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________________ चौबी०चंदन-गोशीर्ष चंदन और कुंकुम वार संग घसाइयों, तुम चरण पूजं धार देके मोह ताप मिटाइयो।। पूजन तुम सम न तारण तरण कोई अहो मुनिसुव्रत धनी, हरि वंश नभ में आप शशि सम कांति तुम समनतातरणका संग्रह सोहे अतिघनी॥ ॐ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतनाथ जिनेंद्राय गर्भ, जन्म, तप,ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय संसारा ताप रोगविनाशनाय चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा ।। अक्षत-मुक्ता समान अखंड अक्षत चंद की दुति को हरें, मम अषेपद दीजे जिनेश्वर पुंज तुम आगे . धरें । तुम सम न तारण तरण कोई अहो मुनिसुव्रतधनी, हरि वंश नभ में आप शशि सम १. कांति सोहे अति घनी ॥ ॐ ह्रीं श्री मुनिसुव्रतनाथ जिनेंद्रीय गर्भ, जन्म,तप, ज्ञान, निर्वाण पंच कल्याण प्राप्ताय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा। 'पुष्प-मंदार तरुके कुसुम प्राशुक गंध पै अलि छाइये, सो लेय तुम ढिग चरण धारे मदन वान नसाइये। तुम सम न तारण तरण कोई अहो मुनिसुव्रत धनी । हरि वंश नभ में आप शशि सम कांति सोहे अति धनी ॥ ॐ ह्रीं श्री मुनिसुव्रतनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंच कल्याण प्राप्ताय काम वाण विनाशनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा॥ नैवेद्य-खगधीश सुरनर असुर सबको क्षुधा वेदन दुख करो। पकवान तैं तुम चरण पूजंक्षुधा नागन को हरो, तुम सम न तारण तरण कोई अहो मुनिसुव्रत धनी, हरिवंश नभ में आप शशि सम कांति सोहे अति घनी ॥ॐ ह्रीं श्री मुनिसव्रतनाथ जिने ये
SR No.010573
Book TitleVarttaman Chaturvinshati Jina Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBakhtavarsinh
PublisherBakhtavarsinh
Publication Year
Total Pages245
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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