SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 105
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५४३ . . चौबी० १८ अथ श्रीअरनाथजिन पूजा प्रारभ्यते । पूजन ... (वखतावरसिंहकृत) त्रिभंगी छंद । ___ संग्रह | स्थापना-हथनापुर आये भवि मन भाये पिता सुदर्शन राजा है। मित्रादे माता सब सुख दाता तिन की कूष बिराजा है । धनु तीस विराजे अति छबि छाजे लक्षण मीन जु पाया है। तिष्ठो जिनदेवा करहूं सेवा कर तें पुष्प चढाया है ॥१॥ ॐ ह्रीं श्रीअरनाथ जिनेन्द्र अत्रावतराऽवतर संवौषट् आह्वाननम्। ॐ ह्रीं श्रीअरनाथ जिनेन्द्र अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठाठः स्थापनम् । ॐ ह्रीं श्रीअरनाथ जिनेन्द्र अत्र मम सन्निहितो भवभव वषट् सन्निधीकरणम् ॥ अथ अष्टक । चाल "सगण हमध्यावें" की। | जल-जय निर्मल जल सुन्दर सुख कारी। जय जजत सुप्रासुक भरके झारी। सो प्रभुहम ध्यावें। जय __ पूजत इंद्र धनेंद्र जु आवें। जय तीर्थंकर चक्रेश्वर स्वामी । जय कामदेव अरजिन शिव गामी ! जी प्रभु हम ध्यावें ॥ ॐ ह्रीं श्रीअरनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय जन्ममृत्यु जरा रोग विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा। .
SR No.010573
Book TitleVarttaman Chaturvinshati Jina Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBakhtavarsinh
PublisherBakhtavarsinh
Publication Year
Total Pages245
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy