्धमानजिन पूजा लिख्यते।
_. बखतावरसिंहकृत । अडिल स्थापना-सिद्धारथ है तात मात त्रिशिला सही, अच्युत तें चय आय नगर कुंडिन कही। .. हाथ सात परमान अंक है मृगपती, महावीर जिनदेव तिष्ठ करुणा पती॥१॥
ॐ ह्रीं श्रीमहाबार जिनेंद्र अत्रावतराऽवतर संवौषट् आह्वाननम् । ॐ ह्रीं श्री महाबीर जिनेंद्र अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम् । ॐ ह्रीं श्रीमहावीर जिनेंद्र अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधी करणम् ॥
अथ अष्टक । छंद त्रिभंगी। जल-क्षीरोदधिवारं निर्मल सारं गंध अपारं भर धारं। अति ही शुचिकारं तृषा निवारं तुम पद ढारं
दुःख हारं । श्रीवीर कुमारं शिव दातारं पाप निवारं सुख कारं । सुंदर आकारं ज्ञान भंडारं जग - हितकारं जित मारं॥.रों ह्रीं श्री महाबीर जिनेंद्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय जन्म मृत्यु जरा रोग विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।
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चौबा पूजन संग्रह ५७८
चंदन-चंदन मन भावन ताप नसावन सौरभ पावन. भरझारी । करपूज तिहारी आनंद कारी पाप
निवारी गुण कारी ।श्रीबीर कुमारं शिवदातारं पाप निवारं सुखकारं । सुंदर आकारं ज्ञान भंडारं जग हितकारं जितमारं । ॐ ह्रीं श्रीमहावीर जिनेन्द्राय गर्भ,जन्म,तप,ज्ञान, निर्वाणपंचकल्याण
प्राप्ताय संसारा ताप रोग विनाशनाय चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा । अक्षत-अक्षत शुभ सारं खेत सुधारं हेम सुथारं माह भरे । तुम चरण चढाऊ पुंज रचाऊं शिव सुख ।
पाऊं हर्ष वरे। श्री वीरकुमारं शिव दातारं पाप निवारं सखकारं । सुंदर आकारं ज्ञान भंडारं जग हितकारं जितमारं ॥ ॐ ह्रीं श्रीमहाबीर जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंच
कल्याण प्राप्ताय अक्षय पद प्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा । पुष्प-शुभ षट् ऋतु केरे सुमन उजेरे अलिगण नेरे गुंज करे । ले पूजूं ध्याऊं मन हरषाऊं सीस नवाऊं
काम जरे। श्रीबीर कुमारं शिवदातारं पाप निवारं सुखंकारं । सुंदर आकारं ज्ञान भंडारं जग हितकारं जितमारं। ॐ ह्रीं श्री महावीरजिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण
प्राप्ताय काम वाण विनाशनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा। नैवेद्य-चरु घृत में कीनी रसमें भीनी पुष्ट नवीनी भर थारी। चरणन ढिग लाउं
न ऊं. ..
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चौबी० पूजन संग्रह ५७९
.. भंडारं जग हितकारं जितमारं । ॐ ह्रीं श्रीमहावीर जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण
चकल्याण प्राप्ताय क्षुधा रोग विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा। दीप-मणि दीप प्रकाशेध्यांत विनाशे निज हित भाषे कांति लसे। तल चर्ण चढाऊ मोहनलाऊंज्ञान सुपाऊं
सुख बिलसे । श्रीवीर कुमारं शिवदातारं पाप निवारं सुखकारं । सुंदर आकारं ज्ञान भंडार जग हितकारं जितमा । ॐ ह्रीं श्री महावीर जिनेन्द्रीय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंच
कल्याण प्राप्ताय मोहांधकार विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा। धूप-कृष्णागर चूरं लौंग कपूर परिमल भूरं खेवत हूं। तिस धूम उडाये अलिगण आये कर्म नसाये
सेवत हूं॥ श्रीवीर कुमारं शिवदोतारं पाप निवारं सुख कारं । सुंदर आकारं ज्ञान भंडारं जग हितकार जितमारं । ॐ ह्रीं श्रीमहावीर जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म तप, ज्ञान निर्वाण पंचकल्याण
प्राप्ताय अष्ट कर्म दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा। फल-बादाम छुहारी लौंग सुपारी फल सहकारी में लायो। भर हाटक थारी तुम ढिग धारी शिव
सुख कारी गुण गायो । श्री बारकुमारं शिव दातारं पाप निवारं सुखकारं । सुंदर आकारं ज्ञान भंडारं जग हितकारं जितमारं । ओं ह्रीं श्रीमहावीर जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण
पंचकल्याण प्राप्ताय मोक्ष फल प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा। अर्घ-जल गंध अपारं अक्षत सारं सुमन सुधारं चरुजुबरा । ले दीपं धूपं फल बहु रूपं स्वर्ण रकाबी ||
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.पजन
चौवा० ... अर्घ करा ॥ श्री वीर कुमारं शिवदातारं पाप निवारं सुखकार । सुंदर आकारं ज्ञान भंडारं जग
हितकारं जितमारं । ॐ ह्रीं श्रीमहावीर जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण संग्रह प्राप्ताय अनर्घ्य पद प्राप्तये अर्घ निर्वपामीति स्वाहा ॥ . ५८०
(अथ पंच कल्याणक) छन्दलक्ष्मीधरा। गर्भ-षाढसित छठ को गर्भ मातासही, आइयो त्याग के स्वर्ग सोलं कही । होत आकाशते रत्न
वरषाघनी, देव देवी सर्व से माता ठनी। रों ह्रीं श्रीमहावीर जिनेंद्राय आषाढ शुक्ल षष्ठी गर्भ
कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा ॥ जन्म-चेत सित ब्रोदसी जन्म लीनो महा। नारकी दो घडी सर्व साता लहा। मेरु पै इंद्र नागेंद्र ने
पूजियो, मैं जजू अर्घ ले वेग त्यारीजियो। ऊ ह्रीं श्रीमहाबीर जिनेंद्राय चैत्र शुक्ल त्रयोदशी
जन्म कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा। तप-मार्गशीर्षा दसैं स्याम की आइयो, तादिना आप चिद्रूप को ध्याइयो । धार षष्ठं महा दान गोक्षीर
को,लीजियो आपने मैं जजू वीर को। ॐ ह्रीं श्रीमहाबीर जिनेन्द्राय मार्गशिर कृष्ण दशमी तपः
कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा । ज्ञान-घात चौ कर्म को ज्ञान पायो मा
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पूजन
संग्रह
धर्म ही, में जजू अर्घ ले मेटिये कर्म ही। डों ह्रीं श्री महाबीर जिनेंद्राय वैशाख शुक्ल दशमी
ज्ञान कल्याण प्राप्तात अर्घ निर्वपामीति स्वाहा॥ निर्वाण-नग्रपावापुरी सार उद्यान में, योग निोरधियो ठान के ध्यान में । मावसी कातकी भ्रमर की
लीजिये, सिद्ध राजाभये बास मो दीजिये। ॐ ह्रीं श्री महावीर जिनेंद्राय कार्तिक कृष्ण अमावस्या मोक्ष कल्याण प्राप्ताय अ निर्वपामीति स्वाहा।
अथ जयमाला। दोहा। महा अर्घ-सकल सुरेश नरेश अर, किन्नरेश फनयेश । ते सब बंदित चरणयुग, बंद बीर जिनेश ॥
छन्द पद्धडी-जयजय जयजय श्रीबीर राज, भवसागर में अद्भुत जहाज । जय पुष्पोत्तर तजके विमान, त्रिशिला माता की कूष आन ॥२ सिद्धारथ तात बडे सुजान, जय कुंडिनपर नगरी महान । तिनके घर आप भये जिनंद, हरिवंश व्योम ऊगे सुचंद ॥ ३॥ तव अमरन के आसन चलाय, सिर मुकुट नयत अचरज लहाय । कल्पन घर घन घंटा बजाय, ज्योतिष घर के हरिनाद थाय ॥ ४॥ भवनालय संग बजे अपार, व्यन्तर के मंदिर ढोल सार । इन चिह्न थकी तुम जन्म जान, इंद्रादिक आये हरषमान ॥५॥ कुंडिन पुर से गिरिमेरु जाय, इक सहस वसु कलसे दुराय। तब मघवा स्तुतिजु कर बनाय, तुम नाम धरो जिन बीर राय ॥६॥ शचि पौंछ कियो श्रृंगार येम, सोहत भूषण को कल्प
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चौबी०
पूजन
संग्रह ५८२
जेम । फिर लाय तात के सदन इंद्र, लख माता हरषी बाल चंद्र ॥७॥ तांडव नाटक कीनो सरिंद, दिखलायो जिन दश भव अमंद । पहिले भवनांहर रूप धार, दूजे सौ धर्म सुरगं मझार । बिजयारध में पग धीश राय, कनक प्रज्वल नामा लहाय। चौथे भवलांतव नाक थान, पंचम हरिषेन नरिंद जान ॥९॥ षष्ठम महा शुक्र विर्षे जुदेव, सप्तम चक्री प्रिय मित्र येव । सहस्रार माह अष्टम प्रजाय, तहां ते चय उपजे नंदराय ॥ १०॥ तप कर अच्युत थानक सुरिंद, तहां ते चय आप भये जिनंद। यह भव दिखलाये नृत्य थान,सब जीव भये आनंद खान ॥ ११॥ पितमात पूज हरिकर पयान, जिन बालक बय धारे सुजान। यक देव परीक्षा काज आय, तिन नाग रूप लीनो वनाय ॥१२॥ क्रीडा तरु खेलत संग कुमार, सब भाग गये तिस तन निहार । प्रभु ततक्षिन ताको मद उतार, क्रीडा कर संगम देव हार ॥ १३ ॥ तब नाम दियो महावीर शूर, तिनथानक पहुंचो हरष पूर । युग मुनिवर नभ में गमन ठान, तिन के संशय उपजो महान ॥ १४ ॥ तुम पीढ़ जबै देखी दयाल, चित को विभ्रम सबही सुटाल। तब नाम दियो सन्मति उदार,इम तीस वरषके भये कुमार ।१५लख पूरव भव वैराग्य भाय, सिद्धारथ बन दीक्षा लहाय । तप द्वादश कर बहुक्षीण काय, चव घाति हान केवल लहाय ॥१६॥ ग्यारह गणधर गोतम सु आद, मुनि सहस चतुर्दश तज प्रमाद । अजया व्रत चंदन आदि धार सोहे सब छत्तिस सहस धार ॥ १७॥ यक लक्ष श्रावक अतिपुनीत, निगुनी श्रावकनी धर्म नीत । इम
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पूजन
.. ५८२
चौबी०
पायो सब कर्महान । तहां सिद्ध भये निर्भय निरास, सो सोहत है अद्भुत निवास ॥ १९ ॥ तुमरो
ही मारग भव्य पाय, सो उतरेंगे भवपार जाय । अबलो तुमरो तीरथ जिनंद, सो बर्तत है आनंद संग्रह | कंद ॥२०॥ हम याचत है तुम पैदयाल, दुख दारिदटार करो निहाल । बखतावर रतन कहै वनाय, शिव
सख दीजे महावीर राय ॥ २१ ॥
.. घत्ता छन्द-जय त्रिशिला प्यारे जग उजियारे भवि गण तारे मोक्ष दई। लख चरण तुम्हारे रविशशि हारे पूजन हारे शर्म लई ॥ २२॥ ॐ ह्रीं श्रीमहाबीर जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय अनर्घ पद प्राप्तये महाऽर्घ निर्वपामीति स्वाहा। अथ आशीर्वादः दोहा-बीर महाअतिबीरजी,सन्मतिवर्द्ध सुजान।पंचनाम पूजें सदा,पावें पदनिर्वान ॥
.' इत्याशीर्वादः । इति श्रीमहाबीर जिन पूजा संपूर्णा ॥ २४ ॥ समाप्त-अर्घ-छंद सुंदरी-ऋषभ जिनको आदि मनाय के,अंत में महावीर सुध्याय के।
: चतुर्विंश जिनगुणगाय के, जजत हूं मैं अर्घ चढायक ॥१॥ ॐ ह्रीं श्रीऋषभ देवादि महावीर .. पर्यंत चतुर्विंशति जिनेन्द्रम्यः समाप्त्यर्घ निवपामीति स्वाहा ॥ अथ आशीर्वादः । छंद अडिल-जे चौबीस जिनेंद्रतनी पूजा करें, इंद्रादिक पदपाय चक्रि पद को धरें। कीरति द्वे सुफराय मान जगमें सही,अनुक्रम तें शिव जाय सर्व बहु बिधि लही ॥ २॥ इत्याशीर्वादः
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चौबी०
पूजन
.५८४
दोहा-संवत अष्टादश शतक, और वानवेंजान । फागनकारी सप्तमी, भौमवार पहचान । ॥१॥ मध्य देश मंडल विषै, दिल्ली शहर अनूप । बादशाह अकवर नसल नमन करें बहु भूप ॥२॥ चार वर्ण जहां वसत है, कोई न दुःख स्वरूप । शैली श्रावक धर्मकी, लसत महा सुख कूप ॥ ३ ॥ नाना विधि रचना सहित, सोहत जिन आगार । चरचा अध्यातम तनी, करै भव्य हित धार ॥४॥ शैली में सज्जन भले, सुगनचंद गुण खान । पुत्र सुगिरधर लाल तसु, ज्ञानवान जसवान ॥ ५॥
सवैया । तिसही शैली मंझार पंडित विवेक धार गिरधारी लाल सार स्नेही लालजानिये। कानजीमल्ल आन जै जै मल शीलवान गुपालराय साहिबसिंह सज्जन पहचानिये । २ । बाल बुद्धि को विचार बखतावर नाम धार रत्नलाल अग्रवाल न्यात जिस मानिये ॥ ३ ॥ ताने रचो पाठ जोग वांचो सब सुधी लोग भूल चूक शोधकर क्षमा उर आनिये ॥ ४॥
__ दोहा-मित्र युगल मिलके कियो, मन में यही विचार । शुभ कारण पूजारची, कछु पिंगल अनुसार ॥ ५॥ अलंकार जान नहीं, नहिं लौकिक सुज्ञान । भक्ति एक उरधार के, रचो पाठ हितमान ॥ ६॥ वखतावरसिंह सीखियो, कछु भाषा की चाल । तातें पाठ बनाइयो, वुधि माफिक अघटाल ॥७॥
कुंडालियां छंद-भ्राता रतन सु लाल को नाम रामपरसाद । तिन तें रतन जो सीखियो कछ छंद मरजाद । कछु छन्द मरजाद आदि अक्षर सिखलाये । विद्या कछू पढाय बहुत उपकार कराये। क र .. ... ..
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४८४
पत्ताछन्द
... .. बचौ० | देव, सुलोक अलोक तने लख भेव ॥ ११॥ नम सिर नाय उभय कर जोर, प्रभु हमरे वह फंदन तोर। पूजन | लई चरनांबुज शर्न जिनेश, करो मतं ढील सुमेट कलेश ॥१२॥ घत्ताछन्द-जैजै रिपुनाशन ज्ञान प्रकाशन श्रीसुपार्श्वदेमोक्षधरा, जो गुण गण गावें शीस नवावेंपर्ने
पढावें हर्ष बरा ॥ १३॥ ॐ ह्रीं श्री सुपार्श्वनाथ जिनेंद्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण
पंच कल्याण प्राप्ताय अनर्घ पद प्राप्तये महाऽ निर्वामीति स्वाहा॥ अथ आशीर्वादः।छंदरोडक-श्रीसुपार्श्व जिनतने चरणजे भविजन ध्यावें,पाठ पढ़ें चितलाय तथा सुनके हरषावें ॥ तिनघर मंगलहोयरिद्धि व्यापे अधिकाई,बखतावर इम कहे रतन सुन चित्त लगाई ॥१४॥
. ॥इत्याशीर्बादः।। इतिश्री सुपार्श्वनाथ जिन पूजा संपूर्णा ॥७॥
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a
-
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चोबी०. ८ अथ श्रीचन्द्रप्रभजिन पूजा प्रारभ्यते ॥
पूजन ___ संग्रह
बखतावर सिंह कृत । छन्द रोड़क । स्थापना-वैजयंत स विमान त्याग के जन्म सलीना, चंद्र पुरी महाराज पिता महासेन प्रवीना।
- धनुष डेढ़ से काय बरन तन श्वेत विराजे,तिष्ठ तिष्ठ जिन चंद्र चरन दुति चंद्र सुलाजे ॥१॥
ॐ ह्रीं श्री चंद्रप्रभ जिनेन्द्र अत्रावतरावतर संवौषट् आह्वाननम् । ॐ ह्रीं श्री चंद्रप्रम जिनेंद्र अत्र तिष्ठः तिष्ठः ठः ठः स्थापनम् । ॐ ह्रीं श्री चंद्रप्रभ जिनेंद्र अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधीकरणम् ।
अथ अष्टक । छंद त्रिभंगी। जल-शुभ द्रह को नीर निरमल सीरं मन वच धीरं ले आयो।भर कंचन झारी तम ढिग धारी तृषा
निवारी सुख पायो। महा सेन दलारे चंद पियारे तन उजियारे जोति धरे । नख दतिपै थारे कमल सुहारे चंद बिचारे चरण परे॥ ॐ ह्रीं श्रीचन्द्रप्रभ जिनेंद्राय गर्भ,जन्म,तप,ज्ञान निर्वाण
- पंच कल्याणप्राप्ताय जन्म मृत्यु जरा रोगविनाशनाय जलंनिर्वपामीति स्वाहा ॥ . : चंदन-लेचंदन बावन कुंकुम पावन चक्षु सुहावन घत लीना। तिस सौरभ आवें मधु कर छावें तुम
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चौवी.
संग्रह
४८६
ढिग लावे चरु चीन्हा । महासेन दुलारे चंद पियारे तन उजियारे जोत धरे। नख दति पे थारे कमल सुहारे चन्द बिचारे चरण परे। ॐ ह्रीं श्री चन्द्रप्रभ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान
निर्वाण पंच कल्याण प्राप्ताय संसाराताप रोग विनाशनाय चन्दनं निर्वामीति स्वाहा। अक्षत-अक्षत अनियारे निशपति हारे धोय समारे थाल भरूं। अक्षय पद दीजे ढील न कीजे निज
लख लीजे पुंज करूं। महासेन दुलारे चंद पियारे तन उजियारेजोत धरे । नख दुतिपै थारे कमल सहारे चंद विचारे चरण परे ॐ ह्रीं श्री चन्द्रप्रभ जिनेद्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण
__ पंचकल्याण प्राप्ताय अक्षय पद प्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा। पुष्प-बहु कुसुम नवीने में चुन लीने सौरभ भीने ल्याय घरे । तिस गंध सुहाई मधुकर छाई भेट
कराईदर्प हरे। महासेन दुलारे चंद पियारे तन उजियारे जोत धरे,नख दुति पै थारे कमल सुहारे चंद विचारे चरण परे ॥ ॐ ह्रीं श्री चन्द्रप्रभ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंच
कल्याण प्राप्ताय काम वाण विनाशनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा ॥ नैवेद्य-पकवान सुलीने सितरस भीने तुरत करीने मिष्ट महा। "
विडारी शर्मलहा। महासेन दुलारे चं .. सुहारे चंद विचा
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- पूजन
४८७॥
चौबी०॥ दीप-दीपक उजियारे जोय समारे तम छय कारे जोत घनी। मोहादिक नाशो ज्ञान प्रकाशों हम घट
वासो मोक्ष धनी। महासेन दुलारे चंद पियारे तन उजियारे जोत धरे । नख दुतिपै थारे कमल . संग्रह सहारे चंद बिचारे चरण परे। ॐ ह्रीं श्री चन्द्रप्रभ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण
पंचकल्याण प्राप्ताय मोहांधकार विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा। धूप-शुभ अगर मंगावे तगर रलावे मधुकर आवे कर शोरी। तिस गंध सुहाई दश दिश छाई कर्म जराई
जिम होरी । महासेन दुलारे चंद पियारे तन उजियारे जोत धरे । नख दुतिय थारे कमल सुहारे चंद विचारे चरण परे॥ ॐ ह्रीं श्रीचन्द्रप्रभ जिनेंद्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान निर्वाण पंच
कल्याण प्राप्ताय अष्ट कर्म दहनाय धूपं निर्वपामीतिस्वाहा। | फल-फल पक्व नवीने सबरस भीने आय धरीने षट ऋतु के। तुम भेट धराऊं मन हरषाऊ शिवफल
पाऊं निज हितके। महासेन दुलारे चंद पियारे तन उजियारे जोत धरे। नख दुतिपैथारे कमल | सुहारे चंद विचारे चरण परे। उौं ह्रीं श्रीचन्द्रप्रम जिनेंद्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान निर्वाण |
पंचकल्याण प्राप्ताय मोक्ष फल प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा। अर्घ-जल फल वसुलाये मंगल गाये अर्घ बनाये भर थारी । वसु कर्म हनीजे देर न कीजे शिव पुर
दीजे सुख भारी। महासेन दुलारे चंद पियारे तन उजियारे जोत धरे। नख दुतिथे थारे कमल सुहारे चंद विचारे चरण परे। 0 ह्रीं श्री चन्द्रप्रभु जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान निर्वाण
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चौबी० संजन. 'पूग्रह
૪૮
पंचकल्याण प्राप्ताय अनर्घ पद प्राप्तये अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।
... अथ पंचकल्याणक । छंद जंग प्रयात। गर्भ-तजो बैजयंत विमानं अनुपा, सुमाता जिनो की सुलक्षण स्वरूपा। तिसी कृषराजे सबै दोष .. भोजे, बदी चैत की पंचमी सार साजे ॥ों ह्रीं श्री चंद्रप्रभ जिनेंद्राय चैत्र कृष्ण पंचमी गर्भ
कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वामीति स्वाहा। जन्म-भ्रमर पोष की रुद्र संज्ञा नवीना, तिहूं ज्ञान संयुक्त तब जन्म लीना ।सुना सीर आये जजे मेरु लाये, तिहुँ लोक में हर्ष आनंद छाये। ॐ ह्रीं श्री चंद्रप्रभ जिनेंद्राय पौष कृष्ण एकादशी जन्म
कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।। तप-जबै पोष ग्यारस अंधेरी जु आई, तबै भावना द्वादशे आप भाई, पुरीचंद्र त्यागी धरो ध्यान भारी, - सुध्याऊं जिनोंको भये सो अगारी। डोंह्रीं श्रीचंद्र प्रभ जिनेंद्राय पौष कृष्णएकादशी तप कल
प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा। ज्ञान-लहो ज्ञान पंचम.तवै इंद्र आयो,समोसन को ठाठ ·
सभा बीच झेलें गणाधीशव .
