SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 110
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चौबी० षोडशवर्ष किये भले, उग्र उग्र तप घोर । घोर कर्म सब जारके, पायो केवल भोर ॥ तार तार अरनाथ पूजन जी॥ योजन साढे तीन ही, समवशरण रच देव । सप्त भंग बाणी खिरे, सुन सुर नर शरधेव । तार मंग्रह | तार अर नाय जी ॥ १०॥आरज देशन के जिते, बोधे भव्य अपार । चार संघ सोहत भले, मुनि ५४८ आदिक व्रत धार ॥ तार तार अरनाथ जी ॥ ११ ॥ वरष इकीस हजार ही, कर उपदेश महान । सम्मेदागिरि आय के, योग निरोध सुठान ॥ तार तार अरनाथ जी ॥ चार अघाती हानके, जाय वरी शिव नार । लोकालोक निहारियो, पायो भव दधि पार ॥ तार तार अरनाथ जी ॥ १३ ॥ बखतावर विनती करे, सुनियें दीन दयाल ॥ रतन तने दुख मेटिये, आवागमन सुटाल॥तारतार अरनाथ जी॥ . घत्ताछन्द-अरनाथ सुवाणी सुन भव प्राणी, आरति हानी सुख दानी। यह बिनती मेरी निज हित केरी, हर भव फेरी तुम ज्ञानी ॥ १५ ॥ ौं ह्रीं श्रीअरनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय अनर्घ पद प्राप्तये महाऽधं निवपामीति स्वाहा। अथ आशीर्वादः । चौबोला चाल-जो पूजे मन लाय पाय अर जिनवर स्वामी। पुत्र मित्र धन लहैं । .. सार जग में हे नामी । जो वाचे मन लाय त्रास जम के मिट जावें । ते पावें भव पार फेर जग . में नहिं आवें॥ . इत्याशीर्वादः । इति श्रीअरनाथजिन पूजा संपूर्णा ।। १८॥
SR No.010573
Book TitleVarttaman Chaturvinshati Jina Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBakhtavarsinh
PublisherBakhtavarsinh
Publication Year
Total Pages245
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy