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________________ चौबी० ५६३ तप, ज्ञान, निर्वाण पंच कल्याण प्राप्ताय अष्ट कर्म दहनाय धूपं निवपामीति स्वाहा । .. फल-दाख छुहारा एला केला लाइये । सरस मनोहर थार भरे सुचढाइये ॥ पूजा श्रीनमिनाथ चरण की कीजिये । लख चौरासी योन जलांजलि दोजिये ॥ॐ ह्रीं श्रीनमिनाथ जिनेंद्राय गर्भ, जन्म तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय मोक्ष फल प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा। अर्घ-जल फल आठों द्रव्य मिलाय हूं । स्वर्ण रकाबी मांहि सुअर्घ बनाय हूं । पूजा श्रीनामनाथ चरण की कीजिये । लख चौरासी योन जलांजलि दीजिये ॥ ॐ ह्रीं श्रीनमिनाथ जिनेंद्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय अनर्घ पद प्राप्तये अर्घ निर्वामीति स्वाहा। अथ पंचकल्याणक । दोहा। गर्भ-अपराजित तजके प्रभु, विप्रा गर्भ मझार । आश्विन द्वितिया कृष्ण ही, लयों जजू पद सार॥ - ॐ ह्रीं श्रीनमिनाथ जिनेन्द्राय आश्विनकृष्ण द्वितिया गर्भ कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा जन्म-दशमी असित आसढ ही, जन्मे श्रीनमि देव । मघवासुर गिरि पर जजे, हम पूजें वसुभेव ॥ ॐह्रीं श्रीनमिनाथ जिनेन्द्राय आषाढ कृष्णदशमी जन्म कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वामीति स्वाहा तप-जन्म तनो दिन आइयो, तप कीनो बन जाय। पण मुष्टी कचलौंचियो, आतम ध्यान लगाय॥ ॐ ह्रीं श्रीनमिनाथ जिनेंद्राय आषाढ कृष्णदशमी तपः कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।
SR No.010573
Book TitleVarttaman Chaturvinshati Jina Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBakhtavarsinh
PublisherBakhtavarsinh
Publication Year
Total Pages245
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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