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चौबी०
१३ अथ श्री विमलनाथर्जिन पूजा लिख्यते।
संग्रह
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(बखतोवरसिंहकृत) छंद । स्थापना-श्री विमल जिनवर जन्मलीनो नगर कंपिल्या कही।
कृत धर्म के सुत ऊपने जिस मात जय सेन्यासही ॥ ., शूकर चिहन चरनन विराजे तिष्टये इत आय के। ...: मैं हाथ जोड़ करूं सुर्विती थाप हूँ सिर नाथ के॥१॥ " डों ह्रीं श्रीविमलनाथ जिनेन्द्र अत्रावतराऽवतर संवौषट् आह्वाननम्। , डों ह्रीं श्रीविमलनाथ जिनेन्द्र अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठाठः स्थापनम् ।। .उौं ह्रीं श्रीविमलनाथ जिनेन्द्र अत्र मम सन्निहितो भवभव वषट् संन्निधीकरणम् ।।
. . अथ अष्टक । बसंत तिलका छंद। जल-मुनि मन समसीरं वारि उज्वल सु लाऊं। भर कनक सुझारीधारतोकोचढाऊ॥तुम विमल जिनंदा - मात जयसेन नंदा।जजहचन तेरे काटिये कर्म फंदा॥ोंह्रीं श्रीविमलनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म
तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय जन्ममृत्युजरारोग विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा। चंदन-लेय शुभ हर गंधसंग कुंकुम रलाऊं,धर रतन कटोरी पूज तेरी रचाऊं ॥ .. . - ..