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संग्रह
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चोषी०
| फल-बादाम सेजी श्रीफल आदि सुहावने, भरथारीजी देखत चख ललचावने। अभिनंदनजी जग बंधन -पूजन
तोडन वली,हम पूजें जी विघ्न सघन सबही टली । डों ह्रीं श्री अभिनंदन नाथ जिनेन्द्राय गर्भ,
जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय मोक्षफल प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा। अर्घ-जल फल शुभजी आठोंदर्बसु कर लिये, कर अर्घ सुजीतुम पद आगे धर दिये । अभिनंदनजीजग बंधन तोडन वली,हमपूजेजी विघ्न सघन सब हीटली। ॐहीं श्रीअभिनंदन नाथ जिनेंद्राय गर्भ, जन्म,तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय अनर्घ पद प्राप्तये अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।
अथ पंच कल्याणक। (छन्दपायता) गर्भ-षष्टी वैशाख उजारी, गरभागम तादिन भारी। माता सिद्धारथ ध्याऊ, अभिनंदन पूज रचाऊं।
... ॐह्रीं श्रीअभिनंदननाथजिनेंद्रायवैशाखशुक्लषष्ठीगर्भकल्याणप्राप्तायअर्घ निवपामीतिस्वाहा। जन्म-सित बारसि माघ महीना, जिन चंद जन्म तब लीना। सब जीवन ने सुखपाया, तन कनक - बरण छबि छाया। ॐ ह्रीं श्री अभिनंदन नाथ जिनेंद्राय माघ शुक्ल द्वादशी जन्म कल्याण
प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीतिस्वाहा।। तप-सित माघ द्वादशी जानों तव योग विषेचित ठानो। लौकांतिक सुर तत्र आये, हम पूजें अर्घ चढाये
ॐह्रीश्री अभिनन्दननाथ जिनेंद्राय माघ शुक्ल द्वादशी तपःकल्याणप्राप्तायअर्घनिर्वपामीतिस्वाहा।