SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 25
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चौबी०. ॐहीश्रीसंभवनाथ जिनेंद्राय मार्गशिरशुक्ल पूर्णिमा तपकल्याण प्राप्ताय अर्घनिर्वपामीतिस्वाहा . . पजन ज्ञान-कातिक कारी चौथ दिन, चार कर्म हन ज्ञान । समवसन शोभित भयो, द्वादशसभामहान । ॐहीं ..संग्रह . श्री संभवनाथ जिनेंद्राय कार्तिक कृष्ण चतुर्थी ज्ञान कल्याण प्राप्ताय अर्घनिर्वपामीतिस्वाहा।.. १५९ निर्वाण-षष्ठी शुकल सुचैत्र की, पायो अविचल थान। सम्मेदा गिरि सीसतें, जजूं तुम्हें धर ध्यान। ॐ ह्रीं श्री संभवनाथ जिनेंद्राय चैत्र शुक्लषष्ठी मोक्ष कल्याण प्राप्तायअर्घनिर्वपामीति स्वाहा। .' अथ जयमाला। दोहा। जो किसान खेती करे, कारज अपने मान । भूप तनो नहि हेत लख, पोषत कुटंब सुजान ॥१॥ त्यो तुम गुण माला विविध, बरन अपने हेत। रागादिक वर्जित.प्रभु, भावन को फलदेत ॥२॥ ....... छन्द चंडी-जय संभव जगदीश नमस्ते, राग दोष मद पीस नमस्ते। जयानंद धनबीर नमस्ते, नाशत हो भव पीर नमस्ते ॥ ३॥ लोका लोक प्रकाश नमस्ते, जन्म जरा दुख नाश नमस्ते । कर्म बज़ को छेद नमस्ते, मोह महा भट भेद नमस्ते ॥४॥ भव दधि तारन सेतु नमस्ते, अधम उधारन हेतु नमस्ते । क्रोध दवानल वारि नमस्ते, भव्य जीव निस्तारि नमस्ते ॥५॥मान शैल को बिंदु नमस्ते । धर्म धुरंधर सिंधु नमस्ते । माया शल्यः बिहंड नमस्ते, अष्ट कर्म के खण्ड नमस्ते ॥६॥ बहु सुख | दायक देव नमस्ते, इंद्र करत नित सेव नमस्ते । प्रतिहार्य वसु धार नमस्ते, तरु अशोक. ढिग धार
SR No.010573
Book TitleVarttaman Chaturvinshati Jina Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBakhtavarsinh
PublisherBakhtavarsinh
Publication Year
Total Pages245
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy