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________________ चौबी० अतिन्हौंन ठाठ कीनो सुरेश ॥६॥क्षीरो दयितें सित वार लाय, इक सहस वसु कल से भराय । युग पूजन इंद्र तबै कर सहस धार, तुम मस्तक पै ढारी उदार ॥७॥ पुन शची पूंछ श्रृंगार कीन,फिर पिता सदन 'संग्रह लायो प्रवीन । जननी की गोद दिये जिनंद, जिन देखत हरषी कुमद चंद ॥८॥ तहां तांडव नृत्य ४४८ सुरेस ठान, पित मात पूज कीनो पयान । शशि दुतिया जिम तुम वृद्धि थाय, पूरब लख बीस गए बिहाय ॥९॥ पुन राज भोग कीनो उदार,पुरब लख त्रेसठ सुख अपार। नीलांजन नृत्य कियो सुआय, तह छिन तिसको गय वपु पलाय ॥ १०॥ इह कारन लख जग तें उदास, भाई अनुप्रेक्षा पुण्यरास । लोकांतिक सुर पूजे नियोग, हरि शिविका लाये अति मनोंग ॥११॥ तापर चढके कानन प्रयाग, तुम पहुंचे सकल समाज त्याग । तहां शिला स्वच्छ पर योग ठान, पण मुष्टी लौंच कियो महान ॥१२॥ खडगासन ठाडे ध्यान धार, षट् मास प्रतिज्ञा कर उदार । फिर असन हेत कीनों विहार, राजा श्रियोस दीनो अहार ॥ १३॥ फिर पुरमिताल के बन सु आन, उपजायो केवल ज्ञान भान । तव समवसरन रचना अशेप । धनपति ने कीनी अति सुवेश ॥ १४ ॥ताको वरनत सुर गुरु थकाय, सो मोपै किम वरनो सुजाय । तहां सप्त तत्व परकाश सार, इक लाख पूर्व कीनो विहार ॥ १५॥ फिर अष्टापद गिरि शीस धाय, तिन चौदह योग निरोध आय । तब प्रकृति पचासी नाश कीन, इक समय मांहि शिव वासलीन ॥ १६ ॥ तुम गुण अनंत को नाहिपाय, मैं नमन करूं शिर नाय नाय । इक्षाकु वंश मय गुण गरिष्ट, बखता रतना के परम इष्ट ॥१७॥
SR No.010573
Book TitleVarttaman Chaturvinshati Jina Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBakhtavarsinh
PublisherBakhtavarsinh
Publication Year
Total Pages245
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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