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चौबी० पूजन
... तुम्हें शीस नावें अहोचंद नामी। ओं ह्रीं श्रीचंद्रप्रभ जिनेंद्राय फाल्गुण कृष्ण सप्तमी मोक्ष || कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा ॥
अथ जयमाला । दोहा। - महाअर्घ-माता जास सुलक्षणा, कुंद कलीसम श्वेत । वपु उतंग धनु डेढसै,शशि अंक छबी देत ।
. छन्द लक्ष्मीधरा-श्रीमहा सेन के नंदना हो बली, मात सुलक्षणा पूज हूं मैं भली। तास की कृष में आप आये जबै, गर्भ, कल्याण देवेंद्र कीनो तबै ॥२॥तात के धाम की सर्स शोभा बनी।सर्व देवी करें सेव अंबा तनी । गर्भ नवमास आनंद भारी भयो, रोग शोकादि भय सर्व ही को गयो ॥३॥
छंद उपगीता-जन्में चंद जिनंदा, पौष संख्या सुरुद्र की कारी। करत महा आनंदा,आये सब | देव इंद्र की लारी॥४॥ ....... 'छंदलक्ष्मी धरा-आईयो इंद्र इंद्रायनी मोदमें, लाईयो प्रेमजा आपको गोक्में। रूप देखो शुनासीर चक्रित भयो, नाय के भाल ऐरावती पै ठयोः ॥५॥ जाय के मेरु पै न्हौन कीनो हरी, नम्रता धार के चरण पूजा करी । जय कृपा धीश तेरी छवी मोहनी, चंद्र की चंद्रिका ते महा सोहनी॥६॥ एक हजार लेनाम मालारची, नृत्य औगान कीनों तबें ही शची। फेरली आपको मोद दे मात को, मे रुकी बारताभाषियों तात को ॥७॥
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चोबी
पूजन
संग्रह
. ४९०
| छंदउपगीता-धनदकरेनितसेवा,भूषणवस्त्रादिसुर्गतेल्यावे । तुमसमवयधरदेवा,क्रीडातुमदेखसर्वहरपाव] .. छंद लक्ष्मीधरा-देख क्रीडा सवै मावते अंगना,दोजकेचंद ज्यों वृद्ध होतेजिना। राज कीनो प्रजा दुःख टाले सवे,वीतियो लक्ष नौ पूर्व आयु तवै ॥९॥ फेर वैरागकी भावना भाइयो,ब्रह्म लोकांतके देवतहां अइयो । बोध के आपको राह ले धाम की,इंद्र ले पालिकी मोतियादाम की ॥ १०॥ ता समें बैठ के जाय उद्यान में, सार दीक्षा लई चित्त दे ध्यान में। चार घाती हने ज्ञान पायो महा, वैठ संवाद में धर्म सारा कहा ॥ ११ ॥ भव्य को बोधियो लक्ष पूर्वतही, फेर सम्मेद पै आप आये सही । योग नीरोध के नाश अघातियो, बास शिव को लियो ज्ञान में भासियो ॥१२॥ आर्या छंदतुम गुण वर्णत हारे,गणधर इंद्रादिक महानामी। हम लघुवुद्ध विचारे, किमवरने सुगुण तुम स्वामी॥१३॥ छन्द लक्ष्मीधरा-स्वामी दीजे हमें मोक्ष लक्ष्मी धरा, चर्न तेरे तले कोट तीर्थंवरा । ज्यों सुमंत भद्र के
- काज में देरना, त्यों कृपा सिंधु मोदास को हेरना ॥ १४॥ | घत्ता छन्द-तुम गुण में सुंदर नमत पुरंदर जय माला सुख की करनी। जो पढें पढावे हित करगावें
"बखत रतन" सुख की भरनी॥ १५॥ ॐ ह्रीं श्री चन्द्रप्रभ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप,
ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय अनर्घ पद प्राप्तये महाऽय निर्वपामीति स्वाहा ॥ | अथ आशीर्वादः,आर्याछंद-अहोनामीचंद देवाधि देवा, पूजें ध्यावें तास संसार छेवा ।
तिहारी,ते पावै शाश्वतो सुवख भारी॥१६॥इत्याशीर्वा: ।
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.....
चोबी० पूजन
संग्रह
:
%3
॥
"
.
.....-९ अथ श्रीपुष्पदन्तजिन पूजा प्रारभ्यते ।
। (बखतावरसिंहकृत) छंद कोसमालती। स्थापना-काकंदी नगरी में आये तज अपराजित नाम विमान ।
श्वेत वरण लक्षण शफरी पति काय धनुष शतं एक प्रमान।
मातरमा सुग्रीव पिता सुत पुष्प दंत भगवंत महान । ... महिमाऽनंत अनंत गुणाकर सो प्रभु तिष्ठ तिष्ठ इत आन ॥१॥
ॐ ह्रीं श्रीपुष्पदंत जिनेंद्र अत्रावतराऽवतर संवौषट् आह्वाननम् ॥ ... ॐ ह्रीं श्री पुष्पदंत जिनेंद्र अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम् । . : . : . . ॐ ह्रीं श्रीपुष्पदंत जिनेंद्र अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधीकरणम् ॥ ..
. अथ अष्टक । छन्द पायता। | जल-जल उत्तम द्रह को लावें, कंचन झारी भरध्यावें ।श्री पुष्पदंतमहाराजा, तुम पद पूजत अघभाजा। . .. ॐ ह्रीं श्री पुष्पदन्त जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय जन्म
मृत्य जरा रोग विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा। || चंदन-बावन चंदन घसलाई, ता सौरभ पै अलिछाई। भवताप विनाशनहारे,पद पुष्पदंत जिलथारे ॥
जन्म, तप, ज्ञान,
निपद पूजत अघभाजा।
..मृत्यु जरा रोग विना
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चौबी० १० अथ श्रीशीतलनाथजिन पूजा प्रारम्यते । पूजन संग्रह
(बखतावरसिंह कृत) अडिल । ४९६ स्थापना-शीतल नाथ जिनंद स्वर्ग सोलम चये। भद्दलपुर में आय सुनंदा सुत भये ॥ ... . नब्बे धनुष प्रमाण अंक सुर तरु तनो । तिष्ठ तिष्ठ जिनराज करम रिपु को हनो॥१॥
ॐ ह्रीं श्रीशीतलनाथ जिनेन्द्र अत्रावतरावतर संवौषट् आह्वाननम् । ॐ ह्रीं श्रीशीतलनाथ जिनेन्द्र अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठाठः स्थापनम्। ॐ ह्रीं श्रीशीतलनाथ जिनेन्द्र अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधीकरणम् ॥
' अथ अष्टक । छंद योगीरासा। जल-पंचम उदधि तनो जल निर्मल मुनि मन सम शुचि लावें। मणि भंगार भराय अनुपम धारदेत
सुख पावें ॥ शीतल जिन के युग चरणांवुज पूजू मन वच काई। रोग शोक दुःख दारिद नाशे भव आताप मिटाई ॥ॐ ह्रीं श्रीशीतलनाथ जिनेन्द्राय गर्भ,जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय जन्ममृत्यु जरारोग विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।।
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संग्रह
१९७
चौबी०| चंदन-कुंकुम रंग कपूर सुमिश्रित मलियागिर घस लीनो। तासुगंध अलिगण आउँसो लेकर चर चीनो॥ -पूजन शीतल जिनके युग चरणांबुज पूजू मन वच काई । रोग शोक दुख दारिद नाशैं भव आताप
मिटाई॥ ॐ ह्रां श्रीशीतलनाथ जिनेन्द्राय गभ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय
संसारा ताप रोग विनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा। अक्षत-अनियारे अक्षत शुभ सुंदर निशि कर सम उजियारे । रतन थार भर तुम ढिगलाऊं पूज करूं
अति प्यारे ॥ शीतल जिनके युग चरणांबुज पूजू मनवच काई । रोग शोक दुःख दारिद नाशें भव आताप मिटाई॥ॐ ह्रीं श्रीशीतलनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान,निर्वाण पंचकल्याण
प्राप्ताय अक्षय पद प्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा। पुष्प-मेरु तने अथवा अवनीपर विटप महा छबि छाजे। जिन के समन सुमन सम नीके सौरभ 4 - अलिराजे ॥ शीतल जिन के युग चरणांबुज पूजू मनवच काई। रोग शोक दुख दारिद नाशें
भव आताप मिटाई॥ॐ ह्रीं श्रीशीतलनाथ जिनेन्द्राय गर्भ,जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण
प्राप्ताय कोमवाण विनाशनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा। | नैवेद्य-मोदक फेनी घेवर बावर गुंजा आदि मंगाई । घृत रस पूरे रसना रंजन नेवज आन चढ़ाई ॥
शीतल जिन के युग चरणांबुज पूजूं मनवच काई । रोग शोक दुख दारिद नार्थं भव आताप मिटाई ॥ ॐ ह्रीं श्रीशीतलनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय
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संग्रह:
चौबी०
क्षधा रोग विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा। . पूजन , दीप-घृत सनेह करपूर बातिका रतन दीप उजियारे।जोय धरे तुम सन्मुख हे जिन मोह अंधानरवारे॥
शीतल जिन के युग चरणाम्बुज पूजं मनवच काई । रोग शोक दुःख दारिद नाशें भव आताप मिटाई ॥ ॐ ह्रीं श्रीशीतलनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय
मोहांधकार विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा। .. धूप-कृष्णागर गोसीर सुचंदन ताकी धूप बनाई। स्वर्ण धूपायन में धर खेऊ चहुं दिशि गंधसु छाई॥ _शीतल जिनके युग चरणाम्बुज पूजू मन वचकाई। रोग शोक दुःख दारिद नाशै भव आताप मिटाई ॥ ॐ ह्रीं श्रीशीतलनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय
अष्टकर्म दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा । फल-श्रीफल आम अनार सुकेला एला चिरभट लावें। स्वर्ण थाल में धर अति प्राशुक देखत मन
ललचावें ॥ शीतल जिन के युग चरणाम्बुज पुजं मन वचकाई। रोग शोक दुःख दारिद नाशैं भव आताप मिटाई। ॐ ह्रीं श्रीशीतलनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म,तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण
प्राप्ताय मोक्ष फल प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।। अर्घ-वारि सुचंदन अक्षत वारिज नेवज विविध प्रकारा। दीप धूप फल वस विधि लेके अर्घ बनाय
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चौबी.
पूजन
प्राप्ताय
वग्रह
..
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.
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- सुधारा ॥ शीतल जिनके युग चरणाम्बुज पूजू मन वचकाई । रोग शोक दुःख दारिद नाशैं
भव आताप मिटाई। ॐ ह्रीं श्रीशीतलनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप,ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय अनर्घ पद प्राप्तये अर्घ निर्वपामीति स्वाहा !
अथ पंचकल्याणक । सोरठा। . गर्भ-आरण स्वर्ग विहाय, आठ कृष्ण सुचैत को। गर्भ सुनंदा आय, धनद रतन बरखाइयो ।
डों ह्रीं श्रीशीतलनाथ जिनेन्द्राय चैत्र कृष्णअष्टमी गर्भ कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपानीति स्वाहा। जन्म-माघ कृष्ण तिथि जान, चक्रेश्वर संज्ञा कही । जन्मे युतत्रय ज्ञान, शीतल शीतल करन को।
ॐ ह्रीं श्रीशीतलनाथ जिनेन्द्राय माघ कृष्ण द्वादशी जन्म कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीतिस्वाहा . तप-जन्म सुदिन तिथि आय, योग धरो बन जाय के । मन पर्यय उपजाय, ध्यायो आतम जिन तवै॥
डों ह्रीं श्रीशीतलनाथ जिनेंद्राय माघ कृष्ण द्वादशी तप कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वामीति स्वाहा ज्ञान-केवल लब्धि उपाय, पौष कृष्ण चौदस दिना । समवसरन सुख दाय,धनद देव रचना रचो॥
___ों ह्रीं श्रीशीतलनाथ जिनेन्द्राय पौष कृष्ण चतुर्दशी ज्ञान कल्याण प्राप्ताय अर्थनिर्वपामोतिस्वहा। .. निर्वाण-मोक्ष गये जिनराय, सम्मेवाचल शीसते । हम पूजें मन लाय, अष्टमिआश्विन शुकल को ॥
गेह्रीं श्रीशीतलनाथजिनेंद्राय आश्विन शुक्लाष्टमी मोक्ष कल्याण प्रप्ताय अनिर्वयामीति स्वाहा।
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चौबी० क्षधा रोग विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा। पूजन , | दीप-घृत सनेह करपूर बातिका रतन दीप उजियारे।जोय धरे तुम सन्मुख हे जिन मोह अंधानरवारे॥ संग्रह: शीतल जिन के युग चरणाम्बुज पूजू मनवच काई । रोग शोक दुःख दारिद नाशें भव आताप
मिटाई ॥ ॐ ह्रीं श्रीशीतलनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय
मोहांधकार विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा। धूप-कृष्णागर गोसीर सुचंदन ताकी धूप बनाई। स्वर्ण धूपायन में धर खेऊ चहुं दिशि गंधसु छाई॥
शीतल जिनके युग चरणाम्बुज पूजू मन बचकाई। रोग शोक दुःख दारिद नाशै भव आताप ... मिटाई ॥ॐ ह्रीं श्रीशीतलनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय
अष्टकर्म दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा । फल-श्रीफल आम अनार सुकेला एला चिरभट लावें। स्वर्ण थाल में धर अति प्राशक देखत मन
ललचावें ॥ शीतल जिन के युग चरणाम्बुज पखं मन वचकाई। रोग शोक दुःख दारिद नागें
भव आताप मिटाई। ॐ ह्रीं श्रीशीतलनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म,तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण• प्राप्ताय मोक्ष फल प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा । अर्घ-वारि सुचंदन अक्षत वारिज नेवज विविध प्रकारा। दीप धूप फल वस विधि लेके अर्घ ...,
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चौबी.
पूजन संग्रह. ४९९
सुधारा ॥ शीतल जिनके युग चरणाम्बुज पूजूं मन वचकाई । रोग शोक दुःख दारिद नारों भव आताप मिटाई । ॐ ह्रीं श्रीशीतलनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप,ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय अनर्घ पद प्राप्तये अर्घ निर्वपामीति स्वाहा! .
अथ पंचकल्याणक । सोरठा। गर्भ-आरण स्वर्ग विहाय, आठ कृष्ण सुचेत को। गर्भ सुनंदा आय, धनद रतन बरखाइयो । .... डों ह्रीं श्रीशीतलनाथ जिनेन्द्राय चैत्र कृष्णअष्टमी गर्भ कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपानीति स्वाहा। जन्म-माघ कृष्ण तिथि जान, चक्रेश्वर संज्ञा कही। जन्मे युतत्रय ज्ञान, शोतल शीतल करन को।
ॐ ह्रीं श्रीशीतलनाथजिनेन्द्राय माघ कृष्ण द्वादशो जन्म कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपामोतिस्वाहा तप-जन्म सुदिन तिथि आय, योग धरो बन जाय के । मन पर्यय उपजाय, ध्यायो आतम जिन तवै॥
डों ह्रीं श्रीशीतलनाथ जिनेंद्राय माघ कृष्ण द्वादशी तप कल्याण प्राप्ताय अघ निर्वामीति स्वाहा ज्ञान-केवल लब्धि उपाय, पौष कृष्ण चौदस दिना । समवसरन सुख दाय,धनद देव रचना रचो॥ ____ह्रीं श्रीशीतलनाथ जिनेन्द्राय पौष कृष्ण चतुर्दशी ज्ञान कल्याण प्राप्ताय अनिर्वपामोतिस्वहा । निर्वाण-मोक्ष गये जिनराय, सम्मेदाचल शीसते । हम पूजें मन लाय, अष्टमिआश्विन शुकल को ॥ ____ों ह्रीं श्रीशीतलनाथजिनेंद्राय आश्विन शुक्लाष्टमी मोक्ष कल्याण प्रप्ताय अर्थनिर्वपानीति स्वाहा ।।
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चौबी.
पूजन
सग्रह
५००
अथ जयमाला । दोहा। | महाअर्घ-शीतलनाथ जिनंद तन, नव्वै धनुष प्रमान। हेमवरण अति सोहनों, सुरतरु लक्षग जान ॥
चौपाई-नम नमूं जिन शीतल नाथ । शरणागत को करत सनाथ ॥ भवदधि तारण पोत समान । अधम उधारण को भगवान ॥ २॥ तज आलस अति हरषित होय । तुमरो दर्श लखे जन कोय ॥ सो होवे निश्चय सरदही। सहस्राक्ष कर दरशत सही ॥३॥ तुमरो पंथ गहे जे आय । तेशिव पुर को गमन कराय ॥ जो तुमरे गुण गावे ईश । तिन गुण गावे सकल मुनीश ॥ ४॥ तुमरे चरण विषे लंब लाय । ते जन वीतराग पद पाय । नृत्य करे तुम आगे कोय ॥ तिस घर शक्री नटवा होय ॥ ५॥ तुम चरणाम्बुज रजशिर लहे । परम औषधी सम शर दहे। कुष्ट आदि सब रोग नसाय । कोटि भानु सम तन दरसाय ॥६॥ जे जन रूप लपें तुम देव । करें कुदेव तनी नही सेव ॥ मकर ध्वज सम रूप रसाल । भव भव तन पावे सुख माल ॥७॥ जे वाणी तुमरी चित धरें। अन्य ग्रन्थ शरधा नहिं करें ॥ ते बहु श्रुत के पाठी होय। केवल ज्ञान लहें नर सोय ॥ ८॥ तुमरो न्हौन करे चितधार । सुवरण रतन कलस भर वार ॥ ताको मेरु सुदर्शन जाय । मघवा न्होन करे हरषाय ॥ ९ ॥ अष्ट द्रव्य अति प्राशुक लाय । पूजा करे भविक हरषाय ॥ पूजनीक पद पावे सोय । इंद्रादिक कर पूजित होय ॥ १० ॥ भली भांत जानी तुम रीत । भई नाथ मेरे परतीत ।। यातें चरण कमल में आय। भ्रमर समान
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चौबी० - पूजन
संग्रह ... ५०१
रहूं लवलाय ॥ ११ ॥ भयो सौख्य सो कह्यो न जाय । सकल सिद्धि में आज लहाय ॥ तुम गुण को पाऊं नहिं ओर । कर बौनती युग कर जोर ॥ १२ ॥ वखतावर रतना इम भनी। हन को दीजे त्रिभुवन धनी ॥ भवभव शरण तिहारी इंश । पावें सदाजु हे जगदीश ॥ १३ ॥ - पत्ता छन्द-शीतल गुण केरी माल उजेरी टारत फेरी भवकेरी । जे पूज रचावें मंगल गावें तिन घर रामा है चेरी ॥ १४ ॥ ॐ ह्रीं श्रीशीतलनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय अनर्घ पद प्राप्तये महाघ निर्वपामीति स्वाहा। अथ आशीर्वादः-सोरठा-शीतलनाथ जिनंद, जे पूजे मन लाय के।
पढें पाठ सुखकंद, सो पावें संपत अर्थे ॥ १५॥ इत्याशीर्वादः ॥ . इति श्रीशीतलनाथजिन पूजा संपूर्णा ॥ १० ॥
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११ अथ श्रीश्रेयांसनाथजिन पूजा प्रारभ्यते।
चौवी० पूजन संग्रह ५०२
(वखतावरसिंहकृत) छंद भुजंगप्रयात ।। स्थापना-श्रियांसं जिनेशं सुमेटे कलेशं, पिता बिम्ल के चर्न सेवें सुरेशं ।
पुरी पंच आनन में जन्म लीना, सुथा तुम्हें तिष्ठिये हे प्रवीना ॥ १ ॥ ॐ ह्रीं श्रीश्रेयांसनाथ जिनेन्द्र अत्रावतराऽवतर संवौषट् आह्वाननम् । ॐ ह्रीं श्रीश्रेयांसनाथ जिनेन्द्र अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठाठः स्थापनम् ।। ॐ ह्रीं श्रीश्रेयांसनाथ जिनेन्द्र अत्र मम सन्निहितों भवभव वषट् सन्निधीकरणम् ॥
अथ अष्टक। (चाल अठाई रासेकी) जल-हेजी प्राशुकजल शुभ लाय के, कंचन के कलश भराय । हेजी प्राणी सन्मुख धारा देत ही, रागा
दिक मल नस जाय प्राणी ॥ हेजीश्रेयनाथ पद पूजिये। पूजत सब इन्द्र सुआय प्राणी श्रेयनाथ
पद पूजिये। उौं ह्रीं श्री श्रेयांसनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण - प्राप्ताय जन्म मृत्यु जरारोग विनाशनाय जलंनिर्वपामीतिस्वाहा ॥ चंदन-हेजी बावन चंदन सीयरो, केसर संग घसाय प्राणी । जिन चरणन अरचा करू,संसार दाघ
मिट जाय प्राणी॥ हेजीश्रेयनाथ पद पूजिये। पूजत सब इन्द्र सुआय प्राणीश्रेयनाथ पद पूजिये।
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चौबी०. ॐ ह्रीं श्रीश्रेयांसनाथ जिनेन्द्राय गर्भ जन्म तप ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय संसारा
ताप रोग विनाशनाय चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा ॥ .. संग्रह. अक्षत-हेजी मुक्ता सम अक्षत लिये, रजनी पति की उनहार, प्राणी। पुंज करे. अति सोहने, ते पद . ५०३ पावें अविकार प्राणी ॥ हेजी श्रेयनाथ पद पूजिये । पूजत सब इन्द्र सुआय प्राणी श्रेयनाथ पद
पूजिये॥ ॐह्रीं श्रीश्रेयांसनाथ जिनेन्द्राय गर्भ,जन्म तप,ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय अक्षय • पद प्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा। पुष्प-हेजीराय बेल ले केतकी, इन आदिक सुमन अपार प्राणी। चरणन पास चढाइये, दे मदन वान
निरवार प्राणी ॥ हेजी श्रेयनाथ पद पूजिये । पूजत सब इन्द्र सुआय प्राणी श्रेयनाथ पद पूजिये । • ह्रीं श्रीश्रेयांसनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म,तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय कामवाण
विनाशनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा । नैवेद्य-हेजी व्यंजन तुरत बनायके,चरु मिष्ट मनोहर आन प्राणी । कंचन थारी में धरे,पूजत द्वै क्षुधाकी
. हान प्राणी । हेजी श्रेयनाथ पद पूजिये। पूजत सब इन्द्र सुआय प्राणी श्रेयनाथ पद पूजिये । ..... ॐ ह्रीं श्रीश्रेयांसनाथ जिनेन्द्राय गर्भ,जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय क्षुधा रोग
विनाशनाय नैवेद्यं निवंपामीति स्वाहा । दीप-हेजी रतनन के दीपक बने,घृत पूरित जोत जगाय प्राणी। जगमग जगमग कर रहे जिन आगे
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संग्रह
चौबी० मोह नसाय प्राणी ॥ हेजी श्रेयनाथ पद पूजिये । पजत सब इन्द्र सुआय प्राणी श्रेयनाथ पद पूजन : पूजिये । ॐ ह्रीं श्रीश्रेयांसनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप,ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय
मोहांधकार विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।। ५०४ धूप-हेजी अगर तगर चन्द मिले, दश गंध हुताशन मांह प्राणी। खेवत प्रभु आगे भली, सब अष्ट
करम जरजांय प्राणी ॥ हेजीयनाथ पद पूजिये। पूजत सव इन्द्र सुआय प्राणी श्रेयनाथ पद पूजिये । ॐ ह्रीं श्रीश्रेयांसनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय
अष्ट कर्म दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा। फल-हेजी श्रीफल सेव अनार ही, पिस्ता बादाम छहार प्राणी । रतन रकाची में भरे, ध्यावत पाये
शिवनार प्राणी ॥ हेजी श्रेयनाथ पद पूजिये॥ पूजत सब इन्द्र सुआय प्राणी श्रेयनाथ पद पूजिये . . ॐ ह्रीं श्रीश्रेयांसनाथ जिनेन्द्राय गर्भ,जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्तांय मोक्षफल
प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा । अर्घ-हेजी ओठों द्रव्य प्रकार के, शुभ अर्घ करो मन लाय प्राणी। श्रेयनाथ आगे धरे, संसार जलधि
तिरजाय प्राणी। हेजी. श्रेयनाथपद पूजिये ॥ पूजत सब इन्द्र सुआय प्राणी श्रेयनाथ पद पूजिये। ॐ ह्रीं श्रीश्रेयांसनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञाननिर्वाण पंचकल्याण प्राप्तय अनर्घ पद प्राप्तथे अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।
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चौबी. पूजन संग्रह
- अथ पंचकल्याणक । छंद पायता। गर्भ-तजके पुष्पोत्तर आये, विमला माता सुख पायो आले जेष्ठ छह को ध्याऊं, तादिन में पूज रचाऊं॥ - डोंह्रीं श्रीश्रेयांसनाथ जिनेन्द्राय ज्येष्ठ कृष्ण षष्ठी गर्भ कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीतिस्वाहा। जन्म-इक्ष्वाक वंश में आई,जन्मे त्रिभुवन सुख दाई । फागन ग्यारस अंधियारी, मैं पूजू अष्ट प्रकारी॥
हीश्रीश्रेयांसनाथजिनेन्द्राय फाल्गुणकृष्ण एकादशीजन्मकल्याण प्राप्तायअघनिर्वपामीतिस्वाहा तप-सबभोग अनित्य निवारे, तप दुर्द्धर श्रीधर धारे। दिन जन्म तनो शुभजानो,हमपूजें दुखः सबहानो।
डों ह्रींश्रीश्रेयांसनाथजिनेंद्राय फाल्गुण कृष्णएकादशी तपः कल्याणप्राप्तायअर्घ निर्वपामीतिस्वाहा ज्ञान-सूर्येन्द्र संगम जानो, तिथि माघकृष्ण उर आनो।शुभ केवल ज्ञान सुपायो,हम तुमपद पूजरचायो।
ॐ ह्रीश्रीश्रेयांसनायजिनेंद्रीय माघकृष्णअमावस्या ज्ञानकल्याण प्राप्ताय अर्थनिर्वामीतिस्वाहा॥ निर्वाण-चारों अघातिया चूरे.शिव मांह बसे सुख पूरे। सम्मेद शैल ते पाई,श्रावण सित पूनम आई॥ डौंडी श्रीश्रेयांसनाथ जिनेंद्राय श्रावण शुक्ल पूर्णिमामोक्ष कल्याण प्राप्ताय अनिर्वपामीतिस्वाहा।।
.. . अथ जयमाला।दोहा।..... .. महाअर्घ- अस्सी चाप उतंग तनु, हेम वरण छविदेत । गैंडा लक्षण चर्न में, श्रेयनाथ भव सेत ॥१॥
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चौबी०
छन्द.पद्धड़ी-जय जय श्रेयांस तुम गुण अनंत, गणधर वरणत पावे न अंत । अतिशय दश पूजन सहित जाए जिनंद, पित मात तबै बाढो अनंद ॥ २ ॥ संहनन आदि संस्थान सार, शुभ लक्षण बल संग्रह" बीरज अपार । हित मित कारी तुम वचन जोय, सित श्रोणित तन में मलन होय ॥३॥वपु सहित । ५०६ । सुगंध न स्वेद होत, तुम रूप देख रबि लजत जोत। फिर समवसरन में दश लहाय, चतुरानन छवि
वरनी न जाय ॥ ४॥ जय आप करत नभ में विहार, सब जीव लहें साता अपार । सत योजन लोय सुभिक्ष थाय,उपसर्ग रहित छाया विहाय ॥ ५॥ सब विद्या के ईश्वर महान, नख कच बाढत न अहार मान। यष झपत नहीं भृकुटी नसाय, धनधान्य जीव तुम दरश पाय ॥६॥ अमरन कृत चौदह तित सुजान, अवनी दीषत दर्पण समान । षट् ऋतु के फूल दिपैं अपार, सब जंतु मित्रता भाव धार। , ॥७॥ बाजत समीर त्रय गुण समेत,बारिज वर्णन तल छबि सुदेत । दिश निर्मल सब आनंद कंद,
गंधोदक वरषत मंद मंद ॥ ८॥ है मागधि भाषा अति महान, सब फले अठारह भेद नाम । मल । बर्जित सुर नभ जय करत, शुभ धर्म चक्र आगे चलंत ॥९॥ वसु मंगल द्रव्य समेत एव, चौंतिस ।। अतिशय कर सहित देव । जय अष्ट प्राति हारज दिपंत, हग शर्म ज्ञान बीरज अनंत ॥१०॥ इम
छियालीस गुण सहित ईश, विहरत आये सम्मेद शीस। तहां प्रकृति पिचासी छीन कीन, शिव जाय '! विराजे शर्म लीन ॥११॥ गुण अगुर लघु आदिक लहाय,उत्पादक व्यय ध्रुव सब लखाय । बखतावर " रतन कहें बनाय, मम संकट में हूजे सहाय ॥ १२ ॥
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चौषी० , पत्ता छंद-श्रेयांस कृपाला दीनदयाला भव दुःख टाला गुण माला। हम नित प्रति ध्यावे -पूजन . मंगल गावें शिव सुख पावें दर हाला॥ १३ ।। . संग्रह • ह्रीं श्रीश्रेयांसनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंकल्याण प्राप्ताय अनर्ध ५०७
.. . पद प्राप्तये महाघ निर्वपामीति स्वाहा । "अथ आशीर्वादः । अडिल-श्रेयनाथ जिन तनी सरस पूजा करें । जे बाचें यह पाठ हरष उर में धरै॥ तिन घर ऋद्धि अपार सकल मंगल रलैं। अनुक्रम ते शिव जाय सर्व अघको दलें ॥१४॥
___ इत्याशीर्वादः । इति श्रीश्रेयांसनाथ जिन पूजा सम्पूर्णा ।। ११ ।।
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चौबी० पूजन
संग्रह
५१०
सवास पूज्य देव के पदारविंद लाल हैं। नमें सरेद्र चंद्र आय नाय के सुभाल हैं । ___ों ह्रीं श्रीवासुपूज्य जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्तायमोहांध
कार विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा । धूप-करूं जु अब तन चूर चंदनादि जानिये। दिये अपार कर्म दुःख खेयते सुहानिये ॥ . सुवासु पूज्य देव के पदारबिंद लाल हैं । नमें सुरेन्द्र चंद्र आय नाय के सुभाल हैं।
• ह्रीं श्रीवासुपूज्य जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय अष्ट
कर्म दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा। फल-अनार अंब सेव पक्क चिर्भटादि लीजिये । चढाय हुं सरोज चर्न मोक्ष सोरु य दीजिये। सुवासु पूज्य देव के पदार बिंद लाल हैं। नमें सुरेंद्र चन्द्र आय नाय के सुभाल हैं : डों ह्रीं श्रीवासुपूज्य जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय मोक्ष
फल प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।। अर्घ-जल फलादि द्रव्यसार अष्टजो मिलाय के। लाय हूं जिनेश अग्र अब को बनाय के ॥ सुवासु पूज्य देव के पदार बिंद लाल हैं । नमें सुरेंद्र चंद्र आय नाय के सुभाल हैं ॥ • ह्रीं श्रीवासुपूज्य जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय अनर्घ . पद प्राप्तये अर्घ निर्वपामीति स्वाहा ।
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चौबी.
अथ पंचकल्याणक । चाल चून्दडी की। पूजन
गर्भ-साढ कृष्ण छठ पावनी, गर्भ विर्षे जिन आय हो । श्रीआदिक देवी सबै, सेवे माता पाय हो॥ संग्रह
___गर्भ कल्याणक पूज हूं ॥ ौं ह्रीं श्रीवासुपूज्य जिनेन्द्राय आषाढ कृष्ण षष्ठी गर्भ कल्याण ५११ : प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।।
जन्म-फागुण चौदशि कृष्ण ही, जन्मे श्री जिन देव हो।इंद्रत गिरि मेरुपै, न्हवन करों कर सेव हो॥
जन्म कल्याणक पूज हूँ। रों ह्रीं श्रीवासुपूज्य जिनेन्द्राय फाल्गुण कृष्ण चतुर्दशी जन्म कल्याण
प्राप्ताय अर्घ निवपामीति स्वाहा। तप-भव तन भोग असार है,कर विचार जिन राय हो। बाल पने दीक्षा लही, जन्म तने दिन आय हो। ... तप कल्याणक पूज ९॥ ौं ह्रीं श्रीवासुपूज्य जिनेंद्राय फाल्गुण कृष्ण चतुर्दशी तपः कल्याण _प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा ॥ ज्ञान-केवल ज्ञान प्रकाशियो, माघज दोयज शुक्ल हो। भव्यातम वोधे घने, शुभ विहार जिन कीजहो
ज्ञान कल्याणक पूज हूं ॥ह्रीं श्रीवासुपूज्य जिनेन्द्राय माघ शुक्ल द्वितीया ज्ञान कल्याण ___प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।। | निर्वाण-योग निरोध किये सबै, चंपापुर वन आय हो। भाद्रों श्वेत चतुर्दशी, मोक्ष जिनेश्वर पाय हो॥
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होती पूजन संग्रह
. मोक्ष कल्याणक पूज हूँ॥ उौं ह्रीं श्रीवासुपूज्य जिनेन्द्राय भाद्रपद शुक्ल चतुर्दशी मोक्ष कल्याण . प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।
.. अथ जयमाला। दोहा।। महाअर्घ-बाल ब्रह्मचारी प्रभु, अरुण बरण अविकार । सत्तर धनुष सुउच्च तन,वासु पूज्य भवतार॥१॥
" भुजंग प्रयात छंद-अजी नाथजी, एक अर्जी हमारी, सुनों चित्त देके कहूं में प्रचारी। सबै आप के ज्ञान तेरे सुछाई, कहूं क्या भला मैंने जो दुःख पाई ॥२॥यही आठ कर्म दिये दुःख भारी, सुनें कौन मेरी करूं जो पुकारी । सबों में अगारी महा मोह राजा, भ्रमायो हमें बहुत कीनों अकाजा। ॥३॥ दुती ज्ञान वर्न हरी बुद्ध मेरी, न होने दई नाथ ज्ञानं उजेरी । तृती दर्शना बर्न देखन्न देवे, छुटे फंद याको तबै आप बेवे ॥४॥ बली अंतरायं करी जो नवीनी, छती बस्तु मोको जु भोगन्न दीनी। बडो नाम कम सबै जेर कीने, गिने नहिं जावे इते नाम दीने ॥५॥ जबै गोत कर्म कियो आन फेरो, कभी उच्च कीनो कभी नीच चेरो। कभी सागरों की धरी आय केती, कभी स्वासके भाग में आय एती॥ ६॥ भली बेदनी स्वर्ग के सुक्ख धारे, असाता उदय नर्क में आनडारे । यही बंध मूलं कुभव में भ्रमायो, डरो में इन्हों से तेरी शर्ण आयो॥७॥ बचावो इन्हों से अजी आप स्वामी, बडो वृद्ध तेरो सबै माहनामी । जिते शर्न आये तिते पार पाये, तिनोंके चरित्रं कथा बेद गाये ॥८॥ सबै देव
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५१३
चौबी०|| देखे नहीं तो समाना, जु कोई धरे तीय कोई कमाना । जब काम ने आन के शरजु मारे, तबै भ्रष्ट || • पूजन
ब्रह्मादि हुवे सुसारे ॥९॥तजी आपने मांग बाला तुम्हारी, वरी नाहिं नारी भये ब्रह्मचारी। बहत्तर लख संग्रह
वर्ष की आय सारी, किये नाह राजं बने योग धारी ॥१०॥ सबै कर्म जारे गही मोक्षनारी, सुउद्यान | चंपापुरी के मंझारी। प्रभुदास को आपनो बास दीजे, जोई आप भावे वही बेग कीजे ॥ ११॥:::
घत्ताछन्द-जैजै जग खंडन सब गुण मंडन बासुपूज्य जिन काम हना । बखता नित ध्यावे मंगल गावे आतम ज्ञान प्रकाश घना ॥१२॥ रों ह्रीं श्रीवासुपूज्यजिनेंद्राय गर्भ जन्म तप ज्ञान निर्वाणपंचकल्याण प्राप्ताय अनर्घपदप्राप्तये महाघ निर्वपामीति स्वाहा ॥ .. .. अथ आशीर्वादः । छप्पय सिंहावलोकन-जो पूजे मन लाय पूजपद ताको होवे, होवे काम स्वरूप सर्व ..दुःख दारिद खोवे । खोवे सकल अज्ञान करे अनुमोदन कोई, कोई बांचे पाठ तास घर संपति
होई । हो इस लोक को छिनकमें, छिन में पावे शिव सिरी। श्रीवासुपूज्य जिन राज की, रतन भली पूजा करी ॥३॥ इत्याशीर्वादः ॥ इति श्रीवासुपूज्य जिन पूजा संपूर्णाः ॥ १२ ॥
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चौबी०
१३ अथ श्री विमलनाथर्जिन पूजा लिख्यते।
संग्रह
५१४
(बखतोवरसिंहकृत) छंद । स्थापना-श्री विमल जिनवर जन्मलीनो नगर कंपिल्या कही।
कृत धर्म के सुत ऊपने जिस मात जय सेन्यासही ॥ ., शूकर चिहन चरनन विराजे तिष्टये इत आय के। ...: मैं हाथ जोड़ करूं सुर्विती थाप हूँ सिर नाथ के॥१॥ " डों ह्रीं श्रीविमलनाथ जिनेन्द्र अत्रावतराऽवतर संवौषट् आह्वाननम्। , डों ह्रीं श्रीविमलनाथ जिनेन्द्र अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठाठः स्थापनम् ।। .उौं ह्रीं श्रीविमलनाथ जिनेन्द्र अत्र मम सन्निहितो भवभव वषट् संन्निधीकरणम् ।।
. . अथ अष्टक । बसंत तिलका छंद। जल-मुनि मन समसीरं वारि उज्वल सु लाऊं। भर कनक सुझारीधारतोकोचढाऊ॥तुम विमल जिनंदा - मात जयसेन नंदा।जजहचन तेरे काटिये कर्म फंदा॥ोंह्रीं श्रीविमलनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म
तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय जन्ममृत्युजरारोग विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा। चंदन-लेय शुभ हर गंधसंग कुंकुम रलाऊं,धर रतन कटोरी पूज तेरी रचाऊं ॥ .. . - ..
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चौबी०
...मात जयसेन नंदा। जजहू चर्न तेरे काटिये कर्म फंदा॥डोंह्रीं श्रीविमलनाथ जिनेन्द्राय गर्भ,जन्म, पूजन
तप, ज्ञान, निर्वाणपंचकल्याण प्राप्ताय संसाराताप रोगविनाशनाय चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा । संग्रह | अक्षत-निशि कर सम श्वेतं सार तंडुल नवीने । निर्मल जल धोये पुंजताके करीने । तम विमल जिनंदा
.: मात जयसेन नंदा। जजहूचनं तेरे काटिये कर्म फंदा ॥ ॐ ह्रीं श्रीविमलनाथ जिनेन्द्राय गर्भ,
जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय अक्षय पद प्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा। पुष्प-सुमन कलप केरे कुंद बेला चुनाये। उड़त तिस सुगंधा तास पे भौर छाये ॥ तुम विमल जिनंदा
मात जयसेन नंदा। जजहू'चर्न तेरे काटिये कर्म फंदा ॥ डों ह्रीं श्रीविमलनाथ जिनेन्द्राय गर्भ,
जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय काम वाण विनाशनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा । नैवेद्य-घृत कर कीने चार मोदक जुताजे । भर सुवरण थारं पूजते भूख भाजे ॥ तुम विमल जिनंदा . . .मात जयसेन नंदा । जज हूं चर्न तेरे काटिये कर्म फंदा ॥ डों ह्रीं श्रीविमलनाथ जिनेन्द्राय गर्भ,
जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय क्षधा रोग विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा। दीप-मणि कनक जड़ाये तास दीवे बनाये। बहु जग मगजोतं थार भर के चढाये॥ तुम विमल जिनंदा
मात जयसेन नंदा । जजहचर्न तेरे काटिये कर्म फंदा॥ों ह्रीं श्रीविमलनाथ जिनेन्द्राय गर्भ,
जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय मोहांधकार विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा । धप-अगर तगर गंधं खेय हूं धूप दानं । मम करम दहीजे दीजिये आप थानं ॥ तुम विनल जिनंदा ||
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चौबी० पूजन
मात जयसेन नंदा। जजहूं चर्न तेरे काटिये कर्म फंदा ।। ॐ ह्रीं श्रीविमलनाथ जिनेन्द्राय गर्भ,
जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय अष्ट कर्म दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा। फल-फल मधुर रसीले सेव दाडिम सुलाये। लख ललित अनुपा सर्व इंद्री लुभाये॥ तुम विमल जिनंदा
मात जयसेन नंदा । जजहूं चर्न तेरे काटिये कर्म फंदा। ॐ ह्रीं श्रीविमलनाथ जिनेन्द्राय गर्भ,
जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय मोक्ष फल प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा। अर्घ-जल फल बसु लेके द्रव्य सारे समारे। कर रतन रकावी पूज हूं अर्घ धारे ॥ तुम विमल जिनंदा
मात जयसेन नंदा। जजहं चर्न तेरे काटिये कर्म फंदा ॥ ॐ ह्रीं श्रीविमलनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय अनर्घ पद प्राप्तये अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।
.. अथ पंचकल्याणक । चौपाई। गर्भ-शुक्र सुरग तज आये एव । माता सेन्या गर्भ सुदेव । जेठ कृष्ण दशमी सुखकारि। सेव करें
नित छपन कुमार ॥ अह्रीं श्रीविमलनाथ जिनेन्द्रीय ज्येष्ठ कृष्ण दशमी गर्भ कल्याण प्राप्ताय , अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।। जन्म-माघ श्वेत तिथि तुरी बखान । जन्मे तीन ज्ञान युत आन ॥ कंपिल्ला नगरी शुभ सार। भए
सु घर घर मंगल चार ॥ ॐ ह्रीं श्रीविमलनाथ जिनेन्द्राय माघ शुक्ल चतुर्थी जन्म कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।।
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- पूजन ... 'संग्रह
चौबी० तप-कारण लख वैराग उपाय, रतन जडित शिविका हरि लाय ॥ कानन में तप दुर्द्धर धार, जन्म
तनो दिन है अविकार ॥ ॐ ह्रीं श्रीविमलनाथ जिनेन्द्राय माघ शुक्ल चतुर्थी तपःकल्याण प्राप्ताय
. अर्घ निर्वपामीति स्वाहा। . ५१७
ज्ञान-चार घातिया कर्म निवार, केवल जोत जगी सुख कार॥माघ शुक्ल षष्ठी दिन जोय, हम पद
पूजे हरषित होय ॥ ॐ ह्रीं श्रीविमलनाथ जिनेन्द्राय माघ शुक्ल षष्ठी ज्ञान कल्याण प्राप्ताय ...: अर्घ निर्वपामीति स्वाहा। निर्वाण-भ्रमर षाढ अष्टमके दिना। सम्मेदाचल तें शिव जिना ॥ पायो विमल विमल पद श्वेत । हम ||
पद पूजें हरष समेत । ॐह्रीं श्रीविमलनाथ जिनेन्द्राय आषाढकृष्ण अष्टमीमोक्ष कल्याण प्राप्ताय ..अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।
_ अथ जयमाला। दोहा।। महाअर्घ-धनुष साठ तन सोहनो, तप्त हेम सम जान । दीजे बुद्धि दयालमम,वरणू पंचकल्याण ॥ छन्द कामिनी मोहन-नाथ विमलेश पद विमल शोभा लहै । इंद्र नागेंद्र नर सेव तेरी गहै॥ जान शुभ
जेठ की कृष्ण दशमी दिना । स्वर्ग सहस्रार को त्याग के हे जिना ॥२॥ आर्या छन्द-मति श्रुति अवधि सुलाये, आन विराजे सु कूष माता की। धनद रतन बरषाये, इंद्रादिक ||
करें सेव त्राता की ॥३॥
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चोषी० छंद कामिनी मोहन-सेव देवी करें सरस अंबा तनी। नगर कंपिल्लका अधिक शोभा वनी॥ मांस नौ पूजन
गर्भ के सार सख में गये। तात को भप सब शीस नावत भये ॥४॥ संग्रह आर्या छंद-जन्में त्रिभुवन स्वामी, शुकल चतुर्थी माघ की आई। सकल सुरासुर नामी, आसन कंपात
. शीस सब नाई॥५॥ छन्द कामिनी मोहन-शीसको नाय के चलन उमगो हरी । रचो ऐरावती मानकेधन घरी॥जासके रदन
___ बहुतास पै सर बने । कमलिनी पत्र पै नृत्य देवी ठने । आर्याछंद-ताल मृदंग सुभेरी,बीना बंशी सुचंगसुर नाई। नाचेलेले फेरी,हाव भावसहित सप्तसुरगाई। छन्द कामिनी मोहन-गात बहु भांत पग झमक झमक झमकती। छमकछं छमकछं चमकचं चमकती॥
दमकदं दमकदं दामिनीसीभ्रमें । त्रिदश सब देखके शीस तम को नमें ॥ आर्याछंद-इत्यादि शोभभारी,मघवा लेलार आयपुर माही। मायामई शिशु धारी,शची लायइंद्र देय हरषाई छन्द कामिनी मोहन-लेय गीर्वाण गजराज चढके चले।जाय गिरि मेरु पैसकल ही सुररले॥ सहस अर
___ आठ तब वारि कलशे भरे। धार तुम शीस पै इंद्र कर ते ढरे ॥ १०॥ आर्या छंद-न्हौंन तनी विध सारी। करके श्रृंगार तात घर लाये । नृत्य कियो अति भारी,पूजे पित मात
‘धाम निज ध्याये ॥११॥ छंदकामिनी मोहन-ध्याय बहुधनदनित सेव थारीकरी । कुमर वय तरुण लह राज पदवी धरी ।राज को ..
