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चौबी
श्रीमुनिसुव्रतनाथ जिनेंद्राय वैशाख कृष्ण नवमी ज्ञान कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीतिस्वाहा ॥ पूजन || निर्वाण-अलि फागुण आईजी, द्वादश सुख दाईजी। सब कर्म नसाई, गिरिसम्मेदतें जी। तुम सिद्ध
कहायेजी, सब अलख लखाये जी। हम माथ नवाये, छडावो खेदते जी ॥ ॐ ह्रीं श्री मुनि* सुब्रतनाथ जिनेंद्राय फाल्गुण कृष्ण द्वादशी मोक्ष कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा॥.
अथ जयमाला। दोहा। महा अघ-इंद्रादिक नख मकट में, देखत आनत आय । छवि सुंदर मनको हरे, कोटिक भानुलजाय॥
चाल अहो जगतगुरु की-प्राणत स्वर्ग बिहाय मात श्यामा उर आये । तात सुमंत महान नगर कौशाग्र सुहाये ॥सेवे माता पाय सुरतिय आय नवीनी । नभते रतन अपार धनद ने बरषा कीनी ॥२॥ तुम जन्में जग ईश सकल जग मंगल छाये, आसन कंपित जान सबै सुर हर्षित आये। लेय गये गिरि शीस न्हवन कीनो अति भारी, कलस हजार भराय इंद्रने धारा ढारी॥३॥ कर शृंगार महान नाम मुनिसुव्रत दीना, सौंप मात हरषाय नृत्य तहां तांडव कीना। धनद करे नित सेव वस्त्र आभूषण लावे, हय गय हंसम पूरदेव बहुरूप बनावें ॥ सहस तीस तुम आय धनुषबपुबीस उचाई, साढे सात हजार कुमर पन माह विहाई। फेर कियो तुम राज बर्ष पंदरह सु हजारा, कृष्ण दसैं बैशाष सबै जग अथिर विचारा ॥ ५॥ देव ऋषी सब आय चरण तल पुष्प चढाये, संबोधन कह बैन नमन निजथान सिंधाये । निर्जर चार प्रकार सकल इंद्रादिक आये, रतन जडित सुखपाल तास मे तुम चढ धाये ॥६॥
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