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- पूजन
४८७॥
चौबी०॥ दीप-दीपक उजियारे जोय समारे तम छय कारे जोत घनी। मोहादिक नाशो ज्ञान प्रकाशों हम घट
वासो मोक्ष धनी। महासेन दुलारे चंद पियारे तन उजियारे जोत धरे । नख दुतिपै थारे कमल . संग्रह सहारे चंद बिचारे चरण परे। ॐ ह्रीं श्री चन्द्रप्रभ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण
पंचकल्याण प्राप्ताय मोहांधकार विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा। धूप-शुभ अगर मंगावे तगर रलावे मधुकर आवे कर शोरी। तिस गंध सुहाई दश दिश छाई कर्म जराई
जिम होरी । महासेन दुलारे चंद पियारे तन उजियारे जोत धरे । नख दुतिय थारे कमल सुहारे चंद विचारे चरण परे॥ ॐ ह्रीं श्रीचन्द्रप्रभ जिनेंद्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान निर्वाण पंच
कल्याण प्राप्ताय अष्ट कर्म दहनाय धूपं निर्वपामीतिस्वाहा। | फल-फल पक्व नवीने सबरस भीने आय धरीने षट ऋतु के। तुम भेट धराऊं मन हरषाऊ शिवफल
पाऊं निज हितके। महासेन दुलारे चंद पियारे तन उजियारे जोत धरे। नख दुतिपैथारे कमल | सुहारे चंद विचारे चरण परे। उौं ह्रीं श्रीचन्द्रप्रम जिनेंद्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान निर्वाण |
पंचकल्याण प्राप्ताय मोक्ष फल प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा। अर्घ-जल फल वसुलाये मंगल गाये अर्घ बनाये भर थारी । वसु कर्म हनीजे देर न कीजे शिव पुर
दीजे सुख भारी। महासेन दुलारे चंद पियारे तन उजियारे जोत धरे। नख दुतिथे थारे कमल सुहारे चंद विचारे चरण परे। 0 ह्रीं श्री चन्द्रप्रभु जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान निर्वाण