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संग्रह . ५१९
चौबी०
.: छाड बन जाय दीक्षा गही। धार निज ध्यान को कर्म तैं जय लही ॥१२॥ पूजन
| आर्याछंद-पायोकेवलज्ञान,दीनो उपदेश भव्यबहुतारे। शिखर समेद महानं,पाईशिवसिद्धअष्ट गुणधारे।। | छन्द कामिनी मोहन-धार गुण सिद्ध के आप नामी भये । पूजता अवनि को शक निज थल गये। | हे दया सिंधु यह टेर सुन लीजिये। दास बखता रतन तास शिव दीजिये ॥१४॥ घत्ता छन्द-जय विमल जिनेश्वर कर्म हनेश्वर दुःख दरिद्र नाशे पलमें। जे पूजा भारी करें तुम्हारी ||
ते उपजे जा शिवथल में ॥१५॥
ॐ ह्रीं श्रीविमलनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय ||
.: . अनर्घ पद प्राप्तये महाअघ नि पामीति स्वाहा ॥ अथ आशीर्वादः । सोरठा-पूज पढ़ें यह पाठ, अथवा अनुमोदन करें। अष्ट करम को काट, ते पावें || शिव सुख महा ॥ १६ ॥ इत्याशीर्वादः । इति श्रीविमलनाथजिन पूजा संपूर्णा ॥ १३ ॥
ना
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१४ अथ श्रीअनन्तनाथ जिन पूजा प्रारभ्यते॥
चौबी० पूजन संग्रह ५२०
(बखतावरसिंह कृत) माधवी छंद । स्थापना-तज के पुष्पोत्तरसार बिमान, पिता हरसेन के पुत्र कहाये। .
जगमात सु सूर्य के नंदन आप, भवो दधित भव पार लगाये॥ -ज़िनऽनंत तुम्हें हम थापत हैं, मन शुद्ध किए अति ही उमगाये। जिन नाथ हमें अब कीजे सनाथ, सुदास के काज सबै बन आये ॥ १ ॥ ॐ ह्रीं श्री अनंतनाथ जिनेंद्र अत्रावतराऽवतर संवौषट् आह्वाननम् । ॐ ह्रीं श्रीअनंतनाथ जिनेंद्र अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम् ॥
ॐ ह्रीं श्री अनंतनाथ जिनेंद्र अत्र मम संनिहितो भव भव वषट् संन्निधी करणम् ।
..... (अथअष्टक ) गीता छंद। जल-जोहिमनगिरिपै पदम हद शुभ, तास को जल लाइये। भरगंध मिश्रित धार दीजे, तृषा रोग
नशाइये ॥ श्री नंत जिनवर छवि सुतेरी, देखते नाशें अरी। इंद्र चंद्र धनेन्द्र चक्री, आनपद सेवाकरी ॥ ॐ ह्रीं श्री अनन्तनाथ जिनेद्राय गर्भ जन्म तप ज्ञान निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय जन्म मृत्युजरारोग विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा ॥
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चौवी०
पूजन
संग्रह
५२१
.
.::
।
।
चंदन-घनसार गंध घसाय चंदन, कनक थाली में धरो। तुम चरण चरचुं भाव सेती, दाह मेरी सब
हरो ॥ श्री नंतजिनवर छबि सुतेरी, देखतें नाशें अरी। इंद्र चंद्र धनेन्द्र चक्री, आन पद सेवा करी॥ॐ ह्रीं श्री अनन्त नाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय
संसाराताप रोग विनाशनाय चन्दननिर्वपामीति स्वाहा। अक्षत-सित फेन गंग तरंग जैसे, सार अक्षत कर लिये। पद अदाता के सुढिग में, पुंज नीके धर
दिये ॥श्री नंतजिनवर छवि सुतेरी, देखते नाशें अरी॥ इंद्र चंद्र धनेन्द्र चक्री, आनपद सेवा करी ॥ ॐ ह्रीं श्रीअनन्तनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय
अक्षय पद प्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा॥ पुष्प-गेंदा गलाब अरु सेवती जूही चमेली चुन लई ।धारे चरण ढिग सुमन में पीडा मनोज तनी
गई ॥ श्री नंत जिनवर छबिसुतेरी देखतें नाशें अरी । सब इंद्र चंद्र धनेंद्र चक्री आन पद सेवा करी ॥ ॐ ह्रीं अनन्तनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय
काम वाण विनाशनाय पुष्पं निर्वपामीतिस्वाहा ॥ नैवेद्य-पकवान नीके सरस घीके, सितारस में पक रहे। यह क्षुधारोग विनोश मेरी, चरण तेरे लग
रहे॥श्री. नंत जिनवर छबि सुतेरी देखते नाशें अरी। सब इंद्र चन्द्र धनेन्द्र चक्री, आन पद ||
.
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पूजन
जाना
चौबी० सवा करी॥ ॐ ह्रीं श्रा अनन्तनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान निर्वाण पंचकल्याण
प्राप्ताय क्षुधारोग विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा ।। संग्रह' दीप-दीपक नवीने बार दीने, सरस होत उजासका । मम मोहध्वांत विनाश कीजे, सुपर ज्ञान ५२२
प्रकाशका ।श्री नंत जिनवर छबि सुतेरी, देखतें नाशें अरी। सब इंद्र चंद्र धनेन्द्र चक्री आज पद सेवा करी ॥ॐ ह्रीं श्री अनन्तनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण
प्राप्ताय मोहांधकार विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा ॥ धूप-करपूर कृष्णागर सुचंदन,लौंग आदि मिलायहूं । दश गंध खेऊ ढिग तुम्हारे, अष्ट कम जराय
हूं॥श्री नंतजिनवर छवि सु तेरी , देखते नाशें अरी, सब इंद्र चंद्र धनेन्द्र चक्री आन पद
.सेवा करी॥ ॐ श्री अनन्तनाथ जिनेन्द्रायगर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय . . अष्ट कर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा ॥ फल-बादाम पिस्ता दाख दाडिम, षारिकादि मंगाईये । धारूं सुपद ढिग थाल भरके, देत सब सुख
पाइये ॥श्री नंतजिनवर छवि सुतेरी, देखते नाशे अरी । सब इंद्र चंद्र धनेन्द्र चक्री, आन पद सेवा करी ॥ ॐ ह्रीं श्री अनन्तनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञाननिर्वाण पंचकल्याण
प्राप्ताय मोक्षफल प्राप्तये फलंनिर्वपामीतिस्वाहा॥ . अर्घ-लेबारि गंधमयी सुअक्षत, . मन नेवः ।
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चौबी०
संग्रह ५२३.
ही॥श्री नंतजिनवर छबि सुतेरी, देखते नारों अरी । सब इंद्र चंद्र धनेन्द्र चक्री, आनपद
सेवा करी ॥ ॐ ह्रीं श्री अनन्तनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाणपंचकल्याण पूजन प्राप्ताय अनर्घपदप्राप्तये अर्घनिर्वपामीतिस्वाहा ॥
अथ पंचकल्याणक । छंद त्रोटक। गर्भ-कलि कातिक एकम को गिनियें, गरभागम के दिन को भनिये। तज बारम स्वर्ग जिनंद सही,
जननी पद सेव शची जु गही ॥ॐ ह्रीं श्री अनंतनाथ जिनेंद्राय, कार्तिक कृष्ण प्रतिपदा गर्भ
कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा॥ ... जन्म-जन्में त्रय ज्ञान लिये जिनजी,अलि जेठ दुवादशि के दिनजी। तिहुलोक विषे जयकार भयो,हरि
सेन नरेन्द्र सुदान दियो ॥ ॐ ह्रीं श्री अनंतनाथ जिनेंद्राय ज्येष्ठ कृष्ण द्वादशी जन्म कल्याण
प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा ॥ तप-जिन भावत द्वादश भावन को, करमादिक रोग उडावन को। तम द्वादश जेठ सु कानन में, जिन
जाय लगे निज ध्यानन में ॥ॐह्रीं श्री अनंतनाथ जिनेंद्राय ज्येष्ठ कृष्ण द्वादशी तपः कल्याण
प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा ॥ ज्ञान-बदि मावस चैतसु ज्ञानवली, जिन पाय जु कर्म :समूह दली। शुभ तत्त्व प्रकाशक वायक हैं,
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चौबी०- पूजन
संग्रह (५२४
हम पूजत भक्ति बढायक हैं ॥ ॐ ह्रीं श्री अनंतनाथ जिनेंद्राय चैत्र कृष्ण अमावस्या ज्ञान
कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा॥ निवाण-ससमेदथकी जिनमोक्ष गये,त्रयलोक शिरोमणि सिद्ध भये। गिन चैत अमावस्याके जो दिना,
हम ध्यावत शीस नवाय घना ॥ ॐ ह्रीं श्री अनंतनाथ जिनेंद्राय चैत कृष्ण अमावस्या मोक्ष कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा ॥
अथ जयमाला ।दोहा। महाअर्घ-व्योम अंगुलन नहिं नपे,उडुगण गिनेन जाय । त्यों तुम सुगुण अनंतहे,हम से किम बरनाय ॥
पै तुम भक्ति सो हिये मम, प्रेरत में बहु आय । तातें सुगुण सुमालिका, पहरूं कंठ बनाय ॥ .. __छंद त्रोटक-जयअनंत जिनेश्वर चर्न नम, भव बारिधि तारन तनं नम। जब गर्भ विषे थित आयधरी, धनदेव रची आयुध्या नगरी॥ ३॥ अलि जेठ दुवादशि आय जये, भवजीवन के दुःख दूर गये। सब आयुष लाख जु तीस कही, कुमरापन साढे सात गई ॥ ४॥ पंदरै लख बर्ष सुराज किये, कछु कारण पाय सुत्याग दिये। तब ही बन जाय के योग धरो, निज आतम सार विचार करो, ॥ ५॥ चव घात तनी सब सैन दली,लहि केवल ज्ञान प्रकाश वली । दिव ध्वन्नि खिरे
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बोली गण ईश पचात प्रकाश करे ॥६॥ चरचा नव तत्वतनी सुकही अणु ब्रत महा ब्रत सर्व सही । पूजन
· दश धर्म तने सब भेद कहे, अनुयोग सुने भव शर्मलहे ॥७॥ इन आदिक भेद सुनो सब ही, संग्रह :
कितने इक योग लियो तब ही। शुभ केतक श्रावक धर्म गहो, बहुतेयक सम्यकसार लहो ॥८॥ फिर आरज देश बिहार करों, भवि बोध भवोदधिपार धरो। एक मास तनी जद आयु रही, अवनी सम्मेद तनीजु गही ॥९॥ तहां योग निरोध के मोक्ष गये, सुख लोन महाप्रभु आप भये । तुम ही सब बिन बिनाशक हो, दुःख जन्म जरा मृत नाशक हो ॥ १०॥ तुम नाम अधार हिये ममरो, जिन पार करो मत देर धरो । बखता रतना इम अर्ज करी, न विलंब करो प्रभु एक घरी ॥११॥ धत्ताछन्द-यह मंगल माला दुःख सव टाला, सुख संपत छिन में बरनी। सब के मानन को गुण जानन को अष्टम छित में यह धरनी ॥ १२॥ ॐ ह्रीं श्री अनन्तनाथ जिनेन्द्राय गर्भ जन्म तप ज्ञान निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय अनर्घपद प्राप्तये महर्घ निर्वपामीति स्वाहा ॥ अथ आशीर्वादः । दोहा-श्री अनंत जिनदेव को, जो पजे चितलाय । पुत्र मित्र धन धान्य यश, तिन
घर सदा रहाय ॥ १३ ॥ इत्याशीर्वादः ।। इति श्रीअनंतनाथ जिन पूजा संपूः ॥१४॥
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चौबी० पूजन संग्रह ५२६
१५ अथ श्रीधर्मनाथ जिन पूजा प्रारभ्यते॥
(बखतावरसिंह कृत) कड़खा छन्द । स्थापना-छाड विमान सर्वार्थ सिद्धे महामात श्री सुव्रता कूप आये,
पिता नृपभान है भान सम तेज जिस नगर रतनापुरी इंद्र ध्याये। लेय गिरि मेरु धे न्हौन करते भये, एक हज्जार कलशे दुराये, धर्म जिन पूजिये पाप सब धूजिये थाप हूं चर्न में सीस नाये ॥१॥ ॐ ह्रीं श्री धर्म नाथ जिनेंद्र अत्रावतरावतर संवौषट् आह्वाननम् । ॐ ह्रीं श्री धर्मनाथ जिनेंद्र अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम् ॥ ॐ ह्रीं श्री धर्मनाथ जिनेंद्र अत्र मम सन्नहितो भव भव वषट् सन्निधी करणम्॥
अथ अष्टक । छंद संदरी। जल-उदक श्वेत जु क्षीर समान ही, सुरन झारी भर कर आन ही। पूज हूं तुम चरन रिसाल जी, ___ धर्म जिनवर धर्म दयाल जी ॥ ॐ ह्रीं श्री धर्मनाथ जिनेंद्राय गर्भ जन्म तप ज्ञान निर्वाण पंच . कल्याण प्राप्ताय जन्म मृत्यु जरारोग विनाशनाय जलं निर्वामीति स्वाहा ॥
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चौबी० चंदन-घसत कुंकम चंदन लाइयो, सरस सौरभ पै अलि छाइयो । पूज हूं तम चरण रिसालजी, पजन
- धर्म जिनवर धर्म दयालजी॥ ॐ ह्रीं श्री धर्मनाथ जिनेन्द्राय गर्भ जन्म तप ज्ञान निर्वाण संग्रह ||
पंचकल्याण प्राप्ताय संसाराताप रोग विनाशनाय,चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा ॥.... ५२७ अक्षत-अक्षत उदेत महा छबि को धरें, कांति निशपति की देखत टरें। पूज हूं तुम चरण रिसालजी,
म जिनवर धर्म दयाल जी॥ॐ ह्रीं श्री धर्मनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण
पचकल्याण प्राप्ताय अक्षयपद प्राप्ताय अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा॥ पुष्प-सुमन वर्न अनेक प्रकार के, जडत स्वर्ण मई कर धारके। पूज हूं तुम चरण रिसालजी, धर्म
जिनवर धर्म दयाल जी ॥ ॐ ह्रीं श्री धर्मनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाणपंच ' कल्याण प्राप्ताय कामवाण विनाशनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा ॥ नैवेद्य-लेय नेवज विविध प्रकार जी, सरकरा मिश्रित भरथार जी । पूजहूं तुम चरण रिसाल जी,
धर्म जिनवर धर्म दयालजी । ॐ ह्रीं श्री धर्मनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंच
कल्याण प्राप्ताय क्षधारोग विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा॥ दीप-घृत कपूर तनें दीपक भरे, जोय कर तुम मंदिर में धरे, पूज हूं तुम चरण रिसालजी, धर्म जिन
वर धर्म दयालजी॥ ॐ ह्रीं श्री धर्मनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाणपंच कल्याण प्राप्ताय मोहांधकार विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा॥
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संग्रह
चौबी० धूप-सर सुगंध धनंजय लहकती, खेय हूं दशगंध सु महकती। पूज हूं तुम चरण रिसालजी, धर्म पूजन जिनवर धर्म दयालजी॥ ॐ ह्रीं श्री धर्मनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंच
कल्याण प्राप्ताय अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा ॥ ५२८ फल-जायफल लौंगादिक कर लिये, थाल भर तुम आगे धर दिये । पूज हूं तुम चरण रिसालजी,
__ धर्म जिनवर धर्म दयालजी ॥ ॐ ह्रीं श्री धर्मनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान निर्वाण . पंचकल्याण प्राप्ताय मोक्षफल प्राप्तये कलंनिर्वपामीति स्वाहा॥ अर्घ-जल फलादिक मिष्ट मिलायके, करूं अर्घ सु तुम गुण गायके । पूज हूं तुम चरण रिसालजी,
धर्म जिनवर धर्म दयालजी ॥ ॐ ह्रीं श्रीधर्मनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म तप, ज्ञान, निर्वाण पंच ... कल्याण प्राप्ताय अनर्घपद प्राप्तये अर्घ निर्वपामीति स्वाहा ॥
अथ पंच कल्याणक । दोहा। गर्भ-अंधियारी वैशाख की, तेरस तिथी सुजान। मात सुव्रता गर्भ में, पुष्पोत्तर तज आन ॥
ह्रींश्रीधर्मनाथ जिनेंद्रायवैशाखकृष्ण त्रयोदशी गर्भ कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीतिस्वाहा ॥ जन्म-माघ शुकल तेरस विषे, दश अतिशय धरमेश । जनमे हरि सुर गिरिजजे, हम पूजें हरषेश ॥ . ॐ ह्रीं श्री धर्मनाथ जिनेंद्रायमाघ शुक्लात्रयोदशी जन्मकल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीतिस्वाहा ॥ तप-श्वेत माघ तेरस भली, योग धरो बन जाय । मन पर्ययलह ज्ञान जिन आतम ..
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चोबी. पूजन
ॐ ह्रीं श्रीधर्मनाथ जिनेंद्राय माघ शुक्ल त्रयोदशी तपः कल्याण प्राप्ताय अनिवपामीतिस्वाहा ॥ ज्ञान-चार घातिया नाशके, केवलज्ञान-प्रकाश । समवसरन लक्ष्मी सहित, पूनम पौष उजास ॥ संग्रहः ॐ ह्रीं श्रीधर्मनाथजिनेंद्राय पोष शुक्ल पूर्णिमा ज्ञान कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीतिस्वाहा ॥ .
निर्वाण-इंदतनीतिथि जेठकी,संज्ञा ध्यान बखान । जगत पूज्य शिव पाइयो, सम्मेदाचल जान ॥ .....: ॐ ह्रीं श्रीधर्मनाथजिनेंद्राय ज्येष्ठ शुक्लचतुर्थी मोक्षकल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीतिस्वाहा॥
. अथ जयमाला-दोहा। महाअर्घ-धर्मनाथ जिनकी छबी, कंचन बर्ण दिपंत । उन्नत पैतालिस धनुष बन्न चिह्न शोभंत ॥१॥
अडिल-धर्मजिनेश्वर देव नम शिरनायके, सारथ सिध त्याग रतनपुर आयके । पिता भानु महाराज सुब्रता मातजी,तिनके सुत तुम भये जगत विख्यातजी॥२॥बरष लाख दश आयु भली तुमने लई,बरष अढाई लाख कुमरपन में गई। पांच लाख जिन वर्ष राज तुमने कियो,सब परजा दुःख टाल सुयश जगमें लियो ॥३॥ कछु कारण लख राज त्याग बन में गये, पण मुष्टी कचलौंच परिग्रह तर्ज दये । हुवे सहस अवनीश आपके संग तब, भये दिगंबर रूप वरत धारे सवै ॥४॥ धर षष्ठम उपवास ध्यान में थिर भये, बर्द्धमानपुर माहि असन हितको गये । धर्मसेन तहां राय सु भोजन पय दिये,नवधा भक्ति जुधार सप्त गुणको लिय॥५॥पंचाश्चर्य महान तास घरमें भये,कर भोजन महाराज फेर कानन
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चावा० गये। करत तपस्या घोर वर्ष इक यूं गयो,चारों कर्म नशाय ज्ञान केवल लयो ॥६॥ समवसरन के माहिं पूजन | सकल रचना रची, आये सब सुर वृन्द सु जय जय धुन मचा । करें इंद्र तुम स्तुती पूज रचाय के, दोष संग्रह अठारह रहित सुबरने गायके ॥ ७॥ गुण छालिस तुम माह बिराजे देवजी, तितालिस गण ईशकरें
तुम सेवजी। भव्य जीव निस्तारन को तुमने सही, करो बिहार महान आर्य देशन कही ॥८॥ अंग बंग पंचाल मिसर. गुतरातजी, काशी कौशल मगध देश विख्यात जी। देकर बहु उपदेश जीव तारे घने, गिरि सम्मेद 4 आय अघाती सब हने ॥९॥ भये सिद्ध महाराज अष्टगुणमयसदा, फेर नहीं इस मांहि जिना आवन कदा। जो यह मंगल पोठ तुमारो चितधरे, सिंह चोर जलसर्प उपद्रव सब : टरे ॥१०॥ करूं बीनती आपतनी निज काजजी,तुम ही बडे दयालु सुनो जिनराजजी। वखतावर अर रतन नमें शिर नायके, कीजे मम कल्याण टेर सुन आयके ॥११॥
पत्ता छन्द-यह वर गुण माला धर्म रसाला कंठ माह जे धरें त्रिकाल । शुभज्ञान बढावें : नसावें शिवपुर को पावें दरहाल ॥ ॐ ह्रीं श्री धर्मनाथ जिनेन्द्राय गर्भ न. पंचकल्याण प्राप्ताय अनर्घ पदप्राप्तये महाघ निवपामी . अथ आशीर्वादः । वसंत तिलका . 'रिद्धि-भारी।
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चौबी.. १६ अथ श्री शान्तनाथ जिन पूजा प्रारभ्यते॥ : पजन
(बखतावरसिंहकृत) रोडक छंद। ५३१ स्थापना-सारथ सु विमान त्याग गजपुर में आये । विश्वसेन भूपाल तास के नंद कहाये ॥
पंचम चक्री भये दर्प द्वादश में राजे। मैं सेवं तुम चरण तिष्ठिये ज्यों दुःख भाजे ॥१॥
ॐ ह्रीं श्रीशांतिनाथ जिनेन्द्र अत्रावतराऽवतर संवौषट् आह्वाननम् । ॐ ह्रीं श्रीशांतिनाथ जिनेन्द्र अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम् ।
ॐ ह्रीं श्रीशांतिनाथ जिनेन्द्र अत्र मम सन्निहितो भवभव वषट् सन्निधीकरणम् ।
..... अथ अष्टक । कोशमालती छंद। ....... जल-पंचम उदधि तनो जल निरमल कंचन कलश भरे हरषाय । धार देत ही श्रीजिन सन्मुख जन्म
जरामृत दूर भगाय ॥ शांतिनाथ पंचम चक्रेश्वर द्वादश मदन तनो पद पाय । तिन के चरण, कमल के पूजे रोग शोक दुःख दारिद जाय ॥ ॐ ह्रीं श्रीशांतिनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, | — ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय जन्म मृत्यु जरा रोग विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा। चंदन-मलयागिर चंदन कदली नंदन कुंकुम जल के संग घसाय । भव आताप विनाशन कारण चर चूं
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चौबी०
- पूजन
संपर
५३४.
