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________________ चोषी० छंद कामिनी मोहन-सेव देवी करें सरस अंबा तनी। नगर कंपिल्लका अधिक शोभा वनी॥ मांस नौ पूजन गर्भ के सार सख में गये। तात को भप सब शीस नावत भये ॥४॥ संग्रह आर्या छंद-जन्में त्रिभुवन स्वामी, शुकल चतुर्थी माघ की आई। सकल सुरासुर नामी, आसन कंपात . शीस सब नाई॥५॥ छन्द कामिनी मोहन-शीसको नाय के चलन उमगो हरी । रचो ऐरावती मानकेधन घरी॥जासके रदन ___ बहुतास पै सर बने । कमलिनी पत्र पै नृत्य देवी ठने । आर्याछंद-ताल मृदंग सुभेरी,बीना बंशी सुचंगसुर नाई। नाचेलेले फेरी,हाव भावसहित सप्तसुरगाई। छन्द कामिनी मोहन-गात बहु भांत पग झमक झमक झमकती। छमकछं छमकछं चमकचं चमकती॥ दमकदं दमकदं दामिनीसीभ्रमें । त्रिदश सब देखके शीस तम को नमें ॥ आर्याछंद-इत्यादि शोभभारी,मघवा लेलार आयपुर माही। मायामई शिशु धारी,शची लायइंद्र देय हरषाई छन्द कामिनी मोहन-लेय गीर्वाण गजराज चढके चले।जाय गिरि मेरु पैसकल ही सुररले॥ सहस अर ___ आठ तब वारि कलशे भरे। धार तुम शीस पै इंद्र कर ते ढरे ॥ १०॥ आर्या छंद-न्हौंन तनी विध सारी। करके श्रृंगार तात घर लाये । नृत्य कियो अति भारी,पूजे पित मात ‘धाम निज ध्याये ॥११॥ छंदकामिनी मोहन-ध्याय बहुधनदनित सेव थारीकरी । कुमर वय तरुण लह राज पदवी धरी ।राज को ..
SR No.010573
Book TitleVarttaman Chaturvinshati Jina Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBakhtavarsinh
PublisherBakhtavarsinh
Publication Year
Total Pages245
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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