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चौबी० अक्षत-सित अक्षत लायो चंद लजायो मुक्ता सम सो अनियारे, तिन पूज रचाये मन हरषाये चरण
तुम्हारे ढिग प्यारे । चौबीस जिनंदा आनंदकंदा हरि नित वंदा सुखकारी, भविजन नितध्यावें संग्रह
मंगल गावै तर बजावै भवहारी॥ ॐ ह्रीं श्री वृषभादि महावीर पर्यंत चतुर्विंशति जिनेंद्रेभ्यो
गर्भ जन्म तप ज्ञान निर्वाण पंचकल्याण प्राप्तेभ्यो ऽक्षतान् निर्वपामौतिः स्वाहा ॥३॥ पुष्प-मंदारसुवृक्ष आदि विटप के सुमन सुमनसम चुन लीने, मनमथ के नासी शिवपुर वासी पद:तुम्हरे में अरचीने। चौबीस जिनंदा आनंदकंदा हरि नित बंदा सुखकारी,भविजन नित ध्यावें मंगल
गावें तूर बजावें भव हारी ॥ ॐ ह्रीं श्रीवृषभादि महावीर पर्यंत चतुर्विंशति जिनेंद्रेभ्यो गर्भ - जन्म तप ज्ञान निर्वाण पंचकल्याण प्राप्तेभ्यः पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा ॥४॥ नैवेद्य-अति ही कठिनाई सुधा लजाई लाडू पूवाले पेरी, तुम क्षुधा भगाई फेर न आई मेटो मेरी भव
फेरी। चौबीस जिनदा आनंद कंदा हरि नित बंदा सुखकारी, भविजन नित ध्यावे मंगल गावें तुर बजावें भव हारी॥ ॐ ह्रीं श्री वृषभादि महावीर पर्यंत चतुर्विशति जिनेंद्रेभ्यो गर्भ जन्म
तप ज्ञान निर्वाण पंचकल्याण प्राप्तभ्यःक्षधा रोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वधमीति स्वाहा ॥५॥ दीप-शुभ दीप प्रजारा घृत वर डारा कर उजियारा तम हारी, तुम ज्ञानप्रकाशी अ
रचूं थारी । चौवीस जिनंदा आनंद कंदा हरि नित वंदा. गावे तूर बजावें भवहारी ॥ ॐ ह्रीं.