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चौबी
संग्रह. ४५२
... रोगविनाशनाय नैवेद्य निर्वपामीतिःस्वाहा। . . . . पूजनापरल दीप-रत्न जडित दोषक में धृतं भरपातिकपूर प्रजारी;मोह अंधके नाश करन को चरन कंज ढिगधारी। अजित जिनेश्वर कमनश्वा जैतसुरंगण'सारे,पदपंकजकीनख दुति ऊपर कोटिकरविशशिवारे। ॐ ह्रीं श्रीअजितनाथ जिनेद्रीय गर्भ,जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय मोहांध
कार विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा ॥ धूप-रत्न जडित धूपायन में ही देश विध गंधजराई,अष्ट कर्म के नाश करनको यजत चरण लवलाई।
अजित जिनेश्वर कर्म हनेश्वर पूजत सुरगण सारे पद पंकज की नखदुति ऊपर कोटिक रवि शशि वारे। ॐ ही श्री अजितनाथ जिनेंद्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण
प्राप्ताय अष्ट कर्म दहनाय धपं निर्वपामीति स्वाहा ॥ ., फल-श्रीफल सेव बदाम छहारा एला केला लावें, कंचन थाल भराय मनोहर सेवत शिवफल पावें।
अजित जिनेश्वर कर्म हनेश्वर पूजत सुर गण सारे, पद पंकज की नख दुति ऊपर कोटिक रवि शशि वारे। ॐ ही श्री अजितनाथ जिनेंद्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय मोक्ष फल प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा ॥ अर्चे र बजाई, नाचत गावत अंग नचावत शिवपुरदे जिनराई। .
• नख दुति ऊपर कोटिकः रवि