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________________ चौबी० पूजन संग्रह ५७९ .. भंडारं जग हितकारं जितमारं । ॐ ह्रीं श्रीमहावीर जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण चकल्याण प्राप्ताय क्षुधा रोग विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा। दीप-मणि दीप प्रकाशेध्यांत विनाशे निज हित भाषे कांति लसे। तल चर्ण चढाऊ मोहनलाऊंज्ञान सुपाऊं सुख बिलसे । श्रीवीर कुमारं शिवदातारं पाप निवारं सुखकारं । सुंदर आकारं ज्ञान भंडार जग हितकारं जितमा । ॐ ह्रीं श्री महावीर जिनेन्द्रीय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंच कल्याण प्राप्ताय मोहांधकार विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा। धूप-कृष्णागर चूरं लौंग कपूर परिमल भूरं खेवत हूं। तिस धूम उडाये अलिगण आये कर्म नसाये सेवत हूं॥ श्रीवीर कुमारं शिवदोतारं पाप निवारं सुख कारं । सुंदर आकारं ज्ञान भंडारं जग हितकार जितमारं । ॐ ह्रीं श्रीमहावीर जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म तप, ज्ञान निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय अष्ट कर्म दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा। फल-बादाम छुहारी लौंग सुपारी फल सहकारी में लायो। भर हाटक थारी तुम ढिग धारी शिव सुख कारी गुण गायो । श्री बारकुमारं शिव दातारं पाप निवारं सुखकारं । सुंदर आकारं ज्ञान भंडारं जग हितकारं जितमारं । ओं ह्रीं श्रीमहावीर जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय मोक्ष फल प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा। अर्घ-जल गंध अपारं अक्षत सारं सुमन सुधारं चरुजुबरा । ले दीपं धूपं फल बहु रूपं स्वर्ण रकाबी ||
SR No.010573
Book TitleVarttaman Chaturvinshati Jina Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBakhtavarsinh
PublisherBakhtavarsinh
Publication Year
Total Pages245
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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