. पूजे रोग शोक दुख दारिद जाय ॥ ॐ ह्रीं श्री शांतिनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय अनर्घपद प्राप्तये अर्घ निर्वपामीति स्वाहा ॥
(अथ पंच कल्याणक) छन्द उपगीत। गर्भ-भाद्रव सप्तमिश्यामा,सवार्थत्याग नागपुर आये। माता ऐरा नामा, में पूजंध्याऊं अर्घ शुभलाये॥ - ॐ ह्रीं श्रीशांतिनाथ जिनेंद्राय भादपदकृष्ण सप्तनी गर्भ कल्याणप्राप्ताय अर्घ निर्वपामीतिस्वाहा॥ जन्म-जन्मे तीरथवर जेठ असित चतर्दशी सोहै। हरिगण नावें माथ, में पूजू शांति चरण युग जोहे ॥ ___ ॐ ह्रीं श्री शांतिनाथ जिनेंद्राय ज्येष्ठ कृष्ण चतुर्दशीजन्म कल्याणप्राप्ताय अनिर्वयामीति स्वाहा॥ तप-चौदस जेठ अंधारी,काननमें जाय योग प्रभुदीन्हा। नवनिधिरत्न सुलारी,मैं बंदूआत्मसार
ॐ ह्रीं श्रीशांतिनाथ जिनेंद्राय ज्येष्ठ कृष्णचतुर्दशी तपः कल्याणप्राप्ताय .. ज्ञान-पोष दसें उजियारा,अरघात ज्ञानभानजिन पाय ।
डों ह्रीं श्री शांतिनाथ जिनेंद्रायप निर्वाण-सम्मेद
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चौबी० पूजन
.... अथ जयमाला छप्पय छंद। संग्रह || महाअर्घ-भये आप जिन देव जगत में सुख विस्तारे,तारे भव्य अनेक तिनोंके संकट टारे । टारे आठों ५३५ कर्म मोक्ष सुख तिन को भारी,भारी वृद्ध निहार लही में शर्ण तिहारी ॥चरणन को सिरनायहूं,
| दुःख दारिद्र संतापं हर । हर सकल कर्म छिन एक में, शांति जिनेश्वर शांति कर ॥१॥ ॥ दोहा-सारंग लक्षण चरण में, उन्नत धनु चालीस । हाटक वर्न शरीर दुति, नमूं शांति जगईश ॥२॥
... छंदभुजंग प्रयात-प्रभु आपने सर्व के फंद तोडे, गिनाऊं कछु, तिनो नाम थोडे। पडो अंबुधै बीच श्रीपाल आई। जपो नाम तेरो भएथे सहाई ॥३॥ धरो रायने सेठ को सूलिका पै, जपी आपके नाम की सार जाप । भये थे सहाई तबै देव आये,करी फूल वर्षा सु बिष्टर बनाये ॥४॥ तबै लाख के धामसबही प्रजारी, भयो पांडवों पै महा कष्ट भारी । जवै नाम तेरे तनी टेर कीनी, करी थी विदुर ने वही राह दीनी ॥ ५॥ हरी द्रोपदी धातुकी खंड माही, तुम्हीं हो सहाई भलो और नांही। लियो नाम | तेरो भलो शील पालो, बचाई तहां ते सबै दुःख टालो ॥६॥ जबै जानकी राम ने जो निकारी, धरे गर्भ को भार उद्यान डोरी। रटो नाम तेरो सबै सौख्यदाई, करी दूर पीडा सु छिन्ना लगाई ॥७॥ विखल सात सेवें करें तस्कराई, सुअंजन्न त्यारो घडी ना लगाई। सहे अंजना चंदना दुःख जेते, गये भाग सारे जरा नाम लेते ॥८॥ घड़े बीच में सास ने नाग डारो, भलो नाम तेरोजु सोमा संभारो॥
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· चौबी० गई काढने को भई फूल माला, भई है विख्यातं सबै दुःख टाला ॥ ९॥ इन्हें आदि देके कहां लो
पूजन बखाने, सुनो वृद्ध भारी तिहुँ लोक जानें । अजी नाथ मेरी जरा ओर हेरों, बडी नाव तेरी रती बोझ संग्रह मेरो ॥ १०॥ गहो हाथ स्वामी करो वेग पारा, कहूं क्या अवै आपनी में पुकाराः । सबै : ज्ञान के बीच ५३६ भासी तुम्हारे, करो देर नांही अहो संत प्यारे ॥११॥
. घत्ता छंद-श्रीशांति तुम्हारी कीरति भारी सुन नर नारी गुण माला । वखतावर ध्यावे रतनसुगावे मम दुःख दारिद सबटाला ॥१२॥ॐ ह्रीं श्री शान्तिनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय अनर्घपद प्राप्तये.महाऽघं निर्वपामीति स्वाहा ।।।
: अथ आशीर्वादः । शिखरिणी छंद-अजी ऐरानंदं छवि लखत है आय अरनं, धरें लज्जा भारी : करत थुति सो लाग चरनं । करे सेवा कोई लहत सुख सोसार छिन में, घनें दीना त्यारे हम चहत हैं ... बास तिन में ॥ १३॥ इति आशीर्वादः । इति श्रीशांतिनाथजिन पूजा संपूर्णा ॥१६॥
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१७ अथ श्री कुन्थुनाथजिन पूजा लिख्यते,
चौबी० पूजन
बखतावर सिंह कृत। छन्द । सिंग्रह ५३७
स्थापना-गजपुर नगर मझार भान प्रभु भूपजी, कुंथुनाथ जिन पुत्र भये सुख रूपजी।
..... लक्षण अजा अनूप मात लक्ष्मीमती, तुंग धनुष तीस तिष्ठ करुणापती ॥१॥ . . ॐ ह्रीं श्री कुंथुनाथ जिनेंद्र अत्रावतराऽवतर संवौषट् आह्वाननम् । ....ॐ ह्रीं श्री कुंथुनाथ जिनेंद्र अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम्। . . ॐ हीं श्री कुंथुनाथ जिनेंद्र अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधी करणम् ॥ .
अथ अष्टक। त्रिभंगी छंद। | जल-पद्मदनीरं गंधगहीरं अमल सहीरं भर लायो, कंचन मय झारी भर सुखकारी पूज तिहारी
कर धायो।श्री कुंथुदयालं जगरिछपालं हन भव जालं गुण मालं। तेरम मकेश्वर षट्चक्रेश्वर विधन हनेश्वर दुख टालं ॥ ॐ ह्रीं श्री कुंथुनाथ जिनेंद्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण
पंचकल्याण प्राप्ताय जन्म मृत्यु ज रारोग विनाशनाय जलंनिर्वपामीति स्वाहा॥ | चंदन-घस चंदन बाक्न दाह मिटावन निरमल पावन सुखकारी, तुम चरण चढाऊंदाह नसाऊं
शवपुर पाऊ हित धौरी1- श्री कुंथु दयालं जग रिछपालं हन भव जालं गुण मालं, तेरम
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संग्रह .
मक्रेश्वर षटचक्रेश्वर विघन हनेश्वर दुख टालं। ॐ ह्रीं श्रीकुंथुनाथ जिनेंद्राय गर्भ, जन्म, तप, चोबी०
ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय संसारातापरोग विनाशनायचन्दनं निर्वपामीति स्वाहा ॥ . पूजन .. ' 'अक्षत-अक्षत अनियारे प्राशुक धारे पुंज समारे तुम आगे, अक्षय पद दीजे बिलम न कीजे निज लख
लीजे सुख जागे। श्री कुंथुदयालं जगरिछपालं हन भव जालं गुणमालं, तेरम मकेश्वर षट् .. चक्रेश्वर विघन हनेश्वर दुख टालं ।। ॐ ह्रीं श्री कुंथुनाथ जिनेंद्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान,
निर्वाण पंच कल्याण प्राप्ताय अक्षय पद प्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा॥ पुष्प-वर कुसम सुवासं अमल बिकाशं षट् पद रासं गुंजकरा, भर कंचन थारी तुम ढिग धारी
काम निवारी सौख्य करा । श्रीकुंथुदयालं जग रिछपालं हन भव जालं गुणमालं, तेरम मकेश्वर षट् चक्रेश्वर विघन हनेश्वर दुख टालं ॥ ॐ ह्रीं श्री कुंथुनाथ जिनेंद्राय गर्भ जन्म,तप, ज्ञान,
निर्वाण पंच कल्याण प्राप्ताय कामवाण विनाशनाय पुष्पं निवपामीति स्वाहा॥ 'नैवेद्य-पकवान सुकीने तुरत नवीने सित रस भीने मिष्ट महा, तुम पद तल धारे नेवज सारे क्षुधा . निवारे शर्म लहा। श्री कुंथुदयालं जग रिछपालं हन भव जालं गुण मालं। तेरम मकेश्वर
षट् चक्रेश्वर विघन हनेश्वर दुख टालं । ॐ ह्रीं श्री कुंथुनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान निर्वाण पंच कल्याण प्राप्ताय क्षुधा रोग विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा ॥ दीप-दीपक उजियारे तम क्षयं कारे जोय समारे स्वर्ण मई, मोह अंधविनाशी निज परकाशी हम घट
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चौबी० पूजन संग्रह
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भासी ज्ञान लई । श्री कुंथुदयालं जगरिछपालं हन भव जालं गुण मालं, तेरम मकेश्वर षट् - चक्रेश्वर विघन हनेश्वर दुख टालं ॥ ॐ ह्रीं श्री कुंथुनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान,
निर्वाण पंच कल्याण प्राप्ताय मोहांधकार विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा ॥ .... धूप-दशगंध मिलावें परिमल आवे अलिगण छावें कर शोरी, संग अगनि जराऊ कर्म नसाऊं पुण्य
बढाऊं कर जोरी । श्री कुंथुदयालं जग रिछपालं हन भव जालं गुणमालं, तेरम मकेश्वर षट .चक्रेश्वर विघन हनेश्वर दुख टालं ॥ ॐ ह्रीं श्री कुंथुनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान,
निर्वाण पंच कल्याण प्राप्ताय अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा ।। फल-श्रीफल सहकारं लौंग अनारं अमल अपारं सब रुतके। तुम चरण चढाऊ गुण गण गाऊं शिव
फल पाऊं विधि हत के । श्री कुंथुदयालं जग रिछपालं हनभव जालं गुण मालं, तेरम मकेश्वर
षट् चक्रेश्वर विघन हनेश्वर दुख टालं ॥ॐ ह्रीं श्री कुंथुनाथ जिनेंद्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, • निवाण पंचकल्याण प्राप्ताय मोक्षफल प्राप्तये फलं निर्वामीति स्वाहा ॥ अर्घ-जलफल बसु लीजे अर्घ करीजे पूज रचीजे दुख हारी, संसार हनीजे शिवपद दीजे ढील न कीजे
बलिहारी । श्रीकुंथुदयालं जगरिछपालं हनभव जालं गुण मालं, तेरम मकेश्वर षट् चक्रेश्वर विघन हनेश्वर दुख टालं ॥ॐ ह्रीं श्री कुंथुनाथ जिनेंद्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंच कल्याण प्राप्ताय अनर्घपद प्राप्तये अर्घ निर्वपामीति स्वाहा॥ .. ..
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चौबी०
अथ पंचकल्याणक। पूजन संग्रह 'गर्भ-भ्रमर सावन दशमी गाइयो, कुषमात श्रीकांता आइयो। धनद देव आय बरषाकरो, हम जजें
धन मान वही घरी ॥ ॐ ह्रीं श्री कुंथुनाथ जिनेंद्राय श्रावण कृष्ण दशमी गर्भ कल्याण प्राप्ताय
अर्घ निर्वपामीति स्वाहा ॥ जन्म-कुंथु जिनवर जन्म लियो जबै, हरिन के विष्टर कांपेतबे, शुकल एकम जान बैशाखजी, हम
जजे करके अभिलाष जी ॥ ॐ ह्रीं श्री कुंथुनाथ जिनेंद्राय वैशाख शुक्ल प्रतिपदा जन्म कल्याण
प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा॥ तप-जनम को दिन पावन आइयो, चित विषे बैराग सुभाइयो । राज षट् खंड को तुम त्यागियो,
ध्यान में प्रभु आप सुलागियो ॥ ॐ ह्रीं श्री कुंथुनाथ जिनेंद्राय बैशाख शुक्ल प्रतिपदा तपः
कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा । ज्ञान-चैत उजियारी तृतिया जु है, जिन सुपायो केवल ज्ञान है । सभा द्वादश में वृष भाषियो, भव्य
जन सुन के रस चाखियो । ॐह्रीं श्री कुंथुनाथ जिनेंद्राय चैत्र शुक्लतृतीया ज्ञान कल्याण प्राप्ताय
अर्घ निर्वपामीति स्वाहा ॥ निर्वाण-कर सुयोग निरोध महान है, गिरि समेदथकी निरवान है । प्रतिपदा बैशाख उजास में
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चौबी०
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पूजन
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संग्रह
शिवपुर दो निजवास में ॥ ॐ ह्रीं श्री कुंथुनाथ जिनेंद्राय वैशाख शुक्ल प्रतिपदा मोक्ष कल्याण . प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा ॥
... अथ जयमाला। दोहा। कीडीकुंजर कुंथवा, सब जीवन रछपाल । कुंथुनाथ पद नमन कर बर तिन गणमाल ॥१॥ - छंद पद्धड़ी-जय जय श्रीकुंथु जिनंद चंद, जय जय श्रीभानु नरेन्द्र नंद । उपजे गजपुर नगरी मझार, लीजे स्वामी मो को उबार ॥२॥जय काम रूप शोभा अमान, जय भव्य कमल को रवि समान । जय अजर अमर पद देनहार, लीजे स्वामी मो को उबार ॥३॥ चय चक्रवर्ति पद को लहाय, जय नव निधि चौदह रतन पाय । सिर नावत नृप बत्तिस हजार, लीजे स्वामी मो को उबार। ॥ ४ ॥ जय नार छानवें सहस जोय, जय रूप लखे रवि थकित होय । इत्यादि सौज शोभे अपार, लीजे स्वामी मा को उबार ॥ ५॥ जय भोगन बर्ष गये महान, जय सवा इकत्तर सहसजान, कछु कारण लख संवेग धार, लीजे स्वामी मो को उबार ॥६॥ जय गजपुर नग्री तज दयाल, जय सिद्धन को कर नमन भाल । जय तज दीने सब ही सिंगार,लीजे. स्वामी मोको उबारा जय पंच महाव्रत धरण धीर, जय मन परजय पायो गहीर । जय षष्ठम को शुभ नेमधार, लीजे स्वामी मो को उबार जय मंदिरपुर में दत्तराय, जय तिन घर पारण को कराय। जय पंचाश्चर्यभये अपार, लीजे स्वामी
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चौबी० मो को उबार ॥९॥जय मौन सहित बहुधरत ध्यान, जय षोडश वर्ष गये सुजान। चवघाति कर्म पूजन कीने निवार, लीजे स्वामी मो को उबार ॥१०॥जय केवल ज्ञान जगो रिसाल, जय तत्व प्रकाशे संग्रह तुम दयाल। सव भव्य बोध भव सिंधुतार, लीजे स्वामी मो को उबार ।। ११ ॥ जय आरज देशन ५४२ कर विहार, जय आये गिरि संमेद सार। सब विधि हन पाईं मोक्षनार, लीजे स्वामी मो को उबार
॥१२॥ जय जग जीवन के तुम दयाल,जय तुम ध्यावत हुए निहाल । जय दारिद गिरि नाशन कुठार, लीजे स्वामी मो को उवार ॥३॥ जय सिद्धथान के बसन हार, बखता रतना की यह पुकार । मो दौजे निज आवास सार, लीजे स्वामी मो को उबार ॥ १४ ॥
पत्ता छन्द-यह दुःख विनाशन सुख परकाशन जयमाला अघ को टरनी। मैं तुम पद ध्याऊं पूज रचाऊं शिवपद पाऊंभव हरनी ॥ १५॥ ॐ ह्रीं श्री कुंथुनाथ जिनेंद्राय गर्भ जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंच कल्याण प्राप्ताय अनर्घपद प्राप्तये महाघु निर्वपामीति स्वाहा॥ ___ अथ आशीर्वादः । दोहा-कुन्थु जिनेश्वर देव को, जो पूजे मन लाय । पुत्र मित्र सुख संपदा, तिन घर सदा रहाय ॥ १६॥ इत्याशीर्वादः ॥ इति श्री कुन्थुनाथजिन पूजा संपूर्णा ॥ १७ ॥
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चौबी०
१८ अथ श्रीअरनाथजिन पूजा प्रारभ्यते । पूजन
... (वखतावरसिंहकृत) त्रिभंगी छंद । ___ संग्रह | स्थापना-हथनापुर आये भवि मन भाये पिता सुदर्शन राजा है।
मित्रादे माता सब सुख दाता तिन की कूष बिराजा है । धनु तीस विराजे अति छबि छाजे लक्षण मीन जु पाया है। तिष्ठो जिनदेवा करहूं सेवा कर तें पुष्प चढाया है ॥१॥ ॐ ह्रीं श्रीअरनाथ जिनेन्द्र अत्रावतराऽवतर संवौषट् आह्वाननम्। ॐ ह्रीं श्रीअरनाथ जिनेन्द्र अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठाठः स्थापनम् । ॐ ह्रीं श्रीअरनाथ जिनेन्द्र अत्र मम सन्निहितो भवभव वषट् सन्निधीकरणम् ॥
अथ अष्टक । चाल "सगण हमध्यावें" की। | जल-जय निर्मल जल सुन्दर सुख कारी। जय जजत सुप्रासुक भरके झारी। सो प्रभुहम ध्यावें। जय __ पूजत इंद्र धनेंद्र जु आवें। जय तीर्थंकर चक्रेश्वर स्वामी । जय कामदेव अरजिन शिव गामी !
जी प्रभु हम ध्यावें ॥ ॐ ह्रीं श्रीअरनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय जन्ममृत्यु जरा रोग विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा। .
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चौबी. चंदन-जय चंदन घस गोसीर सुलावें । जय पूजत ही भव दाघ मिटावें । सो प्रभु हम ध्यावें। जय
पूजत इंद्र धनेंद्रजु आवें । जय तीर्थंकर चक्रेश्वर स्वामी । जय कामदेव अर जिन शिव गामी। पजन. संग्रह
जीप्रभु हम ध्यावें । ॐ ह्रीं श्रीअरनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण ५४४ ।
प्राप्ताय संसारा ताप रोग विनाशनाय चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा। अक्षत-जय चंद किरन सम अक्षत लीजे। जय ताके पुंज सुसन्मुख कोजे । सो प्रभु हम ध्यावें । जय
पूजत इंद्र धनेन्द्र जुआ। जयतीर्थंकर चक्रेश्वर स्वामी । जय कामदेव अर जिन शिव गामी। जी प्रभु हम ध्यावें ॥रों ह्रीं श्रीअरनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण
प्राप्ताय अक्षय पद प्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा। पुष्प-जय पंच वरण सुमन सुताजे । जय भेट धरत मकरध्वज भाजे। सो प्रभु हम ध्यावें । जय
पूजत इन्द्र धनेंद्र जुआ, जय तीर्थकर चक्रेश्वर स्वामी। जय कामदेव अर जिन शिव गामी ॥ जी प्रभु हम ध्यावें ॥ ॐ ह्रीं श्रीअरनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण
पंचकल्याण प्राप्ताय काम वाण विनाशनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा। नैवेद्य-जयसुर घृत कर पकवाननवीने। जय भरसु रकाबी पद चर चीने। सों प्रभुहम ध्यावें। जयतीर्थंकर
चक्रेश्वर स्वामी। जय कामदेव अरजिन शिवगामी ।जीप्रभुहमध्यावें॥डोंह्रीं श्रीअरनाथ जिनेंद्राय गर्भ,जन्म,तप ज्ञान निर्वाणपं: " ..
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चौबी० || दीप-जय दीपक मणिमय जोति प्रकाशे । जय ध्यावत ही मोह अंध विनाशे ॥ सो प्रभु हम ध्यावें । जय | पूजन | पूजत इन्द्र धनेन्द्र जु आवें । जय तीर्थकर चक्रेश्वर स्वामी । जय कामदेव अर जिन शिव संग्रह || गामी ॥ जी प्रभु हम ध्यावें ॥ ों ह्रीं श्रीअरनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण
., . पंचकल्याण प्राप्ताय मोहांधकार विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा। .. धूप-जय संग धनंजय धूप दहीजे। जय खेवत अष्ट करम सब छीजे ॥ सो प्रभु हम ध्यावें ॥ जय |
पूजत. इन्द्र धर्मेन्द्र जु आवें जय तीर्थंकर चक्रेश्वर स्वामी। जय कामदेव अर जिन शिव गामी
जी प्रभु हमध्यावें ॥ 0 ह्रीं श्रीअरनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण .... प्राप्ताय अष्ट कर्म दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा। . . फल-जय आंव कपित्थ लौंग भर थारी । जय पूजत शिव फल पाऊं भारी॥ सो प्रभु हम ध्यावें॥ जय
पूजत इन्द्र धनेंद्रजु आवें जय तीर्थंकर चक्रेश्वर स्वामी । जय कामदेव अर जिन शिव गामी॥ जी प्रभु हम ध्यावें । डों ह्रीं श्रीअरनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण
प्राप्ताय मोक्षफल प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा। अर्घ-जय जलपलादि बसु द्रव्य समारे । जय अर्घ वनाय चरण तले धारे॥ सो प्रभु हम ध्यावें ॥ जय
पूजत इंद्र धनेन्द्र जु आवे॥ जय तीर्थंकर चक्रेश्वर स्वामी । जय कामदेव अर जिन शिव गामी॥
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चौबी० / जी प्रभु हम ध्यवें ॥रों ह्रीं श्रीअरनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण ..पूजन | प्राप्ताय अनर्घ पद प्राप्तये अर्घ निर्वपामीति स्वाहा । .. संग्रह ::
... अथ पंचकल्यागक। छंद मोती दाम। ५४६ गर्भ-जफागण की तृतिया सितजान । वसे जिन मात सुगर्भ महान । तवे धनदेव करें नित सेव। अनेक
प्रकार उछाह भरेव ॥ ौं ह्रीं श्रीअरनाथ जिनेन्द्राय फाल्गुण शुक्ल तृतीया गर्भ कल्याणप्राप्ताय
अर्घ निवपामीति स्वाहा। ... जन्म-जये अरनाथ जिनंद अनुप । भये हरि चकित देख स्वरूप ॥ सदी तिथि चौदस जान अघन्न ।
जय होत भयो जग धन्न सुधन्न ॥ ॐ ह्रीं श्रीअरनाथ जिनेन्द्राय मार्गशिर शुक्ल चतुर्दशी जन्म
कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा । तप-तजी तुम नार सु छान हजार। कियो निज आतम सार विचार ॥ देशैं शुभ मारग मासजु
आय। चतुर्थम ज्ञान जिनंद उपाय ॥ ॐ ह्रीं श्रीअरनाथ जिनेन्द्राय मार्गशिर शुक्ल दशमी तपः ... प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।।
..... मभयो तब केवल भानु
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चौबा
पूजन
संग्रह
निर्वाण-स्योग निरोध किये अरि घात। मावस चैत जु मास सुहात ॥ वरी शिव नारि भये जब .. सिद्ध । जजै हम चर्न लहें सब ऋद्ध ॥ ॐ ह्रीं श्रीअरनाथ जिनेन्द्राय चैत्र कृष्ण अमावस्या मोक्ष कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।
... अथ जयमाला। दोहा। महाअर्घ-अष्टादश तीर्थेश पद, सप्तम चक्रीदेव । लह मनोज पद चौदमो, करूं सुतुम पद सेव ॥ ..
चाल पंचकल्याणक की-अपराजित तज के भये, गजपुर नगर मझार । मित्रादेवी कूष में, आये जिन सुख कार ॥ तार तार अर नाथ जी ॥२॥ जन्मे युत त्रय ज्ञान.जी, दश अतिशय ले आप। कनक वरण तन सोहनो, उन्नत तीस सुचाप ॥ तार तार अर नाथ जी ।। ३ ॥ बरष चौरासी सहस की, आयु लही जगदीश। पाव गई कुमरा पने, राज कियो फिर.ईश ॥ तार तार अर नाथ जी ॥४॥ सहस बयालिस भोगियो, सहस छानवें नार। चक्रवर्ति पद की विभो, गिनत न पावें पार ॥ तार तार अरनाथ जी॥ ५॥ कारण लख विरकत भये, जगत अनित्य विचार। लौकांतिक सुर आय के, नमत भये पद सार ॥ तार तार अर नाथ जी ॥६॥ जंवू तरु तल जाय के, सहस: भूप ले संग।! पण मुष्टी कच लौंचियो, षष्ठम धार अभंग ॥ तार तार अर नाथ जी॥ ७॥ नाग पुरी नगरी गये अशन हेत महाराज । अपराजित कर पै दियो, बरखे रतन समाज ॥ तार तार अरनाथ जी ॥८॥
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चौबी० षोडशवर्ष किये भले, उग्र उग्र तप घोर । घोर कर्म सब जारके, पायो केवल भोर ॥ तार तार अरनाथ पूजन जी॥ योजन साढे तीन ही, समवशरण रच देव । सप्त भंग बाणी खिरे, सुन सुर नर शरधेव । तार मंग्रह | तार अर नाय जी ॥ १०॥आरज देशन के जिते, बोधे भव्य अपार । चार संघ सोहत भले, मुनि ५४८ आदिक व्रत धार ॥ तार तार अरनाथ जी ॥ ११ ॥ वरष इकीस हजार ही, कर उपदेश महान ।
सम्मेदागिरि आय के, योग निरोध सुठान ॥ तार तार अरनाथ जी ॥ चार अघाती हानके, जाय वरी शिव नार । लोकालोक निहारियो, पायो भव दधि पार ॥ तार तार अरनाथ जी ॥ १३ ॥ बखतावर विनती करे, सुनियें दीन दयाल ॥ रतन तने दुख मेटिये, आवागमन सुटाल॥तारतार अरनाथ जी॥
. घत्ताछन्द-अरनाथ सुवाणी सुन भव प्राणी, आरति हानी सुख दानी। यह बिनती मेरी निज हित केरी, हर भव फेरी तुम ज्ञानी ॥ १५ ॥ ौं ह्रीं श्रीअरनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान,
निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय अनर्घ पद प्राप्तये महाऽधं निवपामीति स्वाहा। अथ आशीर्वादः । चौबोला चाल-जो पूजे मन लाय पाय अर जिनवर स्वामी। पुत्र मित्र धन लहैं । .. सार जग में हे नामी । जो वाचे मन लाय त्रास जम के मिट जावें । ते पावें भव पार फेर जग . में नहिं आवें॥ . इत्याशीर्वादः । इति श्रीअरनाथजिन पूजा संपूर्णा ।। १८॥
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I
मझार।
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पूजन
संग्रह
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चौबी० १९ अथ मल्लिनाथ जिन पूजा प्रारभ्यते।
बखतावरसिंह कृत (कवित्त) || स्थापना-अपराजित सु विमान त्यागकर आये मिथिला नगर मझार। . - ५४९
कुंभराय राजा तहां सोहे, प्रजावती तिन के पट नार ॥ तिन के घर तुम जन्म लियो श्रीमल्लि जिनेश्वर करुणा धार। सो प्रभु तिष्ठ आय यह थानक दास तने सब कर्म निवार ॥१॥ ..
ओं ह्रीं श्रीमल्लिनाथ जिनेंद्र अत्रावतराऽवतर संवौषट् आह्वाननम् । ॐ ह्रीं श्रीमल्लिनाथ जिनेंद्र अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम् । ओं ह्रीं श्री मल्लिनाथ जिनेंद्र अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् संनिनधी करणान् ।
अथ अष्टक । छंद गीता॥ जल-पंचम उदधि को नीर निर्मल भर सुझारी लीजिये, तुम चरण के ढिग धार देऊ तृषानाशन
कीजिये । श्रीमल्लि जिनवर अतुल योधा कामतें प्रभु जय लही, तिहुँ लोक में तुन सम न देखे शरण चरणन की गही। ॐ ह्रीं श्रीमल्लिनाथ जिनेंदाय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय जन्म मृत्यु जरा रोग विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा ॥ :
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पूजन
संग्रह ५५०
चौबी० चंदन-चौपाई। चंदन मलयागिरि घसलाय, कनक कटोरी भर सुखदाय । मल्लि जिनेश्वर के पदसार, । ..
चरचूं मन बच तन हितधार। डों ड्रीं श्रीमल्लिनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान निर्वाण ।
पंचकल्याण प्राप्ताय संसारा ताप रोग विनाशनाय चन्दनं निर्वपामोति स्वाहा ॥ ... अक्षत-छन्द(योगीरासा) मुक्ता की सम उज्वल अक्षत पावन धोय सुलीनें । कनक रकाबी में शुभ कर
के पुंज जो सन्मुख कीनें । मल्लिजिनेश्वर मदन हनेश्वर ध्यावत सर नर सारे। रत्नत्रय निधि देऊ अनूपम भव दधितें भवितारे । उौं ह्रीं श्रीमल्लिनाथ जिनेन्द्राय गर्भ,जन्म,तप, ज्ञान, निर्वाण
पंचकल्याण प्राप्ताय अक्षयपद प्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा । पुष्प-(चाल अठाई पूजा को) चंपादिक फूल मंगाय तापे अलिछाये । यह काम बान नसजाय तुम पद
को ध्याये । श्रीमल्लि जिनेश्वर देव छबि तेरी प्यारो । तुम बालपनें महाराज काम व्यथा टारी। • ह्रीं श्रीमल्लिनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय काम वाण
विनाशनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा। नैवेद्य-(छन्द बसंत तिलका) खाजेजुधेवर अपार मंगाय ताजे,पूजं जिनंद तुम पादछुधादि भाजे । तोही
समान तिहुँ लोक विषेन हेरा,श्रीमल्लिनाथ भव वासनिवार मेरा। रोह्रीं श्रीमल्लिनाथ जिनेन्द्राय .
गर्भ, जन्म,तप,ज्ञान निर्वाण पंचकल्याण प्राप्तायक्षधारोग विनाशनाय नैवेयं निर्वसमीति स्वाहा। दीप-(छंद त्रिभंगी) दीपक उजियारं अंध निवारं बहु सुख धार जोति धरे! पद अंबुज थारे ता ढिग
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चौबी०
पूजन
संग्रह
धारे ज्ञान उजारे मोह हरे। श्रीमल्लिजिनेशं मदन हनेशं जगत महेशं तीर्थेशं । भवि कमल दिनेशं कमद निशेशं भव पोतेशं परमेशं। डों ह्रीं श्रीमल्लिनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप,
ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय मोहांधकार विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा। धप-(सुंदरी छंद) गंध दश बिध की अति लेय हूं, अमर जिह्व विषे धर खेय हूं। मल्लि जिनवर के पद |
ध्यावते, अष्ट कम संबी उड़ जावत। ॐ ह्रीं श्री मल्लिनाथ जिनेंद्राय गर्भ, जन्म, तप ज्ञान,
निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय अष्ट कर्म दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा। | फल-(कोशमालती छंद) एला केला दाख छुहारा,पिस्ता श्रीफल क्षारक लाय। मोक्ष महा फल चाखन
कारण, पूजू तुम को शीस निवाय । मल्लिनाथ जिन काम बिडारी, दीने आठों कर्म निवार । .. मोक्षपुरी में बासा कीना गाऊं तुम गुण वारंवार । डों ह्रीं श्री मल्लिनाथ जिनेन्द्राय गर्भ,जन्म || ...
तप, ज्ञान निर्वाण, पंचकल्याण प्राप्ताय मोक्ष फल प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा। | अर्घ-(विजयानी सेठ की चाल) जल फल वसुजी आठों द्रव्य समार के। कर अर्घ सुजी तुम सन्मुख |
ही धार के । श्रीमल्लि सुजी डूबत मोहिनिकारिये । शिव बास सो जी ता मधि वेग सु धारिये।
रों ह्रीं श्री मल्लिनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म. तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय अन_पद · प्राप्तये अर्घ निर्वपामीति स्वाहा॥
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चौबी०
. अथ पंचकल्याणका दोहा। - गर्भ-अपराजित स विमान तंज, परजावति उर आय । चैत शुकल एक भली, जजे चरण हरषाय । संग्रह
. ॐ ह्रीं श्रीमल्लिनाथ जिनेंद्राय चैत्रशुक्ल प्रतिपदा गर्भ कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा। .. जन्म-जनमें मंगशिरशुक्ल ही, संख्या रुद्रजिनेश। न्हवन कियो गिरि मेरुपै,अमर वृंद अमरेश। डों ह्रीं
श्री मल्लिनाथ जिनेंद्राय मार्गशिर शुक्ल एकादशी जन्म कल्याणप्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा तप-मगसिर ग्यारस शुक्ल ही, बालपनें मल्लिनाथ । छाड परिग्रह बन वसे, हम नावें निजमाथ । डों ह्रीं
श्री मल्लिनाथ जिनेंद्राय मार्गशिर शुक्ल एकादशी तपः कल्याण प्राप्ताय अर्घनिर्वपामीति स्वाहा। ज्ञान-पौष श्याम दुतिया हने, चार कर्म दुःख दाय। केवल ज्ञान प्रकाशियो, चतुरानन दरशाय । डों ह्रीं
श्री मलिनाथ जिनेंद्राय पौष कृष्ण द्वितीया ज्ञान कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा। निर्वाण-शुकला फागुण पंवमी लहो अचल पद देव।गिरि समेद पुजू मही, अष्ट द्रव्य शुभलेवाओं ह्रीं
श्री मलिनाथ जिनेंद्राय फाल्गुण शुक्ल पंचमी मोक्ष कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।
....: अथ जयमाला। दोहा । .... महा अर्घ-शिशु बय तें मलिनाथ जी,पालो शील अखंड । राज भोग छोडेसबै, जीतो काम प्रचंड ॥१॥ : नभ में उडुगण हैं जिते, का पें गिने सुजाय ।त्यों तुम गुणमाला विविध, हम से किम वरनाय ॥२॥
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पद्धडी छन्द-जय केवल ब्रह्मा विराजमान, सब योगीश्वर ध्यावें महान । तुम छालिस गुण न|| पुरण जिनेश, परमातम आतम श्रीमहेश ॥३॥ भव वारिधि तारन को तरंड, तुम हनो ब्रह्मसुत अति
| प्रचंड । शरणा गत पालन को दयाल, सुर आवत तुम पद नमत भाल ॥४॥ तुम अजर अमर पद | देन हार,भव तारण को तुम बिरद सार । जय राग द्वेष मद मोह चूर, जयऽनंत चतुष्टय गुणन पूर॥५॥ जय चतरानन दीखत जिनंद, जय चौंसठ चमर ढरें अमंद । जय द्वादश सभा बिराजमान, गणईस अठाइस हैं निधान ॥६॥ ते झेलत हैं बाणी त्रिकाल, भवि सुन कर टारत मोह जाल। जय संघ सुचार प्रकार एव, तिन सहित सो विहरत आप देव ॥७॥ दो शतक घाट उनतिस हजार, मुनि राज महा गुण के भंडार । जे धरत श्वेत साडी प्रमान, अजया पचपन सुहजार जान ॥८॥ इक लक्ष शरावक धर्म लीन, धार सम्यक् सबही प्रबीन। लख तीन जुश्रावकनी उदार,मिथ्यात्व त्याग चित बरत धार ॥९॥ देवी अर देव समूह आय; तिनकी संख्या बरनी न जाय । संख्याते हैं तिथंचजोन, तज वैर भाव धारें सु मौन ॥ १०॥ इन आदिक को भव पार लाय, सम्मेद शैलते शव लहाय । हम याचत हैं तम पैसदेव, भव भव में पाऊचरण सेव ॥११॥ यह मोकों हे किरपा निधान, दीजेजु अनुग्रह चित्त !! ठान । बखता रतना को भृत्य जान, मेरी बिनती कीजे प्रमान ॥ १२ ॥ .. | धत्ता छन्द-वरणत गुण थारे गण धर हारे मल्लि जिनेश्वर काम हरं। भव दधितें तारो सुख विस्तारो ||
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चौवी० ॥
राग द्वेष निरवार करं॥ १३ ॥ ० ह्रीं श्री मल्लिनाथ जिनेंद्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पूजन ।।... पंचकल्याण प्राप्ताय अनर्घपद प्राप्तये महाऽधं निर्वपामीति स्वाहा। संग्रह
अथ आशीर्वादः-सवैया ३१वां। बंश इक्ष्वाक माह प्रगट भये कुंभराय ताके शुभ नंदन श्रीमल्लिनाथ
जानको तिन के चरणारविंद सेवत सुरेंद्रचंद्र ध्यावत मुनिंद्रवृंद नाना थुतिठान के। कोई भव्य जीव अष्ट दरव शुद्ध लाय पूजा को रचाय बहु भक्ति उर आन के । ताके शुभ पुण्य की सुमहिमा न कही जाय सो लहैं मोक्ष थान सर्व कर्म हानक॥१४॥इत्याशीर्बादः।
' इति श्रीमल्लिनाथ जिन पूजा संपूर्णा१९॥
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चौबी० पूजन
संग्रह
पता
२० अथ श्रीमुनिव्रतनाथ जिन पूजा प्रारभ्यते॥
बखतावर सिंह कृत । कडषा छंद ॥ स्थापना-स्वर्गप्रानत तजो सब इंद्रन जजो आय हरि बंश उद्योत कीना। ।
मात पद्मावती पिता सुहमित्त जी धनु तन बीस छवि श्याम लीना ॥ अंक कच्छप सही अतुल शोभा लहीनगर राजगृही सुर रचीना।
थाप के नुति करूं चरण सिर पर धरूं कीजिये नाथ मम कर्म क्षीना ॥१॥ ओं ह्रीं श्री मुनि सुव्रतनाथ जिनेंद्र अत्रावतराऽतवर संवौषट् आह्वाननम् । ओं ह्रीं श्री मुनि सुव्रतनाथ जिनेंद्र अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम् । . ओं ह्रीं श्री मुनिसुव्रतनाथ जिनेन्द्र अत्र मम संन्निहितो भव भव वषट् सन्निधी करणम् ॥
(अथअष्टक ) गीता छंद। जल-गिरि हिमन कुल को नीर निर्मल तथा सोमथकी करो, भरग कर तुम चरण पूजू जन्म मरण
जरा हरो,तुम सम न तारण तरण कोई अहो मुनिसुब्र धनी। हरि बंश नभ में आप शशि सम कांति सोहे अतिघनी ॥ 0 ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंच कल्याण प्राप्ताय जन्म मृत्यु जरारोग विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा ॥
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चौबी०चंदन-गोशीर्ष चंदन और कुंकुम वार संग घसाइयों, तुम चरण पूजं धार देके मोह ताप मिटाइयो।। पूजन
तुम सम न तारण तरण कोई अहो मुनिसुव्रत धनी, हरि वंश नभ में आप शशि सम कांति
तुम समनतातरणका संग्रह सोहे अतिघनी॥ ॐ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतनाथ जिनेंद्राय गर्भ, जन्म, तप,ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण
प्राप्ताय संसारा ताप रोगविनाशनाय चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा ।। अक्षत-मुक्ता समान अखंड अक्षत चंद की दुति को हरें, मम अषेपद दीजे जिनेश्वर पुंज तुम आगे
. धरें । तुम सम न तारण तरण कोई अहो मुनिसुव्रतधनी, हरि वंश नभ में आप शशि सम १. कांति सोहे अति घनी ॥ ॐ ह्रीं श्री मुनिसुव्रतनाथ जिनेंद्रीय गर्भ, जन्म,तप, ज्ञान, निर्वाण
पंच कल्याण प्राप्ताय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा। 'पुष्प-मंदार तरुके कुसुम प्राशुक गंध पै अलि छाइये, सो लेय तुम ढिग चरण धारे मदन वान नसाइये।
तुम सम न तारण तरण कोई अहो मुनिसुव्रत धनी । हरि वंश नभ में आप शशि सम कांति सोहे अति धनी ॥ ॐ ह्रीं श्री मुनिसुव्रतनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंच
कल्याण प्राप्ताय काम वाण विनाशनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा॥ नैवेद्य-खगधीश सुरनर असुर सबको क्षुधा वेदन दुख करो। पकवान तैं तुम चरण पूजंक्षुधा नागन
को हरो, तुम सम न तारण तरण कोई अहो मुनिसुव्रत धनी, हरिवंश नभ में आप शशि सम कांति सोहे अति घनी ॥ॐ ह्रीं श्री मुनिसव्रतनाथ जिने ये
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पौवी०
पंच कल्याण प्राप्ताय क्षुधा रोग विनाशनाय नैवेयं निर्वपामीति स्वाहा ॥
दीप-यह मोह अंध सुज्ञान ढापो.आप पर नहि भास ही। मणि दीप जोय सु चरण पूजू करो ज्ञान पूजन संग्रह
प्रकाश ही ॥ तुम सम न तारण तरण कोई अहो मुनिसुव्रत धनी। हरिवंश नभ में आप शशि ५५७
सम कांति सोहे अति घनी॥ . डों ह्रीं श्री मुनि सुव्रतनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान,
निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय मोहांधकार विनाशाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा ॥ .. धूप-यह आठ कर्म अनादि ही के बहुत दुख मोको करो, यातें सुगंधी धूप खेऊ अष्ट दुष्ट सबै हो।
तुम सम न तारण तरण कोई अहो मुनिसुव्रत धनी। हरिवंश नभ में आप शशि सम कांति सोहे अति घनी ॥ ॐ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण
प्राप्ताय अष्ट कर्म दहनाय धूपं निर्वपानीति स्वाहा ॥ ... फल-पुरषार्थ रोको अंतराय सु मोह दुर्बल जान के, शिवथान दो तुम चरण अरचूं फल अनूपम आन
के। तुम सम न तारण तरण कोई अहो मुनिसुव्रत धनी, हरिवंश नभ में आप शशि सम कांति सोहे अति घनी ॥ ॐ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतनाथ जिनेंद्राय गर्भ, जन्म,तप, ज्ञान, निर्वाण पंच कल्याण
प्राप्ताय मोक्ष फल प्राप्तये फलंनिर्वपामीति स्वाहा ॥ | अर्घ-जल चंदनाऽक्षत सुमन, नेवज दीप गंध फलोघ ही। भरके रकाबी अरघ लीजे, जजू हरत्रय
'रोग ही । तुम सम न तारण तरण कोई अहो मुनिसुव्रत धनी। हरि वंश नभ में आप शशि सम
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चौबी० - कांति सोहे अति घनी ॥ उौं ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतनाथ ॥ जिनेंद्राय गर्भ, जन्म, तप, जान, निर्वाण पूजन पंच कल्याण प्राप्ताय अनर्घ्यपद प्राप्तये अर्घ निर्वपामीति स्वाहा ॥ ..... संग्रह
अथ पंचकल्याणक । चाल त्रिभुवन गुरुस्वामी की। गर्भ-दुतिया तिथी कारीजी, सावन शुभ वारी जी। गर्भागम धारी, प्राणत त्याग के जी। पद्मावत - माईजी शची पूजनः आई जी। सेऊं सुख दाई चरणन लागके जी ॥ ॐ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतनाथ
जिनेंद्राय श्रावण कृष्ण द्वितीया गर्भ कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा॥ जन्म-अतिशय दश गायेजी, त्रयः ज्ञान सुहायेजी.। निज साथ लाये, जन्म तने दिनाजी । बैशाख
अंधारीजी, दशमी सुरसारीजी। गिरि शीत मझारी, न्हवन कीयो जिनाजी । ॐ ह्रीं श्री मुनि
सुब्रतनाथ जिनेंद्राय बैशाख कृष्ण दशमी जन्म कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा ॥ : तप-संसार असाराजी, सब अनित विचाराजी । दशमी तिथकारी, जान विशाख की जी । कानन तप
धारेजी, सबवसन उतारे जी। जब आरतिटारे, शिव अभिलाख की जी। ॐ ह्रीं श्रीमनिसुब्रत
नाथ जिनेंद्राय वैशाख कृष्ण दशमी तपः कल्याण प्राप्तायः अर्घ निर्वामीतिः स्वाहा ॥ .: ज्ञान-वैशाख महीनाजी, आतम चित. दीनो जी। कलि' नौमी दिन: लीना, पंचम ज्ञान को जी। वर;
धर्म बखानाजी, भवि जीवन जाना जी जिन देवमहाना, सब सख दीजिये जी॥ ॐ ह्रीं ।
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चौबी० श्रीमुनिसुव्रतनाथ जिनेंद्राय वैशाख कृष्ण नवमी ज्ञान कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीतिस्वाहा ॥ पूजन || निर्वाण-अलि फागुण आईजी, द्वादश सुख दाईजी। सब कर्म नसाई, गिरिसम्मेदतें जी। तुम सिद्ध संग्रह। कहायेजी, सब अलख लखाये जी। हम माथ नवाये, छुडावो खेदते जी ॥ ॐ ह्रीं श्री मुनि- सुब्रतनाथ जिनेंद्राय फाल्गुण कृष्ण द्वादशी मोक्ष कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा॥.
