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चौवी० ॥
राग द्वेष निरवार करं॥ १३ ॥ ० ह्रीं श्री मल्लिनाथ जिनेंद्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पूजन ।।... पंचकल्याण प्राप्ताय अनर्घपद प्राप्तये महाऽधं निर्वपामीति स्वाहा। संग्रह
अथ आशीर्वादः-सवैया ३१वां। बंश इक्ष्वाक माह प्रगट भये कुंभराय ताके शुभ नंदन श्रीमल्लिनाथ
जानको तिन के चरणारविंद सेवत सुरेंद्रचंद्र ध्यावत मुनिंद्रवृंद नाना थुतिठान के। कोई भव्य जीव अष्ट दरव शुद्ध लाय पूजा को रचाय बहु भक्ति उर आन के । ताके शुभ पुण्य की सुमहिमा न कही जाय सो लहैं मोक्ष थान सर्व कर्म हानक॥१४॥इत्याशीर्बादः।
' इति श्रीमल्लिनाथ जिन पूजा संपूर्णा१९॥