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चौबी०
. अथ पंचकल्याणका दोहा। - गर्भ-अपराजित स विमान तंज, परजावति उर आय । चैत शुकल एक भली, जजे चरण हरषाय । संग्रह
. ॐ ह्रीं श्रीमल्लिनाथ जिनेंद्राय चैत्रशुक्ल प्रतिपदा गर्भ कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा। .. जन्म-जनमें मंगशिरशुक्ल ही, संख्या रुद्रजिनेश। न्हवन कियो गिरि मेरुपै,अमर वृंद अमरेश। डों ह्रीं
श्री मल्लिनाथ जिनेंद्राय मार्गशिर शुक्ल एकादशी जन्म कल्याणप्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा तप-मगसिर ग्यारस शुक्ल ही, बालपनें मल्लिनाथ । छाड परिग्रह बन वसे, हम नावें निजमाथ । डों ह्रीं
श्री मल्लिनाथ जिनेंद्राय मार्गशिर शुक्ल एकादशी तपः कल्याण प्राप्ताय अर्घनिर्वपामीति स्वाहा। ज्ञान-पौष श्याम दुतिया हने, चार कर्म दुःख दाय। केवल ज्ञान प्रकाशियो, चतुरानन दरशाय । डों ह्रीं
श्री मलिनाथ जिनेंद्राय पौष कृष्ण द्वितीया ज्ञान कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा। निर्वाण-शुकला फागुण पंवमी लहो अचल पद देव।गिरि समेद पुजू मही, अष्ट द्रव्य शुभलेवाओं ह्रीं
श्री मलिनाथ जिनेंद्राय फाल्गुण शुक्ल पंचमी मोक्ष कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।
....: अथ जयमाला। दोहा । .... महा अर्घ-शिशु बय तें मलिनाथ जी,पालो शील अखंड । राज भोग छोडेसबै, जीतो काम प्रचंड ॥१॥ : नभ में उडुगण हैं जिते, का पें गिने सुजाय ।त्यों तुम गुणमाला विविध, हम से किम वरनाय ॥२॥