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नौबी०|| गही। संयम बिना ये दुःख पाये अंतनारक गति लही ॥३॥ नारक भूमि डरावनी जगसार हो, शीत || पजन
उष्ण दुःख भार । हुंडक डील घिनावनो जगसार हो, करे मार ही मार। तहां मार मार अत्यंत सुनिये संग्रह
पूतरी लिपटात हैं । तरु शालके असि पत्र कंटक तासमें घिसटात हैं। सरिता बहे.श्रोणित तनी तिस ४६५
पान करवावें सदा । इम आयु सागर बंध भुगती सुख नहीं पायो कदा ॥ ४ ॥निकस तहां मानुष भयो। जगसार हो नीच कुली अवतार । बिकलेंद्रिय चख हीन ही जगसार हो, पायो तन दुख कार । दुखकार तन पायो अपावन भूप को किकर भयो। कर जोड के तहँभयोठाडो हुकम सिर पे धर लियो। जे भेष मिथ्या जटा धारी तास को गुरु मानियों। जिन बचन की शरधान कीनी तप अज्ञान सुठानियों ॥५॥ कोइयक पुण्य बसायतें जगसार हो, पायो स्वर्ग विमान। नीचदेव संपति लही जग सार हो, घोटक बृषभ कहान। कहान बाहन जातमें बहु दास कर्म सबी गहे। ऋधि देख पर की झुरे. अति ही मानसिक जो दुःख सहे। पट मास पहिले माल सुकी देखके बिल लाइयो । आरत थकी तब प्राण त्यागे सुमन तन को पाइयो ॥६॥ यह प्रकार जग में भ्रम्यो, जगसार हो,सो तुम जानत देव । काल लब्धि जब आइयो जगसार हो, पाई तुम पद सेव । पद सेव पाई नाथ तेरी कृपा असी कीजिये। संसार सागर बीच मो को कर अलंबन दीजिये। मैं करूं नित ही सेव तेरी अहो. संबर नंदजी। इक्ष्वाकु वंश सुगगन माहीं दीप्त जैसे चंदजी ॥७॥ अष्ट करम सब हान के जग सारहो,पहुंचे मोक्ष सुथान। सुर नरं अवनीं पूजियो जगसार हो, सम्मेदाचल आन। आन