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चौबी० पूजन संग्रह ५२६
१५ अथ श्रीधर्मनाथ जिन पूजा प्रारभ्यते॥
(बखतावरसिंह कृत) कड़खा छन्द । स्थापना-छाड विमान सर्वार्थ सिद्धे महामात श्री सुव्रता कूप आये,
पिता नृपभान है भान सम तेज जिस नगर रतनापुरी इंद्र ध्याये। लेय गिरि मेरु धे न्हौन करते भये, एक हज्जार कलशे दुराये, धर्म जिन पूजिये पाप सब धूजिये थाप हूं चर्न में सीस नाये ॥१॥ ॐ ह्रीं श्री धर्म नाथ जिनेंद्र अत्रावतरावतर संवौषट् आह्वाननम् । ॐ ह्रीं श्री धर्मनाथ जिनेंद्र अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम् ॥ ॐ ह्रीं श्री धर्मनाथ जिनेंद्र अत्र मम सन्नहितो भव भव वषट् सन्निधी करणम्॥
अथ अष्टक । छंद संदरी। जल-उदक श्वेत जु क्षीर समान ही, सुरन झारी भर कर आन ही। पूज हूं तुम चरन रिसाल जी, ___ धर्म जिनवर धर्म दयाल जी ॥ ॐ ह्रीं श्री धर्मनाथ जिनेंद्राय गर्भ जन्म तप ज्ञान निर्वाण पंच . कल्याण प्राप्ताय जन्म मृत्यु जरारोग विनाशनाय जलं निर्वामीति स्वाहा ॥