SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 172
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ होती पूजन संग्रह . मोक्ष कल्याणक पूज हूँ॥ उौं ह्रीं श्रीवासुपूज्य जिनेन्द्राय भाद्रपद शुक्ल चतुर्दशी मोक्ष कल्याण . प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा। .. अथ जयमाला। दोहा।। महाअर्घ-बाल ब्रह्मचारी प्रभु, अरुण बरण अविकार । सत्तर धनुष सुउच्च तन,वासु पूज्य भवतार॥१॥ " भुजंग प्रयात छंद-अजी नाथजी, एक अर्जी हमारी, सुनों चित्त देके कहूं में प्रचारी। सबै आप के ज्ञान तेरे सुछाई, कहूं क्या भला मैंने जो दुःख पाई ॥२॥यही आठ कर्म दिये दुःख भारी, सुनें कौन मेरी करूं जो पुकारी । सबों में अगारी महा मोह राजा, भ्रमायो हमें बहुत कीनों अकाजा। ॥३॥ दुती ज्ञान वर्न हरी बुद्ध मेरी, न होने दई नाथ ज्ञानं उजेरी । तृती दर्शना बर्न देखन्न देवे, छुटे फंद याको तबै आप बेवे ॥४॥ बली अंतरायं करी जो नवीनी, छती बस्तु मोको जु भोगन्न दीनी। बडो नाम कम सबै जेर कीने, गिने नहिं जावे इते नाम दीने ॥५॥ जबै गोत कर्म कियो आन फेरो, कभी उच्च कीनो कभी नीच चेरो। कभी सागरों की धरी आय केती, कभी स्वासके भाग में आय एती॥ ६॥ भली बेदनी स्वर्ग के सुक्ख धारे, असाता उदय नर्क में आनडारे । यही बंध मूलं कुभव में भ्रमायो, डरो में इन्हों से तेरी शर्ण आयो॥७॥ बचावो इन्हों से अजी आप स्वामी, बडो वृद्ध तेरो सबै माहनामी । जिते शर्न आये तिते पार पाये, तिनोंके चरित्रं कथा बेद गाये ॥८॥ सबै देव
SR No.010573
Book TitleVarttaman Chaturvinshati Jina Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBakhtavarsinh
PublisherBakhtavarsinh
Publication Year
Total Pages245
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy