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११ अथ श्रीश्रेयांसनाथजिन पूजा प्रारभ्यते।
चौवी० पूजन संग्रह ५०२
(वखतावरसिंहकृत) छंद भुजंगप्रयात ।। स्थापना-श्रियांसं जिनेशं सुमेटे कलेशं, पिता बिम्ल के चर्न सेवें सुरेशं ।
पुरी पंच आनन में जन्म लीना, सुथा तुम्हें तिष्ठिये हे प्रवीना ॥ १ ॥ ॐ ह्रीं श्रीश्रेयांसनाथ जिनेन्द्र अत्रावतराऽवतर संवौषट् आह्वाननम् । ॐ ह्रीं श्रीश्रेयांसनाथ जिनेन्द्र अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठाठः स्थापनम् ।। ॐ ह्रीं श्रीश्रेयांसनाथ जिनेन्द्र अत्र मम सन्निहितों भवभव वषट् सन्निधीकरणम् ॥
अथ अष्टक। (चाल अठाई रासेकी) जल-हेजी प्राशुकजल शुभ लाय के, कंचन के कलश भराय । हेजी प्राणी सन्मुख धारा देत ही, रागा
दिक मल नस जाय प्राणी ॥ हेजीश्रेयनाथ पद पूजिये। पूजत सब इन्द्र सुआय प्राणी श्रेयनाथ
पद पूजिये। उौं ह्रीं श्री श्रेयांसनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण - प्राप्ताय जन्म मृत्यु जरारोग विनाशनाय जलंनिर्वपामीतिस्वाहा ॥ चंदन-हेजी बावन चंदन सीयरो, केसर संग घसाय प्राणी । जिन चरणन अरचा करू,संसार दाघ
मिट जाय प्राणी॥ हेजीश्रेयनाथ पद पूजिये। पूजत सब इन्द्र सुआय प्राणीश्रेयनाथ पद पूजिये।