SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 24
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चोबी० पजन संग्रह ४५८ .संभवनाथ हैं। ॐ ह्रीं श्री संभवनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण ... प्राप्ताय अष्ट कर्म दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा। फल-आम्र दाडिम चिर्भट सेवही, फल मनोहर उत्तम भेवही। जगतनाथ कृपाकर लीजिये, हमें संभव शिव फल दीजिये। ॐ ह्रीं श्रीसंभवनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंच कल्याण प्राप्ताय मोक्ष फल प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा। अर्घ-जलं फलादि सब दरव मिलाय हुं, करत अर्घ अनूपम लाय हुं । कर सुखी मुझ देख बिहाल .... को, हरहु संभव जग जंजाल को। डों ह्रीं श्रीसंभवनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान । निर्वाणपंचकल्याण प्राप्ताय अनर्घपद प्राप्तये अर्घ निर्वपामीति स्वाहा। अथ पंचकल्याणक । दोहा। गर्भ-फागुण सित अष्टमि भली, तज ग्रीवक अहमिंद । सेना माता उर बसे, सेव सुरतिय वृंद। . ॐ ह्रींश्रीसंभवनाथजिनेंद्राय फाल्गुण शुक्ल अष्टमी गर्भकल्याणप्राप्तायअर्घनिर्वपामीतिस्वाहा। जन्म-पूनम कातिक श्वेत ही,तृतिय ज्ञान युत देव । मेरुशृंग पर हरिजजे,महपूजें कर सेव । ॐह्रीं श्री संभवनाथ जिनेंद्राय कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा जन्म कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा। तप-मगसिर पूनम शुक्ल ही, तप धारो जिन ईश। सकल परिग्रह त्याग के, हम ना निज शीश।
SR No.010573
Book TitleVarttaman Chaturvinshati Jina Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBakhtavarsinh
PublisherBakhtavarsinh
Publication Year
Total Pages245
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy