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चौवी०
संग्रह
.. || अथ जयमाला । दोहा ।। महाअर्घ-हरित वरण वपु सोहनो, दोसैधनुषउतंग। स्वस्तिक लच्छन चरण में,नमूनायबसुअंग ॥१॥
छन्द मोतीदाम । तज मधि ग्रीवक सारविमान,धरोतुम जन्मबनारस आन।पिता सुप्रतिष्ट के नंदमहान, सुभव्यसरोजविकाशनभान ॥२॥ लही लख पूरब बीसजुआय,कुमारपणेषणलाखबिहाय। कियो फिर राजप्रजा सुखकार, सुपूरब चौदह लाख विचार ॥ ३॥ तजो सब राज लियो बनबास, सुसाठ हजार यती पुनरास । लहो तब ज्ञान चतुर्थ प्रकाश, धरो तहांध्यान ती जग आस ॥४॥ करे तप घोर सुग्रीषम पल्य, तपे अति भांत चले वहु झल्य। सुपावस रैन महाभय रास, करे चपला नभ मांह प्रकाशा५। चहूं दिशतेघनघोरप्रचण्ड,पड़े जल मूसलधार अखण्ड । चहूं दिश बाय चले सर जेम,खड़े तरु हेठ धरे निज पेम॥६॥जब ऋतु शीत तनो अति जोर,करै बहु तीक्षन पवन झकोर । जमैं तहां पोखर ताल अनेक,दहे बन माह सु वृक्ष कितेक शानदी सरके तट आय जिनंद,धरें तहां योग करें रिपु मंद । वर्ष सुसात रहे छदमस्थ,लहो फिर पंचम ज्ञान प्रशस्त ॥८॥समोशृत आन रच्यो धन देव, करि जब आय शची हरि सेव । खिरै दिवध्वन्नि सुने हरषाय, सभा सब द्वादश के समुदाय ॥९॥ करो जद आरज देश बिहार, प्रबोध अनेक दिये भवतार । कियो लख पूरव धर्म प्रकाश, रही जब आयतनो यक मास ॥१०॥सुयोग निरोध सम्मेद महान, सबै रिपु हानि गये निर्वान । अनंत गुणाकर शोभित