________________
-
चौबी० चंदन-घसत कुंकम चंदन लाइयो, सरस सौरभ पै अलि छाइयो । पूज हूं तम चरण रिसालजी, पजन
- धर्म जिनवर धर्म दयालजी॥ ॐ ह्रीं श्री धर्मनाथ जिनेन्द्राय गर्भ जन्म तप ज्ञान निर्वाण संग्रह ||
पंचकल्याण प्राप्ताय संसाराताप रोग विनाशनाय,चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा ॥.... ५२७ अक्षत-अक्षत उदेत महा छबि को धरें, कांति निशपति की देखत टरें। पूज हूं तुम चरण रिसालजी,
म जिनवर धर्म दयाल जी॥ॐ ह्रीं श्री धर्मनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण
पचकल्याण प्राप्ताय अक्षयपद प्राप्ताय अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा॥ पुष्प-सुमन वर्न अनेक प्रकार के, जडत स्वर्ण मई कर धारके। पूज हूं तुम चरण रिसालजी, धर्म
जिनवर धर्म दयाल जी ॥ ॐ ह्रीं श्री धर्मनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाणपंच ' कल्याण प्राप्ताय कामवाण विनाशनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा ॥ नैवेद्य-लेय नेवज विविध प्रकार जी, सरकरा मिश्रित भरथार जी । पूजहूं तुम चरण रिसाल जी,
धर्म जिनवर धर्म दयालजी । ॐ ह्रीं श्री धर्मनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंच
कल्याण प्राप्ताय क्षधारोग विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा॥ दीप-घृत कपूर तनें दीपक भरे, जोय कर तुम मंदिर में धरे, पूज हूं तुम चरण रिसालजी, धर्म जिन
वर धर्म दयालजी॥ ॐ ह्रीं श्री धर्मनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाणपंच कल्याण प्राप्ताय मोहांधकार विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा॥