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...... समह - ४६७
५ अथ श्रीसुमतिनाथजिन पूजा प्रारभ्यते ।
... (वखतावरसिंह कृत) (सर्वया) स्थापना-त्याग बैजयंत सार नगर कोशला मंझार मात मंगला उदार तात मेरु जानियें।
चिह्न कोक बनधार दुष्ट कर्म नष्ट कार तीन लोक के अधार ज्ञान रूप मानियें॥ आयु लक्ष पूर्वजान चालिस को है प्रमाण कृपा दृष्टि धार के, सो मम दुःख हानियें । आइये जिनंद देव करूं हूं पदान्ज सेव तिष्ठ तिष्ठ नाथ सब भव्य दुःख भानियें ॥
ॐ ह्रीं श्री सुमतिनाथ जिनेन्द्र अत्रावतरावतर संवोषट् आह्वाननम्। ॐ ह्रीं श्रीसुमतिनाथाजनेन्द्र अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठाठः स्थापनम्। अह्रीं श्रीसुमतिनाथ जिनेन्द्र अत्र मम सन्निहितो भवभव वषट् सन्निधीकरणम् ॥
अथ अष्टक । छंद सोरठा। ..... जल-गंगाजल भरलाय, तुम सनमुख धारा दई । जन्म रोग नस जाय, सुमति जिनेश्वर पूजते ॥ .. ... ॐ ह्रीं श्रीसुमतिनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय
३. जन्म मृत्यु जरा रोग विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।.