अथ जयमाला। दोहा। महा अघ-इंद्रादिक नख मकट में, देखत आनत आय। छबि सुंदर मनको हरे, कोटिक भानुलजाय ॥
चाल अहो जगतगुरु की-प्राणत स्वर्ग बिहाय मात श्यामा उर आये । तात सुमंत महान नगर कौशाग्र सुहाये ॥.सेवे माता पाय सुरतिय आय नवीनी । नभतें रतन अपार धनद ने वरषा कीनी ॥२॥ तुम जन्में जग ईश सकल जग मंगल छाये, आसन कंपित जान सबै सुर हर्षित आये। लेय गये गिरि शीस न्हवन कीनो अति भारी, कलस हजार भराय इंद्रने धारा ढारी॥३॥ कर शृंगार महान नाम मुनिसुव्रत दीना, सौंप मात हरषाय नृत्य तहां तांडव कीना। धनद करे नित सेव वस्त्र आभूषण लावें, हय गय हंसम पूरदेव बहुरूप बनावे ॥ सहस तीस तुम आय धनुषबपुबीस उचाई, साढे सात हजार कुमर पन माह विहाई । फेर कियो तुम राज बर्ष पंदरह सु हजारा, कृष्ण दसे बैशाष सबै जग'
अथिर विचारा ॥ ५॥ देव ऋषी सब आय चरण तल पुष्प चढाये, संबोधन कह बैन नमन निजथान सिंघीये । निर्जर चार प्रकार सकल इंद्रादिक आये, रतन जडित सुखपाल तास मे तुम चढ धाये ॥६॥
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चौबी० पहुंचे विपिन मझार सहस राजा संग लीनी, दीक्षा निज हितकार दिगंबर मुद्रा चीनी । मन परजय पूजन
लहज्ञान बिहरत इकल विहारी, ग्यारह बरष प्रमान प्रभू तुम मौन सुधारी ॥७॥ पायो केवल संग्रह
ज्ञान लोका लोक निहारे, दे उपदेश महान भवोऽधित भवितारे। मास रही इक आय गिरी सम्मेद पधारे, योग निरोध सुठान चारों कर्म निवारे ॥ ८॥ सिद्ध भये तुम देव तब इंद्रादिक आये, कीनो मोक्ष कल्याण सबै मिल मंगल गाये । कीनो अंक सुरेन्द्र तास शिलशिव तुम पाई। पूजत हैं भवि जाय चरण तुमरे हरषाई ॥९॥ ___ दोहा-यह गुण पूरन देव की गुणमाला अविकार, जो जन धारे कंठ में ते पावै भव पार ॥१०॥ ॐ ह्रीं श्री मुनिसुव्रतनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंच कल्याण प्राप्ताय अनर्घ्य पद प्राप्तये महाघ निर्वपामीति स्वाहा ॥ ____ अथ अशीर्वादः-कुंडलिया छंद । पूजा मुनिसुव्रत तनी जो कर हैं मन लाय, अथवा अनुमोदन करें पढ़े पाठ चित लाय । पढ़ें पाठ चितलाय तास घर संपति भारी, पुत्र मित्र सुख लहें बहुत जन आज्ञा कारी॥ कह बखतावर रतन तास सम नर नहिं दूजा,मन बच काय लगाय करें जो निशि दिन पूजा ॥ ११॥ इत्याशीर्वादः । इति श्रीमुनिसुव्रतनाथ जिन पूजा संपूर्णा ॥२०॥
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पूजन संग्रह
चौबी० २१ अथ श्रीनमिनाथजिन पूजा प्रारभ्यते ॥
(वखतावरसिंहकृत) अडिल। .. स्थापना-अपराजित तज नाथ नगर मिथिला सही। विजियारथ के नंद मात विप्रा लही।
· पंदरे धनुष प्रमाण हेम तन पाय जी। हम पूजें मन लाय तिष्ठ इत आय जी॥१॥ रों ह्रीं श्रीनमिनाथ जिनेन्द्र अत्रावतराऽवतर संवौषट् आह्वाननम् । ॐ ह्रीं श्रीनमिनाथ जिनेन्द्र अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठाठः स्थापनम्। ओं ह्रीं श्रीनमिनाथ जिनेन्द्र अत्र मम संन्निहितो भवभव वषट् संन्निधी करणम् ॥
., अ अष्टक। अडिल । जल-हिमवन शैल उतंग थकी गंगापरी। ताको शीतल वारि कनक झारी भरी ॥ पूजा श्रीन मिनाथ
चरणकी कीजिये। लखचौरासीयोन जलांजलि दीजिये ॥ोंह्रीं श्रीनमिनाथ जिनेन्द्रायगर्भ,जन्म, .. तप,ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय जन्ममृत्युजरा रोग विनाशनाय जलं निर्वपामीतिस्वाहा। चंदन-चंदन अर कर्पूर सु कुंकुम सानके । चरचं चरण सरोज हरष उर आन के ॥ पूजा श्रीनमिनाथ
चरण की कीजियोलख चौरासी योनजलांजलि दीजिये॥ॐ ह्रीं श्रीनमिनाथ जिनेन्द्रायगर्भ,जन्म,
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चोचो पूजन | संग्रह ५६२
तप,ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय संसारा ताप रोग विनाशनाय चन्दनंनिर्वपामीति स्वाहा। अक्षत-दोनों अनी समान सुअक्षत लीजिये। भर के सुवरण थालसु पुंज धरीजिये॥ पूजा श्रीनमिनाथ
चरण की कीजिये । लख चौरासी योन जलांजलि दीजिये। उौं ह्रीं श्रीनमिनाथ जिनेन्द्राय
गर्भ,जन्म,तप,ज्ञान,निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय अक्षय पद प्राप्तये अक्षतान निर्वपामीतिस्वाहा। पुष्प-कुसुम अनेक प्रकार अनूपमसार है, अलि समूह गुंजार करत भर थार है ॥ पूजा श्री नमिनाथ
चरण की कीजिये।लख चौरासी योन जलांजलि दीजिये ॥ डों ह्रीं श्रीनमिनाथ जिनेंद्राय गर्भ,जन्म
तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय कामवाण विनाशनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा । नैवेद्य-नेवज बहुपरकार सुमन ललचावनी। रसना रंजन लेय क्षधादिभगावनी॥ पूजा श्रीनमिनाथ चरण ... की कीजिये।लख चौरासी योन जलांजलि दीजिये ॥ ॐ ह्रीं श्रीनमिनाथ जिनेंद्राय गर्भ,जन्म,
तप, ज्ञान निर्वाण पंचकल्याण प्राप्नाय क्षुधा रोग विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपानीति स्वाहा । दीप-जगमग जगमग जोत कपूर बलाइये। कंचन दीपक माहि सुध्वांत नसाइये। पूजो श्रीनमिनाथ
चरण की कीजिये । लख चोरासी योन जलांजलि दीजिये॥ ॐ ह्रीं श्रीनमिनाथ जिनेंद्राय गर्भ,
जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय मोहांधकार विनाशनाय दीपं निर्वपामीतिस्वाहा धूप-कालागर कशमीर सुचंदन लेयके ।अमर जिह्वमें धार धनंजय खेय के ॥ पूजा श्रीनमिनाथ चरण
की कीजिये । लख चौरासी योन जलांजलि दीजिये॥ ॐ श्रीन - १ . में
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५६३
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तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय अष्ट का दहनाय धूपं निवपामीति स्वाहा । .... फल-दाख छुहारा एला केला लाइये । सरस मनोहर थार भरे सुचढाइये॥ पूजा श्रीनमिनाथ चरण
की कीजिये । लख चौरासी योन जलांजलि दोजिये ॥ॐ ह्रीं श्रीनमिनाथ जिनेंद्राय गर्भ, जन्म
तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय मोक्ष फल प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहां। .. अर्घ-जल फल आठों द्रव्य मिलाय हूं । स्वर्ण रकाबी मांहि सुअर्घ बनाय हूं । पूजा श्रीनामनाथ चरण
की कीजिये । लख चौरासी योन जलांजलि दीजिये ॥ ॐ ह्रीं श्रीनमिनाथ जिनेंद्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय अनच पद प्राप्तये अर्घ निर्वरामीति स्वाहा ।
.. अथ पंचकल्याणक । दोहा। ... गर्भ-अपराजित तजके प्रभु, विप्रा गर्भ मझार। आश्विन द्वितिया कृष्ण ही, लयों जजू पद सार॥
ॐ ह्रीं श्रीनमिनाथ जिनेन्द्राय आश्विनकृष्ण द्वितिया गर्भ कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा जन्म-दशमी असित आसढ ही, जन्मे श्रीनमि देव । मघवासुर गिरि पर जजे, हम पूजें वसुभेव ॥
ॐह्रीं श्रीनमिनाथ जिनेन्द्राय आषाढ कृष्णदशमी जन्म कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा तप-जन्म तनो दिन आइयो, तप कीनो बन जाय। पण मुष्टी कचलौंचियो, आतम ध्यान लगाय॥ ... ॐ ह्रीं श्रीनमिनाथ जिनेंद्राय आषाढ कृष्णदशमी तपः कल्याण प्राप्ताय अर्धनिर्वपामीति स्वाहा।
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चौबी० . ज्ञान-सित मगसिर ग्यारस हने, घाति कर्म दुःख दाय । केवल ज्ञान उपाइयो, वृष भाषा दुःखदाय। पूजन... ॐ ह्रीं श्रीनमिनाथ जिनेंद्राय मार्गशिरशुक्ल एकादशीज्ञानकल्याणप्राप्ताय अर्घनिर्वपामीतिस्वाहा संग्रह निर्वाण-चतुर्दशी वैसाख तम, हन अघाति लह मोष, सम्मेदाचल तें गये, भये गुणन के कोष॥ ५६४ . ॐ ह्रीं श्रीनमिनाथ जिनेंद्राय वैशाख कृष्ण चतुर्दशी मोक्ष कल्याणप्राप्तायअर्घ निर्वामीतिस्वाहा
अथ जयमाला ।दोहा। महाअर्घ-इंद्र नरेन्द्र फणीन्द्र नर,स्तुती करें जु वनाय । गुण वारिधि नमिनाथ के, पार न पाये जाय॥१॥ पै तुम भक्ति सुहिय मम, प्रेरत आठों जाम । मति माफिक कछु कहत हूं, गुण माला गुण धाम ॥२॥
छन्द पद्धड़ी-जयजय जयजय नमिनाथ देव । सुर नर इंद्रादिक करत सेव ॥ दश सहस वरष की आयु पाय । धनु पंद्रह कंचन वरण काय ॥ ३॥ जय लक्षण पंकज खंड सार । उपमा वरनत पाऊ न पार । जय तपकर चारों अरि प्रजार । पायो तब केवल पद उदार॥४॥ तव समव सरन रचना समार। कीनी इक छिन में धनद त्यार ॥ दोयोजन की इक शिल सुधार,नीली अति सोहे गोल कार ॥ ५॥ अवनी तें ढाई कोश जान । उन्नत सिवान सोहे महान ॥ ताप रचना बहु भांति कीन धूली शालादिक का प्रवीन ॥ ६ ॥ तहां समवसरण में इंद्र आय । स्तुति कीनी मस्तक नवाय । जय तुम देवन के देव इष्ट । भव दधि तारन म... . . ट ।
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चौबो
पूजन
संग्रह
भव्य कंज को रवि विशाल ॥ इत्यादिक थुति कीनो सुरेश । फिर तुम विहरे भारज सुदेश ॥ ८॥ गण धर सतरै चव ज्ञान पूर । ऋषि गण तहां बीस हजार सूर ।। अजया पैंतालिस सहस संग । इक लाख सरावक व्रत अभंग ॥ ९॥ श्रावकनी लख त्रय, शील वान। सम्यक्त्व सहित किरपा निधान ॥ चवसंग सहित भवि वृन्दतार। आये सम्मेदाचल पहार ॥ १० ॥ इक मास रही तब शेष आय । चव कर्म अघाती तब षिपाय ॥ इक समें माहि निरवान थान, पायो तुम आवा गमन हान ॥ ११॥इक्ष्वाक वंश कीनो उजाल । सो नमि जिनवर' मम दुःख टाल । बखता रतना पै हो दयाल। दीजे शिव संपति कर निहाल ॥ १२ ॥
. घत्ताछन्द-जय जय नमि दाता सब जगत्राता कर्म जुधाता मोक्ष वरी। सोई गुण धारी टेर हमारी मति अनुसारी अर्ज करी ॥ १३॥
ॐ ह्रीं श्रीनमिनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय अनर्घ
पद प्राप्तये महाघ निर्वामीति स्वाहा।
अथ आशीर्वादः । सोरठा-जो पूजे नमि देव, अष्ट द्रव्य शुभ लायके। इंद्रादिक तिन सेव, | करें सुनिश दिन आय के ॥ १४॥ इत्याशीर्वादः । इति श्रीनमिनाथजिन पूजा संपूर्णा ॥ २१ ॥
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चौबी.
पजन
संग्रह
२२ अथ श्रीनेमिनाथजिन पूजा प्रारभ्यते।
(बखतावरसिंहकृत) कवित्त। स्थापना-ध्यान रूप हय पर सवार है रतनत्रय सिर ढोय संभार ।
दशधा धर्म कियो बक्तर शुभ संवर अमिकी तीक्षण धार ॥ __ अनुभवने जाकर गह लीनों कर्म अरी लीने ललकार। . शिव देव्या नंदन नेमीश्वर थापन करूं मंत्र उच्चार ॥ · ॐ ह्रीं श्रीनेमिनाथ जिनेन्द्र अत्रावतराऽवतर संवोषट् आह्वाननम् ।
ॐ ह्रीं श्रीनेमिनाथ जिनेन्द्र अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठाठः स्थापनम्। ॐ ह्रीं श्रीनेमिनाथ जिनेन्द्र अत्र मम संन्निहितो भवभव वषट् संन्निधोकरणम् ।
- अथ अष्टक । बसंत तिलका छंद। जल-क्षीरोदधि परम नीर मंगाय लीनो । चामीर कुंभ भर चरण सुधार दीनो ॥ श्रीनेमिनाथ तुम बाल
सुब्रह्मचारी । पूजू पदार युग कंज प्रमाद टारी॥ ॐ ह्रीं श्रीनेमिनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप,ज्ञान,निर्वाण पंचकल्याणप्राप्ताय जना . . . . .
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. चौबी० || चंदन-गोशीर चंदन कपूर घसाय लायो। चर्चा करी चरण पास अनंद पायो ॥ श्रीनेमिनाथ तुम बाल
पूजन ... सुब्रह्मचारी । पूजू पदार युग कंज प्रमाद टारी॥ ॐ ह्रीं श्रीनेमिनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, संग्रह . तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय संसारा तापरोग विनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।
अक्षत-श्रीचंद जोत सम अक्षत श्वेत जो हैं । धारे जु पुंज तुम अग्र अपार सो हैं॥श्रीनेमिनाथ तुम बाल
सुब्रह्मचारी। पूजू पदार युग कंज प्रमाद टारी॥ॐ ह्रीं श्रीनेमिनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, || ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय अक्षय पद प्राप्तये अक्षतान् निर्व पामीति स्वाहा। .. पुष्प-बेलाजुही सुमन प्राशुक सार लीने । सोह सुरंग भर अंजलि भेद कीने ॥ श्रीनेमिनाथ तुम वाल
सुब्रह्मचारी । पूजू पदार युग कंज प्रमाद टारी ।। ॐ ह्रीं श्रीनेमिनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म,
तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय कामवाण विनाशनाय पुष्पं निर्वामीति स्वाहा। || नैवेद्य-फेनी सुहाल घर मोदक सद्य ताजे। मोहे सुनैन तिस देखत भूखभाजे ॥ श्रोनेमिनाथ तुमबाल
सुब्रह्मचारी । पूजू पदार युग कंज प्रमाद टारी ॥ ॐ ह्रीं श्रीनेमिनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्न, तप
ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय क्षुधारोग विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा। दीप-बाती कपूर कर कंचन दीप माही । दीने प्रजार तुम मंदिर मांह साईं ॥ श्रीनेमिनाथ तुम बाल
सुब्रह्मचारी। पूजू पदार युग कंज प्रमाद टारी ॥ ॐ ह्रीं श्रीनेमिनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, :तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय मोहांधकार विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।
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चोवी. धप-श्रीखंड लोंग कर सुगंध रे । खेऊ हुताशन सुकर्म निधार करे ॥ श्रीनेमिनाथ तुम याल पजन सुब्रह्मचारी। पुजं पदार युग कंज प्रमाद टारी ।। ॐ दी श्रीनेमिनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, संग्रह , तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय अष्टकम दहनाय धूपं निर्वामीति माहा। ५६८ फल-एला अनार वरसेव सुआम ला । सुवर्ण धार भर नाय तुम्हें नहा॥ श्रीनेमिनाथ तुम बाल
सुब्रह्मचारी । पूजु पदार युग कंज प्रमाद दारी॥ ॐ ह्रीं श्रीनेमिनाथ जिनेन्द्रीय गर्भ, जन्म,
तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याणा प्राप्ताय मोक्षफल प्राप्तये फलं नियंपामीति स्वाहा। अर्घ-नीरादि अष्ट शुभ प्राशक द्रव्य लाये । कीने महा अरघ सुंदर गान गाये। श्रीनेमिनाथ तुम बाल
सुब्रह्मचारी। पज पदार युग कंज प्रमार टारी ।। उहाँ श्रीनेमिनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय अनर्घ पद प्राप्तये अचं नियंगामीति स्वाहा।
अथ पंचकल्यागाक कडखाकंद। गर्भ-त्यागियो आपने येजयंते महा, मात शिव देवि की कप आये। श्वेत कातिक कहील के दिन लही
मात के चरण तब शनी ध्याये ॥ धनद तय गगन ते वृष्टि करतो भयो रतन की आदि पण वजे लाये। छपन देवी तहां सेव करती महा सुरन ने आय बाजे बजाये॥ ॐ ह्रीं श्रीनेमिनाथ जिनेंद्राय
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चौबी०, जन्म-शुक्ल छठ सावनी अमर मन भावनी तास दिन आपने जन्म लीना । सुरन आसन चले मौलि
तब ही हले,सात पग चाल तब नमन कीना ॥ आइयो सुर पति नगर द्वारावती शची कर लेय जिन रूप चीना । मेरु गिरि पे गये वारि कलसे लये,सहस अर आठ सिर धार दीना॥ ॐ ह्रीं
श्रीनेमिनाथ जिनेंद्राय श्रावण शुक्ल षष्ठी जन्म कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा। | तप-व्याह हरिने ठयो यान सजतो भयो, चढे जब आप श्रीनेमि स्वामी। पशु धनि जव सुनी करत 'चिंता गुणी, चतुर्गति माह जिय दुक्ख पामी। छोड रजमति तिया नेह शिव तें किया,बास बन
में लिया हनो कामी। जन्म की तिथि कहा व्रत महा जब गहा,कियो तब मौन जिन भये नामी॥
डोंह्रीं श्रीनेमिनाथ जिनेंद्राय श्रावण शुक्ल षष्ठी तप कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा । ज्ञान-कार एक भली सेत पष में रली मोह सेन्या दली ज्ञान पायो। समवसर की ठनी धनद रचना ||
तनी सभा द्वादश बनी इंद्र आयो॥ चरण अरचा करी हरष उर में धरी मान धन धन घरी शीस नायो । आप बानी भई सबै जग सरदही, मेट ममपीर में अर्घ लायो॥ ॐ ह्रीं श्रीनेमिनाथ
जिनेन्द्राय आश्विन शुक्ल प्रतिपदा ज्ञान कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा। || निर्वाण-शैल गिरिनार पै मास बाकी रही, आयु तब योग नीरोध कीना। खिरत बानी नहीं मौन सब
"ही लही सप्तमी साढ सित मोक्ष चीना। लोक. अलोक के आप ज्ञायक भये अष्टमी धरा निज ॥
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चौबी० घजन संग्रह
चास लीना। दास बिनती करे चरण उरमें धरे,कीजिये नाथ संसार छीना ॥ॐ ह्रीं श्रीनेमिना जिनेन्द्राय आषाढ शुक्ल सप्तमी मोक्ष कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।
. अथ जयमाला। दोहा। . ५७० महाअर्घ-हरि हरादि हारे सबै, दिये विरंचि डिगाय । सो मकरध्वज तुम हनो,अहो नेमि जिनराय ॥
. ..... छंद भुजंगप्रयात-तजो वैजयंत लयो जन्म स्वामी । शिवा देवि माता महा सौख्य पामी। भले द्वारिका नग्र में आप जाये। हरी आदि निर्जर सबै आन ध्याये ॥ २॥ गये मेरु शीसं कियो न्हौन भारी । पिता मात को सौंप आनंद धारी ॥ प्रभु बाल लीला कही नाहिं जावे। कभी रत्न भूपै कभी गोद आवे ॥३॥ शची आदि देवी गहे कर चलावे । कभी चाल सीधी कभी अट पटावे ॥ छबी श्याम सुंदर मनो मेघ कारे । भये वर्ष अष्टम अणु व्रत्त धारे ॥४॥ छपन कोड यादों सभा जोड लीहै। चली बात ऐसे कहे को बली है ॥ प्रभु अंगुरी बीच जंजीर डारी । सबै खैच हारे झुलाये मुरारी ॥ ५॥ हली आदि जेते सबै शीस नाये। भई फूल वर्षा सुरों गांन गायें ॥ करै कृष्ण नारी खडी अर्ज भारी । सुनों आप स्वामी वरो एक नारी ॥ ६ ॥ तबै आप मानी करी कृष्ण त्यारी। चढे व्याहने को सबै राज धारी ॥ सजनागढी सोंव के बीच आये । पश टेर कीनी वचन यों सुनाये ॥७॥ घिरे फंद . ' मांही न दीस सहाई। पड़े. काल के बीच दीजे छुड़ाई ॥ सुने बैन ऐसे तबै ही छुड़ाये । गही सार दीक्षा
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चौबी० सगिरिनार आये ॥८॥ नमें सिद्ध को लौंच कीनो प्रवीना। दिने छप्पने में महा ध्यान कीना। पूजन | जबै घातिया जोर छिन में उडायो । लहों ज्ञान भानं तिहूं लोक छायो ॥ ९॥ समवसरण की इंद्र , संग्रह शोभा बनाई। शुची डेढ योजन आनंद दाई ॥ गणाधीश ग्यारह सु झेलें हैं बाणी । लहैं राज मोक्षं _ ५७१ सुनें भव्य प्राणी ॥ १०॥घने सात से वर्ष में भव्य तारे। गयो उर्जयंतं सवै योग टारे ॥ भये सिद्ध
स्वामी तिहूं लोक जानं । सबै इंद्र कीने सुपंचम कल्याणं ॥११॥ नम चर्ण तेरे अजी संग लीजे। छुटे भवकी फेरी यही दान दीजे । सुनों अर्ज मेरी जगन्नाथ नामी। करो देर छिन ना अहो नेमि स्वामी ।।
- पत्ता छंद-रजमतिसी नारी ततक्षिन छारी वर शिव नारी ततकाला। तिन की थुति कीनी चित धर लोनी पातग हीनी गुण माला ॥१३॥ .: ॐ ह्रीं श्रीनेमिनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय अनर्घ
‘पद प्राप्तये महाघ निर्वपामीति स्वाहा। - अथ आशीर्वादः । अडिल-नेमीश्वर पद कमल तनी पूजा करें। अलिसम कर अनुराग भक्ति उर में धरें। ते पावें भव पार कहै बखता सही। रतन कहे मन लाय ऋद्धि पावें वही॥ .. . इत्याशीर्वादः। इति श्रीनेमिनाथजिन पूजा संपूर्णा ॥ २२॥ !.
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चौबी० पूजन संग्रह
२३ अथ श्रीपार्श्वनाथजिनपूजा प्रारभ्यते । विस्तृतावरसिंह कत) गीताछन्द थापना-बरस्वर्गप्राणतको विहाय सुमोत वामासुत भये। अश्वसेनके पार्श्वजिनवर चरण तिनके सरनये ना हाथ उन्नत तन बिराजे उरग लक्षण अतिलसोथातुम्हें जिन काय तिष्ठो कर्म मेरो सव नस॥
ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्र अत्रावतराऽवतर संबोषट् आह्वाननम् ।। - ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्र अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम् ॥ ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्र अत्र मम संन्निहितो भव भव वषट् संन्निधी करणम् ।
अथ अष्टक । चामर छन्द ।। जल-क्षीर सोम के समान अंबुसार लाइये, हेम पात्र धारके सु आप को चढाइये । पार्श्वनाथ देव सेव | आपकी करूंसदा, दीजिये निवास मोक्ष भूलिये नहीं कदा॥ ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय गर्भ,
जन्म,तप,ज्ञान निर्वाणपंच कल्याण प्राप्ताय जन्म मृत्युजरारोग विनाशनायजलं निर्वपामोतिस्वाहा। चंदन-चंदनादि कसरादि स्वच्छ गंधलीजिये, आपचन चर्च मोहतापको हनीजिये। पार्श्वनाथ देव सेव ... आपकी करूंसदा, दीजिये निवास मोक्ष भूलिये नहीं कदा॥ ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय गर्भ ... जेन्म,तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याणप्राप्ताय संसारातापरोगविनाशनाय चंदनं निर्वपामीतिस्वाहा ॥ अक्षत-फेन चंद की समान अक्षतं मंगायके, पाद के समीप सार पूजको रचायके। पार्श्वनाथ देव सेव - आपकी करूंसदा, दीजिये निवास मोक्ष भूलिये नहीं कदा॥ ॐ . . . . . . . .
