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चोबी. पूजन
ॐ ह्रीं श्रीधर्मनाथ जिनेंद्राय माघ शुक्ल त्रयोदशी तपः कल्याण प्राप्ताय अनिवपामीतिस्वाहा ॥ ज्ञान-चार घातिया नाशके, केवलज्ञान-प्रकाश । समवसरन लक्ष्मी सहित, पूनम पौष उजास ॥ संग्रहः ॐ ह्रीं श्रीधर्मनाथजिनेंद्राय पोष शुक्ल पूर्णिमा ज्ञान कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीतिस्वाहा ॥ .
निर्वाण-इंदतनीतिथि जेठकी,संज्ञा ध्यान बखान । जगत पूज्य शिव पाइयो, सम्मेदाचल जान ॥ .....: ॐ ह्रीं श्रीधर्मनाथजिनेंद्राय ज्येष्ठ शुक्लचतुर्थी मोक्षकल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीतिस्वाहा॥
. अथ जयमाला-दोहा। महाअर्घ-धर्मनाथ जिनकी छबी, कंचन बर्ण दिपंत । उन्नत पैतालिस धनुष बन्न चिह्न शोभंत ॥१॥
अडिल-धर्मजिनेश्वर देव नम शिरनायके, सारथ सिध त्याग रतनपुर आयके । पिता भानु महाराज सुब्रता मातजी,तिनके सुत तुम भये जगत विख्यातजी॥२॥बरष लाख दश आयु भली तुमने लई,बरष अढाई लाख कुमरपन में गई। पांच लाख जिन वर्ष राज तुमने कियो,सब परजा दुःख टाल सुयश जगमें लियो ॥३॥ कछु कारण लख राज त्याग बन में गये, पण मुष्टी कचलौंच परिग्रह तर्ज दये । हुवे सहस अवनीश आपके संग तब, भये दिगंबर रूप वरत धारे सवै ॥४॥ धर षष्ठम उपवास ध्यान में थिर भये, बर्द्धमानपुर माहि असन हितको गये । धर्मसेन तहां राय सु भोजन पय दिये,नवधा भक्ति जुधार सप्त गुणको लिय॥५॥पंचाश्चर्य महान तास घरमें भये,कर भोजन महाराज फेर कानन