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पूजन
जाना
चौबी० सवा करी॥ ॐ ह्रीं श्रा अनन्तनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान निर्वाण पंचकल्याण
प्राप्ताय क्षुधारोग विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा ।। संग्रह' दीप-दीपक नवीने बार दीने, सरस होत उजासका । मम मोहध्वांत विनाश कीजे, सुपर ज्ञान ५२२
प्रकाशका ।श्री नंत जिनवर छबि सुतेरी, देखतें नाशें अरी। सब इंद्र चंद्र धनेन्द्र चक्री आज पद सेवा करी ॥ॐ ह्रीं श्री अनन्तनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण
प्राप्ताय मोहांधकार विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा ॥ धूप-करपूर कृष्णागर सुचंदन,लौंग आदि मिलायहूं । दश गंध खेऊ ढिग तुम्हारे, अष्ट कम जराय
हूं॥श्री नंतजिनवर छवि सु तेरी , देखते नाशें अरी, सब इंद्र चंद्र धनेन्द्र चक्री आन पद
.सेवा करी॥ ॐ श्री अनन्तनाथ जिनेन्द्रायगर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय . . अष्ट कर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा ॥ फल-बादाम पिस्ता दाख दाडिम, षारिकादि मंगाईये । धारूं सुपद ढिग थाल भरके, देत सब सुख
पाइये ॥श्री नंतजिनवर छवि सुतेरी, देखते नाशे अरी । सब इंद्र चंद्र धनेन्द्र चक्री, आन पद सेवा करी ॥ ॐ ह्रीं श्री अनन्तनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञाननिर्वाण पंचकल्याण
प्राप्ताय मोक्षफल प्राप्तये फलंनिर्वपामीतिस्वाहा॥ . अर्घ-लेबारि गंधमयी सुअक्षत, . मन नेवः ।