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चोबी माह निवास जिनंद, धरे व्रत चारित.आनंद कंद ॥९॥ गहे तहां अष्टम के उपवास, गये धन दत्त पूजन तनें जु अवास। दियो पयदान महा सुखकार, भईपण वृष्टि तहां तिहवार ॥१०॥ गये फिर कानन माह संग्रह दयाल, धरो तुम योग सबै अघटाल । तबै वह धूम सुकेत अयान, भयो कमठाचर को सुर आन॥११॥ ५७६ करै नभ गौन लखे तुम धीर, जू पूरब बैर बिचार गहीर । करो उपसर्ग भयानक घोर, चली बहु तीक्षण
पवन झकोर ॥१२॥ रहो दशहू दिश में तम छाय, लगी बहु अग्नि लखी नहिं जाय । सुरुंडन के बिन मुण्ड दिखाय,पडे जल मूसल धार अथाय॥१३॥तब पद्मावती कंत धनंद, नये युग आय तहांजिनचंद। भगो तब रंक सुदेखतहाल, लहो तब केवल ज्ञान विशाल ॥१४॥ दियो उपदेश महाहितकार सुभव्यन बोधि सम्मेद पधार ।सु सुव्रण भद्र जू कूट प्रसिद्ध,बरी शिवनारि लही बसुऋद्ध॥१५॥जजू तुम चर्णदोऊ कर जोर । प्रभु लखिये अबही मम ओर। कहैं वखतावर रत्न बनाय,जिनेश हमें भव पार लगाय ॥१६॥
पत्ता छंद-जय पारस देवं सुर कृत सेवं बंदित चरण सुनागपती। करुणा के धारी पर उपकारी शिव सुख कारी कम हती॥ १७॥ ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंच कल्याण प्राप्ताय अनर्घ पद प्राप्तये महाऽध निर्वपामीति स्वाहा ॥
अथ आशीर्वादः-छंद मद अवलिप्त । जो पूजे मन लाय भव्य पारस प्रभु नित ही। ताके दुख सब जांय भीतिव्यापै नहिं कितही। सुख संपति अधिकाय पुत्र मित्रादिक सारे । अनुक्रम सों शिव लहे.. . रतन इम कहे पकारे ॥१८॥ त्या .....