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________________ पूजन ૨૮૦. चौबी० चंदन-गोसीर सुगंध अपार कुंकुम रंग भरा। तुम पद अरचूं युग सार भव आताप हरा। श्रीदेव सुपारसनाथ तुम गुण गावत हूं । मुझ कीजे आप सनाथ यातें ध्यावत हूं॥... संग्रह. . . ॐ ह्रीं श्रीसुपार्श्वनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय __ संसारा ताप रोग विनाशनाय चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा। अक्षत-निशकर की ज्योति समान अक्षत अनियारे। अक्षय पद हेतु सुजान पुंज रचूं प्यारे। श्रीदेव सुपारसनाथ तुम गुण गावत हूं। मुझ कीजे आप सनाथ यातें ध्यावत हूं॥ ॐ ह्रीं श्रीसुपार्श्वनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय __ अक्षय पद प्राप्तये अक्षतान निर्वपामीति स्वाहा । पुष्प-संतान कल्पतरु आदि तिन के सुमन लिये। तापर अलि करत सुनाद चरणन भेट किये ॥ श्रीदेव सुपारसनाथ तुम गुण गावत हूं। मुझ कीजे आप सनाथ यातें ध्यावत हैं। ॐ ह्रीं श्रीसुपार्श्वनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निव ..... .. वाण विनाशनाय पुष्पं निर्वपामीति । विद्य-नेवज नाना परका
SR No.010573
Book TitleVarttaman Chaturvinshati Jina Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBakhtavarsinh
PublisherBakhtavarsinh
Publication Year
Total Pages245
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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