SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 174
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चौबी० १३ अथ श्री विमलनाथर्जिन पूजा लिख्यते। संग्रह ५१४ (बखतोवरसिंहकृत) छंद । स्थापना-श्री विमल जिनवर जन्मलीनो नगर कंपिल्या कही। कृत धर्म के सुत ऊपने जिस मात जय सेन्यासही ॥ ., शूकर चिहन चरनन विराजे तिष्टये इत आय के। ...: मैं हाथ जोड़ करूं सुर्विती थाप हूँ सिर नाथ के॥१॥ " डों ह्रीं श्रीविमलनाथ जिनेन्द्र अत्रावतराऽवतर संवौषट् आह्वाननम्। , डों ह्रीं श्रीविमलनाथ जिनेन्द्र अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठाठः स्थापनम् ।। .उौं ह्रीं श्रीविमलनाथ जिनेन्द्र अत्र मम सन्निहितो भवभव वषट् संन्निधीकरणम् ।। . . अथ अष्टक । बसंत तिलका छंद। जल-मुनि मन समसीरं वारि उज्वल सु लाऊं। भर कनक सुझारीधारतोकोचढाऊ॥तुम विमल जिनंदा - मात जयसेन नंदा।जजहचन तेरे काटिये कर्म फंदा॥ोंह्रीं श्रीविमलनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय जन्ममृत्युजरारोग विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा। चंदन-लेय शुभ हर गंधसंग कुंकुम रलाऊं,धर रतन कटोरी पूज तेरी रचाऊं ॥ .. . - ..
SR No.010573
Book TitleVarttaman Chaturvinshati Jina Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBakhtavarsinh
PublisherBakhtavarsinh
Publication Year
Total Pages245
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy