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चौबी० सर कल्याण कीनो, पंच मो हरषायके। गंधर्व निर्जर गान कीनो, नृत्य तुर बजाय के हम करें पूजन | युगकर-जोड ठाडे, कृपा सिंधु सुनी जिये। वखता रतन को भृत्य जानो वास अपनो दीजिये ॥८॥ सह. पत्ता छन्द-जय जय जिन स्वामी त्रिभुवन नामी सुर नर खग बंदित चरणम् ।। बहु मंगल गावें तूर
वजावें शीस नवावें अघ हरणम् । ॐ ह्रीं श्री अभिनन्दननाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान .... :निर्वाण, पंच कल्याण प्राप्ताय अनर्घ पद प्राप्तये महाऽघ निर्वपामाति स्वाहा। 'अथ आशीर्वादः । छन्द उपगीता । जे अभिनंदन स्वामी पूजे त्रय भाव शुद्ध कर कोई । ते होवें शिव
गामी त्रिभुवन में वंदनीक सो होई ॥ १०॥ ॥ इत्याशीर्वादः॥ • इति श्री अभिनंदननाथ जिन पूजा संपूर्णा ॥ ४ ॥