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चोवी.
ज्ञान-चवघाति कर्मदुखदाई,हन केवल ज्ञान लहाई । सितपोष चतुर्दशि जो है,भवजीवन के मन मोहै।
। ॐहीं श्रीअभिनंदननाथ जिनेंद्राय पोषशुक्ल चतुर्दशी ज्ञान कल्याण प्राप्तायअनिर्वपामीतिस्वाहा। संग्रह निर्वाण-सम्मेद शिखर गिरि सो है, तहं योगनिरोध करो । वैशाख शुक्लछठ आई,शिवनारवरीजिनराई। ४६४ . . ॐ ह्रीं श्रीअभिनंदननाथ जिनेंद्राय वैशाख शुक्लषष्ठी मोक्षकल्याणप्राप्तायअर्घनिवंपामीतिस्वाहा।
__ अथ जयमाला।दोहा. महाअर्घ-श्री अभिनंदन देवके, चरण सरोज विशाल। तिनको में सिरनायके, गाऊंशुभजयमाल॥१॥
चाल बीस जिन पूजा आरती की। .. . अभिनंदन भगवंत जी जगसार हो नमन करूं सिर नाय । मो बिनती हिरदे धरो जगसार हो, स्तुति करू हूं बनाय। मैं करूं बिनती सुनों स्वामी, चतुरगति में दुःख सहे । यहां योनि लख चौरासि पाई, कोड़ कुल मैं सय लहे ॥२॥ तहां भ्रमत बहु संसार माहीं, पंच थावर तन लियो । जब पडीमंद कषाय मेरी, आन विकल त्रय भयो। तियंचगति दुःख बहु सहे जगसार हो । सो किम बरने जांय । तुमतें छाने को नहीं जगसार हो । रही सो ज्ञान समाय । सो ज्ञान मांह प्रत्यक्ष दीखे दुःख जेते मैं लहे। जहां भूख प्यास अत्यंतपीडा मार ताडन दुःख सहे ।३।तहां पीठपे बहु बोझ लादे गले में फंदा