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________________ चोवी. धप-श्रीखंड लोंग कर सुगंध रे । खेऊ हुताशन सुकर्म निधार करे ॥ श्रीनेमिनाथ तुम याल पजन सुब्रह्मचारी। पुजं पदार युग कंज प्रमाद टारी ।। ॐ दी श्रीनेमिनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, संग्रह , तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय अष्टकम दहनाय धूपं निर्वामीति माहा। ५६८ फल-एला अनार वरसेव सुआम ला । सुवर्ण धार भर नाय तुम्हें नहा॥ श्रीनेमिनाथ तुम बाल सुब्रह्मचारी । पूजु पदार युग कंज प्रमाद दारी॥ ॐ ह्रीं श्रीनेमिनाथ जिनेन्द्रीय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याणा प्राप्ताय मोक्षफल प्राप्तये फलं नियंपामीति स्वाहा। अर्घ-नीरादि अष्ट शुभ प्राशक द्रव्य लाये । कीने महा अरघ सुंदर गान गाये। श्रीनेमिनाथ तुम बाल सुब्रह्मचारी। पज पदार युग कंज प्रमार टारी ।। उहाँ श्रीनेमिनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय अनर्घ पद प्राप्तये अचं नियंगामीति स्वाहा। अथ पंचकल्यागाक कडखाकंद। गर्भ-त्यागियो आपने येजयंते महा, मात शिव देवि की कप आये। श्वेत कातिक कहील के दिन लही मात के चरण तब शनी ध्याये ॥ धनद तय गगन ते वृष्टि करतो भयो रतन की आदि पण वजे लाये। छपन देवी तहां सेव करती महा सुरन ने आय बाजे बजाये॥ ॐ ह्रीं श्रीनेमिनाथ जिनेंद्राय
SR No.010573
Book TitleVarttaman Chaturvinshati Jina Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBakhtavarsinh
PublisherBakhtavarsinh
Publication Year
Total Pages245
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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