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चौबी० पूजन संग्रह
५७३
जन्म तप; ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय अक्षय पदप्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा ॥ पुष्प-केवडा गुलाब और केतकी चुनाइये, धार चर्णके समीप काम को हनाइये । पार्श्वनाथ देव सेव - आपकी करूंसदा, दीजिये निवास मोक्ष भूलिये नहीं,कदा ॥ ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्रीय गर्भ, . जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंच कल्याण प्राप्ताय कामवाण विनाशनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा ।। नैवेद्य-घेवरादि बावरादि मिष्ट सय में सनें, आपं चर्ण अर्च ते क्षुधादि रोग को हने । पार्श्वनाथ देव
सेव आपकी करूंसदा, दीजिये निवास मोक्ष भूलिये नहीं कदा॥ ॐह्रीं श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय गर्भ ... जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंच कल्याण प्राप्ताय क्षुधारोग विनाशनाय ने द्यं निर्वपामीतिस्वाहा ॥ दीप-लाय रत्न दीप को सनेह पूरके भरूं, बातिका कपूरवार मोह ध्वांत को हरू । पाश्वनाथ देव सेव ... आपकी करूंसदा, दीजिये निवास मोक्ष भूलिये नहीं कदा॥ ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय गर्भ, ___ जन्म,तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय मोहांधकार विनाशनाय दीपं निर्वधामीति स्वाहा ॥ धूप-धूप गंध लेयके सु अग्नि संग जारिये, तास धूप के सु संग कम अष्ट वारिये । पार्श्वनाथ देव
सेव आप की करूं सदा, दीजिये निवास मोक्ष भूलिये नहीं कदा ॥ ॐह्रीं श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय
गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्तय अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वामीति स्वाहा ।। फल-क्षारकादि चिर्भटादि रत्नथार में भरूं, हर्ष धार के जजू समोक्ष सौख्यको वरूं। पार्श्वनाथ देव
सेव आपकी करूं सदा, दीजिये निवास मोक्ष भूलिये नहीं कदा ॥ ॐ ह्रीं श्रीपाश्र्वनाथ जिनेंद्राय
ना
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चौबी० पूजन
संग्रह ५७४
गर्भ, जन्म, तप, ज्ञाननिर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय मोक्षफल प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा ॥ अर्घ-नीर गंध अक्षतं सुपुष्प चारु लीजिये,दीप धूपं श्रीफलादि अर्घ तें जजीजिये । पार्श्वनाथ देव सेव
आपकी करूं सदा, दीजिये निवास मोक्ष भूलिये नहीं कदा ॥ ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंच कल्याण प्राप्ताय अनर्घ्य पदप्राप्तये अर्घ निर्वपामीति स्वाहा ॥
__ अथ पंचकल्याणक । छंद पायता। गर्भ-शुभ प्राणत स्वर्ग विहाये, वामा माता उर आये।वैशाख तनीदुतकारी, हम पूजें विघ्न निवारी॥ ___ ॐह्रीं श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय वैशाख कृष्ण द्वितीया गर्भ कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा । जन्म-जन्में त्रिभुवन सुखदाता,कलिकादशि पौष विख्याता।स्यामातन अद्भुतराजे,रवि कोटिकतेजसुलाजे
ॐह्रीं श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय पौष कृष्ण एकादशी जन्म कल्याण प्राप्तायअनिर्वपामीति स्वाहा। तप-कलि पौष इकादशि आई, तब बारह भावना भाई। अपने कर लौंच सुकीना, हम पूजें चर्नजजीना
ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय पौष कृष्ण एकादशी तपः कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा ज्ञान-वह कमठ जीव दुखकारी,उपसर्ग कियो अति भारी। प्रभु केवल ज्ञान उपाया, अलि चैतचौथ दिन
. गाया॥ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय चैत्र कृष्ण चतुर्थी ज्ञान कल्याणप्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा निर्वाण-सित सावन सातैआई शिवनार तवै जिनपाई। सम्मेदाचल हरिमाना, हमपूजें मोक्ष कल्याना . ___ॐह्रीं श्री पार्श्वनाथ जिनेंद्राय श्रावण शुक्ल सप्तमी मो कर र
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. संग्रह
.अथ जयमाला। महाअर्घ-पारसनाथ जिनंद तने बच पोनभषी जरते सुन पाये।करो सरधान लहो पदआन भये पद्मावति चौबी०
शेष कहायो नाम प्रताप टरे संताप सुभब्यनको शिवशर्म दिखाये । हो विश्वसेनके नंदभये गुण गावत पूजन | हैं तुमरे हरषाय॥केकी कंठ समान छवि,बपु उतंग नव हाथ । लक्षण उरग निहार पग,बंदूं पारसनाथ ॥
- छंद मोती दाम-रची नगरी षट् मास अगार, बने बहुगोपुर शोभ अपार । स कोटतनी रचना ५७५
छबिदेत, कगूरन पै लहकै बहु केत॥१॥ बनारस की रचना जु अपार,करी या भांत धनेश तयार तहां विश्वसेन नरेंन्द्र उदार, करै सुख बाम सु दे पटनार ॥२॥ तजो तुम प्राणत नाम बिमान, भये तिन के घर नंदन आन । तबै पुर इंद्र नियोगनि आय, गिरींद्र करी विध न्हौन सु जाय ॥३॥ पिता घर सौंप गये निज धाम, कुवेर करे बसु जाम जु काम । बधेजिन दूज मयंक समान, रमैं बहु बालक निर्जर आन ॥४॥ भये जब अष्टम बर्ष कुमार, धरे अणु बत्त महा सुखकार । पिता जद आन करी अरदास, करो तुम व्याह भरो मम आस ॥५॥ करो तब नाह रहे जगचंद, किये तुम कामक सायक मंद । चढे गजराज कुमार न संग, सु देखत गंगतनी सुतरंग॥६॥ लख्यो यक रंक करे तप घोर, | चहुंदिस अग्नि बले अति जोर । कहे जिननाथ अरे सुन भ्रात, करे बहुजीव तनी मतघात ॥ ७॥ भयो तब कोप कहै कितजीव, जले तव नाग दिखाय सदीव । लख्यो यह कारण भावन भाय, नये | दिव ब्रह्मऋषी सब आय॥८॥ तबै सुर चार प्रकार नियोग, धरी शिविका निजकंध मनोग। करो बन
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चोबी माह निवास जिनंद, धरे व्रत चारित.आनंद कंद ॥९॥ गहे तहां अष्टम के उपवास, गये धन दत्त पूजन तनें जु अवास। दियो पयदान महा सुखकार, भईपण वृष्टि तहां तिहवार ॥१०॥ गये फिर कानन माह संग्रह दयाल, धरो तुम योग सबै अघटाल । तबै वह धूम सुकेत अयान, भयो कमठाचर को सुर आन॥११॥ ५७६ करै नभ गौन लखे तुम धीर, जू पूरब बैर बिचार गहीर । करो उपसर्ग भयानक घोर, चली बहु तीक्षण
पवन झकोर ॥१२॥ रहो दशहू दिश में तम छाय, लगी बहु अग्नि लखी नहिं जाय । सुरुंडन के बिन मुण्ड दिखाय,पडे जल मूसल धार अथाय॥१३॥तब पद्मावती कंत धनंद, नये युग आय तहांजिनचंद। भगो तब रंक सुदेखतहाल, लहो तब केवल ज्ञान विशाल ॥१४॥ दियो उपदेश महाहितकार सुभव्यन बोधि सम्मेद पधार ।सु सुव्रण भद्र जू कूट प्रसिद्ध,बरी शिवनारि लही बसुऋद्ध॥१५॥जजू तुम चर्णदोऊ कर जोर । प्रभु लखिये अबही मम ओर। कहैं वखतावर रत्न बनाय,जिनेश हमें भव पार लगाय ॥१६॥
पत्ता छंद-जय पारस देवं सुर कृत सेवं बंदित चरण सुनागपती। करुणा के धारी पर उपकारी शिव सुख कारी कम हती॥ १७॥ ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंच कल्याण प्राप्ताय अनर्घ पद प्राप्तये महाऽध निर्वपामीति स्वाहा ॥
अथ आशीर्वादः-छंद मद अवलिप्त । जो पूजे मन लाय भव्य पारस प्रभु नित ही। ताके दुख सब जांय भीतिव्यापै नहिं कितही। सुख संपति अधिकाय पुत्र मित्रादिक सारे । अनुक्रम सों शिव लहे.. . रतन इम कहे पकारे ॥१८॥ त्या .....
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चौबी. पूजन संग्रह ५७७
- २४ अथश्रीवर्द्धमानजिन पूजा लिख्यते।
_. बखतावरसिंहकृत । अडिल स्थापना-सिद्धारथ है तात मात त्रिशिला सही, अच्युत तें चय आय नगर कुंडिन कही। .. हाथ सात परमान अंक है मृगपती, महावीर जिनदेव तिष्ठ करुणा पती॥१॥
ॐ ह्रीं श्रीमहाबार जिनेंद्र अत्रावतराऽवतर संवौषट् आह्वाननम् । ॐ ह्रीं श्री महाबीर जिनेंद्र अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम् । ॐ ह्रीं श्रीमहावीर जिनेंद्र अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधी करणम् ॥
अथ अष्टक । छंद त्रिभंगी। जल-क्षीरोदधिवारं निर्मल सारं गंध अपारं भर धारं। अति ही शुचिकारं तृषा निवारं तुम पद ढारं
दुःख हारं । श्रीवीर कुमारं शिव दातारं पाप निवारं सुख कारं । सुंदर आकारं ज्ञान भंडारं जग - हितकारं जित मारं॥.रों ह्रीं श्री महाबीर जिनेंद्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय जन्म मृत्यु जरा रोग विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।
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चौबा पूजन संग्रह ५७८
चंदन-चंदन मन भावन ताप नसावन सौरभ पावन. भरझारी । करपूज तिहारी आनंद कारी पाप
निवारी गुण कारी ।श्रीबीर कुमारं शिवदातारं पाप निवारं सुखकारं । सुंदर आकारं ज्ञान भंडारं जग हितकारं जितमारं । ॐ ह्रीं श्रीमहावीर जिनेन्द्राय गर्भ,जन्म,तप,ज्ञान, निर्वाणपंचकल्याण
प्राप्ताय संसारा ताप रोग विनाशनाय चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा । अक्षत-अक्षत शुभ सारं खेत सुधारं हेम सुथारं माह भरे । तुम चरण चढाऊ पुंज रचाऊं शिव सुख ।
पाऊं हर्ष वरे। श्री वीरकुमारं शिव दातारं पाप निवारं सखकारं । सुंदर आकारं ज्ञान भंडारं जग हितकारं जितमारं ॥ ॐ ह्रीं श्रीमहाबीर जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंच
कल्याण प्राप्ताय अक्षय पद प्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा । पुष्प-शुभ षट् ऋतु केरे सुमन उजेरे अलिगण नेरे गुंज करे । ले पूजूं ध्याऊं मन हरषाऊं सीस नवाऊं
काम जरे। श्रीबीर कुमारं शिवदातारं पाप निवारं सुखंकारं । सुंदर आकारं ज्ञान भंडारं जग हितकारं जितमारं। ॐ ह्रीं श्री महावीरजिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण
प्राप्ताय काम वाण विनाशनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा। नैवेद्य-चरु घृत में कीनी रसमें भीनी पुष्ट नवीनी भर थारी। चरणन ढिग लाउं
न ऊं. ..
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चौबी० पूजन संग्रह ५७९
.. भंडारं जग हितकारं जितमारं । ॐ ह्रीं श्रीमहावीर जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण
चकल्याण प्राप्ताय क्षुधा रोग विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा। दीप-मणि दीप प्रकाशेध्यांत विनाशे निज हित भाषे कांति लसे। तल चर्ण चढाऊ मोहनलाऊंज्ञान सुपाऊं
सुख बिलसे । श्रीवीर कुमारं शिवदातारं पाप निवारं सुखकारं । सुंदर आकारं ज्ञान भंडार जग हितकारं जितमा । ॐ ह्रीं श्री महावीर जिनेन्द्रीय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंच
कल्याण प्राप्ताय मोहांधकार विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा। धूप-कृष्णागर चूरं लौंग कपूर परिमल भूरं खेवत हूं। तिस धूम उडाये अलिगण आये कर्म नसाये
सेवत हूं॥ श्रीवीर कुमारं शिवदोतारं पाप निवारं सुख कारं । सुंदर आकारं ज्ञान भंडारं जग हितकार जितमारं । ॐ ह्रीं श्रीमहावीर जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म तप, ज्ञान निर्वाण पंचकल्याण
प्राप्ताय अष्ट कर्म दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा। फल-बादाम छुहारी लौंग सुपारी फल सहकारी में लायो। भर हाटक थारी तुम ढिग धारी शिव
सुख कारी गुण गायो । श्री बारकुमारं शिव दातारं पाप निवारं सुखकारं । सुंदर आकारं ज्ञान भंडारं जग हितकारं जितमारं । ओं ह्रीं श्रीमहावीर जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण
पंचकल्याण प्राप्ताय मोक्ष फल प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा। अर्घ-जल गंध अपारं अक्षत सारं सुमन सुधारं चरुजुबरा । ले दीपं धूपं फल बहु रूपं स्वर्ण रकाबी ||
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.पजन
चौवा० ... अर्घ करा ॥ श्री वीर कुमारं शिवदातारं पाप निवारं सुखकार । सुंदर आकारं ज्ञान भंडारं जग
हितकारं जितमारं । ॐ ह्रीं श्रीमहावीर जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण संग्रह प्राप्ताय अनर्घ्य पद प्राप्तये अर्घ निर्वपामीति स्वाहा ॥ . ५८०
(अथ पंच कल्याणक) छन्दलक्ष्मीधरा। गर्भ-षाढसित छठ को गर्भ मातासही, आइयो त्याग के स्वर्ग सोलं कही । होत आकाशते रत्न
वरषाघनी, देव देवी सर्व से माता ठनी। रों ह्रीं श्रीमहावीर जिनेंद्राय आषाढ शुक्ल षष्ठी गर्भ
कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा ॥ जन्म-चेत सित ब्रोदसी जन्म लीनो महा। नारकी दो घडी सर्व साता लहा। मेरु पै इंद्र नागेंद्र ने
पूजियो, मैं जजू अर्घ ले वेग त्यारीजियो। ऊ ह्रीं श्रीमहाबीर जिनेंद्राय चैत्र शुक्ल त्रयोदशी
जन्म कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा। तप-मार्गशीर्षा दसैं स्याम की आइयो, तादिना आप चिद्रूप को ध्याइयो । धार षष्ठं महा दान गोक्षीर
को,लीजियो आपने मैं जजू वीर को। ॐ ह्रीं श्रीमहाबीर जिनेन्द्राय मार्गशिर कृष्ण दशमी तपः
कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा । ज्ञान-घात चौ कर्म को ज्ञान पायो मा
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पूजन संग्रह
धर्म ही, में जजू अर्घ ले मेटिये कर्म ही। डों ह्रीं श्री महाबीर जिनेंद्राय वैशाख शुक्ल दशमी
ज्ञान कल्याण प्राप्तात अर्घ निर्वपामीति स्वाहा॥ निर्वाण-नग्रपावापुरी सार उद्यान में, योग निोरधियो ठान के ध्यान में। मावसी कातकी भ्रमर की
लीजिये, सिद्ध राजाभये बास मो दीजिये । ॐ ह्रीं श्री महावीर जिनेंद्राय कार्तिक कृष्ण अमावस्या मोक्ष कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।
अथ जयमाला। दोहा। महा अर्घ-सकल सुरेश नरेश अर, किन्नरेश फनयेश । ते सब बंदित चरणयुग, बंद बीर जिनेश ।
छन्द पद्धडी-जयजय जयजय श्रीबीर राज, भवसागर में अद्भुत जहाज । जय पुष्पोत्तर तजके विमान, त्रिशिला माता की कूष आन ॥२ सिद्धारथ तात बडे सुजान, जय कुंडिनयर नगरी महान । तिनके घर आप भये जिनंद,हरिवंश व्योम ऊगे सुचंद ॥ ३॥ तव अमरन के आसन चलाय, सिर मुकुट नयत अचरज लहाय । कल्पन घर घन घंटा बजाय, ज्योतिष घर के हरिनाद थाय ॥४॥ भवनालय संग बजे अपार, व्यन्तर के मंदिर ढोल सार । इन चिह्न थकी तुम जन्म जान, इंद्रादिक आये हरषमान ॥५॥ कुंडिन पुर से गिरिमेरु जाय, इक सहस वसु कलसे दुराय। तब मघवा स्तुतिजु कर बनाय, तुम नाम धरो जिन बीर राय ॥६॥ शचि पौंछ कियो श्रृंगार येम, सोहत भूषण को कल्प
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चौबी०
पूजन
संग्रह ५८२
जेम । फिर लाय तात के सदन इंद्र, लख माता हरषी बाल चंद्र ॥७॥ तांडव नाटक कीनो सरिंद, दिखलायो जिन दश भव अमंद । पहिले भवनांहर रूप धार, दूजे सौ धर्म सुरगं मझार । बिजयारध में पग धीश राय, कनक प्रज्वल नामा लहाय। चौथे भवलांतव नाक थान, पंचम हरिषेन नरिंद जान ॥९॥ षष्ठम महा शुक्र विर्षे जुदेव, सप्तम चक्री प्रिय मित्र येव । सहस्रार माह अष्टम प्रजाय, तहां ते चय उपजे नंदराय ॥ १०॥ तप कर अच्युत थानक सुरिंद, तहां ते चय आप भये जिनंद। यह भव दिखलाये नृत्य थान,सब जीव भये आनंद खान ॥ ११॥ पितमात पूज हरिकर पयान, जिन बालक बय धारे सुजान। यक देव परीक्षा काज आय, तिन नाग रूप लीनो वनाय ॥१२॥ क्रीडा तरु खेलत संग कुमार, सब भाग गये तिस तन निहार । प्रभु ततक्षिन ताको मद उतार, क्रीडा कर संगम देव हार ॥ १३ ॥ तब नाम दियो महावीर शूर, तिनथानक पहुंचो हरष पूर । युग मुनिवर नभ में गमन ठान, तिन के संशय उपजो महान ॥ १४ ॥ तुम पीढ़ जबै देखी दयाल, चित को विभ्रम सबही सुटाल। तब नाम दियो सन्मति उदार,इम तीस वरषके भये कुमार ।१५लख पूरव भव वैराग्य भाय, सिद्धारथ बन दीक्षा लहाय । तप द्वादश कर बहुक्षीण काय, चव घाति हान केवल लहाय ॥१६॥ ग्यारह गणधर गोतम सु आद, मुनि सहस चतुर्दश तज प्रमाद । अजया व्रत चंदन आदि धार सोहे सब छत्तिस सहस धार ॥ १७॥ यक लक्ष श्रावक अतिपुनीत, निगुनी श्रावकनी धर्म नीत । इम
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संग्रह
चौबी०
पायो सब कर्महान । तहां सिद्ध भये निर्भय निरास, सो सोहत है अद्भुत निवास ॥ १९ ॥ तुमरो पूजन ही मारग भव्य पाय, सो उतरेंगे भवपार जाय । अबलो तुमरो तीरथ जिनंद, सो बर्तत है आनंद
कंद ॥२०॥ हम याचत है तुम पैदयाल, दुख दारिदटार करो निहाल । बखतावर रतन कहै वनाय, शिव सुख दीजे महावीर राय ॥ २१ ॥
, घत्ता छन्द-जय त्रिशिला प्यारे जग उजियारे भवि गण तारे मोक्ष दई। लख चरण तुम्हारे रविशशि हारे पूजन हारे शर्म लई ॥ २२ ॥ ॐ ह्रीं श्रीमहाबीर जिनेन्द्रायः गर्भ, जन्म तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय अनर्घ पद प्राप्तये महा निर्वपामीति स्वाहा । अथ आशीर्वादः दोहा-बीर महाअतिबीरजी,सन्मतिवर्द्ध सुजान।पंचनाम पूजें सदा,पावें पद निर्वान ॥
इत्याशीर्बादः । इति श्रीमहाबीर जिन पूजा संपूर्णा ॥ २४ ॥ समाप्त-अर्ध-छंद सुंदरी-ऋषभ जिनको आदि मनाय के अंत में महाबीर सुध्याय के । : चतुर्विंश जिनगुणगाय के, जजत हूं मैं अर्घ चढायक ॥१॥ ॐ ह्रीं श्रीऋषभ देवादि महावीर
'पर्यंत चतुर्विंशति जिनेन्द्रम्यः समाप्त्यर्घ निवंपामीति स्वाहा ॥ अथ आशीर्वादः । छंद अडिल-जे चौबीस जिनेंद्रतनी पूजा करें, इंद्रादिक पदपाय चक्रि पद को धरें। कीरति झै सुफराय मान जगमें सही,अनुक्रम तें शिव जाय सर्व बहु विधि लही ॥ २॥ इत्याशीर्वादः
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चौबी०
पूजन
.५८४
दोहा-संवत अष्टादश शतक, और वानवेंजान । फागनकारी सप्तमी, भौमवार पहचान । ॥१॥ मध्य देश मंडल विषै, दिल्ली शहर अनूप । बादशाह अकवर नसल नमन करें बहु भूप ॥२॥ चार वर्ण जहां वसत है, कोई न दुःख स्वरूप । शैली श्रावक धर्मकी, लसत महा सुख कूप ॥ ३ ॥ नाना विधि रचना सहित, सोहत जिन आगार । चरचा अध्यातम तनी, करै भव्य हित धार ॥४॥ शैली में सज्जन भले, सुगनचंद गुण खान । पुत्र सुगिरधर लाल तसु, ज्ञानवान जसवान ॥ ५॥
सवैया । तिसही शैली मंझार पंडित विवेक धार गिरधारी लाल सार स्नेही लालजानिये। कानजीमल्ल आन जै जै मल शीलवान गुपालराय साहिबसिंह सज्जन पहचानिये । २ । बाल बुद्धि को विचार बखतावर नाम धार रत्नलाल अग्रवाल न्यात जिस मानिये ॥ ३ ॥ ताने रचो पाठ जोग वांचो सब सुधी लोग भूल चूक शोधकर क्षमा उर आनिये ॥ ४॥
__ दोहा-मित्र युगल मिलके कियो, मन में यही विचार । शुभ कारण पूजारची, कछु पिंगल अनुसार ॥ ५॥ अलंकार जान नहीं, नहिं लौकिक सुज्ञान । भक्ति एक उरधार के, रचो पाठ हितमान ॥ ६॥ वखतावरसिंह सीखियो, कछु भाषा की चाल । तातें पाठ बनाइयो, वुधि माफिक अघटाल ॥७॥
कुंडालियां छंद-भ्राता रतन सु लाल को नाम रामपरसाद । तिन तें रतन जो सीखियो कछ छंद मरजाद । कछु छन्द मरजाद आदि अक्षर सिखलाये । विद्या कछू पढाय बहुत उपकार कराये। क र .. ... ..
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Digambra Jain Religious Grantha Series No.5.
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" मूल्य १० ) रुपये
इति४चौबीसीपूजा
... मूल्य१०) रुपये ..
म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म
....
संवत् १८५७ । सन् १८१० । वीर संवत् २४३६. . .
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बाबु ज्ञानचन्द्र जैनी लाहौर निवासी ने छपवाया।
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